‘प्लास्टिक प्रदूषण और स्वच्छता अभियान’, आखिर गलती कहां हो रही है

Edited By ,Updated: 05 Oct, 2019 01:38 AM

plastic pollution and sanitation campaign where is the mistake

जैसा कि कहावत है, कुछ चीजें ऐसी होती हैं जो न तो निगलते बनती हैं और न ही उगलते, ऐसा ही इन दिनों काफी जोर पकड़ रहे प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने के बारे में हो रही बयानबाजी के बारे में कहा जा सकता है। वास्तविकता यह है कि अभी तक तय नहीं हो सका है कि...

जैसा कि कहावत है, कुछ चीजें ऐसी होती हैं जो न तो निगलते बनती हैं और न ही उगलते, ऐसा ही इन दिनों काफी जोर पकड़ रहे प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने के बारे में हो रही बयानबाजी के बारे में कहा जा सकता है। वास्तविकता यह है कि अभी तक तय नहीं हो सका है कि प्लास्टिक, जो  एक प्रकार से जादुई पदार्थ है, के इस्तेमाल से क्या बचा जा सकता है? आज की परिस्थितियों में तो असंभव है क्योंकि यह जिंदगी में इस तरह घुल-मिल गया है कि इस पर प्रतिबंध लग जाने की बात से ही घबराहट होती है। 

ऐसा नहीं है कि केवल हम ही प्लास्टिक से होने वाले प्रदूषण से निजात पाने की अटकलें लगा रहे हैं, दुनिया के बड़े-बड़े देशों से लेकर छोटे से छोटे देश में यह चर्चा का विषय है और सभी इसके इस्तेमाल से होने वाले स्वास्थ्य पर खतरों और पर्यावरण के नुक्सान से बचने की तरकीबें सोच रहे हैं। क्या इसका अर्थ यह नहीं हुआ कि प्लास्टिक हमारी जीवनशैली, हमारे रहन-सहन से लेकर खान-पान तक से जुड़ गया है और कुछ ऐसा हो गया है कि इसके बिना ठीक उसी तरह नहीं रहा जा सकता, जिस प्रकार हवा-पानी के बिना नहीं रहा जा सकता। 

प्लास्टिक का इस्तेमाल कहां नहीं होता, बोतल, ढक्कन, थैली, नली, पैकेट, पाऊच, पैकेजिंग, कप-प्लेट, अनेक तरह के पर्दे, शीट यानी कि अगर इन सबको मिलाकर देखा जाए तो हर चीज के साथ प्लास्टिक की जुगलबंदी है। अगर जितना भी प्लास्टिक है, एक साथ इस्तेमाल करें तो पूरी दुनिया को सात बार इससे लपेटा जा सकता है। 

प्लास्टिक से दोस्ती 
जब प्लास्टिक की यह महिमा है तो इस पर प्रतिबंध लगाने की बात सोचना भी बेमानी और हानिकारक है। इसके स्थान पर जरूरत इस बात की है कि प्लास्टिक से दोस्ती करने और इसके गलत इस्तेमाल अर्थात इसे जलाने, नदी-नालों और समुद्र में फैंकने से बचने के उपाय किए जाएं तो यह न हमारे जीवन और न ही पर्यावरण के लिए खतरनाक होगा। जिन देशों ने भी प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने के लिए कानून बनाए, उनमें से अधिकतर के पास इस बारे में कोई आंकड़ा नहीं है कि कानून का नतीजा क्या निकला। मतलब यह कि वाहवाही के लिए कानून तो बना दिया लेकिन उस पर अमल इसलिए नहीं कराया जा सका क्योंकि प्लास्टिक इस्तेमाल करने से बचना नामुमकिन है। 

हमारे देश में भी ऐसी ही गलती करने की घोषणा तो हो चुकी थी और स्वच्छता आंदोलन की तरह प्लास्टिक मुक्ति आंदोलन की शुरूआत होने वाली थी लेकिन अब इसे 3 साल यानी 2022 तक के लिए टाल दिया गया है। बेहतर यह होता कि 3 साल का कोई ऐसा कार्यक्रम लागू करने की योजना जनता के सामने रखी जाती जिससे लोग प्लास्टिक से दोस्ती करने यानी उसके लाभदायक और रोजगार देने वाले पक्ष को अपनाते और इस तरह उसके दुष्परिणामों के प्रति जागरूक होते तथा आवश्यक सावधानी बरतते। 

भारत सरकार के परिवहन मंत्री ने सड़क बनाने के लिए प्लास्टिक के इस्तेमाल को प्राथमिकता देते हुए इसके उपयोगी होने की गारंटी दे दी है। इसके विपरीत उपभोक्ता मंत्री इस पर रोक लगाने की वकालत कर रहे हैं। हमारे वैज्ञानिक प्लास्टिक प्रदूषण से बचने की टैक्नॉलोजी विकसित कर चुके हैं। हमारे ही देश में ऐसे अनेक उदाहरण हैं जिनमें प्लास्टिक और दूसरे कचरे के पहाडऩुमा ढेर को सुंदर बगीचे में परिवर्तित कर दिया गया है। 

ऐसी टैक्नॉलोजी है जो प्लास्टिक से होने वाले प्रदूषण से हमारी रक्षा कर सकती है। आज विज्ञान निरंतर रोजगार के नए-नए साधन उपलब्ध करा रहा है। जरूरत केवल इतना भर जागरूक होने की है कि प्लास्टिक का इस्तेमाल करने के बाद वह हमारे जल स्रोतों तक न पहुंचने पाए, चाहे वे नदियां हों या विशाल समुद्र। प्लास्टिक उद्योग अपने आप में बहुत उपयोगी और बड़ी तादाद में रोजगार पैदा कर सकने की विशेषता लिए हुए है। अक्सर आॢथक संकट से जूझ रही नगरपालिकाओं, नगर निगमों और दूसरी प्रशासनिक इकाइयों के लिए इस्तेमाल किए हुए प्लास्टिक से उद्योग लगाने पर काफी कमाई हो सकती है। 

यह सच है कि प्लास्टिक को गलने के लिए सैंकड़ों साल चाहिएं तो फिर हम उसे इतने समय तक बेकार पड़ा रहने देने की बजाय उपयोग में क्यों न लाएं, बस यही समझ का फेर है। प्लास्टिक के गुण जैसे कि वह सस्ता, टिकाऊ, कम वजन और हल्का होता है, उन्हें अपनाएं और प्लास्टिक को नेस्तनाबूद करने की बात न करें तो यह देश की अर्थव्यवस्था के लिए भी लाभकारी होगा और व्यक्तिगत समृद्धि का भी रास्ता बनेगा। प्लास्टिक उद्योग विदेशी मुद्रा कमाने का भी बेहतरीन जरिया है। जो देश प्लास्टिक कचरे के निपटान की समस्या से परेशान हैं, हम उनके साथ व्यापार कर सकते हैं और अपने लिए आमदनी का साधन तैयार कर सकते हैं। जो लोग यह समझते हैं कि प्लास्टिक से बनी चीजों का इस्तेमाल रोकने के लिए दूसरी सामग्रियों से उन्हें बनाया जाए तो यह कतई फायदे का सौदा नहीं है और केवल धन व ऊर्जा की बर्बादी है। हां, शौक के तौर पर इन्हें बनाएं तो कोई बुराई नहीं लेकिन यदि प्लास्टिक से बनी चीजों के विकल्प के रूप में इसे देखेंगे तो निराशा ही हाथ लगेगी। 

योजनाओं की असफलता 
असल में हमारे देश में ज्यादातर योजनाओं को लोक लुभावन होने के आधार पर बनाया और लागू किया जाता है। मिसाल के तौर पर स्वच्छ शौचालय बनाने की स्कीम बहुत उपयोगी होने के बावजूद जिन क्षेत्रों के लिए बेहद जरूरी थी, वहां पूरी तरह सफल नहीं हो पाई है। हम कितना भी ढोल पीट लें लेकिन हकीकत यह है कि घर में शौचालय होने के बावजूद ग्रामीण अभी भी खुले में शौच करने जाते हैं। 

ऐसा नहीं है कि वे अपने शौक के कारण ऐसा करते हैं, बल्कि इसलिए करते हैं क्योंकि घर में जो शौचालय बना है उसका इस्तेमाल करने के लिए कई बाल्टी पानी चाहिए जबकि उनके पास दिन भर की जरूरत के ही सिर्फ एक-दो बाल्टी पानी ही उपलब्ध है और उसे भी लाने के लिए घंटों बर्बाद करने पड़ते हैं। इसी के साथ गंदगी के निपटान के लिए जो डिस्पोजल प्लांट लगने चाहिए थे, तो वे न होने से गांव वाले क्यों अपने इलाके को बदबू से भरा बनाएंगे। गंदगी से खाद बनती है लेकिन उसे बनने में 4-5 साल लगते हैं तो क्यों कोई दो गड्ढों वाला शौचालय बनाएगा? 

स्वच्छ शौचालय योजना केवल उन्हीं क्षेत्रों में कामयाब हुई है जहां पानी और डिस्पोजल प्लांट की सुविधा है। इन इलाकों में किसान को ऑर्गैनिक खाद भी मिल रही है और गंदगी से छुटकारा भी तो फिर किसान घर के शौचालय से बनने वाली खाद का इंतजार क्यों करेगा? आंकड़ों के आधार पर देश को खुले में शौच से मुक्त किए जाने की घोषणा तो की जा सकती है लेकिन व्यावहारिक दृष्टि से देखा जाए तो यह सही नहीं है। यही हाल 3 साल बाद देश को प्लास्टिक मुक्त करने की घोषणा का होगा, सरकार की चाल देखते हुए इसमें कोई संदेह नहीं है।-पूरन चंद सरीन
 

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