Edited By Pardeep,Updated: 26 Jul, 2018 03:57 AM
सभी नजरें अब पाकिस्तान पर हैं जहां बुधवार को नैशनल असैम्बली तथा प्रांतीय विधानसभाओं के लिए चुनाव हुए और देर सायं मतों की गणना भी शुरू हो गई। जब तक यह समाचार पत्र आपके हाथों में पहुंचेगा, तब तक मुख्य रुझान स्पष्ट हो चुके होंगे तथा दोपहर तक अंतिम...
सभी नजरें अब पाकिस्तान पर हैं जहां बुधवार को नैशनल असैम्बली तथा प्रांतीय विधानसभाओं के लिए चुनाव हुए और देर सायं मतों की गणना भी शुरू हो गई।जब तक यह समाचार पत्र आपके हाथों में पहुंचेगा, तब तक मुख्य रुझान स्पष्ट हो चुके होंगे तथा दोपहर तक अंतिम परिणामों का पता चल जाएगा।
भारत बड़ी उत्सुकता से चुनावों तथा चुनाव परिणामों पर नजर रख रहा है क्योंकि अगले कुछ वर्षों तक इसे नई सरकार के साथ निपटना पड़ेगा। हालांकि यह सर्वविदित है कि पाकिस्तान में जो कोई भी सरकार सत्ता में आती है देश के मामलों में सेना की ही चलती है। यद्यपि यह देखना रुचिकर होगा कि सरकार किस हद तक सेना अधिष्ठान के आगे झुकेगी।
चुनावों में मुख्य राजनीतिक दल हैं नवाज शरीफ के नेतृत्व वाली पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पी.एम.एल.-एन.), क्रिकेटर से राजनीतिज्ञ बने इमरान खान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पी.टी.आई.) तथा बिलावल भुट्टो जरदारी के नेतृत्व वाली पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पी.पी.पी.)। चिंताजनक बात यह है कि प्रतिबंधित आतंकवादी संगठनों के बड़ी संख्या में उम्मीदवार भी चुनाव मैदान में हैं। ऐसे उम्मीदवारों को चुनाव लडऩे की इजाजत देकर पाकिस्तानी सत्ता अधिष्ठान ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह आतंकवाद को नुकेल डालने की बजाय उसे प्रोत्साहित कर रहा है। एक अप्रत्यक्ष तरीके से मुम्बई आतंकी हमले का मास्टरमाइंड हाफिज सईद भी मैदान में है, जिसका बेटा तथा दामाद अल्लाह-ओ-अकबर तहरीक (ए.ए.टी.) के परचम तले चुनाव लड़ रहे हैं। सईद ने नैशनल असैम्बली तथा प्रांतीय विधानसभाओं के लिए 265 उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारे हैं।
1947 में अपने गठन के बाद से ऐसा केवल दूसरी बार हो रहा है कि पाकिस्तान सत्ता के असैन्य स्थानांतरण को देखेगा। यह 30 से अधिक वर्षों तक सैन्य शासन के अंतर्गत रहा है और इसका कोई भी प्रधानमंत्री 5 वर्षों का कार्यकाल पूरा करने में सफल नहीं हुआ। मजे की बात यह है कि चुनाव की ओर बढऩे के दौरान भारत प्रचार के केन्द्र में नहीं था जैसा कि अतीत में होता रहा है। चुनाव मैदान में उतरे तीनों प्रमुख दलों ने भारत के साथ वार्ता की बात कही और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव के अनुसार कश्मीर मुद्दे के समाधान की मांग को दोहराया।
इस बार चुनाव प्रचार अधिकतर सत्ता से बेदखल किए गए प्रधानमंत्री नवाज शरीफ पर केन्द्रित रहा। जिस तरह से उन्हें कमजोर आधार पर शरियत कानून के अंतर्गत सत्ता से बेदखल किया गया और उसके बाद भ्रष्टाचार के साबित न हो सके आरोपों पर दोषी घोषित किया गया, चुनावों में एक गर्म मुद्दा बना रहा। चुनावों से पहले अपनी बेटी मरियम, जिन्हें भी सजा सुनाई गई, के साथ वापस लौटने पर उनकी गिरफ्तारी नवाज शरीफ को आकर्षण के केन्द्र में ले आई। यह कारक पंजाब प्रांत में और भी अधिक महत्वपूर्ण था जो पाकिस्तान की राजनीति में एक प्रभुत्वशाली भूमिका निभाता है। 272 सीटों में से पंजाब की 141 हैं तथा शरीफ भाइयों की प्रांत पर काफी पकड़ है। गिरफ्तारी के लिए नवाज शरीफ की अपनी बेटी के साथ नाटकीय वापसी ने अवश्य उनके लिए समर्थन को बढ़ाया होगा। मीडिया ने भी उनके मार्मिक चित्र को प्रमुखता दी, जिसमें वह इंगलैंड छोडऩे से पहले अपनी बीमार पत्नी को अलविदा कह रहे थे।
यदि नवाज शरीफ, जिन्होंने अपने देश लौटने का हिसाब-किताब लगाकर जोखिम उठाया, को पंजाब में शानदार समर्थन मिलता है तो उनकी पार्टी को पी.पी.पी. तथा अन्य समान विचारधारा वाली पार्टियों की सहायता की जरूरत नहीं होगी। दूसरी ओर यदि पी.एम.एल.-एन. अच्छी कारगुजारी नहीं दिखाती तो वह सरकार बनाने के लिए पी.पी.पी. तथा आजाद उम्मीदवारों की मदद ले सकती है। इनमें से कोई भी विकल्प इमरान खान की पी.टी.आई. के सत्ता में आने के मुकाबले तुलनात्मक रूप से भारत के लिए अच्छा होगा। यह सर्वविदित है कि सेना चुनावों में इमरान खान तथा उनकी पार्टी का समर्थन कर रही है। इसने अपनी सारी ताकत इमरान खान के पक्ष में लगा दी है, कुछ इसलिए कि इमरान ने भारत के खिलाफ कड़ा रवैया अपनाया तथा कुछ इस कारण कि सेना अधिष्ठान नवाज शरीफ तथा पी.पी.पी. के बिलावल भुट्टो को पसंद नहीं करता।
इमरान खान का भी पंजाब में समर्थन आधार है तथा देश के अन्य भागों में भी प्रभाव है। यदि सेना के बेहतरीन प्रयासों के बावजूद उनकी पार्टी को बहुमत नहीं मिलता तो वह हाफिज सईद समॢथत ए.ए.टी. जैसी पाॢटयों के चुनाव लड़ रहे आतंकवादियों पर निर्भर करेंगे। यह मिश्रण जानलेवा हो सकता है क्योंकि यह सेना के इशारे पर नाचने वाला होगा और भारत के लिए एक बड़ा खतरा साबित हो सकता है। हालांकि पाकिस्तान में कोई भी सरकार सेना के समर्थन के बिना अस्तित्व में नहीं रह सकती, नवाज शरीफ की पार्टी इसे नियंत्रित करने में बेहतर स्थिति में होगी जबकि इमरान खान सम्भवत: दबाव सहने में सक्षम नहीं होंगे।-विपिन पब्बी