Edited By Pardeep,Updated: 19 Oct, 2018 05:18 AM
केन्द्र में भाजपा सरकार का कार्यकाल अब अंतिम दौर में आ गया है। सरकार ने कोई बहुत बड़ा कमाल किया हो, ऐसा नजर नहीं आता। हां, सरकार के कुछ कदमों से अलग-अलग तरह की परेशानियां लोगों के सामने जरूर खड़ी हो गई हैं। इनमें एक नोटबंदी है, जिससे दो-तीन लाख...
केन्द्र में भाजपा सरकार का कार्यकाल अब अंतिम दौर में आ गया है। सरकार ने कोई बहुत बड़ा कमाल किया हो, ऐसा नजर नहीं आता। हां, सरकार के कुछ कदमों से अलग-अलग तरह की परेशानियां लोगों के सामने जरूर खड़ी हो गई हैं। इनमें एक नोटबंदी है, जिससे दो-तीन लाख फर्जी कम्पनियों के पकड़ में आने के अलावा और कोई उपलब्धि हासिल नहीं हुई। इससे छोटे और मंझोले व्यापारियों को बहुत परेशानी हुई क्योंकि आपसी विश्वास और जरूरत के समय पर उनका आपस में रुपयों का लेन-देन तो खत्म हुआ ही, ऊपर से कुछ लोगों की उधारी डूब गई।
गरीब आदमी के घर में उसकी पत्नी और बच्चों द्वारा जोड़े गए कुछ रुपए बाहर आ गए, उन्हें फिर से वे नहीं मिल पाए। एक तरह से यह गरीब महिलाओं के लिए आर्थिक अभिशाप साबित हुई। मैं कोई अर्थशास्त्री नहीं हूं किंतु जो मेरे आसपास, मेरी नजरों के सामने हुआ, वही मैं बता रहा हूं। नकदी पर आधारित कारोबार ठप्प हो गया। किसी तरह जुगाड़ कर कपड़े की फेरी लगाने वाले एक व्यक्ति ने बताया कि नोटबंदी से पहले महिलाएं खरीदारी करती थीं लेकिन नोटबंदी के बाद तो धंधा ही खत्म-सा हो गया है क्योंकि महिलाओं के हाथ में पैसा नहीं है। यह गांवों-देहातों का कड़वा सच है।
इसी तरह जी.एस.टी. को लागू करने में सरकार ने जल्दबाजी दिखाई, हर पहलू पर शायद नहीं सोचा गया। जी.एस.टी. से बड़े कार्पोरेट घरानों को कारोबार करने में आसानी हुई है लेकिन छोटे व्यापारी, छोटे उद्योगपति इससे परेशान हुए और अभी भी हैं। एक विसंगति उदाहरणस्वरूप बता रहा हूं। सरकार ने कानून बनाया कि एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश में व्यापार करने के लिए आपको जी.एस.टी. में रजिस्टर्ड होना पड़ेगा, चाहे व्यापार बीस लाख से भी कम हो। इससे वे छोटे पावरलूम कारीगर बेरोजगार हुए जो प्रदेशों के सीमावर्ती क्षेत्रों में हैं। जैसे कैराना उत्तर प्रदेश में और उससे जुड़ा पानीपत हरियाणा में है।
कैराना में ऐसे बहुत से कारीगर बेरोजगार हुए जो अपनी दो-चार पावरलूम पर बने दरी-खेस आदि को रोजाना पानीपत की मंडी में बेच कर वहां से धागा खरीद कर फिर बनाते थे। उनके लिए पानीपत की मंडी एक तरह से बंद हो गई। उनके द्वारा तैयार कपड़ा पानीपत मंडी में अच्छे दाम पर बिकता था, अब वही कपड़ा बिचौलियों द्वारा कम दामों में खरीद कर पानीपत जाता है जबकि सरकार कहती है कि वह बिचौलियों को खत्म करना चाहती है। ऐसी विसंगतियों पर शायद किसी का ध्यान गया ही नहीं।
जी.एस.टी. उत्पादन पर लगता तो बेहतर था मगर सरकार ने इसे हर छोटे-बड़े व्यापारी पर लागू कर दिया। मेरे विचार से सरकार बड़े मगरमच्छों को पकडऩे के लिए पूरे तालाब को सुखा रही है। उसमें छोटी मछलियां बिना वजह के मर रही हैं। नोटबंदी में भी ध्यान बड़े मगरमच्छों पर था। यही हाल छोटे उद्योगों में है। यहां मंदी इस कदर हावी है कि सिर्फ मजदूरों को रोकने के लिए ही बहुत से मालिक फैक्टरियां चला रहे हैं। सरकार या विदेशी आंकड़े भले कुछ भी कहते हों कि विकास दर बढ़ेगी, चीन से ऊपर रहेगी, मगर जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है। आशा है सरकार में बैठे लोगों का ध्यान इस पर जाएगा।-वकील अहम