‘भय’ के साए में संकटग्रस्त पाकिस्तान

Edited By ,Updated: 12 Apr, 2019 04:15 AM

pakistan in crisis with  fear

जब पूरा भारत 17वें लोकसभा चुनाव के रूप में देश का सबसे बड़ा पर्व मना रहा है, तब यह कॉलम अल्पकाल में पुन: पाकिस्तान की ओर लौट रहा है। इसके मुख्य तीन कारण हैं। पहला-पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी का यह दावा कि भारत, पाकिस्तान पर फिर हमला कर...

जब पूरा भारत 17वें लोकसभा चुनाव के रूप में देश का सबसे बड़ा पर्व मना रहा है, तब यह कॉलम अल्पकाल में पुन: पाकिस्तान की ओर लौट रहा है। इसके मुख्य तीन कारण हैं। पहला-पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी का यह दावा कि भारत, पाकिस्तान पर फिर हमला कर सकता है। 

दूसरा- आर्थिक संकट, अनियंत्रित महंगाई और बढ़ती गरीबी से निपटने के लिए पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने ‘एहसास’ योजना की शुरूआत की है। और तीसरा-चीन में मुसलमानों के साथ हो रहे सरकार प्रायोजित उत्पीडऩ की जानकारी होने से इमरान खान ने इंकार किया है। इन तीनों घटनाक्रमों का संदर्भ भले ही अलग-अलग हो, किन्तु सतह पर इनका कारण ये एक-दूसरे से संबंधित हैं। आखिर पाकिस्तान इस स्थिति में कैसे पहुंचा? 

आज चीन में मुस्लिम नागरिक किस वीभत्स स्थिति से गुजर रहे हैं- उसकी जानकारी कई विश्वसनीय रिपोट्र्स के माध्यम से पूरी दुनिया को बीते कई महीनों से है। विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय संगठनों ने चीन में मुस्लिमों के दयनीय जीवन को अपनी रिपोर्ट में उजागर किया है, जो इंटरनैट पर आसानी से उपलब्ध भी है। फिर भी इमरान खान, जो उस राष्ट्र के प्रधानमंत्री हैं, जिसके वैचारिक आधार में न केवल इस्लाम और मुस्लिम पहचान निहित है, अपितु स्वयं को अरब देशों के समकक्ष इस्लाम के रक्षक के रूप में स्थापित करने में भी जुटा है-क्या वह चीन में मुसलमानों की उत्पीडऩ संबंधी घटनाओं से सचमुच अनभिज्ञ है? कुछ दिन पहले ब्रितानी समाचार-पत्र ‘फाइनैंशियल टाइम्स’ को दिए एक साक्षात्कार में जब इमरान खान से पूछा गया कि वह चीन में रहने वाले मुसलमानों की स्थिति के बारे में क्या सोचते हैं, तब इस पर उन्होंने कहा, ‘‘मुझे चीन में रहने वाले मुसलमानों के बारे में जानकारी नहीं है।’’ वह आगे कहते हैं, ‘‘मुस्लिम दुनिया अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। यदि मुझे इसकी जानकारी होती तो मैं बात करता, इसकी खबरें अधिक छपती नहीं हैं।’’ 

चीनी मुस्लिमों के उत्पीडऩ पर क्यों चुप है पाकिस्तान 
इस पृष्ठभूमि में अखलाक, जुनैद आदि जैसे कुछ भारतीय अपवादों को लेकर इमरान खान बीते कई अवसरों पर अल्पसंख्यक हितों की रक्षा करने पर भारत को प्रवचन दे चुके हैं। इस विकृत स्थिति के लिए हमारे देश के उन तथाकथित सैकुलरवादियों और उदारवादियों का साधुवाद है, जिन्होंने अपने एजैंडे की पूर्ति हेतु और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विरोधस्वरूप-शेष विश्व में भारत की सहिष्णु और बहुलतावादी छवि को कलंकित करने का प्रयास किया है। यह स्थिति तब है कि जब केन्द्रीय मंत्री पदों के अतिरिक्त देश के राष्ट्रपति से लेकर उप-राष्ट्रपति, मुख्यमंत्री, मुख्य न्यायाधीश, मुख्य चुनाव आयुक्त जैसे संवैधानिक पदों पर कई मुस्लिम व्यक्ति विराजमान हो चुके हैं। 

यही नहीं, 135 करोड़ की आबादी में मुसलमानों की संख्या लगभग 20 करोड़ है और सभी समान संवैधानिक व लोकतांत्रिक अधिकारों के साथ भारत में बराबरी का जीवनयापन भी कर रहे हैं। ऐसे में प्रश्न उठता है कि मुसलमानों को लेकर अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत विरोधी अभियान छेडऩे वाला पाकिस्तान, चीनी मुस्लिमों के उत्पीडऩ पर चुप क्यों है या फिर उस पर खुलकर बात करने से क्यों बच रहा है? यहां बात केवल पाकिस्तान तक सीमित नहीं है। वैश्विक इस्लामी समुदाय के सबसे बड़े संगठन- इस्लामिक सहयोग संगठन (ओ.आई.सी.), जिसमें पाकिस्तान सहित 57 इस्लामी देश सदस्य हैं और जो अक्सर फिलस्तीन, रोङ्क्षहग्या आदि को लेकर निंदा प्रस्ताव पारित करते रहते हैं-वे भी न केवल चीन में मुस्लिमों की स्थिति पर अपनी आंख मूंदे हुए हैं, अपितु गत माह उसने एक प्रस्ताव पारित कर चीन को क्लीन चिट देते हुए कहा, ‘‘हम चीनी सरकार द्वारा मुस्लिम नागरिकों का ध्यान रखने और उनकी चिंता करने की सराहना करते हैं।’’ 

10 लाख उइगर हिरासत शिविरों में 
क्या यह सत्य नहीं कि साम्यवादी चीन में- विशेषकर शिनजियांग में लाखों उइगर मुस्लिमों को शिविरों में किसी कैदी की भांति प्रताडि़त किया जा रहा है? संयुक्त राष्ट्र प्रतिनिधियों ने अपनी जांच में पाया है कि चीन के शिनजियांग प्रांत में स्थानीय प्रशासन के अवलोकन में हिरासत शिविरों में 10 लाख उइगर, जातीय कजाक और अन्य मुस्लिम अल्पसंख्यकों को बंधक बनाकर रखा गया है, जहां उन पर इस्लाम की परम्पराओं को छोडऩे के साथ वामपंथी विचारों और चीनी राष्ट्रवाद को अपनाने का दबाव बनाया जा रहा है। जो मुस्लिम कैदी उन शिविरों में अधिकारियों के निर्देशों की अवहेलना करता है, उसे दिनभर एकांत कोठरी में खड़े रहने, भूखा रखने सहित कई प्रकार की मानसिक और शारीरिक यातनाएं दी जाती हैं। चीनी राष्ट्रपति शी के शासनकाल में कई मस्जिदों के साथ चर्चों को या तो ढहा दिया गया है या फिर उस पर सरकार का नियंत्रण हो गया है। 

पाकिस्तान की इस चुप्पी का कारण चीनी अनुकम्पा और उसके द्वारा ‘चीन-पाकिस्तान आॢथक गलियारे’ (सी.पी.ई.सी.) में किया जा रहा भारी निवेश तो है ही, साथ में दोनों देशों का भारत विरोधी संयुक्त उद्देश्य भी इन्हें एक-दूसरे के निकट लाता है। यदि भारत और उसकी सनातन बहुलतावादी संस्कृति को नष्ट करना पाकिस्तानी अधिष्ठान की घोषित नीति है, तो इसे क्रियान्वित करने हेतु प्रत्यक्ष-परोक्ष आॢथक सहायता और भारत में नक्सलवाद को वैचारिक समर्थन देना-चीन की साम्राज्यवादी रणनीति का मुख्य हिस्सा बन चुकी है। क्या सत्य नहीं कि छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में जिन नक्सलियों ने भाजपा के चुनावी काफिले पर हमला किया, जिसमें भाजपा विधायक भीमा मंडावी सहित 5 लोगों की मौत हो गई, वे सभी उस हिंसक माओवाद में विश्वास करते हैं, जिसने वर्तमान चीन की रक्तरंजित नींव रखी थी? 

कर्ज का लेना पड़ा सहारा 
पाकिस्तान-चीन के इस कुत्सित गठजोड़ ने प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से कालांतर में भारत पर कई हमले तो किए, किंतु इससे देश के वित्तीय और सामाजिक स्वास्थ्य पर कभी कोई आंच नहीं आई। वहीं पाकिस्तान अरबों डॉलर के चीनी कर्ज में जकड़े होने के साथ अपनी गिरती अर्थव्यवस्था और महंगाई के संकट में बुरी तरह फंस चुका है। गत माह चीन ने दिवालिया होने की चौखट पर पहुंचे पाकिस्तान को फिर से 2.2 अरब डॉलर का कर्ज दिया है। आज स्थिति यह हो गई है कि चीन के भारी-भरकम ऋण का केवल ब्याज चुकाने के लिए पाकिस्तान अरब देशों से कर्ज ले रहा है। गत दिनों उसे सऊदी अरब से 3 अरब डॉलर, तो संयुक्त अरब अमीरात से 2.1 अरब डॉलर की सहायता प्राप्त हुई है। 

आखिर पाकिस्तान की इस दयनीय स्थिति का कारण क्या है? क्या इसका उत्तर उसके वैचारिक दर्शन में नहीं छिपा है? अगस्त 1947 से लेकर अब तक खंडित भारत और पाकिस्तान की विकास यात्रा में आकाश-पाताल का अंतर रहा है। पिछले 70 वर्षों में जहां हमारा देश अपनी सामरिक शक्ति को बढ़ाते हुए प्रत्येक क्षेत्र में नए-नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा है जिसमें गत वर्ष विश्व की छठी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के बाद हाल ही में भारत ए-सैट परीक्षण के माध्यम से अंतरिक्ष महाशक्ति बनकर उभरा है-वहीं पाकिस्तान अधिष्ठान अपने सभी संसाधनों-चाहे वे सीमित ही क्यों न हों-उसका बहुत बड़ा हिस्सा भारत विरोधी अभियानों पर व्यय कर रहा है। पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी का भारतीय हमले की आशंका संबंधित वक्तव्य, न केवल पाकिस्तान की भारत विरोधी मानसिकता का विस्तृत रूप है, अपितु वह भारत के खिलाफ चलाए जा रहे अभियानों पर खर्च होने वाले अकूत धन को न्यायोचित ठहराने का भी प्रयास है। 

भारत के प्रति शत्रुभाव पाक के लिए घातक 
भारत के प्रति घृणा और वैचारिक शत्रुभाव ने पाकिस्तान को आज उस स्थिति में पहुंचा दिया है कि वहां के लोगों से एक रोटी खाने की अपील की जा रही है। खैबर पख्तूनख्वा के विधानसभा अध्यक्ष मुश्ताक गनी ने नागरिकों से दो रोटी की बजाय एक रोटी खाकर गुजारा करने की बात कही है। यही नहीं, पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने असमानता कम करने, गरीबी खत्म करने और जनकल्याण के लिए निवेश करने हेतु ‘एहसास’ नामक योजना की शुरूआत की है। इसके अंतर्गत, 4 क्षेत्रों में 115 नीतिगत कदम उठाए जाएंगे। 

यक्ष प्रश्न है कि पाकिस्तानी सरकार इस योजना के लिए पैसे कहां से लाएगी, क्योंकि उसकी आर्थिकी वैंटीलेटर पर है, सरकारी खजाना खाली है और स्वयं इमरान खान 8 अरब डॉलर की आर्थिक सहायता हेतु अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से कई बार याचना कर चुके हैं? सत्य तो यह है कि जब तक पाकिस्तान अपने भारत-हिंदू विरोधी वैचारिक दर्शन से प्रेरणा लेता रहेगा, तब तक न ही उसकी स्थिति में कोई व्यापक सुधार आने वाला है और न ही विश्व के इस भूखंड पर शांति के कोई आसार हैं।-बलबीर पुंज
 

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