Edited By ,Updated: 27 Mar, 2019 03:58 AM
चुनाव नजदीक होने के बावजूद विपक्ष अब भी मोदी सरकार के खिलाफ किसी मजबूत चुनावी मुद्दे की तलाश में है, जबकि सत्तारूढ़ भाजपा ने आतंकवाद और राष्ट्रवाद को अपना मुख्य मुद्दा बना लिया है। पहले विपक्ष रोजगार के मसले को मुख्य मुद्दा बना रहा था। विपक्ष इस बात...
चुनाव नजदीक होने के बावजूद विपक्ष अब भी मोदी सरकार के खिलाफ किसी मजबूत चुनावी मुद्दे की तलाश में है, जबकि सत्तारूढ़ भाजपा ने आतंकवाद और राष्ट्रवाद को अपना मुख्य मुद्दा बना लिया है। पहले विपक्ष रोजगार के मसले को मुख्य मुद्दा बना रहा था। विपक्ष इस बात को लेकर आश्वस्त था कि वह रोजगार, कृषि संकट और नोटबंदी इत्यादि को चुनावी मुद्दा बना कर भाजपा पर हावी हो जाएगा क्योंकि ये सभी मुद्दे आम आदमी से जुड़े हैं। पिछले महीने हुए पुलवामा और बालाकोट तक यह स्थिति बनी हुई थी।
इसके अलावा तब तक हिन्दी राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों में जीत के बाद विपक्ष बढ़त की स्थिति में था। उत्साहित कांग्रेस ने नए वर्ष में जोर-शोर से प्रचार शुरू किया था। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनके दिल्ली के समकक्ष अरविन्द केजरीवाल ने विपक्ष की एकता दर्शाने के लिए कोलकाता और दिल्ली में दो रैलियां कीं। विपक्ष आक्रामक था और 6 सप्ताह पहले तक भाजपा केवल राफेल डील पर विपक्षी प्रचार का जवाब देने में उलझी हुई थी और अपना कोई एजैंडा तय नहीं कर पाई थी।
राष्ट्रवाद बना मुख्य मुद्दा
इसमें कोई संदेह नहीं कि पिछले कुछ हफ्तों में हुई अप्रत्याशित घटनाओं-पुलवामा आतंकी हमला और उसके जवाब में बालाकोट एयर स्ट्राइक, पाकिस्तान द्वारा विंग कमांडर अभिनंदन वर्धमान का पकड़ा जाना और रिहाई ने सुरक्षा और आतंकवाद को मुख्य चुनावी मुद्दा बना दिया है, जिससे राष्ट्रवाद भी मुख्य मुद्दा बन गया है। विपक्ष ने भाजपा को रक्षात्मक मुद्रा में लाकर जो बढ़त हासिल की थी उसे वह खो चुका है।
भगवा पार्टी ने इन परिस्थितियों का लाभ उठाया और प्रचार को राष्ट्रवाद और आतंकवाद के मुद्दों पर केन्द्रित करने में सफलता हासिल कर ली। इसके परिणामस्वरूप राम मंदिर तथा तीन तलाक जैसे सभी मुद्दे पीछे छूट गए हैं। जाहिर है कि भाजपा ने चुनावी जंग के लिए अपना राजनीतिक नैरेटिव फिर से हासिल कर लिया है, जबकि विपक्ष अब तक आजीविका के मामलों को मुद्दा बनाने के लिए संघर्ष कर रहा है क्योंकि वह एक सीमा से अधिक खुफिया विफलता की निंदा नहीं कर सकता।
बिखरे विपक्ष से भाजपा को फायदा
विपक्ष राष्ट्रीय स्तर पर एकजुट होकर प्रचार नहीं कर रहा। भाजपा विपक्ष की फूट का पूरा फायदा उठा रही है और अपने आपको एक ऐसी पार्टी के तौर पर प्रस्तुत करने में सफल रही है, जो पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद से देश की रक्षा करने में सबसे ज्यादा सक्षम है। धरातल पर प्रत्येक विपक्षी पार्टी अपना प्रचार करने में जुटी हुई है। विपक्ष का दावा है कि हालांकि राष्ट्रीय स्तर पर कोई एक नैरेटिव नहीं है, प्रत्येक पार्टी एक सामान्य मुद्दे पर प्रचार कर रही है कि भाजपा को विभिन्न मामलों में इसकी असफलता के कारण सत्ता से हटाया जाना चाहिए जिनमें रोजगार और किसानों के मुद्दे भी शामिल हैं।
नहीं चला राफेल राग
जहां तक मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस का सवाल है, इसके अध्यक्ष राहुल गांधी पिछले कुछ महीनों से लगातार राफेल डील को मुद्दा बनाए हुए हैं लेकिन इसके बावजूद यह मुद्दा चल नहीं पाया है। इसके अलावा कांग्रेस उस समय भाजपा के जाल में फंस गई जब इसने अपना चुनावी मुद्दा वास्तविक मुद्दों से हटा कर पुलवामा और चौकीदार पर केन्द्रित कर दिया। इन मुद्दों पर ध्यान केन्द्रित होने से भाजपा खुश है क्योंकि ऐसा करके वह रोजगार तथा कृषि संकट जैसे मुद्दों से ध्यान हटाने में सफल रही है, जिसमें मोदी सरकार लोगों की आकांक्षाओं पर खरा नहीं उतर पाई थी। भाजपा अब ‘मैं भी चौकीदार’ और ‘नामुमकिन अब मुमकिन है’ जैसे नारों के सहारे जोरदार प्रचार कर रही है, जिनके द्वारा मोदी सर्वोच्च नेता के तौर पर प्रस्तुत किया जा रहा है, जो भारत की समस्याओं को सुलझा सकता है।
भाजपा मुख्य तौर पर विपक्ष की कमजोरी के सहारे चुनाव जीतने के प्रति आशावान है, जो महागठबंधन बनाने में असफल रहा है, हालांकि कुछ राज्यों में विपक्ष ने गठबंधन किया है। दूसरे, मोदी अध्यक्षीय स्टाइल में प्रचार कर रहे हैं। यह मोदी बनाम कोई विपक्षी चेहरा नहीं वाली स्थिति है, जिसके चलते विपक्ष की सम्भावनाएं कम हो गई हैं। तीसरे, विपक्ष सरकार की कमजोरियों को भुनाने और कोई विश्वसनीय व प्रभावी नैरेटिव पेश करने में असफल रहा है। दूसरी तरफ भाजपा अपनी चतुराई से कुछ मुद्दों से ध्यान हटा कर अपना एजैंडा तय करने में सफल रही है। चौथे, भाजपा ने विभिन्न राज्यों में अपने सहयोगियों के साथ गठबंधन कर लिया है जबकि कांग्रेस अभी माथापच्ची ही कर रही है।
नए मुद्दे की तलाश
यद्यपि भाजपा जानती है कि अगले दो महीने तक पुलवामा और बालाकोट को मुद्दा बनाए रखना मुश्किल होगा, हालांकि पिछले कुछ हफ्तों में उसे काफी बढ़त मिली है। समय बीतने के साथ ये मुद्दे फीके पड़ जाएंगे। इसलिए भाजपा को जिताऊ नैरेटिव की जरूरत होगी। विपक्ष को भी भाजपा के नैरेटिव का तोड़ निकालना होगा। यह सब उस चुनावी पृष्ठभूमि में हो रहा है जहां किसी भी पार्टी के पक्ष में या खिलाफ कोई हवा नहीं है, कोई भावनात्मक मुद्दा नहीं है, मोदी के खिलाफ कोई सत्ता विरोधी लहर नहीं है तथा 2014 की तरह मोदी लहर भी नहीं है। ऐसी स्थिति में इस बार चुनाव परिणाम ही बताएंगे कि एन.डी.ए. का नैरेटिव सही था या यू.पी.ए. का।-कल्याणी शंकर