कोई ‘कमाल पाशा’  ही पाकिस्तान को बचाएगा

Edited By ,Updated: 06 Mar, 2019 03:59 AM

no  amazing pasha  will save pakistan

पाकिस्तान ने अपने आप को शांति का मसीहा घोषित कर दिया, इमरान खान के लिए शांति का नोबेल पुरस्कार मांग लिया। भारत में भी बहुत सारे ऐसे लोग हैं जो इमरान खान की कथित तौर पर युद्ध विरोधी सोच का समर्थन कर रहे हैं और उनकी चरणवंदना भी कर रहे हैं? यह भी सही...

पाकिस्तान ने अपने आप को शांति का मसीहा घोषित कर दिया, इमरान खान के लिए शांति का नोबेल पुरस्कार मांग लिया। भारत में भी बहुत सारे ऐसे लोग हैं जो इमरान खान की कथित तौर पर युद्ध विरोधी सोच का समर्थन कर रहे हैं और उनकी चरणवंदना भी कर रहे हैं? 

यह भी सही है कि भारत में एक ऐसा गिरोह हमेशा सक्रिय रहा है जो इसकी एकता और अखंडता के प्रति विनाशक सोच रखता है, इसकी संस्कृति को खंडित व अपमानित करने की कोशिश करता है, भारत के प्रेरणास्रोत महापुरुषों को कलंकित करने या फिर उन्हें तेजाबी और खतरनाक सोच वाले बताने का जेहाद जारी रखता है। कभी ऐसे गिरोहों ने ही चीनी हमलावर माओ त्से तुंग को अपना प्रधानमंत्री तक कह डाला था, चीन को हमलावर नहीं बल्कि भारत को ही हमलावर कह दिया था, महात्मा गांधी तक को ब्रिटेन का एजैंट तो फिर नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को हिटलर का दलाल तक कहा था। 

ऐसे समूहों और उन पर पलने वाले लोगों को भारत की बढ़ती शक्ति कैसे स्वीकार हो सकती है, भारत की दुनिया पर बढ़ती धाक कैसे स्वीकार हो सकती है, इसके सख्त रवैये पर पाकिस्तान के झुकने और इमरान खान के विवश होने की बात कैसे स्वीकार हो सकती है? इमरान खान की प्रशंसा तब हो सकती है जब वह आतंकवादी संगठनों का अपने देश में सर्वनाश करेंगे, उनको जमींदोज करने का पराक्रम दिखाएंगे। तुर्की में मोहम्मद कमाल पाशा के उदाहरण को पाकिस्तान में सच कर दिखाएंगे। 

अभिनंदन की रिहाई मजबूरी थी
अभिनंदन को बिना शर्त रिहा करना तो एक मजबूरी थी, दुनिया का कोई देश अपने हितों को बलिदान कर पाकिस्तान और इमरान खान की मदद नहीं कर सकता है। पाकिस्तान के आका चीन ने खुद पाकिस्तान का साथ छोड़ दिया क्योंकि वह यह नहीं चाहता था कि भारत को पाकिस्तान पर आक्रमण करने का अवसर मिले। अगर भारत पाकिस्तान पर आक्रमण कर देता और युद्ध हो जाता तो फिर चीन का भी बड़ा नुक्सान होता। जो लोग चीन की निवेश नीति और सामरिक नीति नहीं जानते हैं उनके लिए जानकारी का विषय यह है कि गुलाम कश्मीर में चीन के सामरिक ठिकाने हैं, उसने पाकिस्तान में करोड़ों डालर निवेश किए हैं जो युद्ध के कारण प्रभावित होते। चीन अगर पाकिस्तान का पक्ष लेता तो फिर उसे भारत के बाजार से हाथ धोना पड़ता। 

अमरीका पहले से ही पाकिस्तान से नाराज है। पाकिस्तान का पड़ोसी देश ईरान खुद पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद से ग्रस्त है, उसने कई बार पाकिस्तान को अपने आतंकवादियों को काबू में रखने, नहीं तो कार्रवाई का भुगतभोगी होने की धमकियां दे रखी हैं। पाकिस्तान के आतंकवाद से चीन तथा अफगानिस्तान भी पीड़ित हैं। यह बात भारत के पाकिस्तान परस्त लोग जानते हैं कि नहीं, पर विश्व बिरादरी जरूर जानती है। इसीलिए पाकिस्तान के अंध मित्र सऊदी अरब और तुर्की जैसे देशों ने भी इमरान खान को सच का आईना दिखाया और युद्ध से बचने तथा भारत से संबंध सुधारने के लिए कह डाला। अब आप ही बता सकते हैं कि इमरान खान के पास विकल्प क्या थे? 

सच का आईना
इमरान खान को शांति का मसीहा बताने वाले भारत के तथाकथित शांति के मठाधीशों को इमरान खान द्वारा संसद में दिए गए भाषण का अवलोकन करना चाहिए। उन्होंने भारत की एयर सर्जिकल स्ट्राइक के खिलाफ अपनी संसद में उसी तरह की आग उगली जिस तरह जिया उल हक, परवेज मुर्शरफ व नवाज शरीफउगलते थे। इमरान खान ने यहां तक कह डाला कि कश्मीर में भारतीय सेना आतंकवाद से बढ़कर हिंसा करती है, कश्मीर में भारत खलनायक है, पाकिस्तान कश्मीर के आतंकवादी संगठनों का समर्थन करता है और करता रहेगा। जब इमरान खान खुलेआम अपनी संसद में कश्मीर के आतंकवाद का समर्थन करते हैं तब उनको शांति का मसीहा कैसे और क्यों माना जाना चाहिए? 

सच का आईना यह है कि कश्मीर के आतंकवादी संगठन पाकिस्तान प्रायोजित और पोषित हैं, यह पूरी दुनिया भी जानती है। खुद पाकिस्तान ने गुलाम कश्मीर में मानवाधिकार की कब्र खोद रखी है। वहां पाकिस्तान की गुलामी के खिलाफ जब-तब आंदोलन होते रहे हैं, जिसे पाकिस्तान की सेना बर्बरता से कुचलती रही है। जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तोयबा जैसे इस्लामिक संगठनों की खतरनाक प्रवृत्ति और हिंसा को इमरान खान या फिर पाकिस्तान की अवाम तथा सेना क्यों नहीं समझती है।

मुस्लिम आतंकवादी संगठनों की करतूत से भारत जितना पीड़ित है उससे कई गुना पीड़ित पाकिस्तान है, भारत से अधिक आतंकवादी घटनाएं पाकिस्तान में घटती हैं। मुस्लिम आतंकवादी संगठन पाकिस्तान में शिया और सुन्नी का विभेद करा कर मुसलमानों को गाजर-मूली की तरह काटते हैं। एक आतंकवादी संगठन द्वारा बच्चों के स्कूल पर आत्मघाती हमला कर सौ से अधिक बच्चों को मौत के घाट उतारने की आतंकवादी घटना को आप भूल गए हैं क्या? 

सम्प्रभुताओं की लड़ाई
पाकिस्तान की सेना खुद आतंकवादियों की गोली का शिकार हो जाती है, फिर भी वह आतंकवादी संगठनों को पालने-पोसने से पीछे नहीं हटती है। गुड तालिबान, बैड तालिबान, गुड आतंकवादी संगठन, बैड आतंकवादी संगठन की अवधारणा ही पाकिस्तान की खुशफहमी और उसके संकट के लिए जिम्मेदार है। ध्यान यह भी रखा जाना चाहिए कि पाकिस्तान में कई संप्रभुताओं की लड़ाई चल रही है, मुहाजिर देश, बलूच देश तथा सिंधी देश की मांग उठती रही है। पाकिस्तान को किसी मोहम्मद कमाल पाशा की जरूरत है। कभी तुर्की में मुल्ला-मौलवियों ने इस्लाम के अनुदारवाद और अरब के जाहिलपन के बाजार लगा रखे थे।

मोहम्मद कमाल पाशा ने 6 महीने के अंदर अरबी भाषा की जगह अपनी भाषा बनाई और लागू की थी, कठमुल्लापन, इस्लाम के अनुदारवाद को जमींदोज कर आधुनिक तुर्की की नींव रखी थी, जो यूरोप के आधुनिकतावाद और उदारवाद का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण बना। हालांकि अब तुर्की में भी इस्लाम का अनुदारवाद हावी होने लगा है। इमरान खान तो मोहम्मद कमाल पाशा बन नहीं सकते हैं, वह समाजशास्त्री या फिर समाज सुधारक भी नहीं हैं। वह तो उसी सेना की देन हैं, जिसने चुनावों में धांधली कर उन्हें प्रधानमंत्री पद पर बैठाया है, वह सेना, जो मुस्लिम आतंकवादियों का पालन-पोषण कर भारत में आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देती है, अफगानिस्तान और ईरान को भी आतंकवाद से पीड़ित करती है। सिर्फ इतना ही नहीं, दुनिया भर में आतंकवाद की आऊटसोर्सिंग कर शांति का दुश्मन बन बैठती है। 

इमरान की तारीफ तब हो सकती है, उनकी वीरता तो तब मानी जाएगी जब वह मोहम्मद कमाल पाशा के रास्ते का अनुकरण कर पाकिस्तान को आतंकवाद मुक्त बनाएंगे। नहीं तो फिर इसी तरह पाकिस्तान को दुनिया भर में भीख मांगने के लिए कटोरा लेकर घूमना पड़ेगा, जहां पर सिर्फ और सिर्फ अपमान ही मिलेगा। एक न एक दिन जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तोयबा जैसे संगठन पाकिस्तान के अस्तित्व भंजन के लिए ही जिम्मेदार साबित हो सकते हैं।-विष्णु गुप्त

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