भाजपा के लिए नववर्ष में नई चुनौतियां

Edited By Pardeep,Updated: 01 Jan, 2019 04:58 AM

new challenges in the new year for bjp

कई तरह से बीतने वाला साल पार्टी तथा सरकार दोनों के लिए कुछ खुशियां और कुछ उदासी के पल लेकर आया। खुशी इसलिए क्योंकि अर्थव्यवस्था अच्छी कारगुजारी दिखा रही है। स्थिरता तथा विकास दर प्रभावशाली रही हैं जो आगे एक मजबूत वर्ष के लिए आशा जगाती हैं। विदेश...

कई तरह से बीतने वाला साल पार्टी तथा सरकार दोनों के लिए कुछ खुशियां और कुछ उदासी के पल लेकर आया। खुशी इसलिए क्योंकि अर्थव्यवस्था अच्छी कारगुजारी दिखा रही है। स्थिरता तथा विकास दर प्रभावशाली रही हैं जो आगे एक मजबूत वर्ष के लिए आशा जगाती हैं। विदेश नीति के मोर्चे पर देश की ख्याति और अधिक बढ़ी है, कुछ चिंतनीय महीनों के बाद पड़ोस में स्थितियों में सुधार हुआ है।

इन सब के अलावा भारत को इंटरनैशनल सोलर एलायंस के गुरुग्राम में मुख्यालय के रूप में किसी अंतर्राष्ट्रीय संगठन का पहला मुख्यालय मिला है। जी.एस.टी., जिसे गत वर्ष एक जुलाई को लागू किया गया था, गत वर्ष के समाप्त होने तक सरकार का एक क्रांतिकारी आॢथक सुधार साबित हुई है। गत वर्ष एक अन्य क्रांतिकारी सामाजिक सुधार के साथ समाप्त हुआ जिसके अंतर्गत ट्रिपल तलाक पर कानून के रूप में  लैंगिक समानता न्याय की व्यवस्था की गई है। 

2017 की तरह समाप्त नहीं हुआ 2018
लेकिन राजनीतिक मोर्चे पर 2018 अपने से पिछले वर्ष की तरह समाप्त नहीं हुआ। 2017 में जिन सात राज्यों में चुनाव हुए, भाजपा ने 6 में विजय प्राप्त की तथा गुजरात में सहज विजय के साथ वर्ष का समापन किया। पार्टी ने 2018 की भी शुरूआत फरवरी में तीन पूर्वोत्तर राज्यों में प्रभावशाली विजयों के साथ की। विशेष तौर पर संतोषजनक विजयें त्रिपुरा तथा नागालैंड में थीं। त्रिपुरा में भाजपा गठबंधन ने दो-तिहाई बहुमत प्राप्त किया और व्यावहारिक तौर पर वाममोर्चे के गठबंधन को समाप्त कर दिया, जो 25 वर्षों से वहां सत्ता में था। नागालैंड में भाजपा पहली बार एक मजबूत ताकत के रूप में उभरी जिसने लड़ी गई 20 सीटों में से 12 जीत लीं तथा एन.डी.पी.पी. के साथ मिलकर सरकार में एक मजबूत सांझीदार बनी। 

मार्च तक पार्टी की चुनावी सम्भावनाओं के आगे अवरोध आने शुरू हो गए। उपचुनावों में हमने उत्तर प्रदेश में दो महत्वपूर्ण लोकसभा सीटें गंवा दीं। कर्नाटक विधानसभा के लिए मई में हुए चुनावों में पार्टी ने अच्छी कारगुजारी दिखाई लेकिन एक दर्जन सीटों से चूक गई जिसके परिणामस्वरूप दो पराजितों ने मिलकर उस राज्य में सरकार बना ली। साल के अंत में पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव भी पार्टी के लिए कोई अच्छी खबर नहीं लाए। 

विपक्ष से पहल छीननी होगी
आगामी लोकसभा चुनावों में अभी लगभग 4 माह बाकी हैं इसलिए पार्टी को अपने चुनावी भविष्य को सुधारने की अत्यंत जरूरत है। इसे विपक्ष से पहल को छीनकर दोबारा अपनी गति प्राप्त करने की जरूरत है। 2014 में पार्टी 3 चीजों के साथ मतदाताओं के पास गई थी-नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता, एक सशक्त संगठनात्मक नैटवर्क तथा तत्कालीन सत्ताधारी सरकार की असफलताएं। सत्ता में पांच वर्ष होने वाले हैं लेकिन पहली दो चीजें अभी भी ज्यों की त्यों बरकरार हैं। प्रधानमंत्री मोदी निरंतर अत्यंत लोकप्रिय बने हुए हैं, जो सत्ताविरोधी लहर की पारम्परिक अवधारणा को नकारते हैं। 2018 में उन्होंने अपने ही दम पर कई चुनावों को दिशा दी। पराजयों के बावजूद यदि पार्टी कर्नाटक, राजस्थान तथा मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में प्रभावशाली टक्कर दे सकी तो इसका बड़ा श्रेय उन राज्यों में मोदी के अथक प्रचार को जाता है। पूर्वोत्तर में दो प्रमुख विजयें केवल नेतृत्व के बल पर ही मिल सकीं। प्रधानमंत्री मोदी लोगों के लिए एक बड़ी आशा तथा पार्टी के लिए सबसे बड़ी पूंजी बने हुए हैं। 

मोदी का विकल्प केवल विनाश 
दरअसल पिछले वर्ष के अंतिम महीनों में कुछ असफलताओं के बावजूद अधिकतर लोग स्पष्ट तौर पर यह समझते हैं कि मोदी का विकल्प केवल विनाश है। कोई भी ऐसी एक पार्टी अथवा नेता नहीं है जो मोदी की दूरदृष्टि तथा निष्ठा की बराबरी कर सके। लोगों के पास मोदी की प्रगतिशील दूरदृष्टि तथा दृष्टिहीन गठबंधन, जिसका एकमात्र उद्देश्य उस प्रगतिशील दूरदृष्टि को बाधित करना है, के बीच बेहतर को चुनने का विकल्प है। 

कई ऐसे मुद्दे हैं जिन पर मोदी तथा उनकी पार्टी को बैठकर ध्यान देने की जरूरत है। लोगों के कुछ वर्गों में स्पष्ट रूप से गुस्सा है। मगर इसका बड़ा कारण केवल बड़ी अपेक्षाएं हैं। लोग हमेशा जल्दबाजी में होते हैं लेकिन दुर्भाग्य से सरकारों के पास पांच वर्षों की समय-सीमा होती है, जिस दौरान हर चीज पूरी नहीं की जा सकती। यही कारण है कि परिपक्व राजनीतिज्ञ अगले चुनावों पर नजर रखते हुए योजनाएं बनाते हैं। परिणामों की परवाह न करते हुए उनके लिए लोकप्रियता ही चुनाव जीतने का रास्ता होती है। 

अमरीकी धर्मशास्त्री जेम्स फ्रीमैन क्लार्क ने कहा था कि एक राजनीतिज्ञ अगले चुनावों को देखता है जबकि एक स्टेट्समैन अथवा राजनीति विषारद अगली पीढ़ी को देखता है। प्रधानमंत्री मोदी एक राजनीतिज्ञ कम, एक स्टेट्समैन अधिक हैं। जो सुधार उन्होंने शुरू किए हैं, चाहे वह भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई हो अथवा नोटबंदी के माध्यम से कालेधन को खत्म करके भारत की अर्थव्यवस्था के आधार को मजबूत बनाना या बिजनैस करने की आसानी में सुधार के उनके प्रयास हों, फसल बीमा, मिट्टी की गुणवत्ता का रिकार्ड आदि, ये सभी लोकप्रियता के लिए आधारभूत ढांचे को मजबूत करने के लिए हैं। 

नए साल की शुरूआत पार्टी तथा सरकार के लिए एक नई चुनौती लेकर आई है। जो लोग किसी कारण नाराज दिखाई देते हैं, उन्होंने मोदी को ठुकराया नहीं है। इसके विपरीत उन्हें उनमें एक संगठित, मजबूत, समृद्ध तथा गौरवशाली देश की एकमात्र आशा दिखाई देती है। इसका अर्थ यह नहीं कि विपक्ष की चुनौती को हल्के में लिया जा सकता है। पार्टी की मशीनरी को जोरदार तरीके से चुनावों के लिए तैयार करना होगा। भाजपा मशीनरी का एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह एक स्वयंसेवी बल है जो अधिकांश देश की अच्छाई के लिए समॢपत है। इसे एक प्रोफैशनल इकाई की तरह नहीं संचालित किया जा सकता। इसके लिए केन्द्रीयकृत प्रेरणा लेकिन विकेन्द्रीयकृत पहल की जरूरत है।-राम माधव

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