पाकिस्तान के लिए ‘खौफनाक’ रहा 2017

Edited By Punjab Kesari,Updated: 09 Jan, 2018 03:33 AM

pakistan is creepy for 2017

2017 का वर्ष पाकिस्तान के लिए खौफनाक रहा या नहीं, इस बारे में निश्चय से कुछ नहीं कहा जा सकता। लेकिन एक बात निश्चय से कही जा सकती है कि अयोग्य करार दिए गए पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के लिए यह वर्ष बहुत भयावह था। पाकिस्तान में उच्च अदालतें अतीत में...

2017 का वर्ष पाकिस्तान के लिए खौफनाक रहा या नहीं, इस बारे में निश्चय से कुछ नहीं कहा जा सकता। लेकिन एक बात निश्चय से कही जा सकती है कि अयोग्य करार दिए गए पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के लिए यह वर्ष बहुत भयावह था। पाकिस्तान में उच्च अदालतें अतीत में कभी भी निर्भीकता एवं स्वतंत्रशीलता के लिए विख्यात नहीं रही हैं। न्यायपालिका तो उन सैन्य तानाशाहों को वैधता प्रदान करती रही है जिन्होंने लगभग प्रत्येक सिविलियन सरकार को अपने पैरों तले रौंदा। 

ऐसे में पाकिस्तान के उतार-चढ़ाव भरे इतिहास में शायद पहला मौका था जब एक निर्वाचित प्रधानमंत्री को भ्रष्टाचार के आरोपों में न केवल बाहर का रास्ता दिखा गया बल्कि पूरी जिंदगी के लिए कोई सार्वजनिक पद सम्भालने के अयोग्य करार दे दिया गया। गत 28 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने अपने सर्वसम्मत फैसले से नवाज शरीफ को इस आधार पर अयोग्य करार दिया कि वह न तो सादिक (अच्छे चरित्र वाले) और न ही अमीन (सत्यवादी) रह गए हैं। यह फतवा उस पाकिस्तान संविधान की संदिग्ध किस्म की धारा 62 और 63 के अंतर्गत सुनाया गया जिसे स्व. तानाशाह जनरल जिया उल हक ने चुने हुए जनप्रतिनिधियों पर नकेल लगाने के लिए संविधान में ठूंसा था। 

शरीफ और उनकी संतानें अपनी उस बेपनाह दौलत का स्रोत नहीं बता पाईं जिसके बूते उन्होंने लंदन में बहुत महंगी सम्पत्तियां खरीदी थीं। इस भ्रष्टाचार का खुलासा पनामा में संदिग्ध खातों के माध्यम से हुआ था और इसलिए इसे पनामा गेट की श्रेणी में ही रखा जाता है। अब शरीफ के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट का वह आदेश तो बिल्कुल ही बेरहमी भरा था जिसमें उनकी तुलना सिसिली के किसी माफिया डॉन से की गई थी। शरीफ और उनके विभिन्न प्रवक्ताओं ने बेशक अलग-अलग तरह के बयानों में यह आरोप लगाया है कि न्यायपालिका पाकिस्तानी सेना के साथ मिलकर शरीफ को निशाना बना रही है लेकिन इस पर बहुत कम लोग विश्वास करने को तैयार हैं। यहां तक कि उनके छोटे भाई शाहबाज शरीफ ने भी नवाज और उनके प्रवक्ताओं के स्पष्टीकरणों की पुष्टि नहीं की है। बीते वर्ष दौरान नवनियुक्त सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा ने न केवल सेना के प्रोफैशनल मामलों पर अपनी पकड़ मजबूत की है बल्कि सुरक्षा और विदेश नीतियों पर भी उनका प्रभाव पहले से अधिक रूप से स्पष्ट दिखाई देता है। 

वैसे जनरल कमर जावेद बाजवा नवाज शरीफ की अपनी पसंद ही थे। इसके बावजूद दोनों के बीच भले-चंगे सौहार्दपूर्ण संबंध डानगेट दलाली रिपोर्ट आने के बाद बिगडऩे शुरू हो गए। कुछ लोगों का दावा है कि डान अखबार द्वारा लीक की गई रिपोर्ट मनगढ़ंत थी और यह जनरल बाजवा के पूर्ववर्ती जनरल रहील शरीफ द्वारा एक अतिरिक्त सेवा विस्तार हासिल करने की साजिश मात्र थी। रिटा. जस्टिस आमिर रजा खान की अध्यक्षता वाले आयोग की मूल सिफारिशों में यह सुझाव दिया गया था कि डान अखबार को रिपोर्ट लीक करने वालों के विरुद्ध सरकारी गोपनीयता कानून के अंतर्गत कार्रवाई की जानी चाहिए। ऐसा हुआ होता तो इस जांच में नामित शरीफ की अंतरंग टोली के कुछ सदस्यों के विरुद्ध भी मुकद्दमा चलता। 

फिर भी पता नहीं सैन्य नेतृत्व ने शरीफ से केवल यही मांग क्यों की कि जो लोग अपराधी घोषित किए गए हैं उन्हें उनके संबंधित पदों से मुक्त कर दिया जाए? लेकिन इस मामले में भी प्रधानमंत्री ने निष्क्रियता दिखाई। उनके प्रमुख सचिव फवाद हुसैन ने गृह मंत्री निसार अली खान को बताए बिना मूल रिपोर्ट का एक बहुत घटिया सा संस्करण लीक कर दिया। इंटरसर्विसिज जनसम्पर्क (आई.एस.पी.आर.) के महानिदेशक मेजर जनरल आसिफ गफूर ने सैन्य नेतृत्व का गुस्सा कई गुणा बड़े होने का प्रमाण देते हुए विरोध में ट्वीट किया कि रिपोर्ट का ऐसा संस्करण स्वीकार्य नहीं इसलिए हम इसे रद्द करते हैं। इस तरह शरीफ के कार्यकाल में सिविल और सैन्य संबंध बिल्कुल न्यूनतम स्तर तक चले गए। फिर भी सेना प्रमुख ने गरिमापूर्ण मुद्रा अपनाते हुए अपने जनसम्पर्क प्रमुख को यह आक्रामक ट्वीट वापस लेने का आदेश दिया। 

सैद्धांतिक रूप में बात करें तो यह मामला यहीं थम जाना चाहिए था लेकिन सैन्य नेतृत्व और यहां तक कि कुछ कोर कमांडरों ने इसे सेना को अपमानित करने का सोचा-समझा प्रयास करार दिया। उसके बाद तो सैन्य और सिविल के संबंध बिल्कुल ही बिगड़ गए। अयोग्य करार दिए जाने के बाद नवाज शरीफ यह कहते हुए अभियान चला रहे हैं ‘‘मुझे क्यों निकाला गया।’’ नवाज शरीफ व्यवस्था के विरुद्ध जबरदस्त प्रहार तो कर ही रहे हैं लेकिन उनकी होनहार और करिश्माई बेटी मरियम नवाज इस हमले को और भी धारदार बना रही हैं। बेशक उसे अभी तक राजनीतिक दृष्टि से नौसिखिया ही माना जाता है लेकिन यह मरियम के साथ बेइंसाफी होगी। नवाज खुद भी मंझे हुए लड़ाकू हैं जो तीन बार प्रधानमंत्री रह चुके हैं इसलिए वह किसी के इशारों पर नहीं नाच सकते। वास्तव में उनका राजनीतिक अहंकार ही उन्हें ले डूबा है। इस समय तो मरियम पर भी राष्ट्रीय जवाबदारी ब्यूरो (एन.ए.बी.) द्वारा अयोग्य करार दिए जाने की तलवार लटक रही है।

इस पूरे परिदृश्य में शाहबाज शरीफ पी.एम.एन.एल. की ओर से अगले चुनाव में प्रधानमंत्री पद के एकमात्र उम्मीदवार के रूप में उभरे हैं। सेना को भी उनकी इस दावेदारी पर कोई एतराज नहीं। इस परिवेश में जूनियर शरीफ का अचानक सरकारी विमान में सऊदी अरब जाना बहुत गहरे अर्थ रखता है। सऊदी अरब की राजधानी में नवाज भी अपने छोटे भाई से मिल बैठे। वैसे जिस प्रकार यमन में हाऊती बागियों को कुचलने में पाकिस्तान ने सऊदी सेना के साथ प्रतिबद्धता दिखाने में ढिलमुल रवैया दिखाया, उससे सऊदी अरब के शासक नवाज से काफी नाराज हैं। फिर भी पाकिस्तान के अन्य किसी भी शासक की तुलना में सऊदी शाही परिवार शरीफ बंधुओं को अधिक प्राथमिकता देता है। 

वैसे यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि पाकिस्तानी सिविल नेतृत्व द्वारा देश के बिल्कुल अंदरूनी मामलों से निपटने के लिए सऊदी अरब के आगे गुहार लगाई जा रही है। सेना नहीं चाहती कि सऊदी अरब का गुस्सा शांत करने के शाहबाज शरीफ के प्रयास असफल हों। ऐसे में नवाज शरीफ के विरुद्ध जवाबदारी ब्यूरो को नरम रुख अपनाने को कहा जा सकता है लेकिन केवल एक शर्त पर कि नवाज शरीफ सेना के विरुद्ध कड़ा रुख न अपनाएं। 

वैसे पी.एम.एल.-एन. की सरकार  आतंकवादी विरोधी मोर्चे पर कुछ सफलताओं की शेखी बघार सकती है कि इसने सेना की आतंकविरोधी कार्रवाई के लिए वातावरण तैयार किया था। फिर भी हर प्रकार की कमी-पेशियों के बावजूद पाकिस्तान पर अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का दबाव लगातार बढ़ता ही गया है और अब हालत यह है कि पाकिस्तानी नीति निर्धारकों को यह आशंका सता रही है कि अमरीका पाकिस्तान में छिपे बैठे आतंकियों के विरुद्ध सीधी कार्रवाई कर सकता है। यानी कि पिछला साल तो पाकिस्तान और खास तौर पर नवाज शरीफ के लिए खौफनाक था ही, 2018 में भी समय इसके लिए शुभ दिखाई नहीं दे रहा।-आरिफ निजामी

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