Edited By ,Updated: 21 Oct, 2019 03:56 AM
रेलवे स्टेशनों की ओवरहालिंग की धीमी प्रगति पर नीति आयोग के सी.ई.ओ. अमिताभ कांत की आलोचना के बाद रेल मंत्रालय ने एक कड़ा कदम उठाया है, जो शायद प्रधानमंत्री कार्यालय (पी.एम.ओ.) के लिए भी एक दूर का सपना बनता जा रहा है। रेलवे बोर्ड के चेयरमैन वी.के....
रेलवे स्टेशनों की ओवरहालिंग की धीमी प्रगति पर नीति आयोग के सी.ई.ओ. अमिताभ कांत की आलोचना के बाद रेल मंत्रालय ने एक कड़ा कदम उठाया है, जो शायद प्रधानमंत्री कार्यालय (पी.एम.ओ.) के लिए भी एक दूर का सपना बनता जा रहा है।
रेलवे बोर्ड के चेयरमैन वी.के. यादव को लिखे एक पत्र में कांत ने स्टेशन पुनर्विकास परियोजना में लम्बे समय से चल रही देरी को लेकर सवाल उठाया है, जो बीते कई सालों से लटकी हुई है। उन्होंने सुझाव दिया कि ‘समय-सीमाबद्ध तरीके से’ परियोजना को पूरा करने में मदद करने के लिए सचिवों और रेलवे अधिकारियों का एक सशक्त समूह बनाया जाए। स्टेशन परियोजना में रेलवे की अलग-अलग जगहों पर मौजूद प्रॉपर्टीज को किराए पर देने पर भी जोर दिया गया है।
सूत्रों के मुताबिक, कांत ने यादव के अलावा आर्थिक मामलों, आवास व शहरी मामलों के विभागों के सचिवों तथा रेलवे बोर्ड के वित्तीय आयुक्त के अलावा समिति का गठन करने का आदेश दिया है। सैंसर ने अंतत: लंबित रेलवे नौकरशाही को चिंताजनक बना दिया है क्योंकि नीति आयोग की नाराजगी पी.एम.ओ. के एक संदेश के लिए बहुत मजबूत आधार बन गया है कि रेल बाबुओं को अब सुस्ती छोड़कर काम करने के लिए मैदान में उतरना होगा क्योंकि उनके काम पर काफी बारीकी से नजर रखी जा रही है।
विलय से पहले उठ रहे सवाल
जम्मू-कश्मीर को दो केन्द्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने के केन्द्र के फैसले ने राज्य के आई.ए.एस., आई.पी.एस. और आई.एफ.एस. अधिकारियों के बीच अनिश्चितता और भ्रम पैदा कर दिया है। राज्य में काम करने वाले अखिल भारतीय सेवाओं के अधिकारियों को ए.जी.एम.यू.टी. कैडर में भर्ती किया जाएगा क्योंकि जम्मू-कश्मीर 31 अक्तूबर के बाद केन्द्र शासित प्रदेश बन जाएगा। जो लोग जानते हैं वे कहते हैं कि बाबू अनिश्चित हैं कि क्या वे देश के अन्य हिस्सों में तैनात होंगे या केवल नए रंगरूट ही राज्य के बाहर पोस्टिंग के लिए पात्र होंगे। आश्चर्य की बात नहीं है कि वरिष्ठ बाबुओं ने कई वर्षों तक राज्य के बाहर तैनात रहने की सम्भावना को लेकर कम उत्सुकता दिखाई है।
जम्मू-कश्मीर में बाबुओं को परेशान करने वाला दूसरा मुद्दा पुराना है-अधिकारियों की कमी। जाहिर है, राज्य में 137 की स्वीकृत शक्ति के मुकाबले केवल 70 आई.ए.एस. अधिकारी हैं। बाबुओं को उम्मीद है कि सरकार घाटा पूरा करने के लिए जे.एंड के. में और ए.जी.एम.यू.टी. कैडर के अधिकारियों को भेज देगी। उम्मीद है कि इस महीने के अंत में ए.जी.एम.यू.टी. कैडर का विलय होते ही स्थिति स्पष्ट हो जाएगी। इसके अलावा यह संभवत: हर साल एक बार और सभी के लिए राजधानी में होने वाले बदलाव की पूरी प्रक्रिया का अंत कर देगा।
यू.पी. में सरकार का बचत पर जोर
समय-समय पर उत्तर प्रदेश सरकार को बचत का कीड़ा काटता है। पिछले साल राज्य सरकार ने आदेश जारी कर अधिकारियों को विदेशी दौरों पर खर्च पर अंकुश लगाने, इकोनॉमी क्लास में सफर करने और फाइव स्टार होटलों में मीटिंग से बचने के लिए कहा था। इसमें यह भी उल्लेख किया गया है कि मैडीकल और पुलिस विभाग को छोड़कर कोई नया पद स्वीकृत नहीं किया जाएगा। यह आदेश सभी सरकारी विभागों, कार्यालयों, सार्वजनिक उपक्रमों और राज्य विश्वविद्यालयों पर लागू था।
अब खर्चों में कटौती के एक नए प्रयास में राज्य सरकार ने ‘बचत के नए उपायों’ का हवाला देते हुए वित्त और लेखा विभागों के 93 पदों को रद्द कर दिया है। ज्यादातर पद जिला ग्रामीण विकास एजैंसी (डी.आर.डी.ए.), वन विभाग और गरीबी उन्मूलन विभाग के हैं। ग्रामीण विकास विभाग में डी.आर.डी.ए. के अधिकारियों को समायोजित किए जाने के बाद डी.आर.डी.ए. को ‘मृत’ माना गया। इसी तरह एक आंतरिक सर्वेक्षण के बाद वन और गरीबी उन्मूलन विभागों में कई पद निरर्थक पाए गए और राज्य पर बोझ बढ़ा। इसलिए सरकार ने उनको समाप्त करने का फैसला किया।-दिलीप चेरियन