‘ममता के सामने अब एक ही रास्ता’‘कांग्रेस व वाम गठबंधन को सहयोग दें’

Edited By ,Updated: 16 Jan, 2021 04:07 AM

now one way in front of mamta   support congress and left alliance

श्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपना राजनीतिक करियर 1970 के दशक में कांग्रेस से शुरू किया और 1993 में कांग्रेस से त्यागपत्र देकर अपनी अलग पार्टी ‘तृणमूल कांग्रेस’ बना ली। 1999 में श्री अटल बिहारी वाजपेयी की भाजपा नीत एन

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपना राजनीतिक करियर 1970 के दशक में कांग्रेस से शुरू किया और 1993 में कांग्रेस से त्यागपत्र देकर अपनी अलग पार्टी ‘तृणमूल कांग्रेस’ बना ली। 1999 में श्री अटल बिहारी वाजपेयी की भाजपा नीत एन.डी.ए. से जुड़कर उनकी सरकार में रेल मंत्री बनीं परंतु वह वाजपेयी जी के कामकाज को लेकर जब-तब नाराजगी प्रकट करती रहतीं और अचानक अपने घर कोलकाता चली जातीं। इसी कारण एक दिन वाजपेयी जी ने कोलकाता में ममता के घर जाकर उनकी मां के पैर छू लिए और उनसे कहा, ‘‘आपकी बेटी बहुत शरारती है। बहुत तंग करती है।’’ इसके बाद वाजपेयी जी से ममता की नाराजगी कुछ ही समय में दूर हो गई। 

बाद में एन.डी.ए. से नाता तोड़ कर कांग्रेस नीत यू.पी.ए. से जुड़ गईं और यू.पी.ए.-2 में भी रेल मंत्री बनीं। केंद्र में रेल मंत्री रहते हुए भी उनकी नजर बंगाल पर ही रही और अंतत: बंगाल में 34 वर्षों का वामपंथी शासन समाप्त कर वह 22 मई, 2011 को प्रदेश की मुख्यमंत्री बन गईं। दो बार बंगाल की सत्ता पर कब्जा बनाए रखने के बाद ममता बनर्जी तीसरी बार अपनी सफलता के लिए प्रयत्नशील हैं और भाजपा के साथ उनकी ठन गई है। बंगाल में विधानसभा चुनाव होने में पांच महीने ही शेष रह गए हैं और ममता बनर्जी को सत्ताच्युत करने के लिए पिछले कुछ समय से भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह तथा अन्य केंद्रीय और राज्यों के भाजपा नेता लगातार राज्य के दौरे कर रहे हैं। 

जहां ममता बनर्जी के विरोधी राज्य में लाकानूनी और भ्रष्टाचार का मुद्दा उठा रहे हैं, वहीं ममता को सत्ता विरोधी लहर तथा पार्टी में लगातार बढ़ रहे असंतोष का भी सामना करना पड़ रहा है जिसके परिणामस्वरूप ममता के विश्वस्त साथी उन्हें छोड़ कर जा रहे हैं। उनका साथ छोडऩे वाले सभी नेता ममता के स्वभाव के साथ तालमेल न बन पाने और अपनी बात न सुनी जाने तथा पार्टी में चाटुकारों और अयोग्य लोगों के बोलबाले का आरोप लगा रहे हैं। विधायक वैशाली डालमिया ने पार्टी के काम करने के तरीकों पर सवाल उठाते हुए कहा, ‘‘पार्टी में कुछ लोग दूसरों को काम नहीं करने दे रहे और दीमक की तरह अंदर ही अंदर पार्टी को खोखला कर रहे हैं...ममता सरकार में मंत्री लक्ष्मी रत्न शुक्ला ने भी इसी कारण दुखी होकर त्यागपत्र दिया।’’ 

यही नहीं ममता का दायां हाथ कहलाने वाले पूर्व मंत्री शुभेंदु अधिकारी सहित दो दर्जन के लगभग नेता उनका साथ छोड़ कर भाजपा में चले गए हैं व एक अन्य सांसद तथा अभिनेत्री शताब्दी राय ने भी पार्टी छोडऩे के संकेत दे दिए हैं। इन्हीं बातों को लेकर ममता के परिवार में भी कलह पैदा हो गई है व ममता के भाई काॢतक बनर्जी भी उनसे बागी हो रहे हैं। राज्य से वंशवाद की राजनीति समाप्त करने के इच्छुक काॢतक बनर्जी ने कहा, ‘‘मैं ऐसे राजनेताओं से तंग आ गया हूं जो लोगों का जीवन बेहतर बनाने की बात करते हैं पर अपने ही परिवार का जीवन बेहतर बनाते हैं।’’ 

राज्य में चल रही इस तरह की राजनीतिक गतिविधियों के बीच ममता बनर्जी को ‘तृणमूल कांग्रेस’ का अस्तित्व खतरे में दिखाई दे रहा है क्योंकि चुनावी रण में एक ओर जहां उनके अपने लोग साथ छोड़ रहे हैं और भाजपा पूरे आक्रामक तरीके से मैदान में है, वहीं दूसरी ओर कांग्रेस ने वाम दलों के साथ गठबंधन कर लिया हैै। राजनीतिक घटनाक्रम को देखते हुए ‘तृणमूल कांग्रेस’ के वरिष्ठ नेता एवं सांसद सौगत राय ने कांग्रेस और वामदलों को ममता का साथ देने की सलाह दी है ताकि वह भाजपा के विरुद्ध लड़ाई लड़ सकें। 

जहां ममता ने अतीत में कांग्रेस को धोखा दिया और बंगाल में 34 वर्षों से शासन कर रही वामदलों की सरकार को सत्ताच्युत करके स्वयं बंगाल की सत्ता पर कब्जा कर लिया था, अत: इसके किसी नेता द्वारा ममता और तृणमूल कांग्रेस के अस्तित्व की खातिर इनसे सहायता मांगना मूर्खतापूर्ण सुझाव है। अब तो ममता बनर्जी के सामने अपना अस्तित्व बचाने के लिए एकमात्र रास्ता यही बचा है कि वह कांग्रेस और वामदलों के गठबंधन को सहयोग दे ताकि ये तीनों मिल कर भाजपा को चुनौती दे सकें।—विजय कुमार

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