नक्सली हिंसा के समर्थकों पर निर्णायक प्रहार करने की जरूरत

Edited By Pardeep,Updated: 31 Aug, 2018 04:23 AM

need to make a decisive strike on supporters of naxalite violence

माओवादी और नक्सली कम्युनिस्ट विचारधारा को मानने वाले क्रूर आतंकवादी हैं जो गरीब जनजातियों और संवैधानिक सत्ता के प्रतिनिधि सुरक्षा बलों पर धोखे से हमले कर एक काल्पनिक ‘सर्वहारा का राज’ बनाने का दावा करते हैं। वे भारत की गणतांत्रिक व्यवस्था एवं...

माओवादी और नक्सली कम्युनिस्ट विचारधारा को मानने वाले क्रूर आतंकवादी हैं जो गरीब जनजातियों और संवैधानिक सत्ता के प्रतिनिधि सुरक्षा बलों पर धोखे से हमले कर एक काल्पनिक ‘सर्वहारा का राज’ बनाने का दावा करते हैं। 

वे भारत की गणतांत्रिक व्यवस्था एवं सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं, ऐसे वक्तव्य कांग्रेस शासन में उनके प्रधानमंत्री और गृहमंत्री ने दिए थे। ऐसे कम्युनिस्ट आतंकवादी संगठनों को तत्कालीन कांग्रेस शासन में गृहमंत्री शंकर राव चव्हाण के समय प्रतिबंधित किया गया था और दस राज्यों के 106 जिले नक्सल प्रभावित घोषित किए गए हैं। 

ऐसे कम्युनिस्ट नक्सलियों को वैचारिक, मीडिया, प्रचार एवं अन्यान्य तरीकों से सहारा, समर्थन, सहायता देने वाले विभिन्न विश्वविद्यालयों, अकादमिक संस्थानों में चुपचाप कार्य करते हैं, नक्सल विरोधी व्यक्तियों और सरकारों के खिलाफ वातावरण बनाते हैं, सुरक्षा सैनिकों पर हमलों को सही सिद्ध करने या उसे उपेक्षित करने के लिए मीडिया राजनीति, सार्वजनिक संस्थानों में अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हैं। इन लोगों की ‘शब्द क्रूरता’ उतनी ही जघन्य और आतंक बढ़ाने में सहयोगी होती है जितनी नक्सलियों की राइफलें और हमले। ऐसे 8 शब्द क्रूर-नक्सल समर्थक लोगों पर महाराष्ट्र पुलिस ने कार्रवाई की और उससे पहले उनके बारे में पूरी तथ्यात्मक जानकारी जुटाई तो सोशल मीडिया पर कुछ लोगों ने ‘मैं भी नक्सल’ अभियान चलाया तथा इन लोगों पर कार्रवाई लोकतंत्र एवं असहमति के अधिकार का हनन है, ऐसा बताया। 

इन लोगों ने कभी सुरक्षा सैनिकों से हमदर्दी नहीं जताई, कभी उनकी शहादत पर नक्सलियों से असहमति प्रकट नहीं की, कभी नक्सलियों की विचारधारा, उनकी हिंसा का विरोध नहीं किया पर नक्सल समर्थकों पर देशहित में कानूनी कार्रवाई पर जो शोर मचा रहे हैं वह हमारे सुरक्षा सैनिकों की शहादत का अपमान ही है। वास्तव में कम्युनिस्ट विचारधारा को मानने वाला जो इन नक्सली आतंकवादियों का समर्थन करे, उसे वही सजा मिलनी चाहिए जो नक्सलियों को मिलती है। इसके अलावा इस बर्बरता को खत्म करने का और कोई मार्ग ही नहीं है।

दुर्भाग्य से भारत में साधारण नागरिकों और सैनिकों पर हमले भी राजनीतिक खेल का विद्रूप हिस्सा बना दिए जाते हैं जबकि ऐसे विषय सर्वसम्मत कठोर कार्रवाई की मांग के होने चाहिएं। कांग्रेस नेताओं ने नक्सली हिंसा की घटनाओं पर केंद्र व छत्तीसगढ़ सरकार पर प्रहार किए, पर क्या उन्होंने एक शब्द भी नक्सलियों, उनकी विचारधारा और उनके समर्थकों के विरुद्ध कहा? जो लोग नक्सली हिंसा पर खामोशी ओढ़ते हैं और उनके विरुद्ध कार्रवाई पर सरकार को घेरते हैं, वे खुले तौर पर ङ्क्षहसक गुटों को रक्षा-कवच प्रदान करते हैं। 

अप्रैल, 2017 में सुकमा में केंद्रीय आरक्षी पुलिस बल के 25 जवानों को घात लगाकर नक्सलियों ने मार दिया था। वे सैनिक किनके पुत्र थे? क्या वे किसी हिंसक दल के उद्देश्यहीन भटके लोग थे या संविधान की सत्ता के निर्देश पर मातृभूमि के सिपाही थे? नक्सल समर्थक शब्द-जेहादी भारतीय सैनिकों के शत्रु और सैनिकों पर आक्रमण करने वालों के रक्षा-कवच बने हैं। 

विश्व के किसी देश में अपने नागरिकों तथा सैनिकों पर आक्रमण करने वालों का ऐसा खुला महिमा-मंडन नहीं किया जा सकता जैसा भारत के सोशल मीडिया पर शब्द-जेहादी कर पा रहे हैं। इसी सप्ताह सिंगापुर में एक बैंक कर्मचारी ने फेसबुक पर दिखाया कि उसके सीने पर सिंगापुर का ध्वज भले ही होगा पर उसे चीर कर देखो तो भीतर भारत का ध्वज दिखेगा। सिर्फ इसी बात पर उसे नौकरी से निकाल कर वापस भारत भेज दिया गया पर भारत में भारत की सुरक्षा पर, सैनिकों पर, नागरिकों पर हमला करने वालों से हमदर्दी जताना एक विकृत, भत्र्सना योग्य ‘सोशल मीडिया’ फैशन बना दिया जाता है। इन लोगों ने ‘मैं भी सैनिक हूं’ ऐसा कभी ट्विटर पर ट्रैंडिंग का अभियान चलाया होगा क्या? सैनिक नहीं बनेंगे पर सैनिकों पर हमला करने वालों को समर्थन देने के लिए ‘मैं भी नक्सली’ बनेंगे। 

नक्सली स्थानीय जनता के प्रति इतने निर्मम होते हैं कि अपने प्रभाव वाले क्षेत्रों में न सड़क बनाने देते हैं, न अस्पताल या विद्यालय खोलने देते हैं। पिछले कुछ वर्षों में उन्होंने कितनी हिंसा की है, उसका अंदाजा भी सामान्यजन नहीं कर पाते। सन् 2016 में करीब 69 घटनाओं में नक्सलियों ने 123 नागरिकों तथा 66 सुरक्षा बलों के सैनिकों को शहीद किया, 2015 में 118 घटनाएं-नागरिक 93, सुरक्षा सैनिक 57 शहीद, 2014 में 155 घटनाएं-नागरिक 128, सुरक्षा सैनिक 87 शहीद।

कदाचित चीन और पाकिस्तान से युद्ध में हमारे नागरिकों तथा सुरक्षा सैनिकों की इतनी बड़ी मात्रा में क्षति नहीं हुई होगी जितनी गत 20 वर्षों में नक्सली-माओवादी हिंसा में हुई है। उनके विरुद्ध राष्ट्रीय एकजुटता से निर्णायक प्रहार करने की आवश्यकता है न कि उनके समर्थन को एक विद्रूप आजादी का मुद्दा बनाना।-तरुण विजय

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