सिर्फ खिलाड़ी बदलते हैं, सिस्टम नहीं

Edited By ,Updated: 06 Aug, 2022 05:27 AM

only the players change not the

धन शोधन तथा घोटालों के ग्राफ के तेजी से ऊपर बढऩे से ऐसा प्रतीत होता है कि हम धोखेबाजों तथा धूर्तों का राष्ट्र बनते जा रहे हैं। यह उस धरती को शर्मसार करने वाली बात है जो किसी समय

धन शोधन तथा घोटालों के ग्राफ के तेजी से ऊपर बढऩे से ऐसा प्रतीत होता है कि हम धोखेबाजों तथा धूर्तों का राष्ट्र बनते जा रहे हैं। यह उस धरती को शर्मसार करने वाली बात है जो किसी समय वैश्विक तौर पर अपने नैतिक मूल्यों और आध्यात्मिक शक्ति के रूप में जानी जाती थी। 

आखिर गलतियां कहां हुई हैं? हालिया धन शोधन की घटनाएं किसी झटके से कम नहीं। तृणमूल कांग्रेस के पूर्व नेता पार्थ चटर्जी के आवासों पर प्रवर्तन निदेशालय (ई.डी.) के छापों से करीब 21 करोड़ रुपए नकद और कुछ बेशकीमती सोने की वस्तुएं कथित तौर पर मिली हैं। शिक्षक भर्ती घोटाले से जुड़े धन लेने के मामले से संबंधित यह जांच हुई है। सभी सरकारी प्रायोजित तथा सहायता प्राप्त स्कूलों से जुड़ा यह घोटाला है। 

एक अन्य मामले में झारखंड कांग्रेस के तीन विधायक उस समय हावड़ा में हिरासत में रखे गए जब उनके वाहनों में से करीब-करीब 50 लाख रुपए बरामद हुए। ई.डी. ने शिवसेना सांसद संजय राऊत को धन शोधन मामले के अंतर्गत मुम्बई में गिरफ्तार किया। ऐसे ही कई धन शोधन के मामले तथा घोटाले देश के अन्य हिस्सों में पाए गए हैं। ये मामले हमें स्वतंत्रता पूर्व के दिनों के दौरान ईस्ट इंडिया कंपनी की याद दिलाते हैं जोकि हमारे स्रोतों को लूटने के लिए जाने जाते हैं। आजादी के बाद भारत में ईस्ट इंडिया कम्पनी से ही जुड़े व्यक्तिगत स्वामित्व वाले भ्रष्ट राजनीतिज्ञों, अधिकारियों तथा माफिया ग्रुपों से संबंधित मामले देखे गए। 

यह सब बातें एक महत्वपूर्ण सवाल उठाती हैं कि ब्रिटिश साम्राज्य और भारत की महाराजाओं की नई श्रेणी में क्या अंतर है? ब्रिटिश शासकों के पास कम से कम कुछ संवेदनाएं तथा प्रतिबद्धताएं थीं जोकि सरकारी नियमों और निष्पक्षता को लेकर जुड़ी थीं। इसके विपरीत भारत की नई अमीर श्रेणी ने ऐसी अपंगताएं नहीं छेड़ीं। उन्होंने जागीरदारों की तरह व्यवहार किया और ऐसा दर्शाया कि वे कानून से ऊपर हैं। वह यह भी मानते हैं कि पैसे से ही सब कुछ और किसी को भी खरीदा जा सकता है। 

हालिया समय की विडम्बना देखिए कि राजनीति का स्तर लोगों के सपनों  से ऊपर है। आज दरार इतनी बढ़ गई है कि राजनीतिज्ञों के एक वर्ग तथा नौकरशाहों का अनुग्रह विस्तृत हो गया है। निजी या फिर किसी विशेष मत के लक्ष्य को पाने के लिए काले धन के प्रति इतनी रुचि नहीं थी। एक जाने-माने घोटाले के खिलाफ कई अनगिनत घोटाले जुड़े दिखाई देते हैं जो फूटने के लिए इंतजार करते हैं। 

विचलित कर देने वाली बात यह है कि सरकार में आज पारदर्शिता और जवाबदेही बहुत कम रह गई है। प्रत्येक डील या फिर निर्णय अपने अंतिम चरण पर जोड़-तोड़ का मुद्दा बन गया है। हमारी प्रणाली में बेशक कुछ कमियां हैं। यही कारण है कि कब और कुछ सशक्त लोग सी.बी.आई., ई.डी. या फिर विजीलैंस के जाल में फंस जाएं पता नहीं चलता। ये लोग कुछ तकनीकी पहलुओं पर अपने लूट के माल के साथ बच निकलने में कामयाब हो जाते हैं। लोगों को पैसे से कथित तौर पर खिलवाड़ करने से ऐसी शक्तियां कोई सबक नहीं लेतीं।

ऐसा प्रतीत होता है कि न तो कुछ सीखा गया और न ही सबक लिया गया। यह आश्चर्य वाली बात नहीं है कि धन शोधन का कारोबार और घोटाले निरंतर जारी हैं जैसे कि पहले हुआ करते थे। इन सब बातों से सभी जागरूक हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि 80 और 90 के दशक में हर्षद मेहता जैसे बड़े खिलाड़ी को भी हम भूल गए हैं जिसने किसी समय वित्तीय प्रणाली के साथ खिलवाड़ किया। 

आखिर दोष किसका है। सिर्फ खिलाड़ी बदलते हैं मगर हमारा सिस्टम वैसा ही रहता है। इसी कड़ी में कुछ नए संचालक जुड़ जाते हैं। मुख्य बिंदू यह है कि क्या हम ऐसी भ्रष्ट प्रवृत्तियां और आर्थिक अपराधों को पलट क्यों नहीं सकते? यह एक आसान कार्य नहीं है क्योंकि इसके लिए प्रशासन में उचित व्यवहार और कुछ अच्छी प्रवृत्ति के लोगों की जरूरत है। एक और बात जो आज गायब दिखाई पड़ती है वह है राजनीतिक इच्छाशक्ति जो इस भ्रष्ट वर्तमान चक्र को तोडऩे के लिए बेहद लाजिमी है। यदि हम अपेक्षित वित्तीय प्रशासन तथा चुनावी सुधारों को लागू करें तो हम अपने सिस्टम में सुधार ला सकते हैं। राजनीति में काले धन के खेल को कम करना होगा। हम आशा करते हैं कि सरकारें धन शोधन तथा घोटालों से भरे माफिया ग्रुपों पर प्रहार तेजी से करेंगी। 

यह बात प्रभावी ढंग से उल्लेख करने की जरूरत है कि राजनीति में बहाव की मजदूरी लोकतंत्र की जड़ों में गहरी हो चुकी है। ऐसा प्रतीत होता है कि लूटने की भावना मानसिक तौर पर उन लोगों के दिलो-दिमाग में बस गई है जो सत्ता को घुमाते हैं। ऐसे हालातों में एक स्वच्छ समाज के निर्माण के लिए एकमात्र जवाब लोगों के विचारों को उत्पन्न करने में है। इसके साथ भ्रष्टाचार विरोधी एक आंदोलन को चलाने की मांग भी होगी। यह सब कुछ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर निर्भर है कि जो यह निर्णय लें कि राष्ट्रीय जीवन के महत्वपूर्ण इस मरहले पर वह क्या करना चाहते हैं? घोटालों तथा धन शोधन में लिप्त लोगों के खिलाफ मोदी के पास कार्य करने के लिए सब कुछ है।-हरि जयसिंह 
    

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