Edited By ,Updated: 29 Sep, 2021 04:21 AM
स्कूल खोले जाने के लिए एक बच्चे ने सुप्रीम कोर्ट में पी.आई.एल. दायर की। जजों ने इस पर विचार करने से इंकार करते हुए कहा कि ऐसी बातों पर सरकार को फैसला करना चाहिए। केंद्र सरकार की नवीनतम गाइडलाइन्स के अनुसार स्कूल खोलने में अब कोई बंदिश नहीं है। इसके...
स्कूल खोले जाने के लिए एक बच्चे ने सुप्रीम कोर्ट में पी.आई.एल. दायर की। जजों ने इस पर विचार करने से इंकार करते हुए कहा कि ऐसी बातों पर सरकार को फैसला करना चाहिए। केंद्र सरकार की नवीनतम गाइडलाइन्स के अनुसार स्कूल खोलने में अब कोई बंदिश नहीं है। इसके बावजूद अधिकांश राज्यों में पिछले 18 महीनों से स्कूल बंद होने की वजह से करोड़ों छोटे बच्चे घर में बैठने को मजबूर हैं। डाटा और मैडिकल रिपोर्ट्स को देखा जाए तो बड़ों की तुलना में बच्चों को संक्रमण का डर कम है।
तीसरी लहर की आशंका के नाम पर स्कूलों को पूरी तरह से नहीं खोलने से बच्चों का शैक्षणिक, मानसिक और शारीरिक विकास अवरुद्ध होने के साथ उनके संवैधानिक हक का गंभीर हनन हो रहा है। स्कूल खोलने के नाम पर अनेक प्रकार के सेफगार्ड्स की बात हो रही है। बच्चों के टैंपरेचर की जांच, स्कूल में नियमित सैनिटाइजेशन, सोशल डिस्टैंसिंग, शिफ्ट में स्कूल, टीचर्स का वैक्सीनेशन, आगंतुकों पर बंदिश, नियमित कोरोना जांच, आइसोलेशन रूम, अस्पतालों से तालमेल जैसी आदर्श बातों को सुनिश्चित करने के बाद यदि स्कूल खुलेंगे तो फिर इसके लिए हमें कई दशक लम्बा इंतजार करना पड़ सकता है।
स्कूलों में सेफ्टी जरूरी है लेकिन हमें जमीनी हकीकत को भी ध्यान में रखना चाहिए। शिक्षा मंत्रालय की संसदीय समिति की रिपोर्ट के अनुसार देश के आधे सरकारी स्कूलों में प्लेग्राऊंड नहीं हैं। शिक्षा मंत्री ने संसद को सूचित किया था कि देश में लगभग 10.83 लाख सरकारी स्कूल हैं, जिनमें 36 फीसदी स्कूलों में बिजली नहीं हैं। लगभग 42 हजार स्कूलों में पीने का पानी नहीं है और 15 हजार सरकारी स्कूलों में टॉयलैट नहीं है। इन परिस्थितियों में कोरोना से बचाव के शहरी मापदंडों को ग्रामीण भारत में कैसे लागू किया जा सकता है?
संविधान के अनुच्छेद 45 के तहत 6 साल से कम उम्र के बच्चों की देखरेख और शिक्षा के लिए राज्यों के ऊपर विशेष उत्तरदायित्व निर्धारित किया गया है। अनुच्छेद 21-ए के तहत 6-14 साल के बच्चों को नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा का संवैधानिक हक है। एक अध्ययन के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में अनुसूचित जाति के सिर्फ 4 फीसदी बच्चों को ऑनलाइन शिक्षा की सहूलियत है। स्मार्टफोन और इन्टरनैट कनैक्टिविटी में दिक्कत के साथ गांव-देहात के बच्चे घर में बैठ कर सीख नहीं पा रहे। संपन्न और विपन्न बच्चों में बढ़ रहा डिजिटल डिवाइड संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 में दिए गए समानता के अधिकार और जीवन के अधिकार का उल्लंघन करता है।
एक अनुमान के अनुसार लगभग 11.5 करोड़ बच्चों को स्कूल में शिक्षा के साथ मिड-डे मील की वजह से भोजन और पोषण मिलता है। स्कूल बंद रहने की वजह से, बच्चों का शारीरिक विकास अवरुद्ध होना, पोषण और जीवन के अधिकार का हनन है, जिसके लिए संविधान के अनुच्छेद 47 और 21 में प्रावधान किए गए हैं। रिपोर्ट के अनुसार प्राइमरी स्कूल में ऑनलाइन विधि से पढऩे वाले अधिकांश बच्चे भाषा, गणित और ककहरा के प्राथमिक ज्ञान से वंचित हैं।
विश्व के किसी भी देश में छोटे बच्चों को टीका लगना शुरू नहीं हुआ। भारत में बच्चों के टीका के परीक्षण, अप्रूवल और लगवाने में 1 साल से ज्यादा का समय लग सकता है तो क्या अगले सैशन तक बच्चों को उनके स्कूल जाने के हक से वंचित रखा जाएगा? कोरोना के मामलों में निरंतर कमी आने के बाद कहा जा रहा है कि बीमारी एंडेमिक स्टेज में पहुंच गई है। यह स्थिति काफी लम्बे समय तक चल सकती है। जिन इलाकों में कोरोना का प्रकोप खत्म हो गया, वहां पर सभी स्कूलों को पूरी तरह से खोलने का निर्णय तो होना ही चाहिए। स्कूल खुलने के बाद कोरोना से बच्चों को बचाने में 2 पहलू बहुत महत्वपूर्ण हैं-पहला, स्कूलों में वैंटिलेशन हो, दूसरा, स्वास्थ्य सेवाएं सजग और तैयार रहें। वैंटिलेशन के लिहाज से खुले मैदान में चलने वाले बगैर छत के सरकारी स्कूलों में बच्चों को कोरोना होने का खतरा कम है। अनेक सीरो रिपोर्ट्स से जाहिर है कि बच्चों समेत वयस्कों में बड़े पैमाने पर कोरोना के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो गई है।
पेरैंट्स की आशंकाओं के आधार पर तेलंगाना हाईकोर्ट और डिजास्टर मैनेजमैंट अथॉरिटी ने कहा है कि पेरैंट्स की अनुमति के बगैर बच्चों को स्कूल आने के लिए विवश नहीं किया जा सकता। ऐसे लोग हाइब्रिड सिस्टम से अपने बच्चों की पढ़ाई जारी रख सकते हैं। एक सर्वे के अनुसार 75 फीसदी से ज्यादा पेरैंट्स अपने बच्चों की ऑनलाइन पढ़ाई से नाखुश हैं और वे उनको स्कूल भेजना चाहते हैं। तो चंद पेरैंट्स के वीटो की वजह से देश के बहुतायत बच्चों के संवैधानिक अधिकारों का हनन, किसी भी लिहाज से ठीक नहीं है।-विराग गुप्ता (एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट)