आस्कर विजेता फिल्म की ‘पैड वूमैन’ के घर में ही नहीं शौचालय

Edited By ,Updated: 02 Mar, 2019 04:55 AM

oscars winner in the  pad woman  of the film not toilet

राखी (22), प्रीति (21), नीशू (19), अर्शी (18), रुखसाना (18), सुषमा (32) तथा स्नेहा (22) बहनों राखी तथा प्रीति के घर में बनी एक छोटी-सी इकाई में सैनेटरी नैपकिन्स  बनाती हैं। उन पर आधारित फिल्म  ‘पीरियड, एंड आफ सैंटैंस’, जो माहवारी से जुड़े कलंक से...

राखी (22), प्रीति (21), नीशू (19), अर्शी (18), रुखसाना (18), सुषमा (32) तथा स्नेहा (22) बहनों राखी तथा प्रीति के घर में बनी एक छोटी-सी इकाई में सैनेटरी नैपकिन्स  बनाती हैं। उन पर आधारित फिल्म  ‘पीरियड, एंड आफ सैंटैंस’, जो माहवारी से जुड़े कलंक से संबंधित है, ने आस्कर पुरस्कार जीता है। यद्यपि उत्तर प्रदेश में गाजियाबाद जिला के हापुड़ ब्लॉक के काठी खेड़ा की रहने वाली दो लड़कियों, जो पैड क्रांति का चेहरा बनी हैं, के अपने घर, जिसे उनके परदादा के नाम पर मोहन की हवेली  से जाना जाता है, में शौचालय नहीं है। 

धन की कमी 
राखी तथा प्रीति के 55 वर्षीय पिता विजेन्द्र तंवर को अपनी बेटियों पर बहुत गर्व है और वह बधाई देने आने वाले मेहमानों का एक बड़ी मुस्कुराहट के साथ अभिवादन करते हैं। वह शौचालय नहीं बनवा पाए क्योंकि उनके पास धन की कमी थी। उन्होंने बताया कि इसके लिए फर्श खोदने की जरूरत थी और उसके लिए धन चाहिए था। सरकार शौचालय बनाने के लिए धन देती है लेकिन ग्राम प्रधान उन्हें चकमा देते हैं। 

राखी ने बताया कि उनके घर का प्रत्येक सदस्य अगली गली में बने एक अस्थायी शौचालय का इस्तेमाल करता है, जैसे कि गांव के बहुत से अन्य निवासी। बहुत से ग्रामीणों के घरों में शौचालय नहीं हैं। जब उनसे पूछा गया कि वे कैसे काम चलाते हैं तो महिलाओं ने खाली प्लाटों में बने अस्थायी खुले शौचालयों की ओर इशारा किया जहां वे खुद को हल्का करती हैं। हालांकि पत्रकारों की टीम जब ग्रामीणों से मिलने गई तो शौचालयों पर चर्चा पृष्ठभूमि में थी क्योंकि वे फिल्म के लिए जीते गए अवार्ड का जश्र मनाने में व्यस्त थे। प्रीति ने बताया कि किसी को पता भी नहीं है कि आस्कर का क्या मतलब है, बस यह पता है कि यह एक अवार्ड है। 

प्रसिद्धि तथा खुशी की कीमत
मगर यह प्रसिद्धि तथा खुशी एक कीमत पर आई है। अपने सफर की शुरूआत को याद करते हुए महिलाओं ने बताया कि उन्हें आपत्तियों का सामना करना पड़ा, उनका मजाक उड़ाया गया तथा पैडों की निर्माण इकाई चलाने में सक्षम बनने के लिए झूठ बोलना तथा लडऩा पड़ा। राखी ने बताया कि उन्होंने अपनी मांओं को बता दिया था लेकिन अपने पिताओं को शुरू में यह कहा था कि वे बच्चों के लिए डायपर्स बनाने जा रही हैं। बहनों ने याद करते हुए बताया कि उनके दादा ने इस पर कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा था कि यह कैसा गंदा काम है, लेकिन उनकी दादी ने उनका पक्ष लिया और अपने पति को समझाया कि माहवारी के दौरान कपड़े का इस्तेमाल करते समय उन्हें कटु अनुभव से गुजरना पड़ता है। अंतत: उनके दादा उनकी परियोजना से सहमत हो गए। 

प्रीति ने बताया कि माहवारी को लेकर इतनी खुली बात करने के लिए ग्रामीणों ने भी आपत्ति जताई। शुरू में महिलाएं उनके लिए दरवाजे बंद कर देती थीं और कहती थीं कि केवल वही ऐसी बात कहने की हिम्मत कर सकती हैं, हम नहीं, कृपया माफ करें। पुरुष भी उनकी पीठ के पीछे तीखी टिप्पणियां करते थे। महिलाओं ने याद करते हुए बताया कि कैसे जब फिल्म की शूटिंग हो रही थी तो वे कैमरे के सामने आने से हिचकिचाती थीं और कैसे उनका मजाक उड़ाया जाता था।

महिलाओं ने बताया कि उन्होंने दिखाया कि कैसे वे इस्तेमाल किए हुए पैड्स से मुक्ति पाती थीं और उन्हें खेतों में दबा देती थीं। यह बहुत शर्मनाक था। लोग हंसते थे। वे कहते थे कि विदेशी बस उन्हें बेवकूफ बना रहे हैं।  उनमें से सम्भवत: सुषमा को सबसे अधिक संघर्ष करना पड़ा। वह विवाहित है और अनुसूचित जाति से संबंध रखती है। उसके पति सतीश गांव में करियाना की दुकान चलाते हैं। सुषमा ने बताया कि उसके पति उससे कहते थे कि पहले घर-बाहर के सभी काम निपटा लो, फिर काम पर जा सकती हो। उसका परिवार उसे गुज्जरों तथा मुसलमानों के साथ बैठने-खाने तथा पीने से भी मना करता था। 

दो वर्ष पूर्व उसे केवल सतीश की बीवी के तौर पर जाना जाता था, अब बात अलग है। यद्यपि गत दिवस एक पड़ोसी ने उन पर ताना कसा कि तुम सभी टी.वी. पर आ रही हो लेकिन अंतत: एक महीने में केवल 2500 रुपए ही तो कमाती हो। राखी ने सुषमा का हाथ अपने हाथ में लेेते हुए बताया कि वे सभी सातों एक परिवार की तरह रहती हैं। जाति तथा धर्म की उनमें कोई भूमिका नहीं है। उसने कहा कि उन्हें नहीं लगता कि वे सुषमा जीजी के बिना एक भी दिन गुजार सकती हैं। 

माहवारी के कारण स्कूल छोड़ा
सातों महिलाओं में से केवल सुषमा ही ऐसी है जिसे माहवारी के कारण स्कूल छोडऩा पड़ा क्योंकि उनके स्कूल में न तो कभी शौचालय था और न ही कोई महिला अध्यापक। उसने बताया कि महज दो वर्ष पूर्व तक वह कपड़े का इस्तेमाल करती थी। निर्माण इकाई ने महिलाओं को ‘फ्लाई’, जो उनका ब्रांड नेम है, करने के लिए पंख दिए हैं। लेकिन वे अभी भी खुद को पूरी तरह से आजाद महसूस नहीं करतीं। प्रीति ने बताया कि उनका जीवन अभी भी घर तथा काम तक सीमित है। वे शहरों में नहीं जातीं और न ही उन्हें अकेले ऐसा करने की इजाजत है मगर धीरे-धीरे चीजों में बदलाव आ रहा है।-एच. भंडारी

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!