जैविक खेती से होगा किसान खुशहाल और पर्यावरण सुरक्षित

Edited By ,Updated: 13 Jul, 2022 05:10 AM

organic farming will make farmers happy and environment safe

जैविक खेती जापान के किसान एवं दार्शनिक ‘मासानोबू फुकुओका’ द्वारा स्थापित कृषि तथा पर्यावरण को आकर्षित करने वाला तरीका है। ‘फुकुओका’ ने इसका विवरण जापानी भाषा में लिखी अपनी

जैविक खेती जापान के किसान एवं दार्शनिक ‘मासानोबू फुकुओका’ द्वारा स्थापित कृषि तथा पर्यावरण को आकर्षित करने वाला तरीका है। ‘फुकुओका’ ने इसका विवरण जापानी भाषा में लिखी अपनी पुस्तक ‘सिजेन नोहो’ में किया है। इसलिए कृषि की इस विधि को ‘फुकुओका विधि’ भी कहते हैं। 

इस तरीके में ‘कुछ भी न करने’ की सलाह दी जाती है, जैसे जुताई न करना, गुड़ाई न करना, उर्वरक न डालना, कीटनाशक न डालना, निराई न करना आदि। भारत में खेती की इस पद्धति को ‘ऋषि खेती’ कहते हैं। जैविक खेती में रासायनिक या जैविक खाद का प्रयोग नहीं होता। वास्तव में, न तो अतिरिक्त पोषक तत्व मिट्टी में डाले जाते हैं और न ही पौधों को दिए जाते हैं। यह सूक्ष्मजीवों और केंचुओं द्वारा कार्बनिक पदार्थों की टूटने को प्रोत्साहित करता है। 

प्राकृतिक खेती समय की जरूरत है और महत्वपूर्ण है कि हम वैज्ञानिक तरीकों की पहचान करें, ताकि यह सुनिश्चित कर सकें कि किसान इससे सीधे लाभ लें और उनकी आमदनी बढ़े। रसायनों और उर्वरकों के अधिक उपयोग के कारण खाद्यान्नों और सब्जियों के उत्पादन की लागत बढ़ गई है। वैज्ञानिकों का स्पष्ट मानना है कि दुनियाभर में बढ़ते पर्यावरण संकट को कम करने में जैविक या प्राकृतिक खेती एक उपचार की भूमिका निभा सकती है। 

कृषि मंत्रालय ने हाल ही में प्राकृतिक खेती को अपनाने के माध्यम से उत्पन्न होने वाले उत्पादों के मानकों की सिफारिश करने के लिए एक समिति का गठन किया। मंत्रालय वर्तमान राष्ट्रीय जैविक खेती केंद्र (एन.सी.ओ.एफ.) का नाम बदलकर राष्ट्रीय जैविक और प्राकृतिक खेती केंद्र करने पर भी विचार कर रहा है। पिछले कुछ सालों में खेती की लागत भी बढ़ी है। ऐसे में प्रगतिशील किसानों ने प्राकृतिक खेती को एक सशक्त विकल्प के तौर पर अपनाना शुरू किया है। 

जैविक खेती को लेकर अनुसंधान भी काफी हो रहे हैं। किसान नए-नए प्रयोग कर रहे हैं। इससे कृषि वैज्ञानिक भी अधिक उत्साहित हैं, जिनका मानना है कि जैविक या प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने से पर्यावरण, खाद्यान्न, भूमि, इंसान की सेहत, पानी की शुद्धता को और बेहतर बनाने में मदद मिलती है। आमतौर पर कृषि व बागवानी में बेहतर उपज लेने और बीमारियों के खात्मा के लिए फसलों में कीटनाशकों का इस्तेमाल जरूरी माना जाता है। लेकिन देशी तरीके से की जाने वाली खेती और बागवानी ने इस धारणा पर सवाल खड़े कर दिए हैं। 

कीटनाशक बेहतर उपज या बीमारियों को खत्म करने के लिए भले जरूरी माने जाते हों, लेकिन इससे कई तरह की समस्याएं और जटिलताएं पैदा हो गई हैं। ये बीमारियों का कारण बन गए हैं। प्राकृतिक और जैविक दोनों तरह की खेती के तरीके रासायनिक मुक्त हैं। दोनों प्रणालियां किसानों को पौधों पर रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग के साथ-साथ किसी भी अन्य कृषि पद्धतियों में संलग्न होने से प्रतिबंधित करती हैं। जैविक और प्राकृतिक कृषि विधियों द्वारा गैर-रासायनिक और घरेलू कीट नियंत्रण समाधानों को बढ़ावा दिया जाता है। 

प्राकृतिक खेती से सिक्किम में जिस गति से पर्यावरण को मदद मिली है, उससे यह साफ हो गया है कि यदि भारत का प्रत्येक किसान जैविक खेती को अपना ले तो भारतीय समाज की कई समस्याओं का समाधान हो सकता है। वायु प्रदूषण की एक वजह कीटनाशकों का बहुतायत में इस्तेमाल भी है। कैंसर, त्वचा रोग, आंख, दिल और पाचन संबंधी कई समस्याओं की वजह कीटनाशक ही हैं। महत्वपूर्ण है कि जिन कीटनाशकों को अमरीका और अन्य विकसित देशों में प्रतिबंधित किया जा चुका है, उन्हें भारत में धड़ल्ले से इस्तेमाल किया जा रहा है। 

ज्यादातर कृषि वैज्ञानिक अब जैविक खेती को किसान और किसानी के लिए फायदेमंद और निरापद मानने लगे हैं। इससे मिट्टी की उपजाऊ क्षमता में वृद्धि हो जाती है। सिंचाई अंतराल में वृद्धि होती है। रासायनिक खाद पर निर्भरता कम होने से लागत में कमी आती है।

फसलों की उत्पादकता में वृद्धि होती है। बाजार में जैविक उत्पादों की मांग बढऩे से किसानों की आय में भी वृद्धि होती है। उनका मानना है कि जैविक खेती से ही खेती घाटे से निकलकर फायदे में आ सकती है। इससे गांवों से शहरों की ओर बढ़ रहा पलायन कम होगा। बदलते ऋतु चक्र को देखते हुए किसानों को कीटनाशकों से रहित खेती और बागवानी के इस प्रयोग को अपनाने की जरूरत है। इसके लिए किसानों के हित चाहने वाली संस्थाओं को आगे आना होगा।-प्रि. डा. मोहन लाल शर्मा 
 

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