भारत से संबंध सुधारने के लिए पाक को ‘माहौल’ बनाना होगा

Edited By ,Updated: 01 Jun, 2019 01:10 AM

pakistan will have to create  atmosphere  to improve relations with india

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने पड़ोसी पाकिस्तान से निपटने के लिए अपनी तरह की मुखर कूटनीति विकसित कर ली है, जो देश के खिलाफ आतंकवाद के छद्म युद्ध के कारण फल-फूल रहा है। मैं प्रधानमंत्री मोदी की पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के ‘अपने लोगों...

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने पड़ोसी पाकिस्तान से निपटने के लिए अपनी तरह की मुखर कूटनीति विकसित कर ली है, जो देश के खिलाफ आतंकवाद के छद्म युद्ध के कारण फल-फूल रहा है। मैं प्रधानमंत्री मोदी की पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के ‘अपने लोगों की बेहतरी के लिए मिलकर काम करने’ के आह्वान पर रूखी प्रतिक्रिया को इस नजरिए से देखता हूं। 

मोदी ने सख्ती से कहा कि क्षेत्र में ‘शांति, प्रगति तथा समृद्धि’ को बढ़ावा देने हेतु सहयोग के लिए ‘विश्वासपूर्ण तथा ङ्क्षहसा व आतंकवाद से मुक्त माहौल पैदा करना जरूरी है।’ उनका यह रुख इस्लामाबाद के साथ वार्ता को लेकर उनके द्वारा पहले खींची गई ‘लाल रेखा’ की ही पुनरावृत्ति है जिसमें स्पष्ट संदेश दिया गया था कि ‘वार्ता तथा आतंक’ साथ-साथ नहीं चल सकते। 

लोगों का आतंकवाद विरोधी मूड
सैद्धांतिक तौर पर मैं प्रधानमंत्री मोदी से सहमत हूं, जिनकी नीति ने चुनावी रूप से उनको बहुत लाभ पहुंचाया है क्योंकि बालाकोट (पाकिस्तान) पर भारत के हवाई हमले के बाद अपने दूसरे कार्यकाल के लिए उन्होंने शानदार विजय हासिल की। यह यहां लोगों के आतंकवाद विरोधी मूड को रेखांकित करता है। 

क्या इमरान खान भारत के आतंकवाद के खिलाफ कड़े रवैये के प्रशंसक हैं? निश्चित तौर पर इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता कि इमरान खान पाकिस्तानी जनरलों के हाथों में महज एक कठपुतली हैं जिनमें वे भी शामिल हैं, जो आई.एस.आई. को नियंत्रित करते हैं और जनरल जिया-उल-हक के छद्म युद्ध के सिद्धांत का कड़ाई से अनुसरण करते हैं। अभी तक वे भारत की संवेदनशीलता तथा कड़ाई से वापसी प्रहार करने की क्षमता की सराहना करने में असफल रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने यह किया है और बाकी दुनिया को आतंकवाद की विध्वंसकारी क्षमता से वाकिफ करवाया। यह बंदूक की ताकत से कई पीढिय़ों को और लोकतांत्रिक संस्थाओं को नष्ट कर सकता है। 

हमने कश्मीर में ऐसी घटनाओं की झलक देखी है। भारतीयों, विशेषकर कश्मीर के लोगों ने इस्लाम के नाम पर बहुत कष्ट झेले हैं लेकिन इस्लाम आतंकवाद नहीं सिखाता। यह दुख की बात है कि इस्लाम के मानवतावादी विश्वास को कुछ फर्जी उलेमाओं ने अपने साम्प्रदायिक तथा राजनीतिक हितों को साधने के लिए हाईजैक कर लिया। 

लोकतांत्रिक आकांक्षाओं का दमन
इस्लामाबाद में सैन्य शासकों ने इसका सुविधाजनक इस्तेमाल लोकतांत्रिक आकांक्षाओं को दबाने तथा नागरिक स्वतंत्रताओं तथा लोगों की आजादी के लिए इच्छा की कीमत पर अपने शासन को बनाए रखने के लिए किया। मैं आतंकवाद से संबंधित इन आधारभूत मुद्दों को उठा रहा हूं ताकि जम्मू-कश्मीर तथा बाकी देश के लोग प्रधानमंत्री मोदी की इस्लामाबाद के साथ वार्ता को लेकर कड़ी नीति की अच्छी तरह से सराहना कर सकें। यद्यपि मेरा मानना है कि उनके मन में पाकिस्तान के साथ वार्ता को लेकर एक अदृश्य खुला दिमाग भी है, जब वह आश्वस्त महसूस करेंगे कि इस्लामाबाद में सत्ताधारी वर्ग में वार्ता के लिए वास्तविक इच्छा है।

प्रधानमंत्री के तौर पर जरा मोदी के पहले कार्यकाल को याद करते हैं। उन्होंने शपथ ग्रहण समारोह पर प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को आमंत्रित किया था और तत्कालीन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध बनाने के लिए कहीं आगे निकल गए थे, जो पाकिस्तानी जनरलों तथा आई.एस.आई. के हाथों में कठपुतली नहीं थे। मैं यह तथ्य निजी तौर पर जानता हूं क्योंकि वहां लोगों द्वारा उन्हें अब तक का सर्वाधिक बड़ा लोकतांत्रिक जनादेश दिए जाने के बाद मैंने प्रधानमंत्री से बात की थी। उन्होंने तब एक साक्षात्कार में भावुक होकर मुझसे कहा था कि वह ऐसी चीजें चाहते हैं जिनसे हमारी अर्थव्यवस्था तथा व्यापारिक आदान-प्रदान को सार्क ढांचे के भीतर बढ़ावा मिले। 

नवाज मुद्दों को सुलझाना चाहते थे
मुझे ऐसा लगा कि नवाज शरीफ दोनों देशों के बीच लंबित सभी मुद्दों को खुले मन से सुलझाना चाहते हैं। यह फरवरी 1997 की बात है। इसके बाद इतिहास ने अपना ही खेल खेला। कैसे जनरल परवेज मुशर्रफ ने नवाज शरीफ के खिलाफ बाजी पलट दी थी, जिन्होंने उन्हें सत्ता से बाहर कर दिया, यह एक डरावनी कहानी है। यह भी याद रखा जाना चाहिए कि प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने कुछ सक्षम जनरलों को नजरअंदाज करते हुए प्रतिष्ठित पद के लिए जनरल मुशर्रफ को चुना था। मगर जनरल मुशर्रफ ने बाद में इस्लामाबाद में नवाज शरीफ की सत्ता में सेंध लगा दी। यह पाकिस्तानी जनरलों की एक विशिष्ट खासियत है। उनमें लोकतंत्र तथा इसकी परम्पराओं के लिए कोई सम्मान नहीं है। वे बंदूक से शासन में विश्वास करते हैं और उनकी शायद ही परवाह करते हैं जो इस प्रक्रिया में यातना सहते हैं। 

यह भी कहा जा सकता है कि 2014 में मोदी ने अपने शपथ ग्रहण समारोह में सभी सार्क देशों के शासकों को आमंत्रित किया था और ऐतिहासिक घटना में सारा ध्यान पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की उपस्थिति पर था। 2019 तक भारत के दृष्टिकोण में नाटकीय बदलाव आया है। प्रधानमंत्री इमरान खान द्वारा सद्भावनापूर्ण कदम उठाए जाने के बावजूद भारत अपनी स्थिति पर अडिग है कि आतंकवाद तथा वार्ता साथ-साथ नहीं हो सकते और यह सही भी है। हालांकि पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद से निपटना एक बड़ी चुनौती बनी रहेगी और चुनौती है भारत के खिलाफ पाकिस्तानी जनरलों के आतंकवादी एजैंडे को बेअसर करना। पाकिस्तान के लिए अपनी कड़ी कूटनीति के पीछे प्रधानमंत्री मोदी की कुछ गणनाएं हैं। 

एक राष्ट्र के तौर पर भारत से तोल-मोल नहीं किया जा सकता। इसके अपने खुद के सभ्यता से संबंधित मूल्य हैं। यह विश्व में अत्यंत सहिष्णु देशों में से एक है। यहां धार्मिक स्वतंत्रता है। संविधान इसकी गारंटी देता है और न्यायपालिका व प्रबुद्ध नागरिक सभी तरह की स्वतंत्रता की रक्षा करते हैं। इस संदर्भ में किसी भी हिन्दू अतिवादी संगठन द्वारा मुस्लिम समुदाय के खिलाफ नफरतपूर्ण प्रचार शुरू करना सहन नहीं किया जाना चाहिए। कौन अधिक साम्प्रदायिक है और कौन नहीं, कौन अधिक धर्मनिरपेक्ष है और कौन कम, इन प्रश्नों के रटे-रटाए उत्तर हैं, जो सम्बोधित किए जाने वाले व्यक्ति पर निर्भर करते हैं। दुर्भाग्य से आज हम ‘एक-दूसरे को दोष देने वाला समाज’ बन गए हैं। 

आगे देखते हुए मैं ईमानदारीपूर्वक विश्वास करता हूं कि हर चीज को एक खुले मन से देखने की जरूरत है। हालांकि भविष्य का घटनाक्रम इस बात पर निर्भर करता है कि क्या पाकिस्तान का सैन्य वर्ग आतंकवाद को अपनी विदेश नीति के औजार के तौर पर त्यागने को तैयार है? हमें इंतजार करना होगा। प्रधानमंत्री मोदी पाकिस्तान को सीमापार आतंकवाद के कारणों को देखने और रोकने के लिए मजबूर करने हेतु जो भी तरीके अपनाएं, इसमें ढिलाई के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। इस्लामाबाद को अवश्य यह एहसास होना चाहिए कि जब तक यह आतंकवादी संगठनों को सहायता तथा बढ़ावा देना बंद नहीं करता, भारत के साथ इसके संबंध बेहतर नहीं हो सकते।-हरि जयसिंह
 

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