पाक नहीं चाहता कि अफगानिस्तान सशक्त बने

Edited By Punjab Kesari,Updated: 04 Jan, 2018 02:49 AM

pak does not want afghanistan to be strong

अमरीका के अग्रणी टी.वी. चैनलों में से एक ‘फॉक्स न्यूज’ पर परिचर्चा के दौरान एंकर ने एक वरिष्ठ सेवामुक्त अमरीकी जनरल से पूछा कि जो अमरीका सीरिया तथा ईराक में आई.एस.आई.एस. पर जीत पर जीत हासिल कर रहा है वह अफगानिस्तान में क्यों नहीं जीत पा रहा तो उसने...

अमरीका के अग्रणी टी.वी. चैनलों में से एक ‘फॉक्स न्यूज’ पर परिचर्चा के दौरान एंकर ने एक वरिष्ठ सेवामुक्त अमरीकी जनरल से पूछा कि जो अमरीका सीरिया तथा ईराक में आई.एस.आई.एस. पर जीत पर जीत हासिल कर रहा है वह अफगानिस्तान में क्यों नहीं जीत पा रहा तो उसने उत्तर दिया : ‘पाकिस्तान।’ अपने बिंदू को स्पष्ट करते हुए रिटायर्ड सेना अधिकारी ने कहा कि पाकिस्तान गत 16 वर्षों से अफगानिस्तान में बहुत सक्रियतापूर्वक तालिबानियों को समर्थन एवं सहायता मुहैया करवाने में संलिप्त है।

उन्होंने कहा कि पाकिस्तान में ही तालिबानियों के प्रशिक्षण शिविर हैं और अफगानिस्तान पर हमले करने के बाद वे इन शिविरों में लौट आते हैं। पाकिस्तान द्वारा तालिबान का समर्थन करने के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि पाकिस्तान बिल्कुल ही यह नहीं चाहता कि अफगानिस्तान एक सशक्त देश के रूप में उभरे और पाकिस्तान के विरुद्ध भारत से हाथ मिलाकर समस्याएं पैदा करे। पूर्व अमरीकी सेनापति की ये टिप्पणियां अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के उस ट्वीट के केवल एक ही दिन बाद आई हैं जिसमें उन्होंने कहा कि उनके देश ने बहुत मूर्खतापूर्ण ढंग से गत 15 वर्षों दौरान पाकिस्तान को 33 बिलियन डालर से भी अधिक की सहायता उपलब्ध करवाई है लेकिन इसके एवज में उसे केवल झूठ और धोखा ही मिला। 

पाकिस्तान द्वारा आतंकियों को दिए जा रहे समर्थन और आतंकवाद में उसकी संलिप्तता के विरुद्ध अमरीका द्वारा अब तक की यह नि:संदेह सबसे कड़ी लताड़ है। भारत कई वर्षों से न केवल यह बात कहता आ रहा है बल्कि पाकिस्तान द्वारा आतंकी सगठनों को दिए जा रहे समर्थन के बारे में साक्ष्य भी प्रस्तुत करता रहा है लेकिन अमरीका सहित शेष दुनिया इन दावों को संदेह की दृष्टि से देखती रही है। शायद ये देश ऐसा मानते थे कि भारत और पाकिस्तान के बीच प्रतिद्वंद्विता के कारण ही ऐसी बातें कही जा रही हैं। पाकिस्तान द्वारा शुरू किए गए आतंकवाद का सबसे अधिक बुरी तरह भारत ही शिकार हुआ है। यह सर्वविदित है कि 1971 में पूर्वी पाकिस्तान के अलग होकर बंगलादेश बन जाने के दिन से ही पाकिस्तान के मन में भारत के प्रति जोरदार आक्रोश पनप रहा है। इसी कारण इसने जेहाद के माध्यम से भारत से कश्मीर हथियाने के लिए मुसलमानों को आतंक की शिक्षा देने हेतु प्रशिक्षण शिविर स्थापित किए हैं। 

सैंकड़ों सैनिकों के अलावा पाकिस्तान के हजारों नागरिक इसके द्वारा प्रायोजित आतंकवाद के कारण अपनी जानें गंवा चुके हैं। इस बात में कोई संदेह नहीं कि पाकिस्तान भी आतंकवाद का शिकार हुआ है क्योंकि आतंकी हमलों में इसके सैंकड़ों नागरिक मारे जा चुके हैं। लेकिन जिस देश के नेता आतंकियों की पुश्तपनाही करते हों उसके नागरिकों को इतना मोल तो अदा करना ही पड़ेगा। यह लोकोक्ति सर्वविदित है कि जो लोग सांपों को दूध पिलाते हैं, सांप उन्हीं को डंसते हैं। अपनी जनता के विरुद्ध आतंकी हमलों का हवाला देते हुए पाकिस्तान खुद आतंक के विरुद्ध लड़ाई की नौटंकी करता आ रहा है और इस बहाने अमरीका व चीन से काफी सहायता हासिल करता रहा है। लेकिन यह तथ्य किसी से लुका-छिपा नहीं कि पाकिस्तान में आतंकी संगठन इसकी सरकार की सक्रिय सहायता के बिना जिंदा नहीं रह सकते। 

हाफिज सईद, सलाहुद्दीन एवं दाऊद इब्राहीम जैसे आतंकी पाकिस्तान में खुलेआम घूमते हैं और उन्हें अक्सर जनता के बीच देखा जाता है। बेशक अमरीका ने इनमें से कुछेक को ग्लोबल आतंकी घोषित किया हुआ है और उन पर पाबंदी लगाई हुई है तो भी पाकिस्तान उन्हें संरक्षण दे रहा है और उन्हें अवैध गतिविधियों की खुली छूट देकर अमरीका का मजाक उड़ा रहा है। केवल इतना ही नहीं, पाकिस्तान अमरीका और चीन को एक-दूसरे के विरुद्ध प्रयुक्त करता है ताकि दोनों से अधिक से अधिक वित्तीय सहायता ले सके। संयुक्त राष्ट्र द्वारा मसूद अजहर को अंतर्राष्ट्रीय आतंकी घोषित करने का फैसला केवल चीन द्वार वीटो प्रयुक्त करने के कारण ही सफल नहीं हो सका। यह स्पष्ट है कि यह फैसला किसके अनुरोध पर हुआ था। 

चीन तो पाकिस्तान को अपने हर दुख का साथी भी कहता है क्योंकि इसके अपने निहित स्वार्थ हैं। वह पाकिस्तान का समर्थन इसलिए करता है कि उसके इलाके में यह यूरोप के लिए एक महत्वपूर्ण व्यापार मार्ग का निर्माण कर रहा है। ट्रम्प के बयान ने बहुत परेशान किया है क्योंकि वह इसके दुष्प्रभावों को लेकर पहले ही काफी चिंतित है। पाकिस्तान यह स्पष्टीकरण दे रहा है कि ट्रम्प द्वारा किए गए बदलाव अतर्विरोधों से भरे हुए हैं और समझ से परे हैं। ट्रम्प का बयान आते ही पाकिस्तान ने अपनी छाती पीटनी शुरू कर दी है कि वह तो खुद आतंकवाद से पीड़ित है। बेशक वास्तविक रूप में अमरीकी वित्तीय सहायता का रुकना पाकिस्तान के लिए बहुत बड़ा आघात होगा तो भी ट्रम्प के बारे में यह सर्वविदित है कि वह बातें बहुत बड़ी-बड़ी करते हैं लेकिन व्यावहारिक रूप में छोटी-मोटी कार्रवाई ही अंजाम देते हैं। उत्तर कोरिया के विरुद्ध उनकी धमकियां इसका एक उदाहरण है। 

लेकिन सहायता रोकने के लिए ट्रम्प और उनकी सरकार को अवश्य ही पाकिस्तान के विरुद्ध कड़ी पाबंदियों के अलावा व्यापारिक प्रतिबंध भी लगाने चाहिएं। अभी भी पाकिस्तान नाटो देशों का प्रमुख गैर नाटो सहयोगी बना हुआ है। यह स्थिति हर हालत में समाप्त होनी चाहिए और अमरीका को उस आतंकवाद का समूल नाश करने के लिए अवश्य ही सभी कदम उठाने चाहिएं जिस आतंकवाद को वह अमरीका का सबसे बड़ा शत्रु मानते हैं।-विपिन पब्बी

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