अब वैश्वीकरण का अर्थ केवल वित्तीय लाभ नहीं

Edited By ,Updated: 08 Jun, 2022 06:22 AM

now globalization does not mean only financial gain

इस वर्ष दावोस वल्र्ड इकोनॉमिक फोरम में वैश्वीकरण पर चर्चा एक महत्वपूर्ण विषय था। हालांकि वर्तमान समय में किसी भी विषय की सही तरह से परिभाषा नहीं की जा सकती, क्योंकि बदलती दुनिया की अब एक महत्वपूर्ण पहचान है अस्थिरता, जहां जो अभी

इस वर्ष दावोस वल्र्ड इकोनॉमिक फोरम में वैश्वीकरण पर चर्चा एक महत्वपूर्ण विषय था। हालांकि वर्तमान समय में किसी भी विषय की सही तरह से परिभाषा नहीं की जा सकती, क्योंकि बदलती दुनिया की अब एक महत्वपूर्ण पहचान है अस्थिरता, जहां जो अभी सही है, वह कुछ समय में गलत हो सकता है। लेकिन फिर भी भविष्य से संबंधित चुनौतियों और अवसरों को बेहतर तरीके से समझने के लिए, इस विषय को समझना जरूरी है। 

वैश्वीकरण का मानव सभ्यता पर हमेशा महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा। यद्यपि प्राचीन से लेकर समकालीन विश्व इतिहास को देखें तो एक बात स्पष्ट है कि अन्योन्याश्रय या अवलंबन मानव संबंधों के लिए महत्वपूर्ण रहा है। मानव इतिहास के किसी भी चरण में जब हम व्यापार और विनिमय की धारणा का लागत लाभ के आधार पर विश्लेषण करें तो एक विवादित परिणाम आता है, जहां लाभ और नुक्सान दोनों हैं। 

किसी भी घटना को जब विभिन्न हितधारकों के लिए उत्पन्न परिणामों के संदर्भ में अनियंत्रित छोड़ दिया जाता है तो उसका विरोध होना तय है। वैश्वीकरण की भी यह अद्भुत कहानी रही है। एक तरफ इसे पूंजीवाद के नए पहलू के रूप में करार दिया, जिससे गरीब राष्ट्रों का शोषण हुआ और धन कुछ लोगों के हाथों में केंद्रित हो गया, तो दूसरी तरफ हाल में पॉपुलिस्ट (लोकलुभावन) विचारों द्वारा इसे अभिजात्य वर्ग की भाषा कहा गया, जो जमीनी स्तर की चिंताओं को दरकिनार कर देता है। 

इस वाद-विवाद में यह भी देखने को मिला कि किस प्रकार युद्ध की प्रकृति सैन्य से आर्थिक से जैविक तक बदल गई। ऐसी परिस्थितियों में एक साथ होने की धारणा सरासर अविश्वास भरी दिखाई पड़ती है। फिर भी अलगाव किसी वैश्विक समस्या को सुलझाने के दृष्टिकोण के रूप में रही रास्ता नहीं बताता दिखा। अभी महामारी खत्म तो नहीं हुई और राष्ट्र पहले से ही बूस्टर, परीक्षण तंत्र, नए दिशानिर्देशों, नए उभरते खतरों से निपटने की कवायद में मौजूद हैं। साथ ही यूरोप में युद्ध के डर का भी व्यापार और वैश्विक शासन के मुद्दों पर काम करने पर एक महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है। 

दावोस वल्र्ड इकोनॉमिक फोरम में आगे की राह को परिभाषित करने की रूपरेखा के नए संदर्भ में वैश्वीकरण को परिभाषित करने और फिर से इस पर काम करने की आवश्यकता भी सुनी गई। यह आवश्यक है कि इस विचार से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं पर गहराई से विचार किया जाए। अब आर्थिक राष्ट्रवाद को पुनर्वैश्वीकरण से जोडऩा होगा। किसी भी राष्ट्रीय उद्योग की वैश्विक छाप स्वदेशी उत्पादन और लाभ के लिए फायदेमंद होती है। जैसे दुनिया की रफ्तार दोबारा गति पकड़ चुकी है, कई द्विपक्षीय और बहुपक्षीय व्यापार समझौतों में सहयोग पर चर्चा हो रही है। यह जरूरी है कि अतीत की गलतियों को न दोहराएं। गांवों से शुरू होकर शहर तक जाती ठोस नींव पर वैश्वीकरण की नई उपज हो। 

यह आवश्यक है कि इस पर वैश्विक शासन तंत्र के संदर्भ में काम किया जाना चाहिए, जो प्रतिनिधित्व की वास्तविकताओं, वर्तमान समय के हित के अनुकूल हो। पिछले 30 साल में वैश्वीकरण का मतलब वित्तीय लाभ था। आज की दुनिया में जहां प्रौद्योगिकी उत्पादन और सुरक्षा के मुद्दे के एक नए कारक के रूप में उभरे हैं, तो यह पहले का विचार मान्य नहीं है। प्रदर्शन मूल्यांकन के लिए एक बेहतर मानदंड की आवश्यकता होगी। निस्संदेह, लाभ और विस्तार महत्वपूर्ण हैं, फिर भी उन्हें पारिस्थितिकी, स्वास्थ्य, समुदाय आदि जैसी नई सुरक्षा चिंताओं से अलग नहीं किया जा सकता। भारत ने भी हमेशा वैश्विक शासन क्षेत्र में इन विचारों का समर्थन किया है।-डा. आमना मिर्जा
 

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