‘सॉरी’ कहने के लिए हिम्मत चाहिए, यहां तक कि चरित्र भी

Edited By Pardeep,Updated: 22 Apr, 2018 04:14 AM

need to say sorry even the character too

उन्होंने तो देश की सर्वोच्च अदालत को ब्लैकमेल करने तथा धमकाने के प्रयासों को ढांपने की भी कोशिश नहीं की। न्यायपालिका के साथ अपनी बंधुआ की तरह व्यवहार करने वाली पार्टी, जिसकी पूर्व अध्यक्ष इंदिरा गांधी न्यायपालिका की कीर्ति के प्रति निष्ठावान थीं, ने...

उन्होंने तो देश की सर्वोच्च अदालत को ब्लैकमेल करने तथा धमकाने के प्रयासों को ढांपने की भी कोशिश नहीं की। न्यायपालिका के साथ अपनी बंधुआ की तरह व्यवहार करने वाली पार्टी, जिसकी पूर्व अध्यक्ष इंदिरा गांधी न्यायपालिका की कीर्ति के प्रति निष्ठावान थीं, ने जस्टिस लोया के मामले में तीन जजों की पीठ द्वारा सर्वसम्मति से आरोपों को पूरी तरह से गलत बताते हुए मामले को खारिज करने के कुछ ही घंटों बाद चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग चलाने का मोर्चा खोल दिया। 

जस्टिस लोया की प्राकृतिक मौत के बारे में संदेह व संशय पैदा करने का एकमात्र उद्देश्य सत्ताधारी पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह को निशाना बनाना था। कांग्रेस इतनी ढीठ तथा निराश बन गई है कि लोकतांत्रिक ढांचे पर सीधा हमला करना भी इसे मामूली लगता है। चीफ जस्टिस द्वारा इसे एक ऐसे निर्णय से लाभ पहुंचाने से इंकार करने के बाद जिससे इसे शाह के खिलाफ झूठ का अभियान चलाए रखने में मदद मिलती, इसने चीफ जस्टिस की छवि को मलिन करने का प्रयास किया, जिन्होंने अपने नेतृत्व कौशल से गांधियों को कई चुनावी चोटें पहुंचाईं और उनके गले की हड्डी बने हुए हैं। गांधी परिवार इस नई सच्चाई को पचा नहीं पा रहा कि भारत पर शासन करना उनका जन्म सिद्ध अधिकार नहीं है। क्या इतना ही पर्याप्त नहीं है कि आय का कोई जाहिरी स्रोत न होने के बावजूद वे राजाओं की तरह जीवन जी रहे हैं। 

दुर्भाग्य से पक्षपाती मीडिया ने अपनी शिकायतों के कारण गांधियों को सिर पर चढ़ा रखा है, उनमें से कुछ सत्ताधारी पार्टी के खिलाफ वास्तविक भी हैं तो क्या तथाकथित उदार-धर्मनिरपेक्ष वर्ग, जो सत्ताधारी पार्टी को नापसंद करने के मामले में इतना अंधा हो चुका है कि वह संवैधानिक ढांचे पर भी आगे से हमला बोलने का इच्छुक है। यदि सिस्टम गांधियों तथा उनके सहयोगियों के इच्छित हमले को नहीं झेल पाया तो वही उदार-धर्मनिरपेक्ष खुद को कटघरे में खड़ा पाएंगे। निजी हितों के लिए लोकतांत्रिक नियमों के साथ छेड़छाड़ करने की गलती न करें। 

यद्यपि, यदि लोया मामले में उनकी बीमार मानसिकता का खुलासा हुआ है तो चीफ जस्टिस मिश्रा को धमकाने के प्रयासों से कांग्रेस के मालिकों के अंतर्निहित अखड़पने का भी पर्दाफाश  हुआ है, जिनके कृपापात्र अपने बॉसिज के लिए अहसान पाने हेतु न्यायपालिका की स्वतंत्रता को भी गौण करना चाहते हैं। एक सूत्र ने बताया कि लोया मामले में निर्णय सुनाए जाने से कुछ ही दिन पूर्व गांधियों के दो दूत चीफ जस्टिस से मिले थे और उन्हें एक सौदे की पेशकश की थी। हमें लोया मामले में अनुकूल निर्णय दें और इसके बदले में हम महाभियोग की कार्रवाई वापस ले लेंगे। चीफ जस्टिस मिश्रा ने उनके इशारों पर नाचने से इंकार कर दिया। निर्णय अपने आप में स्पष्ट है। इसलिए उन्होंने उनके  झुकने से इंकार करने के बाद उनको बदनाम करने हेतु फिर से कार्रवाई शुरू कर दी। 

जहां तक विस्तृत निर्णय की बात है तो इसे जज डी.वाई. चंद्रचूड़ ने लिखा है जो रोङ्क्षहटन नरीमन के साथ पीठ को गौरव प्रदान करने के लिए सर्वाधिक योग्य न्यायाधीशों में शुमार किए जाते हैं। इसमें सबसे प्रशंसनीय बात निर्णय की स्पष्टता तथा सच सामने लाना है। इसमें राजनीतिज्ञों, वकीलों, पी.आई.एल. डालने वालों के कमीनेपन का खुलकर पर्दाफाश किया गया है। देश से जुड़े मामलों से संबंधित प्रत्येक भारतीय को इसे अवश्य पढऩा चाहिए। जज चंद्रचूड़ को केवल उन लोगों के खिलाफ सख्त शब्दों का इस्तेमाल करने के लिए गलत माना जा सकता है जिन्होंने चुगलखोरी का यह अभियान चला रखा था और वे वकील जिन्होंने अपने निजी कारणों से उनके पक्ष में अपनी आवाज उठाई। 

तथाकथित कार्यकत्र्ता वकील जिनमें प्रशांत भूषण, दुष्यंत दवे तथा इंदिरा जयसिंह शामिल हैं, को उनकी फटकार सहनी पड़ी। उन्होंने सामाजिक संस्थानों के प्रति जरा भी चिंता नहीं दिखाई और सब पर गम्भीर आरोप लगाए। इसके साथ ही उन लोगों को भी फटकार खानी पड़ी जो राजनीतिक, निजी तथा कार्पोरेट लाभ के लिए जनहित याचिकाओं को एक औजार के तौर पर इस्तेमाल कर रहे थे। मीडिया का एक वर्ग जो अधिक पाठक वर्ग बनाने के लिए सनसनीखेज तथा झूठे समाचारों पर उतर आया था, उसे भी खरी-खोटी सुननी पड़ी। 

मृतक जज का परिवार इस झूठ की लड़ाई में प्रथम पंक्ति में नहीं था। यह स्वाभाविक था कि एक ऐसा परिवार, जिसने अपने प्रमुख रोजी-रोटी कमाने वाले को खो दिया हो, ऐेसे अभियान में फंस जाए। रहस्यमयी क्रैश में संजय गांधी की दुखद मृत्यु के समय भी किसी ऐसे व्यक्ति का हाथ बताया गया था जिसका उस समय प्रधानमंत्री की ‘गद्दी’ पर काबिज होने का कोई चांस नहीं था तथा यह संदेह उस समय और भी पुख्ता हो गया जब यह तथ्य सामने आया कि किसी को भी तब तक भारतीय पासपोर्ट नहीं मिल सकता था जब तक संजय गांधी का निधन नहीं हो जाता। 

अब मुझे शैतान की वकालत करने दें। यदि आप यह मान लें कि जिस मुठभेड़ में आई.एस.आई. एजैंट सोहराबुद्दीन शेख तथा उसके सांझीदारों को मार गिराया गया वह फर्जी थी, तो इस तथ्य के बारे में क्या कि इंदिरा गांधी के हत्यारों में से एक को आई.टी.बी.पी. के गार्ड्स ने निर्दयतापूर्वक मार गिराया था जबकि उसने आत्मसमर्पण कर दिया था। पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या उस समय हुई थी जब उनके परिवार का एक महत्वपूर्ण सदस्य उनके साथ खड़ा था, उसने कथित रूप से आई.टी.बी.पी. के कर्मियों को निर्देश दिया था कि ‘इसको मार डालो’। यदि आपको जज लोया की तरह का एक षड्यंत्र बनाना होता तो आप शीर्ष अदालत से एक एस.आई.टी. का गठन करने की मांग करते और इंदिरा गांधी की उनके सुरक्षा गार्ड्स द्वारा हत्या के पीछे के षड्यंत्र के भीतर के षड्यंत्र को सामने लाने के लिए केस को फिर से खोलते। 

निश्चित तौर पर दो गलत मिलकर एक सही नहीं बनाते। लोया बारे निर्णय उन लोगों के चेहरे पर एक स्पष्ट चपत है जो अपने निजी पक्षपाती राजनीतिक एजैंडों को आगे बढ़ाने के लिए न्यायपालिका को घेरना चाहते हैं। इनमें स्वत: वे जज भी शामिल हो जाते हैं जो चीफ जस्टिस के खिलाफ अपनी शिकायतों को ‘सब तक’ पहुंचाने के लिए सभी रिवायतों को तोड़ते हुए प्रैस कांफ्रैंस करते हैं। फर्जी खबरें छापने वाले तथा प्रसारित करने वालों को भी बख्शा नहीं गया। सर्वोच्च अदालत की तीन सदस्यीय पीठ ने पत्तों के उस महल को ढहा दिया जो कुटिल तथा असभ्य सोच के सहारे बना था। 

इस बीच यदि आप यह समझते हैं कि इस निर्णय से उन लोगों को पछतावा होगा जिन्होंने झूठ के सहारे यह विद्वेषपूर्ण अभियान चला रखा था तो एक बार फिर से सोच लें। चाहे यह राहुल गांधी हो या बार अथवा मीडिया में उनके दूत, उनकी मूर्खता से यह विद्रोह चलता रहेगा। ‘सॉरी’ कहने के लिए हिम्मत चाहिए, यहां तक कि चरित्र भी। ये वे लोग हैं जिन्होंने अपनी अंतर्रात्मा, सही तथा गलत चुनने की अपनी संवेदना को मारने के लिए विभाजनकारी राजनीतिक एजैंडों की इजाजत दी।-वरिन्द्र कपूर                       
                    

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