आम नागरिक के उत्थान के लिए नए प्रयास की जरूरत

Edited By ,Updated: 13 Aug, 2022 03:15 AM

new efforts needed for the upliftment of common citizens

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नीति आयोग की गवर्निंग कौंसिल की एक बैठक के दौरान कहा कि देश का संघीय ढांचा तथा सहकारी संघवाद कोविड महामारी के दौरान विश्व के लिए एक माडल के तौर पर उभर कर सामने आए हैं। इस संदर्भ में उन्होंने राज्य स

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नीति आयोग की गवर्निंग कौंसिल की एक बैठक के दौरान कहा कि देश का संघीय ढांचा तथा सहकारी संघवाद कोविड महामारी के दौरान विश्व के लिए एक माडल के तौर पर उभर कर सामने आए हैं। इस संदर्भ में उन्होंने राज्य सरकारों को इसका श्रेय दिया। उन्होंने कहा कि राज्य ने राजनीतिक रेखाओं के आर-पार सहयोग के माध्यम से लोगों को सार्वजनिक सेवाओं को देने के लिए जमीनी स्तर पर ध्यान केंद्रित किया। 

अपने विचार की राजनीतिक रेखा का व्याख्यान करते हुए उन्होंने आगे कहा, ‘‘प्रत्येक राज्य ने अपनी क्षमता और ताकत के बल पर एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा की और कोविड के खिलाफ जंग में अपना योगदान पाया। इसके चलते भारत ने एक वैश्विक नेता के तौर पर विकासशील राष्ट्रों के समक्ष एक मिसाल कायम की।’’ देश के प्रधानमंत्री के तौर पर यकीनी तौर पर यह शब्द विश्वास दिलाने वाले हैं। वास्तव में यह कहा जाना चाहिए कि आज के आधुनिक विश्व के प्रयास के तौर पर केंद्रीयकृत और समरूप बनने के बावजूद भारत आधुनिक लोकतांत्रिक राष्ट्र के तौर पर एक चमकदार उदाहरण के रूप में उभरा जिसके पास मानवीय आजादी और सामाजिक न्याय है। 

विकास का यह माडल 4 मूल लक्ष्यों पर आधारित है : 
पहला : विभिन्नता वाले सामाजिक ढांचे तथा जटिल राष्ट्रीय अखंडता। 
दूसरा:  आर्थिक विकास जोकि उन लोगों के जीवन मानकों को ऊपर उठाने के लिए है जो दौड़ में पीछे रह गए हैं। 
तीसरा : सामाजिक समानता के लिए कार्य करना। 
चौथा : मूल लक्ष्य असमान सामाजिक व्यवस्था के खिलाफ राजनीतिक लोकतंत्र की सही कार्रवाई को यकीनी बनाना। इस तरह लोकतांत्रिक ढांचे का इस्तेमाल एकतरफा सामाजिक ढांचे को बदलने का है। 

ऐसे मूल ढांचे की रेखाओं को खींचने का मतलब यह नहीं कि हमने अपेक्षित राष्ट्र निर्माण के लक्ष्य को स्थापित कर लिया है। अभी हमें लम्बी दूरी तय करनी है ताकि समाज के विभिन्न वर्गों में फैली खटास तथा उत्सुकता को जांचा जा सके। वास्तव में राजनीतिक सिस्टम विस्तृत तौर पर कार्य करने के टैस्ट में फेल हो चुका है। इसे हम देश के नेतृत्व की असफलता मानते हैं। इससे परे देखते हुए आज जरूरत सिस्टम की व्यवस्था को ठीक करना है। 

सरकारी प्रबंधन और जवाबदेही की नई धारणा पर बात करते हुए प्रोफैसर रजनी कोठारी कहती हैं कि मंत्रालयों तथा विभागों के पुनर्गठन के अलावा प्रशासन के निचले स्तर जोकि नागरिकों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है, को विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। ये ऐसे स्तर हैं जो प्रतिदिन लाखों की तादाद में संबंध स्थापित करते हैं। जो अपेक्षित है वह यह है कि नियमों तथा प्रक्रियाओं को साधारण किया जाए। इस कदम के लिए उच्च स्तरीय आयोग की जरूरत नहीं है। लोक समर्थित कदमों जिन्हें कि नकारा गया है उनको उठाने का सवाल इसमें समाया हुआ है। 

सरकारी ढांचे तथा लोगों के मध्य में खाली जगह को बाहर निकालने में राजनीतिज्ञ और नौकरशाह रुचि नहीं दिखाते हैं। समस्या यहीं पर अटकी हुई है। इसलिए लोगों के लिए जो उन्हें चाहिए या फिर जिसके वे योग्य हैं उसे बेहतर कार्य प्रणाली देने की है। सच्चाई यह है कि सभी स्तरों पर हमारा समाज एक बदलाव से गुजर रहा है। पूरा सामाजिक-आर्थिक तथा  राजनीतिक ढांचा उत्तेजना में है। 

इसके अलावा यहां पर अन्य बदलाव भी हैं। ऐसे ही वक्त में हमारे पास हमारे दरमियान बदलाव करने वाले नहीं हैं। अपने ही खुद को हड़पने की मानसिकता में ये लोग राष्ट्रीयता के संरक्षक बन गए हैं। हमारे जैसे लोकतंत्र में लोगों के साथ एक ईमानदारी भरा संचार एक बदलाव ला सकता है। आज की बदलती हुई व्यवस्था में जरूरत इस बात की है कि आम नागरिक के उत्थान की तरफ प्रयास किए जाएं। वास्तव में कोविड से परे देश के संघीय ढांचे को सभी स्तर पर आम नागरिक के उत्थान की तरफ लगना चाहिए। 

दिमाग में यह बात रखने की जरूरत है कि जो लोग न्यूनतम आर्थिक तथा सामाजिक स्तर को झेल रहे हैं उनके लिए सामाजिक न्याय तथा समानता लानी चाहिए। अफसोस की बात है कि सभी पार्टियों के राजनीतिज्ञ प्रत्येक मुद्दे को अपनी पार्टी तथा चुनावी फायदे के तराजू के माध्यम से उसे तोलते हैं। ये लोग गरीबों, वंचितों और जमीन से जुड़े लोगों का ख्याल नहीं रखते। मुख्य समस्या केंद्रीय नेताओं की है जो सत्ता की हेकड़ी में रहते हैं और निचले स्तर पर प्रमुख नीति निर्णयों पर विचार-विमर्श करने के लिए तैयार नहीं हैं। 

इन कड़े तथ्यों को देखते हुए हमें अपने विकास माडल की तरफ दूसरी बार देखना होगा। इस संदर्भ में यह कहा जाना चाहिए कि गरीबी, लोकतंत्र तथा विकास की पारम्परिक धारणाओं को नए अर्थ देने होंगे ताकि उन्हें और ज्यादा गंभीर तथा शून्य पर रह रहे लोगों की जरूरतों को पूरा किया जा सके। इसके लिए हमें जमीन पर नई चुनौतियों और संवेदनशीलताओं के लिए उचित संस्थागत ढांचे को खोजने की जरूरत है।-हरि जयसिंह 
 

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