अब दिल्ली ‘फतेह’ करने की बारी

Edited By ,Updated: 01 Jan, 2020 03:13 AM

now turn to delhi fateh

नववर्ष का आगमन हो चुका है और अब सबकी आंखें दिल्ली विधानसभा चुनावों में लगी हुई हैं जिनकी जल्द ही घोषणा होने वाली है। दिल्ली के तख्त पर बैठी आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार का कार्यकाल फरवरी माह में खत्म हो रहा है। दिल्ली के लिए होने वाली चुनावी लड़ाई...

नववर्ष का आगमन हो चुका है और अब सबकी आंखें दिल्ली विधानसभा चुनावों में लगी हुई हैं जिनकी जल्द ही घोषणा होने वाली है। दिल्ली के तख्त पर बैठी आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार का कार्यकाल फरवरी माह में खत्म हो रहा है। दिल्ली के लिए होने वाली चुनावी लड़ाई बड़ी रोचक होने वाली है तथा यह सभी राजनीतिक खिलाडिय़ों के लिए नाजुक क्षण है। सभी पार्टियों ने चुनावी बिगुल बजा दिया है। 

‘आप’ के प्रवेश से दिल्ली की राजनीति का चुनावी युद्ध बदला
इस बार यह त्रिकोणीय युद्ध होने की सम्भावना है। 2013 में ‘आप’ के प्रवेश के बाद राजनीति का चुनावी युद्ध बदल चुका है। इससे पहले यह लड़ाई कांग्रेस तथा भाजपा के बीच थी। अब यह देखना होगा कि 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की विश्वसनीय जीत के बाद क्या भाजपा विधानसभा में भी अपना दमखम दिखाएगी। भाजपा ने लोकसभा की सभी सातों सीटों पर जीत प्राप्त की थी। यदि कांग्रेस तथा ‘आप’ दोनों मिल बैठतीं तो भाजपा सभी सीटें जीत न पाती। 2014 के लोकसभा चुनावों में जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी लहर के चलते सत्ता हासिल की थी, तब ‘आप’ ने 33.1 प्रतिशत तथा कांग्रेस ने 15.1 प्रतिशत वोटें हासिल की थीं। दोनों का संयुक्त वोट शेयर भाजपा से 2 प्रतिशत अधिक था। हालांकि दिल्ली एक छोटा राज्य है तथा देश की राजधानी होने के नाते आगामी चुनाव बेहद महत्वपूर्ण है। कांग्रेस भी दिल्ली में अपनी हालत सुधरने की उम्मीद लगाए बैठी है, जहां पर इसने लगातार 3 बार राज किया था। उसके बाद ‘आप’ ने सत्ता छीनी थी। दुर्भाग्यवश कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर नहीं बल्कि राज्य स्तर पर भी नेतृत्व की समस्या से जूझ रही है। पार्टी में अनुशासनहीनता तथा गुटबाजी चल रही है। भाजपा, ‘आप’ के मुकाबले कांग्रेस कमजोर पड़ती दिखाई दे रही है। 

चुनावी सरगर्मियां शुरू  
नागरिकता संशोधन कानून तथा प्रस्तावित नैशनल सिटीजन रजिस्टर के खिलाफ प्रदर्शनों के बीच यह चुनावी सरगर्मियां शुरू हो चुकी हैं। जब तक दिल्ली विधानसभा के चुनाव शुरू नहीं होते तब तक यह राजनीतिक उथल-पुथल जारी रहेगी। यह उपद्रव अन्य राज्यों में भी जारी है बल्कि नार्थ-ईस्ट तथा यू.पी. केवल अशांति ही नहीं झेल रहे बल्कि वहां हिंसा भी हो रही है। हाल ही में जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी में दिल्ली पुलिस की क्रूरता के बाद छात्र भी इसमें कूद गए। उनको भारत में ही नहीं बल्कि विदेश में भी कई विश्वविद्यालयों का समर्थन प्राप्त था। इसके साथ-साथ भारतीय अर्थव्यवस्था ने भी खतरे की घंटी बजा रखी है। गत अगस्त में आर्टीकल 370 को खत्म करने के बाद जम्मू-कश्मीर में अभी शांति कायम होना बाकी है। ‘आप’ तथा केन्द्र सरकार राजधानी में प्रदूषण के मुद्दे को लेकर एक-दूसरे पर आरोप लगाने में लगी हुई हैं। 

जबकि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल अपने सिंहासन का बचाव करने में लगे हुए हैं। दूसरी ओर भाजपा फिर से दिल्ली को फतेह करना चाहेगी। 2013-15 के पिछले दो विधानसभा चुनावों में ‘आप’ ने 29.49 तथा 54.3 प्रतिशत क्रमश: वोट हासिल किए थे। 2015 में ‘आप’ ने 70 में से 67 सीटें प्राप्त कर अभूतपूर्व जीत प्राप्त की थी। उसके बाद ‘आप’ ढलान पर है क्योंकि कई वरिष्ठ नेता पार्टी से बाहर कर दिए या फिर कुछ छोड़ गए। केजरीवाल पर सत्तावादी होने का आरोप लग रहा है।

विज्ञापन के माध्यम से मतदाता को लुभा रहीं पार्टियां
सभी राजनीतिक खिलाड़ी सोशल मीडिया का जोरदार इस्तेमाल कर रहे हैं। साथ ही जनसभाओं के माध्यम से चुनावी मुहिम चला रहे हैं। सभी पाॢटयां एक-दूसरे पर निशाना साधे हुए हैं। पाॢटयां यह जान चुकी हैं कि विज्ञापन के माध्यम से मतदाता को कैसे लुभाया जा सकता है। इसके अलावा डोर टू डोर चुनावी मुहिम भी चल रही है। प्रधानमंत्री ने खुद भाजपा की चुनावी मुहिम की बागडोर सम्भाल रखी है क्योंकि भाजपा अब दिल्ली को फतेह करने के लिए उन पर बहुत ज्यादा निर्भर करती है। केन्द्र  तथा दिल्ली सरकार कई मुद्दों को लेकर आपस में भिड़ी हुई हैं। 

दिल्ली चुनाव स्कूलों, अस्पतालों, बिजली, पानी, डेंगू, प्रदूषण, सी.सी.टी.वी. तथा अन्य स्थानीय मुद्दों पर लड़ा जाएगा। एन.आर.सी., सी.ए.ए. तथा एन.पी.आर. के मुद्दे भी छाए रहेंगे। भाजपा की दिल्ली इकाई अनधिकृत कालोनियों को नियमित करने के बिल के मुद्दे का भी इस्तेमाल करेगी जिससे लाखों की गिनती में गरीब तथा झुग्गी-झोंपड़ी वाले लोगों को फायदा होगा। 2008 में कांग्रेस सरकार ने 1218 अनधिकृत कालोनियों के अंतरिम सर्टीफिकेट बांट कर सत्ता में वापसी की थी। वहीं भाजपा के पास व्यापारी वर्ग तथा मध्यम आय वर्ग का समर्थन है। गरीब तथा मध्यम वर्ग ‘आप’ सरकार से खुश है। लोग इस बात से संतुष्ट हैं कि उनके रोटी-पानी का मसला अच्छे ढंग से सुलझ रहा है। हालांकि पहले से भविष्यवाणी नहीं की जा सकती मगर फिर भी ‘आप’  की पकड़ भाजपा-कांग्रेस से ज्यादा लोगों पर मजबूत है।-कल्याणी शंकर
 

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