पाकिस्तानी तथा ‘अछूत पाकिस्तानी’

Edited By Pardeep,Updated: 22 Jul, 2018 03:33 AM

pakistani and  untouchable pakistani

वैसे तो हर बंदा अपने आपको तारीख से जुड़ा समझता और हमेशा तारीख का हवाला देता है, परन्तु बदकिस्मती से तारीख की एक मसतनद और गैर-पक्षपाती शक्ल कोई नहीं, हर बंदा अपने नजरिए के साथ तारीख को समझता और इसकी व्याख्या करता है। पाकिस्तान की तारीख का भी यही हाल...

वैसे तो हर बंदा अपने आपको तारीख से जुड़ा समझता और हमेशा तारीख का हवाला देता है, परन्तु बदकिस्मती से तारीख की एक मसतनद और गैर-पक्षपाती शक्ल कोई नहीं, हर बंदा अपने नजरिए के साथ तारीख को समझता और इसकी व्याख्या करता है। 

पाकिस्तान की तारीख का भी यही हाल है। कहा यह जाता है कि पाकिस्तान दो राष्ट्रों के नजरिए की बुनियाद पर बना। एक कौम ङ्क्षहदू थी और दूसरी मुसलमान। अगर 2 राष्ट्रीय नजरिया को पाकिस्तान बनने की वजह मान लिया जाए और फिर असूली तौर पर पाकिस्तान का नाम हथियार मस्तान या मुस्लिम लैंड होना चाहिए था और वहां अंग्रेज के दिए निजाम की जगह कोई गैर मुतनाजा इस्लामी निजाम होता और सब कानून शरीअती होते। 

यहां के सब बाशिंदे मुसलमान कहलाने चाहिए थे परन्तु न तो यह हथियार मस्तान या मुस्लिम लैंड बना और न ही वहां शरीअती कानून लागू हुआ और न ही यहां के रहने वाले मुस्लिम कहलाए। पाकिस्तान के बनने के साथ ही इस मुल्क के खालिक और बाबा कायदे-ए-आजम मोहम्मद अली जिन्ना ने अपनी पहली तकरीर में कह दिया था कि इस मुल्क में कोई मुसलमान, हिंदू, सिख, ईसाई, बौद्ध नहीं बल्कि सब बराबर हैं और पाकिस्तानी हैं। साथ ही उसने पाकिस्तानियों से बंगाली, सिंधी, पंजाबी, पठान, बलोची, कश्मीरी होने का हक भी छीन लिया। 

इस तरह इस मुल्क की कौम मुसलमान से पाकिस्तानी बन गई और इस पाकिस्तानी के लिए मुसलमान होना लाजिमी नहीं था बल्कि वह कुछ भी हो सकता था हिंदू, सिख, बुद्ध, पारसी, ईसाई, यहूदी, काफिर, और तो और नास्तिक भी। इस मुल्क में गैर-मुस्लिम लोगों की तादाद बढऩे पर भी कोई पाबंदी नहीं थी, वे इस मुल्क के बहुसंख्यक भी बन सकते थे। कुछ लोगों के ख्याल में पाकिस्तान के बाशिंदों को मुसलमान से पाकिस्तानी बनाने की एक तो वजह यह थी कि यहां की कुदरती कौमें जैसे बंगाली, सिंधी, पंजाबी, पठान, बलोची, कश्मीरी को खत्म कर एक अकेली कौम बनाया जाए, दूसरी वजह इस्लाम के 73 फिरके थे यानी यहां 73 किस्म का इस्लाम था, इन में से कौन सही और कौन गलत था, जो यहां लागू किया जाता। 

कायदे-ए-आजम खुद शिया था अगर वह यहां शरीयत कानून लागू करता तो बाकी 72 फिरकों ने इसके खिलाफ बगावत कर देनी थी, अगर वहां गैर-शिया शरीयत लागू होती तो लोगों ने स्वीकार नहीं करना था बल्कि कायदे-ए-आजम भी खुद शिया होने की वजह से गैर-शिया शरीयत को मान कर खुुद अपने मजहब में से बाहर निकाला जाता। सब कौमें, मजहब, फिरके खत्म कर एक नई कौम पाकिस्तानी बन गई, पर एक मसला खड़ा हो गया। बंगाली जो इस मुल्क के बहुसंख्यक थे उन्होंने अपने बंगाली होने से दस्तबरदार होने से इंकार कर दिया। 

अगर लोकतांत्रिक असूलों पर चला जाता तो फिर पाकिस्तान की कौम का नाम पाकिस्तानी नहीं बल्कि बंगाली होता क्योंकि इस कौम की यहां बहुसंख्या थी। इस तरह अगर पाकिस्तानी कौम खत्म होती तो फिर पाकिस्तान का नाम कैसे पाकिस्तान रखा जा सकता था। इसका नाम भी बंगाल करना पड़ता। इस मसले में से बाहर निकलने के लिए बंगाली को और बंगाली बनने का हक दे दिया गया परन्तु पश्चिमी पाकिस्तानियों और पाकिस्तानियत का शिकंजा कस दिया गया। यह सिर्फ और सिर्फ पाकिस्तानी थे पंजाबी, सिंधी, पंजाबी, पठान, बलोची, कश्मीरी नहीं थे। वक्त के बदलने के साथ पश्चिमी पाकिस्तान में भी देशभक्तों ने अकीली पाकिस्तानी कौम के खिलाफ बगावत कर दी और सिंधी, पख्तून, बलोच, कश्मीरी बन गए। 

अब पीछे यह पाकिस्तानी कौम सिकुड़ कर पंजाब तक महदूद रह गई है। बाकी सूबों के लोग अपनी राष्ट्रीय पहचान सिंधी, पखतून, बलोच, कश्मीरी के तौर पर करते हैं। इस बची-खुची पाकिस्तानी कौम में से आगे से दो शाखाएं बनीं, पंजाबी पाकिस्तानी शाखा और पाकिस्तान से बाहर रहते पाकिस्तानी। इन बाहर रहते पाकिस्तानियों में सिंधी, पठान, बलोची, कश्मीरी चाहे सौ बार बोलें कि वे पाकिस्तानी नहीं बल्कि सिंधी, पठान, बलोची, कश्मीरी हैं परन्तु कोई नहीं मानता क्योंकि अगर पाकिस्तान से बाहर रहते पाकिस्तानियों में बहुसंख्या पंजाबियों की है, जो खुद को पंजाबी नहीं बल्कि पाकिस्तानी कहते हैं। इस तरह ये सिंधी, पठान, बलोची, कश्मीरी भी पाकिस्तानी बना दिए गए हैं। पाकिस्तान में रहते पाकिस्तानियोंं और बाहर रहते पाकिस्तानियों में एक वाजेह फर्क अछूत और गैर अछूत का है। पाकिस्तान में रहता पाकिस्तानी ‘ब्राह्मण’ और बाहर रहता पाकिस्तानी अछूत है। 

एक जमाने में बाहर रहता पाकिस्तानी हीरो और आइडियल होता था, लोग उसको विलायतिया कहते थे जब वह पाकिस्तान आता था तो लोग उसको देखने जाते थे। आज यह हीरो अछूत बन गया है। यह गैर-मुल्क में स्थानीय लोगों की नसल परस्ती का शिकार होता है। धेला-धेला कमाने के लिए गुलामों की तरह जी भर कर झगड़ा करता है। अपनी मिट्टी से जुदाई काटता है। पाकिस्तान में कागजों में इसको कभी पाकिस्तानी बनाया जाता है और कभी नहीं, इसका गैर-मुल्क में कयाम इसको आईनी तौर पर भी अछूत या दूसरे दर्जों का पाकिस्तानी बना देता है और इसको वे सभी हकूक नहीं देता जो पाकिस्तान में रहते पाकिस्तानी को हासिल हैं। इन हकूक में इस अछूत पाकिस्तानी की जान-माल की सुरक्षा की जमानत भी शामिल है। 

जाहिरा तौर पर गैर मुल्की पाकिस्तानियों की जान-माल की सुरक्षा के लिए कानून भी हैं और एक मंत्रालय भी मौजूद है परन्तु वास्तव में सब कुछ इसके उलट है। न इसका कोई नुमाइंदा, न कोई नेता। पाकिस्तान में कब्जा माफिया का सबसे बड़ा निशाना यही अछूत पाकिस्तानी हैं। जब इसकी जायदाद पर कब्जा हो जाता है और यह बेबस होता है, कानून की मदद लगभग नामुमकिन होती है। अगर यह पुलिस के पास जाता या अदालतों का दरवाजा खटखटाता है तो यह एक जाल में फंस जाता है। हर तरफ कानूनी अदारे मुंह फाड़ कर बैठे होते हैं, इस बेचारे का रिश्वत दे-दे कर धुआं निकल जाता है। 

अदालतों में इसकी फरियाद सुनने के लिए दीवानी या सिविल कानून लागू होता है जिसके द्वारा अमली तौर पर इसको तारीखें भुगतने के लिए कम से कम 5 से लेकर 50 साल का अर्सा चाहिए। ऐसे में यह कब्जों का शिकार बेचारे गैर मुल्क में अपना घर-बार, नौकरी, कारोबार और बीवी-बच्चे छोड़ कर पाकिस्तान कई साल फंसे बैठे होते हैं। मेरे एक दोस्त की लाहौर में जायदाद पर कब्जा हो गया। वह कब्जा छुड़वाने के लिए वापस गया। कानून की मदद मांगी और हर जगह ‘दो दो’ की पुकार, अगर न दो तो कोई बात ही नहीं सुनता। 

वह पूरा साल वहां बैठा रहा, स्वीडन में इसकी नौकरी गई, इससे अलग उसको लाखों रुपए का और नुक्सान हुआ, मजबूर होकर उसने कानूनी सहायता के हथियार फैंक दिए और रिश्वत देने का सहारा लिया। यह 50 लाख रुपए रिश्वत की भेंट चढ़ा कर अपनी जायदाद वापस ले सका। यह कोई अकेला पाकिस्तानी नहीं था बल्कि लगभग हर अछूत पाकिस्तानी इसका शिकार हुआ है। इसके इलावा इसके पास कोई राजनीतिक हक नहीं है। न यह कोई इलैक्शन लड़ सकता है और न ही संसद का मैंबर हो सकता है। पाकिस्तान के अन्य महकमों में भी इसकी कोई नुमाइंदगी नहीं। 

यूरोप तथा अन्य तहजीब याफ्ता मुल्कों के विदेशों में रहते शहरी को मुल्क में रहते शहरी के बराबर समझा जाता है और इनके हकूक की जमानत इनके आइन और कानूनी और अमली तौर पर देते हैं परन्तु पाकिस्तान में इन बाहर रहते पाकिस्तानियों को शिकार, आसामी और शहरी हकूक से महरूम समझा जाता है। इस अछूत पाकिस्तानी की दाद-फरियाद सुनने के लिए पाकिस्तान की अदलिया, इंतजामिया, मीडिया, धार्मिक अदारे बल्कि एन.जी.ओ. भी बहरे हो चुके हैं। इन अछूत पाकिस्तानियों में लगभग 90 फीसदी संख्या पंजाबियों की है। इस पाकिस्तानी बारे यह भी कहा जाता है कि यह करोड़ों पाकिस्तानियों का पालनहार है। कहते हैं, ‘‘आज जिस घर का कोई सदस्य बाहर गया हुआ है उस घर में ही रोटी पकती है।’’ अब आप बताओ कि यह पाकिस्तानी अछूत नहीं तो और क्या है। इस अछूत का कौन वाली वारिस।-सय्यद आसिफ शाहकार

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