हिमाचल प्रदेश में गर्माया राजनीतिक माहौल

Edited By Pardeep,Updated: 10 Aug, 2018 04:10 AM

political ambition in himachal pradesh

हिमाचल प्रदेश में इन दिनों राजनीतिक माहौल उफान पर है। दोनों ही राष्ट्रीय दलों ने अपने-अपने संगठनों में 2019 के आने वाले लोकसभा के चुनावों के दृष्टिगत जोरदार तैयारियां शुरू कर दी हैं। विधानसभा में 7 माह पूर्व गठित सरकार का अभी लम्बा कार्यकाल बाकी है...

हिमाचल प्रदेश में इन दिनों राजनीतिक माहौल उफान पर है। दोनों ही राष्ट्रीय दलों ने अपने-अपने संगठनों में 2019 के आने वाले लोकसभा के चुनावों के दृष्टिगत जोरदार तैयारियां शुरू कर दी हैं। विधानसभा में 7 माह पूर्व गठित सरकार का अभी लम्बा कार्यकाल बाकी है और भाजपा के पास प्रचंड बहुमत है। कांग्रेस 68 सदस्यों वाली विधानसभा में मात्र 21 के आंकड़े तक सिकुड़ गई है। लोकसभा की प्रदेश में केवल 4 सीटें हैं, जो सारी वर्तमान में भाजपा के पास हैं। सारे देश की तर्ज पर इस प्रदेश में भी कांग्रेस भाजपा से 2019 में लोकसभा की सीटें हथियाने की फिराक में है। 

राज्य में भाजपा और कांग्रेस को छोड़ कोई तीसरा दल ऐसा नहीं है जिसे कांग्रेस अपने साथ मिलाकर चुनाव लड़ सके। इस संभावित समर में तैयारियों की दृष्टि में अब तक के संगठनात्मक तथा चुनावी अभियान में भाजपा कांग्रेस से बहुत आगे है। जब से प्रदेश में जयराम सरकार सत्ता में आई है, सरकार और संगठन आराम से नहीं बैठे हैं। पार्टी ने लोकसभा चुनाव हेतु बूथ स्तर और हर विधानसभा एवं लोकसभा संसदीय क्षेत्र में अपनी चुनावी रणनीति बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। हाल ही में प्रदेश प्रभारी मंगल पांडे के प्रवास के बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह इसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए लोकसभा चुनाव की रणनीति बनाने आ रहे हैं।

सरकार, पार्टी और फ्रंटल संगठनों की सुलझी हुई चुनावी मुहिम के साथ-साथ आर.एस.एस. की समूची ताकत भी भाजपा के पक्ष में वातावरण निर्माण में जुटी दिखती है। इधर कांग्रेस संगठन में परस्पर मतभेद, खेमेबाजी और बड़ी उच्च स्तरीय खींचतान थम नहीं रही है। पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह खुलेआम अपने ही पार्टी के संगठन पर हर रोज ताबड़तोड़ प्रहार कर रहे हैं। इधर राष्ट्रीय स्तर पर भी पार्टी की स्थिति अभी डावांडोल है। अब जबकि लोकसभा चुनाव बहुत दूर नहीं हैं, कांग्रेस उच्चकमान भले ही राज्य में बंटे खेमों को एक मंच पर लाकर स्थिति संभालने का प्रयास करे पर संगठन में शायद किसी तरह का बदलाव न होने के संकेत हैं। 

इधर पार्टी को चारों लोकसभा सीटों पर सत्ताधारी भाजपा के प्रत्याशियों को टक्कर दे पाने वाले दमदार प्रत्याशियों की तलाश और सहमति बनाने की भी चुनौती होगी। उच्चकमान द्वारा नामित प्रदेश प्रभारी रजनी पाटिल के अब तक प्रदेश में हुए प्रवास और प्रयास कोई प्रभावी बदलाव नहीं ला सके हैं। अब शीघ्र वह पुन: राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी व उच्चकमान से प्राप्त दिशा-निर्देशों के साथ प्रदेश में आने वाली हैं। इधर इसी महीने 23 से 31 अगस्त को प्रदेश विधानसभा का मॉनसून सत्र बुलाया गया है। जयराम ठाकुर सरकार का विधानसभा का सामना करने का यह तीसरा अवसर होगा। यह सत्र काफी हंगामापूर्ण होने की संभावना है।

विपक्ष संख्याबल की दृष्टि से बहुत कमजोर अवश्य लगता है लेकिन कांग्रेस विधायक दल के तेजतर्रार नेता पूर्व काबीना मंत्री मुकेश अग्रिहोत्री की टीम में तमाम लोग विधानसभा में सरकार पक्ष को घेरने तथा उनके लिए शिरोवेदना वाले कई मुद्दे उठाने की रणनीति बनाने वाले हैं। विधानसभा में सत्ता पक्ष भी विपक्ष के प्रहार तथा उठाए मुद्दों पर विपक्ष की ही भाषा में प्रत्युत्तर देने की मुकम्मल तैयारी में है। अपने संख्याबल के साथ सतापक्ष को अपने तमाम संशोधनों तथा पिछले 7 माह में सरकार की कारगुजारी और आने वाले समय में केन्द्र तथा राज्य सरकार की नीतियों, योजनाओं तथा कार्यक्रमों को धरातल पर सरंजाम देने की विधानसभा से स्वीकृति प्राप्त करने में कोई दिक्कत नहीं होगी। 

बहरहाल विधानसभा के मॉनसून सत्र में विपक्ष द्वारा सत्ताधारी दल के जिन मुद्दोंं को उठाकर घेरने की कोशिश की सम्भावना है, उनमें भाजपा की केन्द्र तथा राज्य में बेरोजगार युवाओं को रोजगार दे पाने में विफलता, कानून व्यवस्था की चरमराई व्यवस्था तथा जयराम ठाकुर सरकार की अफसरशाही पर ढीली पकड़, पिछले 7 महीनों में शासनतंत्र के हर स्तर पर स्थानांतरणों का सिलसिला न थमना, प्रदेश में नशीले पदार्थों खास कर चिट्टे का अनियंत्रित प्रचलन, अवैध खनन का धंधा जस का तस और महिला सुरक्षा व यौन शोषण जैसे मामलों, वन काटुओं के मामलों का यथावत चलना, प्रदेश में भारी बरसात और बदहाल हुई सड़कों, किसानों-बागवानों को हुए नुक्सान की भरपाई, केन्द्र सरकार से तथा साथ लगते राज्यों से प्रदेश के हक हासिल कर पाने में जयराम ठाकुर सरकार की विफलता, प्रदेश में कनैक्टिविटी में सुधार, नए आयाम जुटा पाने और पर्यटन, उद्योग तथा ऊर्जा के क्षेत्र में भी गिरावट जैसे अनेकों मुद्दे उठाए जा सकते हैं। इस सारे परिप्रेक्ष्य में प्रदेश में बड़ी राजनीतिक गहमागहमी स्वाभाविक है।-कंवर हरि सिंह

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