‘अब नेपाली-चीनी भाई-भाई’

Edited By ,Updated: 02 Nov, 2019 02:57 AM

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नेपाल -चीन संबंधों में हाल ही में समाप्त हुई चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की यात्रा ने एक नया अध्याय लिखा है। 1996 में काठमांडू में जियांग जेमिन की यात्रा के 23 वर्षों बाद शी की हिमालयी साम्राज्य की यह यात्रा मुकम्मल हुई है। जहां पर नेपाल ने शी की...

नेपाल -चीन संबंधों में हाल ही में समाप्त हुई चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की यात्रा ने एक नया अध्याय लिखा है। 1996 में काठमांडू में जियांग जेमिन की यात्रा के 23 वर्षों बाद शी की हिमालयी साम्राज्य की यह यात्रा मुकम्मल हुई है। जहां पर नेपाल ने शी की भारतीय यात्रा पर हुए शानदार स्वागत को छिपाते हुए एक शानदार स्वागत से शी का दिल जीता। 

शी की इस यात्रा का हम विश्लेषण करना चाहेंगे। चीन ने भूमि, समुद्र तथा पहाड़ी इलाकों पर अपना वर्चस्व कायम करते हुए अपने आपको इस क्षेत्र में स्थापित किया है। चीन ने बैल्ट एंड रोड इनीशिएटिव बी.आर.आई. के माध्यम से दोतरफा तथा सैन्य सहयोग के लिए पृष्ठभूमि तैयार की है। चीन को नेपाल की भूगौलिक परिस्थितियों को जानने में सालों लगे और अब वह उन चुनौतियों को मौकों और विकल्पों  में बदलने की तलाश में है। चीन दोहरी चुनौतियों का सामना कर रहा है। पहली चुनौती आर्थिक संबंधों तथा तिब्बत में एक स्थायी माहौल बनाने की है। वह भारत से नेपाल के विशेष संबंधों पर भी अपनी निगाह टिकाए हुए है। 

दूसरी बात यह है कि चीन तिब्बत के साथ अपनी पूरी उत्तरी सीमा को सांझा करता है। नेपाल में 11,000 तिब्बती शरणार्थी शरण लिए हुए हैं। इससे चीन को अपने यहां चीन विरोधी गतिविधियों का भी डर है। हालांकि नेपाल तथा चीन के बीच कोई कूटनीतिक सांझेदारी नहीं है। मगर अब ये दोनों देश सुरक्षा, सहयोग और सैन्य अभ्यास भी 2017-2018 में कर चुके हैं। दोनों देशों की सेनाओं ने युद्ध के आधुनिक तरीकों को सांझा किया ताकि आतंक के बढ़ते हुए हमलों से निपटा जाए। दोनों के पास नेपाल में तिब्बतियों की शरण लेना तथा भारत में आतंक के खतरे से निपटने के लिए चुनौतियां भी शामिल हैं। इस सैन्य अभ्यास का मुख्य उद्देश्य क्षेत्र में चीन विरोधी गतिविधियों को न बर्दाश्त करने का संदेश भी फैलाना है। 

दोनों देश एक-दूसरे की स्वतंत्रता, अखंडता का सम्मान करेंगे
चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की यात्रा के दौरान काठमांडू में सांझे वक्तव्य में कहा गया कि दोनों देश एक-दूसरे की स्वतंत्रता, अखंडता का सम्मान करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। नेपाल ने भी ‘वन चाइना पालिसी’ तथा ताइवान को चीनी राष्ट्र का एक हिस्सा माना है। नेपाल ने यह भी माना कि तिब्बत चीन का एक अंदरूनी मामला है। नेपाल ने यह भी प्रतिबद्धता दिखाई कि वह चीनी भूमि पर किसी भी चीन विरोधी ताकत को बर्दाश्त नहीं करेगा। क्योंकि हांगकांग में ङ्क्षहसात्मक तथा चीन विरोधी गतिविधियां चल रही हैं इसलिए राष्ट्रपति शी ने नेपाल की यात्रा से विश्व भर में यह संदेश भेजना चाहा है कि जो राष्ट्र चीन को बांटने की या तोडऩे की कोशिश करेगा उसके शरीर के टुकड़े तथा हड्डियों को मसल दिया जाएगा। 

यात्रा के दौरान नेपाल तथा चीन में 20 समझौतों पर हस्ताक्षर हुए, जो दोनों देशों के सहयोग से अतिरिक्त कूटनीतिक मिशन को आगे बढ़ाने तथा मूलभूत सुविधाओं का कायाकल्प करने के बारे में थे। चीन-नेपाल के बीच रेलवे प्रोजैक्ट के बारे में भी सहमति बनी। 20 में से 4 समझौते तो सिर्फ दो तरफा सुरक्षा उपायों पर हुए। नेपाल से चीन को यह भी उम्मीद थी कि एक प्रत्यर्पण संधि पर भी काम किया जाए मगर नेपाल में विपक्ष की आलोचना के बाद प्रधानमंत्री के.पी. ओली ने इस समझौते को व्यावहारिक रूप देने से इंकार कर दिया। 

प्रत्यर्पण संधि को टाल दिया गया
प्रत्यर्पण संधि से चीन का यह मतलब था कि इस संधि के माध्यम से वह चीन विरोधी गतिविधियों तथा आपराधिक मंशा वाले तिब्बती शरणाॢथयों से निपट सकेगा। इससे नेपाल में कई दशकों से शरण लिए हुए 11000 से अधिक तिब्बती शरणाॢथयों पर असर पड़ सकता है। हालांकि हाल के क्षण इस संधि को टाल दिया गया है मगर चीन को उम्मीद है कि नेपाल एक न एक दिन प्रत्यर्पण संधि की मांग को पूरा करेगा। 

यात्रा के बाद चीन ने 150 मिलियन डालर (2.4 बिलियन नेपाली रुपए के बराबर) सैन्य सहायता नेपाल को उपलब्ध करवाने पर सहमति जताई। इसी के तहत नेपाल के उपप्रधानमंत्री तथा रक्षा मंत्री पेइङ्क्षचग की तरफ रवाना हुए ताकि समझौते पर हस्ताक्षर हो सकें। नेपाल के रक्षा मंत्री ने यह बयान दिया कि इस सहायता का मकसद मानवीय तथा आपदा सहायता कार्यों के लिए है। यह सहायता नेपाल के लिए एक सुखद समाचार है। चीन ने इससे आगे बढ़ कर 493 मिलियन डालर (56 बिलियन नेपाली रुपए के बराबर) की सहायता देने की प्रतिबद्धता जताई ताकि नेपाली लोगों के जीवन स्तर को ऊंचा उठाया जाए। 

नेपाल में साम्राज्य के दौरान निर्णय लेना सम्राटों के हाथों में था। मगर 2008 के बाद लोकतांत्रिक संस्थाओं ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की तथा लोगों की आपत्तियों तथा राजनीतिक उद्देश्यों को जाना। भारत की तरफ झुकाव रखते हुए चीन की तरफ बढऩे की भी नेपाली नीति कारगर साबित हो रही है। 2015 में भारत-नेपाल सीमा को कथित रूप से बंद करने के बाद पिछले 5 वर्षों में चीन-नेपाल के बीच आपसी सहयोग की बातें बढ़ी हैं। नेपाल का अब नेपाली-चीनी भाई-भाई के नारे की तरफ ध्यान बढ़ा है। यही नारा किसी समय भारत के साथ सांझा किया गया था जब चीनी-हिन्दी भाई-भाई का नारा दिया गया। अब नेपाल में बढ़ते चीनी कदमों की आहट से नई दिल्ली अपनी नीति को बदलने की सोचेगा ताकि नेपाल सहित अन्य पड़ोसी देशों में अपनी साख को फिर से मजबूत किया जाए।-आर गुप्ता

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