‘नीट’ असमानता और अन्याय के एक महान युग की घोषणा कर रहा है

Edited By ,Updated: 19 Sep, 2021 03:30 AM

neet  is heralding a great era of inequality and injustice

भारतीय संविधान राज्यों के बीच ठोस था। संविधान के केंद्रीय स्तम्भ में 3 सूचियां-संघीय सूची, राज्य सूची, समवर्ती सूची शामिल हैं। सूची-1 की प्रविष्टियां 63 और 66 से किसी प्रकार की समस्या नहीं है क्योंकि उनका संबंध कुछ नामित संस्थानों, साइंटिफिक एवं...

भारतीय संविधान राज्यों के बीच ठोस था। संविधान के केंद्रीय स्तम्भ में 3 सूचियां-संघीय सूची, राज्य सूची, समवर्ती सूची शामिल हैं। सूची-1 की प्रविष्टियां 63 और 66 से किसी प्रकार की समस्या नहीं है क्योंकि उनका संबंध कुछ नामित संस्थानों, साइंटिफिक एवं टैक्रिकल एजुकेशन के संस्थान से है जिन्हें कि केंद्र सरकार से अनुदान प्राप्त है। रचनात्मक व्याख्या को प्रविष्टियों के साथ सामंजस्य स्थापित किया गया तथा यह सिद्धांत दिया कि ‘शिक्षा’ एक राज्य सूची थी जिसके विषय को बरकरार रखा गया। 

संसद ने राज्य सूची की प्रविष्टि 11 पर एक शक्तिशाली प्रहार किया। यह पूर्ण रूप में मिटा दी गई तथा समवर्ती सूची की 25वीं प्रविष्टि को कुछ इस तरह लिखा गया : शिक्षा जिसमें टैक्रिकल, मैडीकल शिक्षा तथा यूनिवॢसटियां भी शामिल हैं यह सब प्रविष्टियां 63-64-65 और 66 (सूची 1) के प्रावधान का विषय है;  वोकेशनल एवं टैक्रिकल ट्रेनिंग ऑफ लेबर। संघीय, राज्यों के अधिकारों तथा सामाजिक न्याय पर एक कड़ा प्रहार किया गया। संविधान में 44वें संशोधन को पारित करने वाले आपातकाल विरोधी योद्धाओं ने शिक्षा से संबंधित वास्तविक प्रविष्टियों को पुन: स्थापित करने की जरूरत को नहीं सोचा। 

ऐतिहासिक तौर पर राज्यों ने मैडीकल कालेज स्थापित किए तथा निजी लोगों को मैडीकल कालेजों को स्थापित करने की अनुमति दी। इन कालेजों में छात्रों का दाखिला राज्यों ने नियमित किया। समय के चलते शिक्षा की गुणवत्ता तथा मानक बेहतर हुए। इन्हीं राज्य विनियमित मैडीकल कालेजों से विशिष्ट डाक्टरों ने पढ़ाई की। तमिलनाडु में मेरे दिमाग में ऐसे ही कुछ नाम आ रहे हैं जिसमें डाक्टर रंगाचारी तथा डाक्टर गुरुस्वामी मुदलियार शामिल हैं जिनके बुत मद्रास मैडीकल कालेज के प्रवेश द्वार में एक दूतों के समान खड़े हैं। ऐसा माना जाता है कि तमिलनाडु उन राज्यों में शामिल है जो मैडीकल शिक्षा तथा स्वास्थ्य सेवाओं में अग्रणी है। 

राज्य के अधिकारों को पहचानना
राज्यों के अधिकारों का मामला कुछ इस तरह है। राज्य सरकारी मैडीकल कालेजों की स्थापना राज्य के लोगों के धन के द्वारा की गई। ले-देकर उनका इरादा राज्य के लोगों के बच्चों को इनमें दाखिल करना था और उन्हें अंग्रेजी में मैडीसिन पढ़ाना था। समय के चलते राज्य सरकार की आधिकारिक भाषा में जोकि बहुल लोगों की भाषा है, उसी में पढ़ाया गया। स्नातक डाक्टरों की अपेक्षा की गई ताकि राज्य के लोगों की सेवा विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में की जा सके जहां पर स्वास्थ्य सेवाओं की हालत बुरी तथा अपर्याप्त है। ले-देकर ऐसी आशा की गई कि मरीजों के साथ उनकी ही भाषा में बातचीत की जाए तथा उन्हें दवाइयों के बारे में जानकारी मुहैया करवाई जाए। 

राज्य सरकार सामाजिक न्याय के मामले को भी देखती है। वह ग्रामीण छात्रों के दाखिले को प्रोत्साहित करती है जो सरकारी स्कूलों में पढ़ाई करते हैं। इसके अलावा राज्य सरकार गरीब परिवारों, वंचित वर्ग के बच्चों तथा पहली पीढ़ी के शिक्षकों को भी पढ़ाई के लिए प्रेरित करती है। व्याप्त सिस्टम के खिलाफ किसी भी राज्य ने शिकायत नहीं की। न तो तमिलनाडु में और न ही महाराष्ट्र में कोई शिकायत की गई। मेरी सोच के अनुसार दक्षिण राज्यों में भी ऐसी कोई शिकायत दर्ज नहीं। बेशक यहां पर कुछ गंभीर मुद्दे थे जिन्हें देखा जाना अनिवार्य था। इन मुद्दों में प्रति व्यक्ति फीस, अत्यधिक फीस, संयंत्रों की घटिया क्वालिटी, अपर्याप्त अस्पताल, अपर्याप्त लैबोरेटरी, लाइब्रेरी, होस्टल तथा खेल के मैदान की सहूलियतें शामिल हैं। ऐसी समस्याएं हमेशा रहने वाली समस्याएं हैं। 

परेशान करने वाले तथ्य 
नैशनल एलिजीबिल्टी कम एंट्रैंस टैस्ट (नीट) की परीक्षा इस आधार पर खड़ी है कि जब उच्च शिक्षा की बात आए जोकि पेशेवर संस्थानों की बात भी है तब योग्यता का मापदंड मैरिट होना चाहिए (माडर्न डैंटल कालेज बनाम स्टेट ऑफ एम.पी. के मामले में)। 
एकमात्र आम परीक्षा टैस्ट मैरिट आधारित दाखिलों, न्याय संगत, पारदॢशता तथा गैर-शोषण को यकीनी बनाएगा। नीट ने एक गुप्त प्रवेश मैडीकल कौंसिल ऑफ इंडिया (एक ऐसी इकाई जो उसके बाद बदनाम हुई) द्वारा एक नियामक फ्रेम के माध्यम से किया। 
‘मैरिट’ जैसे बहस करने वाले मामले को मैं किसी और दिन इस पर चर्चा करूंगा। आज मैं जस्ट्सि ए.के. राजन कमेटी (नीट के प्रभावों पर) की रिपोर्ट जोकि तमिलनाडु में मैडीकल कालेजों में दाखिले की प्रक्रिया को लेकर है, के तथ्यों पर अपना ध्यान केन्द्रित करना चाहूंगा। 


                                         पूर्व नीट                                               नीट के बाद
                                        (2016-17)                                          (2020-21)

दाखिला लेने वाले स्टेट          98.23 प्रतिशत                                  59.41 प्रतिशत
बोर्ड के छात्रों की संख्या

सी.बी.एस.ई. छात्रा               0.97 प्रतिशत                                   38.84 प्रतिशत
गवर्नमैंट मैडीकल
कालेजों में ग्रामीण छात्र         65.17 प्रतिशत                                  49.91 प्रतिशत

प्राइवेट मैडीकल कालेजों में    68.49 प्रतिशत                                47.14 प्रतिशत
तमिल माध्यम में छात्र           14.88 प्रतिशत                                   1.99 प्रतिशत

कृपया अपने आप से कुछ सवाल करें। आखिर राज्य सरकारें राज्य के करदाताओं का पैसा क्यों खर्च करती हैं तथा सरकारी मैडीकल कालेजों को स्थापित करती है? आखिर क्यों छात्र स्कूलों में अपनी मातृभाषा (तमिल) में पढ़ाई करते हैं? आखिर क्यों छात्र स्टेट बोर्ड स्कूलों में पढ़ाई करते हैं तथा स्टेट बोर्ड की परीक्षा में उत्तीर्ण होते हैं? आखिर क्यों यहां पर स्टेट बोर्ड स्थापित हैं? क्या शहरों से संबंध रखने वाले छात्र पी.एच.सी. तथा ताल्लुक लैवल के अस्पतालों में सेवाएं  देंगे? उक्त टेबल में आंकड़े अपने आप बोलते हैं। यह मैरिट के संदिग्ध सिद्धांत के बारे में है। नीट असमानता और अन्याय के एक महान युग की घोषणा कर रहा है।-पी. चिदम्बरम 

     

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