पाकिस्तान को अपनी ‘कथनी और करनी’ को एक समान रखना होगा

Edited By ,Updated: 05 Mar, 2019 03:39 AM

pakistan must keep its utterance and doings equal

आप जो बोते हैं वही काटते हैं। पिछले सप्ताह पाकिस्तान को यह कटु सबक देखने को मिला जब भारत ने उसके बालाकोट, मुजफ्फराबाद और चकोटी में आतंकवादी शिविरों पर हवाई हमला किया। 1971 के बाद पाकिस्तान के अंदर ये भारत के पहले हवाई हमले थे और इन हमलों से भारत ने...

आप जो बोते हैं वही काटते हैं। पिछले सप्ताह पाकिस्तान को यह कटु सबक देखने को मिला जब भारत ने उसके बालाकोट, मुजफ्फराबाद और चकोटी में आतंकवादी शिविरों पर हवाई हमला किया। 1971 के बाद पाकिस्तान के अंदर ये भारत के पहले हवाई हमले थे और इन हमलों से भारत ने पुलवामा का बदला लिया।

पाकिस्तान ने इसका प्रतिकार किया और भारत के एक मिग विमान को गिराया तथा पायलट को बंदी बना लिया तो भारत ने भी पाकिस्तान के एफ-16 विमान को मार गिराया और उसके बाद पाकिस्तान शांति की बात करने लगा। किंतु भारत ने स्पष्ट किया कि पहले सीमा पार प्रायोजित आतंकवाद पर पाकिस्तान अपने वायदों को पूरा करे। तब तक ‘नो बोली, ओनली गोली’। 

और आशानुरूप भारत और पाकिस्तान एक बार पुन: युद्ध के कगार पर खड़े हैं। टकराव बढऩे के संकेत स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं। सीमा पर सीमित युद्ध जारी है। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि हाल ही में एक पायलट प्रोजैक्ट पूरा हुआ है और अब रियल में होना है। वह पिछले सप्ताह बालाकोट पर भारत के हवाई हमलों की बात कर रहे थे और इस तरह वह भविष्य को अनिश्चितता की ओर ले गए। कुल मिलाकर भारत-पाक संबंधों में सुधार की कोई गुंजाइश नहीं दिखाई दे रही है। हाल का घटनाक्रम बताता है कि पाकिस्तान आतंकवाद को भारत के विरुद्ध एक औजार के रूप में प्रयोग करता है और वहां पर उसकी सेना के जनरलों की तूती बोलती है। पुलवामा और उड़ी के बाद पाकिस्तान के लिए चिंताजनक बात यह है कि आतंकवादी हमलों से उसे वांछित परिणाम प्राप्त नहीं हो रहे हैं क्योंकि भारत इनका बदला ले रहा है। 

भारत इस बात पर अड़ा हुआ है कि पाकिस्तान यह आश्वासन दे कि वह आतंकवादी संगठनों विशेषकर अजहर मसूद के जैश-ए-मोहम्मद और हाफिज सईद के लश्कर-ए-तोयबा के विरुद्ध ठोस कदम उठाएगा। पुलवामा हमलों की जिम्मेदारी जैश-ए-मोहम्मद द्वारा लेने के बाद पाकिस्तान की स्थिति कमजोर हो रही है और अब वह इस जिम्मेदारी से नहीं बच सकता है कि वह जेहादियों को सुरक्षित ठिकाने उपलब्ध करा रहा है। पाकिस्तान के विदेश मंत्री ने स्वीकार किया है कि अजहर मसूद पाकिस्तान में है और वह बीमार है। 

​​​वर्तमान स्थिति से स्पष्ट है कि पाकिस्तान भारत की मूल चिंता अर्थात आतंकवाद के विरुद्ध कोई कदम उठाने वाला नहीं है। वह घुसपैठ कराने और सीमा पर भारतीय चौकियों पर हमला करने में व्यस्त है। न ही इस बात के कोई संकेत हैं कि पाकिस्तान ने भारत के प्रति अपने दृष्टिकोण में कोई बदलाव किया है और न ही उसने भारत पर हजारों घाव करने के लिए हजारों युद्ध करने की मानसिकता को बदला है। पाकिस्तान ने सीमा पार जेहाद फैक्टरी फिर से शुरू कर दी है और पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष कई बार कह चुके हैं कि वह तालिबान को नहीं अपितु भारत को अपने अस्तित्व के लिए खतरा मानते हैं और कश्मीर में हाल की ङ्क्षहसा इसका प्रमाण है। 

असुरक्षित पाकिस्तान के समक्ष दोहरी दुविधा
असुरक्षित पाकिस्तान के समक्ष दोहरी दुविधा है। अपने आर्थिक संकट और आतंकवाद के कारखानों के कारण वह अंतर्राष्ट्रीय दृष्टि से हाशिए पर जा सकता है तो दूसरी ओर भारत में राजनीतिक स्थिरता है और उसकी अर्थव्यवस्था तेजी से आगे बढ़ रही है। शायद विंग कमांडर अभिनंदन को रिहा करने के पीछे अंतर्राष्ट्रीय विशेषकर अमरीका का दबाव था किंतु यदि आप यह अपेक्षा कर रहे हैं कि पाकिस्तान संबंधों में सुधार लाने का प्रयास करेगा तो यह एक भूल होगी क्योंकि पाकिस्तान का मानना है कि भारत के साथ यथास्थिति को स्वीकार करना हार के समान है और इसके कारण उसने अपनी यह वैचारिक धारणा बना ली है कि उसे भारत के साथ निरंतर युद्धरत रहना है और इसके चलते पाकिस्तानी सेना अपनी परमाणु क्षमता के बल पर लगातार सैनिक जोखिम उठा रही है और भारत को उकसा रही है।

पाकिस्तान एक ओर विफल राज्य है तो दूसरी ओर उसका प्रशासन असंतुष्ट है और वह अपनी विचारधारा तथा धर्म के प्रचार के माध्यम से अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाना चाहता है। साथ ही भारत द्वारा पाकिस्तान के साथ वार्ता प्रक्रिया निलम्बित करने से शांति स्थापना के लिए पाकिस्तान का प्रोत्साहन कम हो गया क्योंकि पाक सेना जनरलों के लिए भारत के साथ शांति प्रक्रिया शुरू करने का तात्पर्य है कि इससे पाकिस्तान में न केवल सेना का प्रयोजन समाप्त हो जाएगा अपितु पाकिस्तान देश की वैधता पर भी प्रभाव पड़ेगा। पाकिस्तान में सत्तारूढ़ त्रिमूर्ति तथा उसके जेहादी परोक्षियों के लिए कश्मीर एक आस्था का विषय है। 

पाकिस्तान के साथ शांति के लिए भारत के प्रत्येक प्रधानमंत्री ने प्रयास किया है किंतु सभी प्रयास विफल हुए हैं। इसका कारण यह नहीं है कि इन प्रधानमंत्रियों ने प्रयास नहीं किया है अपितु भारत-पाक मुद्दा बहुत जटिल है। अधिकतर भारतीय शांति के प्रति उदासीन हैं और यदि आप भारत में किसी से भी पूछें तो वह कहेगा कि पाकिस्तान के साथ शांति वांछनीय है किंतु किस कीमत पर। दुखद वास्तविकता यह है कि भारतीय और पाकिस्तानी मित्र हो सकते हैं किंतु भारत और पाकिस्तान कभी भी मित्र नहीं हो सकते। पाकिस्तान की आदत हमेशा से नकारने की रही है और वह दोहरी नीति चलता है। एक ओर वह भारत को कमजोर करने के लिए कार्रवाई करता है तो दूसरी ओर ऐसा दिखाना चाहता है कि वह शांति का पक्षधर है। 

तार हर बार पाकिस्तान से जुड़ते हैं
जब भी भारत पर हमला होता है तो हर बार हमलावर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से पाकिस्तान से जुड़े हुए होते हैं और पाकिस्तान हमेशा से कहता आया है कि ये पाकिस्तान प्रशासन से जुड़े तत्व नहीं हैं और पाकिस्तान ऐसे तत्वों और कार्यों का समर्थन नहीं करता है। हमारे पड़ोसी के समक्ष एक बड़ी समस्या है कि इसकी सेना युद्ध शुरू कर सकती है किंतु जीत नहीं सकती जैसा कि 1965, 1971 और कारगिल में देखने को मिला। इसलिए वह इस्लामिक जेहादियों को प्रश्रय देता है जो कश्मीर में आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देते हैं और भारत द्वारा प्रतिक्रिया को रोकने के लिए अपने परमाणु हथियारों की धौंस देता है और साथ ही अमरीका को मनाता है कि वह भारत पर दबाव डाले कि वह टकराव का रास्ता छोड़ दे। 

भारत द्वारा पाकिस्तान के साथ  शांति वार्ता करने से इंकार करने का निर्णय इस विश्वास पर आधारित है कि शीघ्र ही पाकिस्तान के लिए सैनिक लागत उसकी सीमा से बाहर हो जाएगी। पाकिस्तान को यह समझना होगा कि भारत का धैर्य समाप्त हो रहा है और अपनी जेहादी नीति से वह भारत के समकक्ष नहीं आ सकता है। साथ ही वह ऐसे दबाव के समक्ष भारत के टिकने और आवश्यक हुआ तो प्रतिकार करने की क्षमता को नजरअंदाज नहीं कर सकता है। मोदी ने स्पष्ट कर दिया है कि यदि पाकिस्तान ने लक्ष्मण रेखा पार की तो उसे इसका खमियाजा भुगतना पड़ेगा और यदि पाकिस्तान भारत के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध चाहता है तो उसे सीमा पर अपने दुस्साहसिक कार्यों को छोडऩा होगा और कूटनयिक दृष्टि से भारत के साथ संबंध स्थापित करने होंगे। 

विश्व ने पाक का शरारती एजैंडा समझा
पाकिस्तान में आतंकवादी शिविरों के होने से इंकार करने और उनकी जांच की पेशकश को ठुकराने से काम नहीं चलेगा क्योंकि अब सम्पूर्ण विश्व पाकिस्तान के शरारती एजैंडे को समझ गया है। समय आ गया है कि इस पर अंकुश लगाया जाए और जैश-ए-मोहम्मद को जड़ से उखाड़ा जाए। भारत दोनों देशों के बीच स्थायी शांति चाहता है किंतु वह दोनों देशों के बीच टकराव न बढऩे की गारंटी नहीं दे सकता है। जब तक पाकिस्तान में उसकी सेना की तूती बोलती रहेगी भारत के साथ शांति स्थापना नहीं हो सकती है।

मोदी जानते हैं कि आज की भू-सामरिक राजनीतिक वास्तविकता में कूटनीति को व्यावहारिकता निर्देशित करती है, इसलिए पाकिस्तान से निपटने के लिए एक व्यापक रणनीति की आवश्यकता है और खुशी की बात यह है कि नमो पाकिस्तान की उकसावे की नीति को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं कर रहे हैं।  दोनों देशों के बीच संबंधों में सुधार के लिए आवश्यक है कि पाकिस्तान आतंकवाद के बारे में भारत की चिंताओं के बारे में उसे आश्वस्त करे और पुलवामा हमलों के पीछे षड्यंत्र का खुलासा करे तथा अपनी भूमि पर आतंकवादी संगठनों को पनाह न दे और अजहर मसूद व हाफिज सईद को भारत को सौंपे, तभी संबंधों में सुधार आ सकता है।

कुल मिलाकर दोनों देशों के संबंधों में गतिरोध पैदा हो गया है। दोनों देशों के बीच गहरा अविश्वास है। पाकिस्तान को अपनी कथनी और करनी को एक समान रखना होगा। दोनों देशों के बीच संबंधों के आगे बढऩे का उपाय इस्लामाबाद द्वारा आतंकवाद के विरुद्ध ठोस कदम उठाना है। पुलवामा हमले के सरगनाओं के विरुद्ध कार्रवाई इसकी कसौटी होगी अन्यथा इमरान खान शांति का एक कृत्रिम भ्रम पैदा कर रहे हैं जिसे कोई भी स्वीकार नहीं करेगा।-पूनम आई. कौशिश 

 

India

397/4

50.0

New Zealand

327/10

48.5

India win by 70 runs

RR 7.94
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!