पठानकोट में आतंकी हमला: डोभाल रोजमर्रा की ‘खुफिया गतिविधियों’ में दिलचस्पी देना बंद करें

Edited By ,Updated: 07 Jan, 2016 12:18 AM

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की स्थिति वर्तमान परिस्थितियों में सांप के मुंह में छछूंदर वाली बनी हुई है।

(अजय शुक्ला): प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की स्थिति वर्तमान परिस्थितियों में सांप के मुंह में छछूंदर वाली बनी हुई है। हाल ही में उनकी दिलेरी भरी पहल ने भारत-पाक के बीच शांति वार्ता प्रक्रिया को मुर्दाघर से निकाल कर गहन चिकित्सा इकाई (आई.सी.यू.) में पहुंचाया था। अगली प्रगति इस बात पर निर्भर करती है कि भारत-पाक सीमा पर कहां तक शांति बनी रहती है और पाकिस्तान की जमीन से होने वाले आतंकी हमलों में किस हद तक कमी आती है। 

लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एन.एस.ए.) अजीत डोभाल के अकुशल प्रबंधन ने एक ऐसी आतंकी कार्रवाई को भारी विफलता में बदल कर रख दिया है जिससे कि गुप्तचर एजैंसियों की छोटी सी जवाबी कार्रवाई द्वारा बाखूबी  निपटा जा सकता था। शांति वार्ता जारी रखने के लिए भारत को ‘खेल बिगाडऩे वाले’ आतंकियों को सफलता का श्रेय  किसी भी कीमत पर थाली में परोस कर देने से बचना होगा। अपने हित में भारत को ऐसे हमलों को कारगर ढंग से नाकाम करना होगा। 
 
भगवान का लाख शुक्र है कि पठानकोट एयरबेस में घुसकर हमारे 7 सुरक्षा कर्मियों को शहीद करने और 20 से अधिक लोगों को घायल करने वाले जेहादी आतंकी अपना मुख्य लक्ष्य हासिल करने में विफल रहे। उनका मुख्य लक्ष्य निश्चय ही यह था कि मध्य जनवरी में भारत-पाक के विदेश सचिवों के बीच होने वाली तैयारी मीटिंग से पहले ही शांति वार्ता को पटरी से उतार दिया जाए। वार्ता प्रक्रिया यदि अभी भी पटरी से उतरी नहीं है तो इसका कारण यह है कि दोनों पक्षों ने असाधारण संयम दिखाया है। 
मोदी ने इस घटना का दोष मानवता के दुश्मनों को दिया है जिन्हें भारत की तरक्की फूटी आंख नहीं सुहाती। पाकिस्तान के विदेश विभाग ने आतंकी हमले की निंदा करते हुए क्षेत्र में पांव पसार रहे आतंकवाद से निपटने में भारत के साथ सांझेदारी की इच्छा व्यक्त की है। 
 
यदि आतंकवादी उस स्थान पर पहुंच जाते जहां जवानों के परिवार रहते हैं या फिर वे हवाई अड्डे के टैक्नीकल क्षेत्र में प्रवेश करते और कुछ लड़ाकू विमानों को बारूद से उड़ाने में सफल हो जाते तो भारत के धैर्य को अग्निपरीक्षा में से गुजरना पड़ता। हमारी खुशकिस्मती है कि गुप्तचर एजैंसियों को शुक्रवार ही इस साजिश की चेतावनी मिल गई थी क्योंकि आतंकियों द्वारा बेवकूफी भरे ढंग से पाकिस्तान में बैठे अपने आकाओं को जो फोन किए गए थे उन्हें खुफिया एजैंसियों ने टैप कर लिया था। 
 
यह जानकारी सीधे एन.एस.ए. को पहुंचा दी गई जिसने आतंकियों के संभावित लक्ष्यों पर फटाफट सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद कर दी। आतंकियों के लक्ष्यों में पठानकोट एयरबेस पहले नंबर पर था। इसकी सुरक्षा के लिए जरूरी संसाधन आसपास फैली पठानकोट छावनी में से ही उपलब्ध थे। यह देश की सबसे बड़ी छावनी है जहां 2 इन्फैंट्री डिवीजन और 2 बख्तरबंद ब्रिगेड यानी कि 50 हजार से अधिक सैनिक मौजूद हैं।
 
लेकिन इन सब संसाधनों की उपलब्धता के बावजूद शुक्रवार एन.एस.ए. ने जब सेना प्रमुख से मुलाकात की तो उनसे केवल 2 सैन्य टुकडिय़ों यानी कि लगभग 50 सैनिकों की मांग की। वास्तव में डोभाल को लग रहा था कि यह कार्रवाई बहुत आसानी से हो जाएगी। उन्हें लेशमात्र भी अंदाजा नहीं था कि आतंकियों का एक अन्य समूह भी हो सकता है। यही कारण है कि डोभाल ने अपना तुरूप का इक्का फैंका और राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (एन.एस.जी.) के 150-160 जवानों को तत्काल दिल्ली से पठानकोट भिजवाया। इस तरह सेना को इस कार्रवाई में से किनारे कर दिया।
 
सशस्त्र आतंकियों के आसपास होने की जानकारी के बावजूद एन.एस.ए. ने पठानकोट  एयरबेस को डिफैंस सिक्योरिटी कोर (डी.एस.सी.) के जवानों के अलावा एयरफोर्स गरुड़ कमांडोज और एन.एस.जी. के हाथों में छोड़ दिया। डी.एस.सी. में सेवानिवृत्त सैनिक होते हैं जिनके लिए पूरी तैयारी से हमला  कर रहे आतंकियों का मुकाबला करना शायद मुश्किल होता है। एन.एस.जी. सबसे पहले कार्रवाई नहीं करता और न ही इसे विशालकाय हवाई ठिकानों की रक्षा के लिए जरूरी प्रशिक्षण दिया गया होता है। इसका उद्देश्य है लक्ष्य पर बिल्कुल केंद्रित कार्रवाई को अंजाम देना, उदाहरण के तौर पर बंधकों को छुड़ाना या किसी घर में घुसे आतंकवादियों का सफाया करना इत्यादि। गरुड़ कमांडोज के बारे में तो अब तक वायु सेना यह नहीं बता पाई कि इनका उद्देश्य क्या है? 
 
सेना को जम्मू-कश्मीर के विशाल जंगलों में छुपे हुए आतंकियों का सफाया करने का अभ्यास है लेकिन उसे कार्रवाई में उचित भूमिका सौंपी ही नहीं गई। जब हालात बेकाबू होने लगे तो सेना से अधिक जवान बुलाए गए। आखिर में  6 टुकडिय़ों के रूप में 150 जवान तैनात किए गए लेकिन आप्रेशन की कमान फिर भी सेना को नहीं सौंपी गई। 
 
पठानकोट में शहीद होने वालों में सेना का कोई भी जवान नहीं है। सबसे अधिक नुक्सान डी.एस.सी. के जवानों का हुआ है। एन.एस.जी. का जो नुक्सान हुआ है वह कदापि नहीं होना चाहिए था। इसका एक अधिकारी तो आतंकी के शरीर से बंधे हुए बम का शिकार हो गया। सेना ऐसे हथकंडों से भली-भांति परिचित है और जम्मू-कश्मीर में आतंकियों की लाशों से वह बहुत सावधानी से निपटती है।
 
गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने शनिवार शाम 6.50 बजे ट्वीट किया: ‘‘देश को अपने सुरक्षा बलों पर गर्व है जो हमेशा तैयार-बर-तैयार रहते हैं। मैं पठानकोट आप्रेशन के लिए सुरक्षा बलों को प्रणाम करता हूं।’’ रक्षा मंत्री मनोहर पार्रिकर भी ट्वीट करने से नहीं चूके। रात 10.05 बजे प्रधानमंत्री ने भी ट्वीट किया: ‘‘आज पठानकोट में हमारे सुरक्षाबलों ने एक बार फिर अपने शौर्य का प्रदर्शन किया। मैं उनके बलिदान को प्रणाम करता हूं।’’
 
रविवार को पठानकोट में जब आतंकियों ने दोबारा गोलीबारी शुरू कर दी तब इन दावों की हवा निकल गई। फिर गृह सचिव राजीव महषि सामने आए और बिना साजो-सामान व प्रशिक्षण  के जवानों को कार्रवाई में झोंकने की पुलिसिया शैली का अनुसरण करते हुए कहने लगे: ‘‘पठानकोट के आतंकी हमले में किसी प्रकार की सुरक्षा कोताही नहीं हुई लेकिन जब हथियारों का प्रयोग होता है तो कुछ सुरक्षा जवान निश्चय ही घायल होते हैं।’’
 
दोनों देशों के विश्लेषकों का कहना था कि वार्ता प्रक्रिया को बाधित करने के लिए हमले हो सकते हैं। इससे पता चलता है कि आतंकी हमलों की स्थिति में भारत द्वारा वार्ता रद्द करने की घोषणा आतंकियों का हौसला और भी बुलंद करती है। आखिरकार दोनों देशों के रिश्तों में सुधार से सबसे अधिक नुक्सान आतंकियों को ही होना होता है। 
 
भारत को दो-टूक शब्दों में यह बात हर हालत में कहनी चाहिए कि आतंकी जब भी हमला करेंगे उसका वाजिब जवाब अवश्य दिया जाएगा लेकिन दोनों देशों के बीच बातचीत जारी रहेगी। फिलहाल आतंकियों के विरुद्ध भारत की सैन्य प्रतिक्रिया ऐसी नहीं होती जिससे उनके मन में कोई डर बैठ सके। 
 
यदि डोभाल अपने बोस को सचमुच में कोई ठोस विकल्प उपलब्ध करवाने की इच्छा रखते हैं तो उन्हें रोजमर्रा की खुफिया गतिविधियों में दिलचस्पी लेनी बंद करनी होगी और इसकी बजाय प्रहारक विकल्पों का ऐसा तालमेल विकसित करना होगा जो वार्ता प्रक्रिया को बाधित करने वालों को मुंहतोड़ जवाब दे सके।                            
 
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