अरविन्द केजरीवाल के नाम खुला पत्र न ‘दाएं’ की, न ‘बाएं’ की राजनीति हो

Edited By ,Updated: 07 Feb, 2020 03:48 AM

open letter to arvind kejriwal neither of  right  nor politics of  left

हाल ही के आपके वीडियो जिसमें कि आपने केन्द्र सरकार से नागरिकता संशोधन कानून (सी.ए.ए.) तथा निराधार राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एन.आर.सी.) की प्रक्रिया को त्यागने के लिए आग्रह किया है, ने ही मुझे इस पत्र को लिखने के लिए प्रेरित किया है। वीडियो में आपने...

हाल ही के आपके वीडियो जिसमें कि आपने केन्द्र सरकार से नागरिकता संशोधन कानून (सी.ए.ए.) तथा निराधार राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एन.आर.सी.) की प्रक्रिया को त्यागने के लिए आग्रह किया है, ने ही मुझे इस पत्र को लिखने के लिए प्रेरित किया है। वीडियो में आपने स्पष्ट तौर पर वर्णन किया है कि कैसे सी.ए.ए. तथा एन.आर.सी. भारत के नागरिकों को असुविधाजनक हालात में डाल देंगे तथा इनसे सामाजिक सौहार्द बिगड़ जाएगा।

आपने कहा है कि सरकार ने नौकरियां उत्पन्न तथा अर्थव्यवस्था को स्थिर करने जैसे महत्वपूर्ण मामलों से लोगों का ध्यान भटकाया है। सबसे महत्वपूर्ण संदेश यह दिया गया है कि भारत सरकार अपने आलोचकों के साथ कोई संवाद बनाए तथा उनसे परामर्श करे। यहीं पर मैं थोड़ा रुकना चाहता हूं और आपकी याद्दाश्त को धकेलना चाहता हूं। मैं आपकी दिल्ली सरकार के रिकार्ड की चर्चा नहीं कर रहा, जिसने कि दिल्ली विधानसभा चुनावों से पहले आपको प्रथम पंक्ति में लाकर खड़ा कर दिया है। 

राजनेताओं की याद्दाश्त जनता से भी छोटी
जनता की याद्दाश्त छोटी होती है और राजनेताओं की याद्दाश्त उससे भी छोटी। 2011-12 में सामाजिक कार्यकत्र्ता अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार आंदोलन का नेतृत्व कर लोगों के मनों को जागृत किया। उस दौरान आप मुख्य सूत्रधार थे। आपने केवल राजनेताओं तथा चुने हुए प्रतिनिधियों के बारे में बदलाव के लिए जोर ही नहीं दिया बल्कि आपने समाज को बदलने की भी ठानी। भ्रष्टाचार विरुद्ध भारत ने ‘आप’ को जन्म दिया। हजारे के साथ अलगाव के बाद आपने कहा कि ‘आप’ समय की जरूरत बन चुकी है। ‘आप’ ने पूरे भारत में हलचल मचा दी और लोगों में एक आशा की किरण जागी। लोगों ने एक ऐसी राजनीति की कल्पना की, जो जाति, धर्म, जातीय पहचान तथा पैसे के सहारे के बिना थी। एक बाहरी (आऊटसाइडर) होने के बावजूद आपने दिल्ली विधानसभा चुनाव जीता तथा पहली मर्तबा दिसम्बर 2013 में मुख्यमंत्री बने। यह मात्र आपकी जीत नहीं थी बल्कि आपके तथा सहयोगियों के विचारों की जीत थी। आपने 48 घंटे के बाद सी.एम. पद से इस्तीफा दे दिया। मगर उसके बाद आप पूरी जद्दोजहद के साथ लड़े और ‘आप’ ने 2015 में 70 में से 67 सीटों पर जीत हासिल की। कांग्रेस का सूपड़ा साफ हुआ और भाजपा 3 सीटों पर सिमट कर रह गई। 

मगर इस शानदार जीत के फौरन बाद आपने अपने विचारों, पारदर्शिता के सिद्धांतों, विनम्रता तथा पार्टी के अंदरूनी लोकतंत्र को त्याग दिया। कई बार ऐसे भी मौके आए जब विपक्षी पार्टियों के कथित अनियंत्रित शासकों से भी आप ज्यादा बुरे दिखे।
देश अब पहले की तुलना में आप की ज्यादा जरूरत महसूस करता है क्योंकि ध्रुवीकरण हो चुका है। देश के विभिन्न भागों में प्रदर्शन हो रहे हैं। कांग्रेस निरंतर ही कीचड़ में फडफ़ड़ा रही है और अन्य विपक्षी दल लोगों को प्रेरित करने में नाकाम हो रहे हैं। एक जिम्मेदार राजनीतिक विपक्ष द्वारा शून्य स्थान भरा जाना चाहिए जोकि एक शानदार लोकतंत्र का आधार होना चाहिए। 

न ‘दाएं’ की, न ‘बाएं’ की राजनीति हो, हो तो बस एक संतुलित, सम्मिलित तथा मध्यमार्गी हो जो संवाद, बहस, तर्कसंगत स्वभाव को प्रेरित करे। लोगों के मुद्दों को उठाने वाली राजनीति हो। नागरिकता से ज्यादा नागरिक सेसंबंधित मुद्दे जैसे स्कूल, सड़क, अस्पताल, जन उपयोगिता, आवासीय, रोजी-रोटी तथा जीवन स्तर उठाने वाली राजनीति हो। इस पत्र के माध्यम से आपको जगाने की कोशिश है कि आप अपनी पार्टी के पूरे देश में पुनर्निर्माण के लिए युवाओं का एक बार फिर से स्वागत करें। इसका तात्पर्य यह है कि यदि फरवरी में दिल्ली में ‘आप’ सत्ता में लौटी तो आप मुख्यमंत्री पद किसी योग्य पार्टी नेता को सौंप कर भारत के प्रत्येक राज्य में अपनी पार्टी की एक-एक ईंट को जोड़ कर इसका नवनिर्माण करें। एक बात याद रखें कि यह मौका हथियाने का क्षण है। भाजपा ने दो सांसदों के साथ अपनी शुरूआत की थी मगर आज 36 वर्ष बाद इसके पास लोकसभा में 303 सदस्य हैं। उसने हर चुनौती को पार किया। आपने जो लोगों से वायदा किया था उसे केवल दिल्ली में ही नहीं, पूरे देश में निभाने का समय आ गया है।-जी.आर. गोपीनाथ

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