‘ओह-हो, आप को कैंसर तो था ही नहीं’

Edited By ,Updated: 31 May, 2019 04:39 AM

oh ho you did not have cancer

अमरीका की राष्ट्रीय कैंसर संस्था तथा विश्व की जानी-पहचानी मैडीकल पत्रिका ‘जामा’ ने माना है कि गत कई दशकों से कैंसर की कुछ किस्मों का डाइग्नोज तथा इलाज गलत हो रहा है। इससे लाखों लोगों को नुक्सान पहुंचने से दशकों बाद अमरीका की राष्ट्रीय कैंसर संस्था...

अमरीका की राष्ट्रीय कैंसर संस्था तथा विश्व की जानी-पहचानी मैडीकल पत्रिका ‘जामा’ ने माना है कि गत कई दशकों से कैंसर की कुछ किस्मों का डाइग्नोज तथा इलाज गलत हो रहा है। इससे लाखों लोगों को नुक्सान पहुंचने से दशकों बाद अमरीका की राष्ट्रीय कैंसर संस्था तथा विश्व की प्रसिद्ध मैडीकल पत्रिका ‘जर्नल ऑफ अमेरिकन मैडीकल एसोसिएशन (जामा)’ ने मान लिया है कि उनके कैंसर के गलत वर्गीकरण के कारण यह गलती हुई। 

2012 में अमरीका की राष्ट्रीय कैंसर संस्था ने विशेषज्ञों का एक पैनल बनाया, जिसे कैंसर के वर्गीकरण में हो रही गलतियों का मूल्यांकन करने की जिम्मेदारी सौंपी गई। खोज-पड़ताल करने के बाद पैनल ने मान लिया कि कई दशकों से गलत वर्गीकरण के कारण 4 अंगों के कैंसर का गलत डाइग्नोज तथा इलाज हो रहा है। ये अंग हैं महिलाओं में वक्ष का कैंसर, पुरुषों में गदूदों का कैंसर, थायराइड तथा फेफड़ों का कैंसर। जिन लोगों पर कैंसर का ठप्पा लगाकर कैंसर का इलाज किया जा रहा था, उनको वास्तव में कैंसर था ही नहीं। सबसे बड़ी बात कि जो गलती मान ली गई है वह ठीक भी नहीं की गई। 

बीमारी का नामकरण गलत कर देने से सामान्य बीमारी के लाखों लोग कैंसर के मरीज बन गए और समझने लगे कि वे जानलेवा बीमारी के शिकार हो गए हैं। डाइग्नोज तथा इलाज के लिए इस्तेमाल किए गए तरीकों के कारण वे बीमार रहे, उनमें से कइयों की इलाज के दुष्प्रभावों से मौत हो गई तथा अधिकतर की इलाज के कारण उम्र कम हुई। उनके लिए केवल इतना ही कहा गया-‘ओह-हो, हमसे गलती हो गई, आप को कैंसर तो था ही नहीं।’ इससे भी अधिक अफसोस की बात यह कि हमारे जैसे देशों में आज भी कैंसर डाइग्नोज तथा इलाज पुराने तरीकों से किया जा रहा है, जिस कारण आज भी लाखों लोगों को बिना वजह कैंसर के मरीज घोषित किया जा रहा है व उनको खतरनाक डाइग्नोसिस तथा इलाज की तकनीकों की बलि चढ़ाया जा रहा है। 

यदि केवल महिलाओं के वक्ष कैंसर का उदाहरण लें तो वैज्ञानिक अनुमान के अनुसार गत 30 वर्षों में फालतू डाइग्नोसिस व इलाज के कारण केवल अमरीका में 13 लाख महिलाएं इसकी चपेट में आईं। उन्होंने कितने मानसिक दुख झेले होंगे, कितनी मर गईं या कितनों की उम्र घटी होगी, इस बारे कोई बात नहीं की गई। अत्यंत महंगा इलाज करवाते हुए कितने परिवार आर्थिक रूप से उजड़े होंगे, इस बारे भी वे चुप हैं। जब राष्ट्रीय कैंसर संस्था की रिपोर्ट जारी हुई तो उन वैज्ञानिकों की बात सही साबित हुई जो पहले ही कह रहे थे कि वक्ष का कैंसर, जिसे शुरूआती कैंसर या डक्टल काॢसनोमा इन सीटू कहा जा रहा था, वह असल में कैंसर था ही नहीं और उसके मरीजों को कैंसर के इलाज, सर्जरी, कीमो तथा रेडियो थैरेपी की जरूरत नहीं थी। 

आज विश्व में बहुत-सी खोजें कह रही हैं कि कैंसर के अधिकतर मरीजों की मौत कैंसर से नहीं बल्कि कैंसर के खतरनाक इलाज के कारण होती है। कैंसर का वर्तमान इलाज-सर्जरी, कीमो (अत्यंत जहरीली दवाओं से कैंसर को मारना) तथा रेडियो थैरेपी (बिजली से कैंसर को जलाना) से मरीज के पल्ले तो लूले-लंगड़े कुछ वर्ष ही पड़ते हैं लेकिन इलाज इतना महंगा है कि पूरा परिवार आर्थिक तौर पर कंगाल हो जाता है। 

आज पंजाब में अकेला कैंसर ही नहीं, कई अन्य खतरनाक पुरानी तथा लाइलाज बीमारियां भी भयंकर महामारियों का रूप धारण कर गई हैं। आज जरूरत है कि पंजाब में बीमारियों की इस बाढ़ की जड़ तक जाया जाए। बीमारियां अनेक हैं लेकिन उनके मूल कारण कम हैं। बीमारियों के अकेले-अकेले मरीज का अत्यंत महंगा इलाज एक जाल है, जो मुख्यधारा वाले चिकित्सा व्यवसाय द्वारा हमारे लोगों पर थोपा जा रहा है। कैंसर का मौजूदा इलाज विश्व का सबसे अधिक मुनाफा देने वाला धंधा है। 

बहुत से वैज्ञानिक कैंसर के मौजूदा इलाज को इलाज नहीं बल्कि एक बीमारी मानते हैं। दुनिया भर में अनेक लोग इलाज के कारगर विकल्प खोजने पर काम कर रहे हैं। इन इलाजों को कोई नाम देना हो तो हम इसे ‘होलिस्टिक हैल्थ केयर’ कह सकते हैं। इसमें मुख्य हैं-जहरमुक्त हवा, पानी, भोजन, संतुलित भोजन, स्वास्थ्यवद्र्धक जीवनचर्या, शारीरिक कार्य-व्यायाम, योग, घरेलू नुस्खे, जड़ी-बूटियों पर आधारित दवाएं, अन्य इलाज प्रणालियां तथा स्वस्थ संस्कृति आदि। ऐसी जनहितैषी कोशिशें ही कोई कारगर समाधान हो सकती हैं, नहीं तो सामान्य लोग ऐसे ही बेवकूफ बनते और लुटते रहेंगे।-डा. अमर सिंह आजाद

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