अमानवीय अत्याचार करना पाकिस्तान की फितरत

Edited By ,Updated: 14 Apr, 2017 11:08 PM

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मैं अभी महाराष्ट्र के प्रवास से लौटा हूं। वहां हनुमान जयंती विशेष उत्साह से....

मैं अभी महाराष्ट्र के प्रवास से लौटा हूं। वहां हनुमान जयंती विशेष उत्साह से मनाई जाती है लेकिन इस बार हनुमान जी के स्मरण के साथ-साथ कुलभूषण जाधव की चर्चा भी उतनी ही तीव्रता और वेदना के साथ हुई। सिर्फ इसलिए नहीं कि कुलभूषण महाराष्ट्र के सतारा क्षेत्र के निवासी हैं, बल्कि इसलिए भी कि पाकिस्तान भारत के विरुद्ध बर्बर हमलों की हदें पार करता जा रहा है। वास्तव में कुलभूषण जाधव को पाकिस्तानी सेना की कंगारू अदालत ने प्राणदंड की घोषणा कर भारत पर युद्ध का ही ऐलान किया है।

यह युद्ध उस घृणा की निरंतरता है जिसका बीज भारत विभाजन के साथ बोया गया था। आजादी के तुरंत बाद सितम्बर 1947 में किया कबायलियों के वेश में हमला, कच्छ पर हमला, 1965 की लड़ाई-जो हम जीत कर भी हाजी पीर लौटा बैठे, 1971 में पाकिस्तान का भारतीय फौजों के सामने आत्मसमर्पण और 90 हजार पाकिस्तानी सैनिक भारत में युद्ध बंदी और फिर जिया-उल-हक द्वारा खालिस्तानी आतंकवाद के जरिए हजार घावों से भारत को रक्त रंजित करना तथा बाद में आई.एस.आई. के जेहादी हमले जिनमें 86 हजार से ज्यादा भारतीय मारे जा चुके हैं। पाकिस्तानी प्रहारों की फेहरिस्त लम्बी है पर उससे लम्बी है भारत के धैर्य की थका देने वाली कथा। 

यह कहना कि पाकिस्तान स्वयं भी इस आतंक का शिकार हो रहा है और उसको अमरीका तथा चीन का भी सहारा है, भारत के लिए बेमानी है। हमारे लिए यदि कोई एक ही बात महत्वपूर्ण है तो वह है पाकिस्तानी आतंकवाद और हमलों से कैसे भारत को सुरक्षित किया जाए। यह सत्य है कि आज दुनिया में सबसे  ज्यादा मुसलमान, मुसलमानों द्वारा ही पाकिस्तान में मारे जा रहे हैं। वजह है आपसी साम्प्रदायिक घृणा और उससे जन्मी ङ्क्षहसा। यदि कोई शिया समाज की हजारों वैबसाइटों को एक बार देखे तो पाकिस्तानी कट्टरपंथी सुन्नी जमातों द्वारा शियाओं पर किए जाने वाले बर्बर हमलों की हैरतअंगेज घटनाएं देखने को मिलेंगी।

बलोचिस्तान और सिंध में भी पाकिस्तानी फौजों के पाश्विक अत्याचारों की लम्बी सूची है। फौज और आई.एस.आई. के सहारे वहां 76 से ज्यादा इंतिहापसंद दहशतगर्दों की जमातें सक्रिय हैं। मसूद अजहर और लखवी तो इस हिमनद के सिर्फ टुकड़े भर हैं। एक मोटे अनुमान के अनुसार पाकिस्तान में दो सौ से ज्यादा भारतीय कैदी हैं। सरबजीत सिंह और कश्मीर सिंह की कहानी और कथाएं तो सामने आ गईं लेकिन 1971 के युद्ध के समय पकड़े गए 54 भारतीय युद्धबंदियों के बारे में अभी तक कुछ पता नहीं चला। सूत्रों के अनुसार उनमें से अनेक आज भी जेल में मृत्यु की प्रतीक्षा कर रहे हैं। 

अमानुषिक अत्याचार पाकिस्तान की फितरत में है। कैप्टन सौरभ कालिया और उनके साथ जाट रैजीमैंट के 5 जवां सिपाही अर्जुन राम बासवाना, मूलाराम, नरेश सिंह, भंवर लाल बागडिय़ा और मीका राम के पाॢथव शरीर जब सौंपे गए तो उनकी क्षतविक्षत हालत देख खून खौल उठा था लेकिन उस बर्बरता को हमें चुप होकर सहना पड़ा। लांसनायक हेमराज और लांसनायक सुधाकर सिंह के सिर काट कर उनके शरीर भारतीय सेना को सौंपे गए तो (जनवरी 2013) तो पूरा देश क्रुद्ध हो उठा था पर कुछ दिन बाद सब कुछ भुला दिया गया। 

वीरता के गीत गाने वाला यह समाज भूल जाता है कि देश पर शहीद होने वाले जवानों के भी परिवार हैं- उनके माता-पिता, बच्चे और पत्नी। मीडिया में आतंकवादियों के बच्चों के इंटरव्यू छापने का फैशन है लेकिन क्या कभी किसी महान शहीद सैनिक के माता-पिता, पत्नी या बेटी का इंटरव्यू आपने देखा है? कल्पना करिए यदि इस प्रकार की बर्बरता अमरीका या चीन के सैनिकों के साथ हुई होती तो क्या प्रतिक्रिया होती? भारत का सैनिक केवल वर्दीधारी नौकरीपेशा कर्मचारी नहीं है। वर्दी पहनते ही वह भारतीय सम्प्रभु गणतंत्र का उतना ही सशक्त प्रतिनिधि हो जाता है जितना तिरंगा झंडा है, संविधान है और राष्ट्रपति की गरिमा है। उससे रत्ती भर कम सैनिक के सम्मान को नहीं आंका जा सकता। 

कश्मीर में केन्द्रीय आरक्षी पुलिस बल (सी.आर.पी.एफ.) के जवान के साध देशद्रोही पत्थरबाजों द्वारा किए गए शर्मनाक व्यवहार की वीडियो क्लिप वायरल हुई लेकिन क्या उसकी कुछ प्रतिक्रिया हुई? हम अपनी धरती पर अपने कश्मीर में, मातृभूमि के लिए लड़ रहे सैनिकों की रक्षा नहीं कर पाते-इसका क्या जवाब होगा? यदि वह जवान कायर, पाकिस्तानी पैसे पर पलने वाले पत्थरबाजों से अपनी रक्षा करने के लिए गोली चलाता तो उसके विरुद्ध सबसे ज्यादा भारत के ही सैकुलर पत्रकार लिखते लेकिन भारत में एक जवान के अपमान पर क्या कहीं कोई लेख, सम्पादकीय या संसद में शोर देखा-सुना गया?

क्योंकि यहां जवान के पक्ष में बोलना चुनावी जीत का कारण नहीं बनता। कुलभूषण जाधव को फांसी की सजा नहीं सुनाई गई है-पहले तय कर लिया गया कि उसे कत्ल करना है। उसके बाद फाइलों पर दस्तखत कर दिए। न तो भारतीय राजनयिकों को कुलभूषण से मिलने दिया गया, न ही इन बातों का जवाब दिया गया--- 

1. यदि वह भारतीय जासूस था तो उसे भारतीय पासपोर्ट के साथ जाने की जरूरत क्या थी? 2. इस विषय में अंतर्राष्ट्रीय वियना समझौते का पालन करते हुए भारतीय उच्चायोग के राजनीयिकों को कुलभूषण से मिलने की अनुमति क्यों नहीं दी गई, जबकि इसके लिए भारत ने तेरह अनुरोध पत्र लिखे। 3. कुलभूषण की स्वीकारोक्ति का जो वीडियो प्रसारित किया गया है वह टुकड़ों में और फोटोशाप क्यों है? 

4. सामान्यत: इस प्रकार के मामले सिविल अदालत में जाते हैं। पहली बार पाकिस्तानी कोर्ट मार्शल अदालत में यह मामला क्यों भेजा गया? 5. जब दिसम्बर 2016 में नवाज शरीफ के विदेशी मामलों के सलाहकार सरताज अजीज का बयान था कि सिवाय कुछ बयानों के कुलभूषण के विरुद्ध कोई सबूत अभी तक नहीं मिला है तो अचानक किस आधार पर उसे सजा सुनाई गई? 6. क्या यह सत्य है कि कुलभूषण जो ईरान में अपना व्यापार कर रहे थे, तालिबानों द्वारा पकड़े गए और फिर उनको पाकिस्तानी सेना के हवाले कर दिया गया? 

इस बारे में हमें विश्वास है कि भारत सरकार उतनी ही उद्वेलित और चितित है जितने कि हम सब। हम सिर्फ कह सकते हैं, जन-मन के भाव बता सकते हैं। एक सशक्त एवं निर्णायक सरकार कुलभूषण के विषय में हर संभव, बल्कि असंभव से उपाय भी करेगी और कुलभूषण वापस सही-सलामत ला देगी, यही इस बैसाखी के पर्व पर हमें कामना करनी चाहिए।    

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