पूर्वी पाकिस्तान पर पश्चिमी पाकिस्तानियों के ‘जुल्मो सितम’ की दर्दनाक दास्तां

Edited By ,Updated: 11 Dec, 2019 04:12 AM

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1971 का भारत-पाक युद्ध विश्व के जंगी इतिहास में विशेष महत्व रखता है। दूसरे विश्व युद्ध के बाद केवल 13 दिनों में यह युद्ध निर्णायक साबित हुआ। इस युद्ध की सफलता के लिए स्व. पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की अद्भुत नीति और कूटनीति तथा जनरल सैम...

1971 का भारत-पाक युद्ध विश्व के जंगी इतिहास में विशेष महत्व रखता है। दूसरे विश्व युद्ध के बाद केवल 13 दिनों में यह युद्ध निर्णायक साबित हुआ। इस युद्ध की सफलता के लिए स्व. पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की अद्भुत नीति और कूटनीति तथा जनरल सैम माणक शाह की विवेकपूर्ण एवं सुनियोजित कुशल रणनीति तथा भारतीय सैनिकों के बड़े बहादुरी से लडऩे से पाकिस्तान की फौज को हथियार डालने पर मजबूर कर दिया गया। भारत के 3800 के करीब सैनिकों ने शहादत का जाम पिया, जबकि पाकिस्तान के 12 हजार सैनिक युद्ध में हताहत हुए। 30 लाख बंगालियों का पाकिस्तानी फौज ने बर्बरतापूर्ण कत्ल कर दिया।

इस्लामी मलिशिया बनाम रजाकारों ने 4 लाख से अधिक बंगाल की महिलाओं और बेटियों के साथ रेप किया। भारत की 5 लाख फौज और बंगालियों की डेढ़ लाख मुक्तिवाहिनी के सैनिकों ने इस लड़ाई में हिस्सा लिया। हकीकत में पाकिस्तान की आधी जमीन उससे कट गई और पूर्वी पाकिस्तान एक नए देश बंगलादेश के नाम से निर्मित किया गया। नए देश के निर्माण के लिए भारत ने विश्व में जहां एक नया कीॢतमान स्थापित किया, वहीं पाकिस्तान ने अपने ही लोगों को फौजी हुकूमत से डरा-धमका कर रखने की कोशिश की जो बुरी तरह असफल हुई। पाकिस्तान का निर्माण उनके नेताओं की नीतियों और पूर्वी पाकिस्तान पर पश्चिमी पाकिस्तानियों द्वारा जुल्मो सितम की दर्दनाक दास्तां को जानने के लिए इतिहास पर नजरसानी करना अति आवश्यक है। 

पूर्वी पाकिस्तान का अधिक धन पश्चिमी पाकिस्तान हड़प जाता था
पश्चिमी और पूर्वी पाकिस्तान में 1600 किलोमीटर का अंतर था। पश्चिमी पाकिस्तान में पंजाबियों का वर्चस्व था और वे पूर्वी पाकिस्तान पर अपनी मनमानी चलाते थे जो पूर्वी पाकिस्तान के लोगों को बिल्कुल पसंद नहीं थी। पूर्वी पाकिस्तान में आमदन के साधन भी अधिक थे परंतु राष्ट्रीय बजट में पूर्वी पाकिस्तान के विकास के लिए कम राशि निर्धारित की जाती थी और पूर्वी पाकिस्तान का अधिक धन पश्चिमी पाकिस्तान हड़प जाता था। 

पूर्वी पाकिस्तान के विकास के लिए कम राशि मुहैया करने से लोगों में निराशा की लहर फैलने लगी। औद्योगिक विकास के लिए भी कोई सकारात्मक एवं ठोस कदम नहीं उठाए जाते थे। कृषि क्षेत्र में सुधार लाने के लिए भी करीब-करीब नकारात्मकता ही थी। नागरिक विकास योजनाओं पर भी आवश्यकता के अनुसार धन खर्च नहीं किया जाता था। मिलिट्री और सिविल सॢवसिस में पश्चिमी पाकिस्तान के पंजाबियों का ही बोलबाला था और बंगालियों को उनके अधीन काम करना पड़ता था, जिससे पूर्वी पाकिस्तान के लोगों में पश्चिमी पाकिस्तान के खिलाफ नाराजगी बढ़ती जा रही थी और आवामी लीग के कई नेताओं ने स्वतंत्रता के लिए आवाज उठानी शुरू कर दी। स्वतंत्रता की लहर को दबाने के लिए पाकिस्तान ने फौज का बर्बरतापूर्ण इस्तेमाल किया, जिससे लोगों का पाकिस्तान के खिलाफ निराशा ही नहीं बल्कि नफरत की एक नई ङ्क्षचगारी ने जन्म लिया।

पाकिस्तान में 1947 से 1958 तक 6 प्रधानमंत्रियों को शासन करने का मौका मिला और 1958 में अयूब खां ने प्रजातांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार को हटाकर फौजी शासन लागू कर दिया, जबकि भारत में 1947 से 1963 तक पंडित जवाहर लाल नेहरू ही प्रधानमंत्री रहे। सरकार स्थिर रही और देश विकास की तरफ  अग्रसर रहा। पाकिस्तान में अस्थिर सरकारों के कारण प्रजातंत्र की जड़ें भी मजबूत नहीं हो सकीं। 1969 में अयूब खां ने परिस्थितियों को भांपते हुए खुद पीछे हटने का फैसला किया और अपने एक नजदीकी जरनैल याहिया खां को सत्ता सौंप दी। याहिया खां एक रंगीन मिजाज और शराबनोशी करने वाला फारसी जुबां वाला पठान था। उसके शासन के दौरान जब ईरान के बादशाह को पाकिस्तान से वापस जाना था तो अफसरों ने याहिया खां को ढूंढना शुरू कर दिया। आखिर में जनरल रानी को उसके कमरे में भेजा गया क्योंकि कोई और दूसरा जाने की हिम्मत नहीं करता था। रानी भी खुद आश्चर्यचकित हो गई जब उसने याहिया खां को उस समय पाकिस्तान की सबसे बड़ी गायिका के साथ हमबिस्तर होते देखा। 

हकीकत में इन फौजी हुक्मरानों ने पूर्वी पाकिस्तान के लोगों की समस्याओं के समाधान करने और उनकी हमदर्दी हासिल करने के लिए कदम उठाने की बजाय उन्हें फौज के द्वारा कुचलने की कोशिश करनी शुरू कर दी। याहिया खां ने जब पूर्वी पाकिस्तान की जमीनीं हकीकत को समझा तो उसने देश में चुनाव करवाने का फैसला किया। चुनाव के परिणामस्वरूप आवामी लीग के मुखिया शेख मुजीबुर रहमान को 169 में से 167 सीटें हासिल हुईं और पश्चिमी पाकिस्तान में जुल्फिकार अली भुट्टो का बोलबाला था।

कुल 310 में से 167 सीटें जीतने वाला ही संविधान के अनुसार प्रधानमंत्री बन सकता था। जनरल याहिया खां ने राष्ट्रीय असैम्बली का सैशन बुला लिया परंतु प्रधानमंत्री न बनने के कारण निराश और दुखी जुल्फिकार अली भुट्टो ने यह घोषणा कर दी कि अगर कोई भी पीपल पार्टी का सदस्य असैम्बली में जाएगा तो उसकी टांगें तोड़ दी जाएंगी। इस तरह याहिया खां को असैम्बली का सैशन कैंसिल करना पड़ा लेकिन पूर्वी पाकिस्तान में बड़े जोरदार तरीके से विरोध होने लगा और 300 के करीब बिहारियों को बंगालियों ने कत्ल कर दिया और 29 मार्च 1971 को पाकिस्तान सरकार द्वारा शेख मुजीबुर रहमान को बंदी बनाकर पश्चिमी पाकिस्तान लाया गया। 

लाखों लोग देश छोड़कर भारत की ओर आने लगे 
अप्रैल में आवामी लीग ने बंगाल में अपनी सरकार की घोषणा कर दी। इससे पहले 27 मार्च को भारत की प्रधानमंत्री ने बंगलादेश की आजादी के लिए पूरे समर्थन की घोषणा करके बंगालियों की हमदर्दी हासिल की। पूर्वी पाकिस्तान में जनरल टिक्का खां ने बड़ी तीव्रता और बर्बरता से लोगों के साथ पेश आना शुरू कर दिया। हड़ताल करने वालों और असहयोग आंदोलन चलाने वालों को बड़ी बुरी तरह पीटना और हजारों लोगों को जेलों में डाल दिया गया। पूर्वी पाकिस्तान में फैले डर और दहशत के माहौल से लाखों लोग देश छोड़कर भारत की ओर आने लगे जिससे भारत के प्रदेश बंगाल, बिहार, असम, मेघालय और त्रिपुरा की सरकारों ने इन रिफ्यूजियों को शरण देने के लिए दरवाजे खोल दिए। कुछ महीनों में ही इनकी संख्या एक करोड़ के करीब पहुंच गई। इस तरह समूचा पूर्वी पाकिस्तान पश्चिमी पाकिस्तान की फौज के जुल्म खिलाफ उठ खड़ा हुआ। 

पाकिस्तान ने 3 दिसम्बर 1971 को भारत के 11 हवाई अड्डों पर हमला कर दिया। उसी शाम श्रीमती इंदिरा गांधी ने रेडियो पर पाकिस्तान के खिलाफ  युद्ध की घोषणा कर दी और अगले 48 घंटों में पाकिस्तान के तमाम हवाई अड्डे नकारा कर दिए गए और आसमान में उनकी ताकत को धराशायी कर दिया गया। पाकिस्तान भारत की न तो नीति को समझ सका और न ही कूटनीति को। वास्तव में श्रीमती इंदिरा गांधी ने पहले रूस के साथ 20 साल का समझौता किया कि अगर तीसरा देश युद्ध में प्रवेश करता है तो रूस भारत का साथ देगा। दूसरा भारत ने दिसम्बर का महीना इसलिए चुना था क्योंकि पहाड़ों पर बर्फ अच्छी तरह पडऩे से चीन पाकिस्तान की सहायता नहीं कर सकेगा। 

3 दिसम्बर से शुरू हुई लड़ाई में 18 दिसम्बर को पाकिस्तान के जनरल ए.ए. खां नियाजी को अपने 93 हजार से अधिक फौजियों के साथ हथियार डालने पड़े। इतनी बड़ी संख्या में फौजियों द्वारा हथियार डालना इतिहास में पहली घटना है और 18 दिसम्बर को जनरल नियाजी ने भारत के जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा और अन्य जनरलों के सामने समर्पण पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए और उसी दिन भारत ने बंगलादेश को एक स्वतंत्र देश घोषित कर दिया। 

1972 में शिमला समझौते के तहत भारत ने पाकिस्तान के 90 हजार के करीब कैदी फौजी और 15 हजार किलोमीटर से अधिक जमीन वापस कर दी। इस युद्ध से भारत विश्व में एक शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में उभर कर सामने आया। पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के व्यक्तिगत सम्मान को चार चांद लगे। विश्व के दो शक्तिशाली देश अमरीका और चीन पाकिस्तान के मित्र होते हुए भी कुछ न कर सके। इस युद्ध से विश्व में पाकिस्तान के दो टुकड़ों के बाद पूर्वी पाकिस्तान बंगलादेश के रूप में स्थापित हुआ। पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना की मृत्यु के 23 वर्ष बाद ही पाकिस्तान दो टुकड़ों में बांट दिया गया क्योंकि पाकिस्तान मजहबी उन्माद और नफरत की बुनियाद पर बना था। धर्म भी इसको इकट्ठा नहीं रख सका।-प्रो. दरबारी लाल पूर्व डिप्टी स्पीकर, पंजाब विधानसभा 
 

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