अब मुकाबला ‘क्षेत्रीय हैवीवेट’ तथा ‘भाजपा शुभंकर’ के बीच

Edited By ,Updated: 17 Nov, 2020 02:22 AM

now the contest between regional heavyweight and bjp mascot

पश्चिम बंगाल आने वाले विधानसभा चुनावों में प्रधानमंत्री मोदी तथा राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बीच व्यक्तित्व भिड़ंत को देखेगा क्योंकि राज्य में कोई बड़ा नेता नहीं है। इसलिए भाजपा यह फार्मूला अपनाने वाली है। मुकाबला क्षेत्रीय हैवीवेट तथा भाजपा...

पश्चिम बंगाल आने वाले विधानसभा चुनावों में प्रधानमंत्री मोदी तथा राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बीच व्यक्तित्व भिड़ंत को देखेगा क्योंकि राज्य में कोई बड़ा नेता नहीं है। इसलिए भाजपा यह फार्मूला अपनाने वाली है। मुकाबला क्षेत्रीय हैवीवेट तथा भाजपा के शुभंकर नरेंद्र मोदी के बीच होगा। इससे पहले यह फार्मूला उसे उत्तर प्रदेश, बिहार, दिल्ली, महाराष्ट्र तथा हरियाणा में मिश्रित सफलता दिला चुका है। 

अगले वर्ष 5 राज्यों पश्चिम बंगाल, असम, तमिलनाडु, केरल तथा पुड्डुचेरी में विधानसभा चुनाव होने हैं। यह चुनाव भाजपा की विस्तार योजना को देखेंगे। मगर भगवा पार्टी का मुख्य लक्ष्य पश्चिम बंगाल को भेदना है। जहां पर तृणमूल कांग्रेस 2011 से डटी हुई है जब ममता ने माकपा को राज्य से भगाया था। माकपा ने तीन दशकों तक राज्य पर अपना शासन चलाया था। ममता तीसरे कार्यकाल के लिए सत्ता प्राप्त करना चाहेंगी। जबकि मोदी बनाम ममता की लड़ाई ने भाजपा के लिए लोकसभा चुनावों में अच्छी कारगुजारी की थी। मगर राज्य स्तरीय चुनावों में भाजपा के लिए जीत पाना आसान नहीं होगा। ममता अन्य क्षेत्रीय नेताओं जैसी नहीं हैं। उन्होंने अन्य विपक्षी पाॢटयां जैसे माकपा तथा कांग्रेस को एक दशक से शून्य कर रखा है। वह गली-गली लडऩे वाली मुख्यमंत्री हैं। पिछले करीब 45 वर्षों से पश्चिम बंगाल केंद्र विरोधी रहा है, जिससे ममता को मदद मिलेगी। 

2019 के लोकसभा चुनावों के बाद भाजपा की कार्यकुशलता एक विजेता की रही है। 2019 के लोकसभा चुनाव में बंगाल में भाजपा अच्छा कर पाई थी। इसने 42 लोकसभा सीटों में से 18 जीती थीं जोकि सत्ताधारी टी.एम.सी. से चार सीटें कम थीं। महत्वपूर्ण तरीके से भाजपा का वोट शेयर राज्य में बढ़ा है। यह 2019 में 40 प्रतिशत से ऊपर रहा। इससे पहले 2011 में भाजपा का वोट शेयर मात्र 2 प्रतिशत था। राज्य में विधानसभा चुनावों में भी भाजपा दूसरे नम्बर की पार्टी रही। 2016 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस तथा माकपा ने मिलकर चुनाव लड़ा था तथा उन्होंने 294 सीटों में से 76 सीटें जीती थीं। वोट शेयर के मामले में दोनों पाॢटयों का हिस्सा लगभग 39 प्रतिशत का रहा। मगर 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले दोनों पाॢटयों में फूट पड़ गई और वे अलग-अलग हो गईं। इस बार माकपा की सैंट्रल कमेटी ने सभी धर्मनिरपेक्ष पाॢटयों जिसमें कांग्रेस भी शामिल है, में चुनावी गठजोड़ की सहमति जताई है। 

2021 के चुनाव हालांकि टी.एम.सी. के लिए काफी मुश्किलें साबित कर सकते हैं। भाजपा के लिए एक फायदा यह है कि वह अपरीक्षित चुनौती देने वाली पार्टी है। रणनीति के तौर पर भाजपा इस समय ममता बनर्जी के खिलाफ प्रशासन विरोधी  पहलू को मजबूत करने में लगी है। इसके अलावा वह ङ्क्षहदू मतों को भी सशक्त बनाने में जुटी हुई है। 2011 में ममता बनर्जी का ‘परिवर्तन’ नारा आज भाजपा का नारा बन चुका है। इस समय भाजपा अपना ध्यान कट मनी तथा सिंडीकेट राज पर केंद्रित कर रही है। टी.एम.सी. के कथित तौर पर भ्रष्टाचार के मुद्दे को भाजपा मुख्य मुद्दा बनाने जा रही है। आमार परिबार (मेरा परिवार, भाजपा परिवार) अब भाजपा का वर्तमान नारा है। भाजपा का लक्ष्य युवा वर्ग को लुभाने का है और इसलिए वह सोशल मीडिया पर मुहिम ‘रिबूट कोलकाता’ चलाने जा रही है जिसके तहत कोलकाता शहर को उसकी  भूतपूर्व शानो-शौकत को बताना है। 

हालांकि ममता बनर्जी की सबसे बड़ी ताकत उनकी विकासशील मुख्यमंत्री की छवि है। उन्होंने गरीब परिवारों की लड़कियों को साइकिल बांटे, कम कीमत पर चावल बांटे तथा सड़क इत्यादि का विकास किया। लॉकडाऊन के दौरान ममता ने वोटरों, कार्यकत्र्ताओं तथा विशेष बंगाली लोगों के साथ बैठकें कीं। ये सब बातें तथा विकास की स्कीमें ममता के लिए मददगार साबित हो सकती हैं। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की इस घोषणा कि विवादास्पद सी.ए.ए. बंगाल में विधानसभा चुनावों से पूर्व लागू कर दिया जाएगा, ने ममता को और अलर्ट कर दिया। टी.एम.सी. की योजना सी.ए.ए. तथा एन.आर.सी. के खिलाफ बहुपक्षीय आंदोलन करने की है। टी.एम.सी., लैफ्ट तथा कांग्रेस भी इकट्ठी हो सकती हैं तथा पश्चिम बंगाल विधानसभा में एन.आर.सी. के खिलाफ एक प्रस्ताव पास करवा सकती हैं।

ममता की अल्पसंख्यकों पर भी काफी पकड़ है, जो आबादी का 28 प्रतिशत हिस्सा रखते हैं। इसका संबंध 70 से 80 सीटों का है। साम्प्रदायिक आधार पर भाजपा की योजना मतों का ध्रुवीकरण करने की है। ममता अल्पसंख्यक मतों के दोफाड़ होने के खिलाफ थीं।ए.आई.एम.आई.एम. जिसने बिहार में 5 सीटें जीती हैं, भी पश्चिम बंगाल में चुनाव लड़ सकती है जो मुस्लिम मतों को काट सकती है। पश्चिम बंगाल चुनावी परिदृश्य के बारे में भविष्यवाणी करना जल्दबाजी होगी क्योंकि चुनावों के दौरान ही स्पष्टता उभर कर आएगी। मगर हिंसा भी अपेक्षित है। 2019 लोकसभा चुनावों के बाद भाजपा ने किसी भी राज्य में जीत प्राप्त नहीं की है। मध्य प्रदेश में भाजपा के लिए सूर्य की किरण दिखाई दी जब इसने कमलनाथ सरकार को गिरा कर राज्य में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में भाजपा की सरकार स्थापित की। इस कारण बिहार चुनावों को जीतना पार्टी के लिए बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण था और बंगाल को जीतने का मतलब इसका पूर्व की ओर जाने वाला विस्तार होगा।-कल्याणी शंकर 
 

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