Edited By Pardeep,Updated: 22 Oct, 2018 04:46 AM
अमरीका में द्वितीय विश्व युद्ध (जो 1945 में समाप्त हुआ) के बाद से आर्थिक विकास के दूसरे सबसे लम्बे दौर के कारण राष्ट्रपति ट्रम्प कुछ लोकप्रियता का मजा उठा रहे हैं। अंतिम तिमाही में अमरीकी अर्थव्यवस्था ने 4 प्रतिशत से अधिक की दर से वृद्धि दर्ज की।...
अमरीका में द्वितीय विश्व युद्ध (जो 1945 में समाप्त हुआ) के बाद से आर्थिक विकास के दूसरे सबसे लम्बे दौर के कारण राष्ट्रपति ट्रम्प कुछ लोकप्रियता का मजा उठा रहे हैं। अंतिम तिमाही में अमरीकी अर्थव्यवस्था ने 4 प्रतिशत से अधिक की दर से वृद्धि दर्ज की। भारत में सम्भवत: हम इस आंकड़े से प्रभावित न हों, मगर तथ्य यह है कि अमरीकी अर्थव्यवस्था का आकार भारतीय अर्थव्यवस्था के मुकाबले 10 गुणा अधिक है, यद्यपि इसकी जनसंख्या भारत की जनसंख्या के मुकाबले केवल एक चौथाई है। इसका अर्थ यह हुआ कि एक औसत अमरीकी एक औसत भारतीय से 40 गुणा अधिक उत्पादकता देता है।
जब विपक्षी दल ट्रम्प के निजी दुव्र्यवहार या सामंजस्यता तथा एकीकृत नीतियों के अभाव की शिकायत करते हैं तो वह अर्थव्यवस्था की कारगुजारी तथा उन लोगों की संख्या की ओर संकेत करते हैं, जिनके पास नौकरियां हैं। अमरीका में 3 सप्ताहों में मध्यकालिक चुनाव होने और आम तौर पर चर्चा का विषय यह होगा कि वे किस मुद्दे पर लड़े जाएंगे। विपक्ष का कहना है कि ट्रम्प एक खतरनाक उन्मादी हैं, जबकि ट्रम्प अपनी कारगुजारी की ओर इशारा करते हैं। नि:संदेह ट्रम्प के व्यवहार को लेकर कुछ गम्भीर मुद्दे हैं, यहां तक कि उनकी पार्टी में भी कुछ लोग उन्हें तर्कसंगत नहीं मानते। मगर उनका एक अपना समर्थन आधार है, जो विपक्ष के तर्कों को नजरअंदाज करना चाहता है। ट्रम्प की रेटिंग में सुधार हुआ है क्योंकि उनका बोलने का तरीका विजेताओं जैसा है।
2017 में एक लम्बे समय तक और इस वर्ष के शुरू में, ऐसा माना जाता था कि अपने मुद्दों को लेकर विपक्ष चुनावों में शानदार विजय हासिल करेगा मगर यह स्पष्ट नहीं है कि ऐसा होगा। और इस बात की सम्भावना है कि ट्रम्प की पार्टी आशा से बेहतर कारगुजारी दिखाएगी। यदि विपक्ष चुनावों में नियंत्रण हासिल करना चाहता है तो यह उसकी जिम्मेदारी है कि वह अपने विचारों को आगे रखे। भारत में आम तौर पर चुनावों के कथानक पर सत्ताधारी पार्टी की बजाय विपक्ष का नियंत्रण रहता है। 30 वर्ष पूर्व बोफोर्स घोटाले के मुद्दे को लेकर विपक्ष कांग्रेस के खिलाफ एकजुट हो गया (जिसकी लोकसभा में 400 से अधिक सीटें थीं) राजीव गांधी ने 21वीं शताब्दी के भारत की बात की और सकारात्मक संदेश देने का प्रयास किया मगर वह असफल रहे। तथ्य यह है कि भारत में नकारात्मक मुद्दे सकारात्मक मुद्दों के मुकाबले बेहतर कारगुजारी दिखाते हैं। कोई भी अनुभवी राजनीतिज्ञ आपको यह बता देगा।
2011 तथा 2013 के बीच सामने आए घोटालों तथा कांडों के परिणामस्वरूप मनमोहन सिंह सरकार सत्ता से हाथ धो बैठी। इसे एक अक्षम, कमजोर तथा परिणाम देने में नाकाबिल के तौर पर देखा गया और यह आरोपों के खिलाफ अपना बचाव करने के सक्षम नहीं थी। तथ्य यह है कि अक्षमता के ऐसे ही आरोप अब वर्तमान सरकार के खिलाफ भी लगाए जा सकते हैं। उन चीजों की सूची पर नजर डालते हैं जिन्होंने नकारात्मक कारणों से सुर्खियों में जगह बनाई। मैं कम से कम 10 तथ्यों बारे सोच सकता हूं-नोटबंदी, भीड़ तंत्र, डालर के मुकाबले रुपए में गिरावट, राफेल मुद्दा, कृषि क्षेत्र में संकट, प्रत्येक भारतीय के खाते में 15 लाख रुपए डालने के वायदे को पूरा करने में असफल रहना, मुद्रास्फीति, पैट्रोल तथा डीजल की कीमतों में वृद्धि, मंत्रियों के खिलाफ यौन प्रताडऩा के आरोप तथा औपचारिक क्षेत्र में नौकरियों की कमी।
इनके अलावा कुछ और चीजें भी हो सकती हैं। मैंने कुछ चीजें शामिल नहीं की हैं, जो आमतौर पर चुनावी मुद्दे नहीं हैं। दिल्ली में रणनीतिक मामलों के विशेषज्ञों का पूरा समुदाय सहमत है कि इस सरकार के अंतर्गत हमने अपने पड़ोस में जगह चीन को समर्पित कर दी है। गत 4 वर्षों में हमारी स्थिति श्रीलंका, मालदीव, भूटान, नेपाल और यहां तक कि पाकिस्तान से नाटकीय रूप से बदतर हुई है। जैसा कि देखा जा सकता है, किसी अभियान को विकसित तथा तैनात करने हेतु विपक्ष के लिए सामान की कमी नहीं है। निश्चित तौर पर यह न तो सुसंगत नजर आता है और न ही प्रभावी। और ध्यान रखें कि अभी अपना अभियान शुरू भी नहीं किया है। हमें आशा करनी चाहिए कि अगले कुछ दिनों में (राजस्थान, मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ के महत्वपूर्ण चुनावों के कारण) सरकार एक बहुत शक्तिशाली संदेश देगी, जो कथानक का नियंत्रण अपने हाथ में ले लेगा। यह सम्भवत: सरदार पटेल की प्रतिमा के अनावरण से शुरू होगा और वहां से जारी रहेगा।
लगभग सभी कथानक दावों पर आधारित होंगे बजाय आंकड़ों के। अमरीका में नौकरियों का आंकड़ा बहुत अच्छा है क्योंकि वहां इसके लिए बहुत से स्रोत हैं। भारत में चूंकि अर्थव्यवस्था का औपचारिक क्षेत्र बड़ा नहीं है, आंकड़े अच्छे नहीं हैं। हमें वास्तव में नहीं पता कि अर्थव्यवस्था के अधिकतर हिस्से में क्या हो रहा है। कोई भी उन हिस्सों पर नजर नहीं रख रहा क्योंकि वे बहुत छोटे हैं। सरकार को जनता को प्रभावित करना होगा कि वह 2014 के मुकाबले आज उल्लेखनीय रूप से बेहतर कर रही है। ऐसा करना आसान नहीं है। मेरे द्वारा सूचीबद्ध किए गए उपरोक्त 10 मुद्दों में से अधिकतर को लेकर आंकड़े विपक्ष के पक्ष में हैं। चुनाव की शर्तें निर्धारित करना पूरी तरह से उन पर निर्भर करता है और उन्हें ऐसा करने के लिए इससे बेहतर स्थितियां नहीं मिलेंगी, जैसी कि आज हम भारत में देख सकते हैं।-आकार पटेल