Edited By ,Updated: 22 May, 2019 03:08 AM
अधिकतर एग्जिट पोल में भाजपा को स्पष्ट बहुमत मिलने की भविष्यवाणी की गई है, इसके बावजूद विपक्ष गैर-भाजपा गठबंधन बनाकर सरकार बनाने का दावा करने की अपनी योजना में जुटा हुआ है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सहित विभिन्न विपक्षी नेताओं ने एग्जिट...
अधिकतर एग्जिट पोल में भाजपा को स्पष्ट बहुमत मिलने की भविष्यवाणी की गई है, इसके बावजूद विपक्ष गैर-भाजपा गठबंधन बनाकर सरकार बनाने का दावा करने की अपनी योजना में जुटा हुआ है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सहित विभिन्न विपक्षी नेताओं ने एग्जिट पोल को गलत बताते हुए नकार दिया है। कांग्रेस नेताओं ने भी निजी तौर पर एग्जिट पोल को नकारते हुए कहा कि 2004 और 2014 में भी एग्जिट पोल गलत साबित हुए थे। यही उम्मीद विपक्ष को एकजुट रखे हुए है।
विपक्षी दल त्रिशंकु लोकसभा की स्थिति में 1996 (यूनाइटेड फ्रंट) अथवा 2004 (यू.पी.ए.) जैसे चुनाव बाद की स्थिति की तैयारी कर रहे हैं। पिछले एक हफ्ते से विपक्षी दलों में एकजुटता बढ़ी है जो एग्जिट पोल के बाद भी बरकरार है। क्या वास्तव में गैर-भाजपा फ्रंट अस्तित्व में आ सकता है? अधिकतर विपक्षी दल एक साथ आ रहे हैं ताकि भाजपा को बहुमत न मिलने की स्थिति में वे कोई कदम उठा सकें।
पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने चुनाव परिणाम वाले दिन यानी 23 मई को 21 विपक्षी दलों की बैठक बुलाई है। सोनिया, जिन्होंने पिछले मार्च में राहुल गांधी को कमान सौंप दी थी, एक बार फिर आगे आ गई हैं क्योंकि कांग्रेस का मानना है कि वरिष्ठ विपक्षी नेताओं जैसे कि देवेगौड़ा, शरद पवार, ममता बनर्जी, शरद यादव तथा अन्य को उनके नेतृत्व में काम करने में कोई संकोच नहीं होगा। खुद सोनिया ने भी प्रचार के दौरान इस बात की याद दिलाई थी कि कैसे 2004 में भाजपा के इंडिया शाइङ्क्षनग नारे के बावजूद यू.पी.ए. जीत गई थी।
चंद्रबाबू नायडू निभा रहे मुख्य भूमिका
विपक्षी दलों को एकजुट करने में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू मुख्य भूमिका निभा रहे हैं। प्रदेश में हार को लेकर आशंकित नायडू राष्ट्रीय स्तर पर भूमिका की तलाश में हैं। वह राहुल गांधी, ममता बनर्जी, अखिलेश यादव, शरद यादव, शरद पवार, मायावती तथा अन्य नेताओं से मिल कर गहन मंत्रणा करते रहे हैं ताकि भाजपा को बहुमत नहीं मिलने की स्थिति में राष्ट्रपति के पास सरकार बनाने का दावा पेश किया जा सके।
अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि वे कर्नाटक मॉडल अपनाना चाहते हैं जहां कांग्रेस ने जूनियर पार्टी जद (एस) को समर्थन देकर सबसे बड़े दल के तौर पर उभरी भाजपा को सत्ता में आने से रोक दिया। ‘भाजपा को बाहर रखो’ नामक यह अभियान विपक्ष को एकजुट रखे हुए है लेकिन विपक्ष के ये इरादे तभी पूरे हो सकते हैं जब त्रिशंकु लोकसभा की स्थिति बन जाए और भाजपा को 200 से कम सीटें मिलें। कुछ देर के लिए मान लो कि 1996 या 2004 की स्थिति बन सकती है। 1996 में कांग्रेस ने यूनाइटेड फ्रंट सरकार का समर्थन किया था। उस समय देवेगौड़ा को प्रधानमंत्री चुना गया था, हालांकि वह वी.पी. सिंह, ज्योति बसु और जी.के. मूपनार के बाद चौथी पसंद थे। उस समय भी गठबंधन के लिए प्रधानमंत्री का चयन आसान नहीं था क्योंकि इस पद के लिए मुलायम सिंह और लालू प्रसाद यादव जैसे कई दावेदार थे। 2004 में यू.पी.ए. की सरकार बनी थी।
नायडू क्षेत्रीय दलों के सहयोगियों को एकजुट कर कांग्रेस की सहायता से केन्द्र में सरकार बनाना चाहते हैं। हालांकि कांग्रेस सबसे बड़े विपक्षी दल के तौर पर उभर चुकी है लेकिन नायडू चाहते हैं कि कांग्रेस किसी क्षेत्रीय नेता के लिए प्रधानमंत्री का पद छोड़ दें। क्षेत्रीय क्षत्रपों में प्रधानमंत्री पद के लिए बहुत से चाहवान हैं। भाजपा के अलावा केवल कांग्रेस ही एक ऐसी पार्टी है जो 100 सीटों का आंकड़ा पार कर सकती है और ऐसे में वह राहुल गांधी के लिए प्रधानमंत्री पद की मांग करेगी।
चुनाव पूर्व सहयोगियों डी.एम.के. प्रमुख एम.के. स्टालिन, जद (एस) प्रमुख देवेगौड़ा, राजद नेता तेजस्वी प्रसाद यादव ने राहुल गांधी के दावे का समर्थन किया है। इसके अलावा इस पद के लिए ममता बनर्जी प्रमुख दावेदार हैं। बसपा प्रमुख मायावती की भी वर्षों से प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा रही है। तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव मानते हैं कि 16 सीटें जीतने पर वह प्रधानमंत्री बन सकते हैं। ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक भी इस दौड़ में शामिल हैं। शरद पवार सबसे वरिष्ठ नेता हैं जिनके सभी दलों से अच्छे संबंध हैं और वह दशकों से प्रधानमंत्री बनने का सपना पाले हुए हैं। ये सभी नेता उस पद के चाहवान हैं जो फिलहाल खाली नहीं है।
आसान नहीं विपक्ष की राह
गैर-भाजपा दलों के लिए सरकार बनाने का दावा पेश करना आसान नहीं होगा। उन्हें अपने प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार, न्यूनतम सांझा कार्यक्रम, इस तरह के गठबंधन में अंदरूनी विरोधाभास इत्यादि कई बाधाओं को पार करना होगा। पिछला रिकार्ड बताता है कि 5 गैर-भाजपा, गैर-कांग्रेसी सरकारें रही हैं और उनमें से कोई भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी। इनमें से 4 को कांग्रेस का समर्थन प्राप्त था तथा पांचवीं को भाजपा का। यदि 23 मई के बाद एन.डी.ए. सरकार बनाता है और विपक्ष का सपना पूरा नहीं होता है तो उसे रचनात्मक विपक्ष की भूमिका निभानी चाहिए। यदि मोदी दोबारा प्रधानमंत्री बनते हैं तो इसका मुख्य कारण विपक्षी दलों में एकजुटता के अभाव को माना जाएगा। इससे विपक्ष को सबक सीखना चाहिए। यदि वे चुनाव से पहले एकजुट रहे होते तो संभवत: वे भाजपा को हरा सकते थे।-कल्याणी शंकर