एक बड़ी चुनौती बन चुका है प्लास्टिक प्रदूषण

Edited By Punjab Kesari,Updated: 09 Jun, 2018 04:29 AM

plastic pollution has become a big challenge

प्रकृति ने मानव को जल, जंगल, जमीन, आकाश और अग्नि का उपहार दिया था ताकि वह सुख-शांति से दुनिया में रहे लेकिन मनुष्य ने इनके साथ छेड़छाड़ कर कुदरत के नियमों के विपरीत आचरण कर इनका लाभ उठाने के बाद जब दोहन शुरू कर दिया तो प्राकृतिक प्रकोप का सामना करना...

प्रकृति ने मानव को जल, जंगल, जमीन, आकाश और अग्नि का उपहार दिया था ताकि वह सुख-शांति से दुनिया में रहे लेकिन मनुष्य ने इनके साथ छेड़छाड़ कर कुदरत के नियमों के विपरीत आचरण कर इनका लाभ उठाने के बाद जब दोहन शुरू कर दिया तो प्राकृतिक प्रकोप का सामना करना ही था। यही प्रदूषण है जिसका सामना आज पूरा विश्व कर रहा है। जब हालात काबू से बाहर होने लगे और मनुष्य को अपनी गलती का एहसास होने लगा तो उसे यह चिंता हुई कि यदि इसी रफ्तार से प्रदूषण बढ़ता रहा तो मानव जाति के विनाश के लिए यह खतरे की घंटी है। 

पर्यावरण दिवस मनाने का उद्देश्य : 44 वर्ष पहले 5 जून 1974 को अपनी गलतियों को सुधारने के लिए हमने विश्व पर्यावरण दिवस मनाना शुरू किया और प्रदूषण से मुक्ति पाने के उपायों पर अमल करने का संकल्प किया जाने लगा। असल में यह मानव स्वभाव है कि मनुष्य अपने पैरों पर स्वयं कुल्हाड़ी मारने का आदी हो जाता है और अपने लिए जीवनदायिनी वस्तुओं को नष्ट करने का सिलसिला अपनाए रहता है। जंगलों की अंधाधुंध कटाई और जल संसाधनों को अपनी स्वार्थपूर्ति के लिए जहरीला तक बनाने से हम नहीं चूकते हैं। 

कुदरत का नियम है कि उससे जो हमने लिया वह उसे लौटाना भी पड़ता है। उदाहरण के लिए हमने अपनी जरूरत के  लिए वनों को काटा तो हमें पौधारोपण भी करना चाहिए ताकि वन्य प्रदेश बना रहे। हम पौधारोपण समारोह करते हैं और प्रचार पाने के बाद भूल जाते हैं कि पेड़-पौधों को लगाने के बाद उनकी देखभाल करनी आवश्यक होती है अन्यथा कुछ ही दिनों में वे सूख जाते हैं। यही सिलसिला प्रतिवर्ष दोहराया जाता है। देशभर में पर्यावरण दिवस पर लाखों की तादाद में पौधारोपण होता है जिससे देश में भरपूर हरियाली होनी चाहिए लेकिन हकीकत यह है कि बंजर जमीन और मरुस्थल प्रदेश का विस्तार हो रहा है और सूखाग्रस्त इलाकों का विस्तार दिन दूनी रात चौगुनी गति से हो रहा है। नतीजे के तौर पर किसान वर्षा के अभाव में अपनी फसलों को चौपट होते देखता रहता है। 

यही हाल हमारे जल संसाधनों का है। नदियों का प्रदूषण कम होने का नाम नहीं ले रहा। तालाब अपना नामो-निशान खो रहे हैं और पीने का पानी हमें जल की निर्मल धारा के रूप में नहीं, बोतलों में मिल रहा है। ये बोतलें प्लास्टिक से बनती हैं और यही प्लास्टिक आज हमारे सामने चुनौती बनकर खड़ा है, इससे होने वाले प्रदूषण से मुक्ति पाने की समस्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। 

पर्यावरण दिवस पर संकल्प: इस वर्ष पर्यावरण दिवस पर यही संकल्प लिया गया है कि निकट भविष्य में इसे नेस्तोनाबूद कर दिया जाएगा और हम इससे होने वाले प्रदूषण से मुक्त हो जाएंगे। प्रश्न उठता है कि क्या यह सम्भव है और क्या यह संकल्प भी उसी तरह धरा का धरा रह जाएगा जैसा कि पर्यावरण को हानि पहुंचाने वाले अन्य तत्वों को समाप्त करने के प्रयासों का होता रहा है। 

प्लास्टिक का उपयोग: आज प्लास्टिक का उपयोग लगभग हरेक क्षेत्र में किसी न किसी रूप में हो रहा है जो हमारे जीवन की ऐसी हकीकत बन चुका है कि हम कितनी भी कोशिश कर लें, इसका इस्तेमाल बंद नहीं कर सकते। जब ऐसा है तो इस तरह की कार्यप्रणाली क्यों न अपनाई जाए जिससे सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे। प्लास्टिक कचरे का इस्तेमाल सड़क निर्माण के लिए सस्ता और मजबूती देने वाला हो सकता है। इसके लिए किए गए प्रयोग न केवल सफल हुए हैं बल्कि उनसे धन और श्रम की भी बचत हुई है। 

पैकेजिंग उद्योग में प्लास्टिक कचरे का इस्तेमाल सफलतापूर्वक किया जा रहा है। इलैक्ट्रॉनिक उद्योग से निकलने वाला प्लास्टिक कचरा उसी से जुड़े लघु उद्योगों में इस्तेमाल किया जा रहा है। यह कहना तो दूर, सोचना भी मूर्खता होगी कि हम प्लास्टिक के बिना सुखी जीवन जीने की कल्पना भी कर सकते हैं। प्लास्टिक कोई समस्या नहीं है बल्कि समस्या यह है कि प्लास्टिक के साथ हम क्या करते हैं और उससे बनाई जाने वाली वस्तुओं को इस्तेमाल करने के बाद जो कचरा निकलता है उसका क्या करते हैं? 

क्या है उपाय: प्लास्टिक से उत्पन्न कचरे को नष्ट होने में 500 से हजार साल तक लगते हैं। इसका मतलब यह हुआ कि प्लास्टिक और उसका कचरा हमारे साथ पीढ़ी दर पीढ़ी रहना ही है। जब ऐसा है तो हम उसे समाप्त करने के उपाय सोचने में अपनी ऊर्जा और सीमित संसाधनों को खर्च करने के बजाय किसी दूसरे रूप में इस्तेमाल करने की टैक्नोलॉजी का विकास करने की दिशा में काम करें तो यह देश की आर्थिक प्रगति का आधार बन सकता है तथा रोजगार के क्षेत्र में भी उपयोगी होगा। हमें पर्यावरण संरक्षण की दिशा में तेजी से काम करना होगा तभी बिगड़ते पर्यावरण के असंतुलन को संतुलित कर पाएंगे। यदि हम इस्तेमाल किए हुए प्लास्टिक उत्पादों को पुन: उपयोग में लाएं तो ये शायद कहीं न कहीं प्लास्टिक का उत्पादन नियंत्रित होना आरम्भ हो जाए। हमारा पर्यावरण हमारे रवैये और अपेक्षाओं का आईना होता है जिसकी देखभाल करना हमारे लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है, यही पर्यावरण दिवस मनाने का उद्देश्य होना चाहिए।-पूरन चंद सरीन

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