राजनीतिक दलों को कोविड-19 को लेकर राजनीति करने का कोई फायदा नहीं

Edited By ,Updated: 13 Apr, 2021 04:06 AM

political parties have no use in doing politics on covid 19

पिछले कुछ दिनों से वैक्सीन की डिलीवरी पर चर्चा हो रही है जबकि कोरोना की खतरनाक दूसरी लहर का खतरा देश पर मंडरा रहा है। भाजपा शासित प्रदेशों तथा विपक्ष द्वारा शासित अन्य राज्यों में वैक्सीन की ज्यादा खुराकों को लेकर लड़ाई चल...

पिछले कुछ दिनों से वैक्सीन की डिलीवरी पर चर्चा हो रही है जबकि कोरोना की खतरनाक दूसरी लहर का खतरा देश पर मंडरा रहा है। भाजपा शासित प्रदेशों तथा विपक्ष द्वारा शासित अन्य राज्यों में वैक्सीन की ज्यादा खुराकों को लेकर लड़ाई चल रही है। 

गैर-भाजपा शासित प्रदेश केंद्र सरकार पर सौतेला व्यवहार करने का आरोप लगा रहे हैं। जनवरी 2020 में जब कोविड ने देश पर हमला किया था तब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राज्यों के मुख्यमंत्रियों और यहां तक कि देशवासियों को इस स्थिति से निपटने के बारे में बताया था। उन्होंने मुख्यमंत्रियों के साथ कई बैठकें कीं और उन्हें मदद का यकीन दिलाया व उनका मार्गदर्शन किया। उन्होंने भी मिलकर काम किया। 

महामारी ने राष्ट्रीय कमजोरियों, स्वास्थ्य देखभाल की बिगड़ती स्थिति, अस्पतालों तथा सहूलियतों की कमी, अपर्याप्त सामाजिक संरक्षण, स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए और अधिक फंडों की जरूरत इत्यादि पर ध्यान केन्द्रित करवाया। मोदी तथा मुख्यमंत्री दोनों को एक-दूसरे की जरूरत थी और उन्होंने चिकित्सीय आपातकाल से निपटने के लिए एक-दूसरे को परामर्श दिया। 

केंद्र तथा राज्य दोनों ही मतदाता और उनकी स्थिति को देख रहे थे। इसीलिए यह उनमें से प्रत्येक के लिए एक व्यक्तिगत दौड़ बन गया। हालांकि क्या सरकार  पिछले वर्ष लॉकडाऊन से सही तरीके से नहीं निपटी? यह सवाल चर्चा का विषय बना। आज भी लॉकडाऊन अपने आप में राजनीतिक मुद्दे में नहीं बदला है। यहां तक कि विपक्षी पार्टियां भी मोदी सरकार की आलोचना करने के लिए एक पंक्ति से आगे नहीं बढ़ पाईं। अब एक वर्ष के बाद महामारी की दूसरी लहर चल रही है। इस पर राजनीति ने कब्जा कर लिया है। 

नतीजतन इसने संघवाद को कुछ तनाव में ला दिया है। जब चीजें गलत हो जाती हैं तब यह राजनीति होती है जो सामने आती है। अब देश में वैक्सीन की कमी चल रही है और प्रशासनिक आंकड़े गड़बड़ा गए हैं। महामारी की दूसरी लहर ने करीब 7 राज्यों को प्रभावित किया है और कई अन्य राज्य इसकी चपेट में हैं। यदि कुछ गलत हो गया तो केंद्र राज्यों पर आरोप लगाएगा और राज्य केंद्र पर आरोप लगाएंगे कि उन्हें वैक्सीन की पर्याप्त खुराकें उपलब्ध नहीं करवाई गईं। 

जनता से भी शुरूआती प्रक्रिया जो देखने को मिल रही है वह ‘वेट एंड वॉच’ (इंतजार करो और देखो) की है। मगर अब वैक्सीन के लिए कोलाहल मच गया है। भाजपा ने मोदी को महामारी से निपटने के लिए उदारकत्र्ता के रूप में दर्शाया है। लेकिन अब विपक्षी मुख्यमंत्री दावा कर रहे हैं कि उनसे सौतेले बेटों जैसा व्यवहार हो रहा है। विपक्षी दलों ने महसूस किया है कि कोविड एक लम्बे समय से ‘समय का खेल’ बन चुका है। और वे इसी कारण बैठ कर राजनीति नहीं कर सकते। 

उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने घोषणा की थी कि वह भाजपा की वैक्सीन नहीं लेंगे। वहीं अन्यों ने इसकी प्रभावकारिता पर सवाल उठाया। वैक्सीन की उपलब्धता चुनावी राज्यों में एक वायदा बन कर रह गई। अब सरकारों और विपक्षी दलों विशेषकर कांग्रेस के लिए एक बार फिर से विचार करने का समय है। कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों को संबोधित करने के दौरान हाल ही में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने उनसे कहा कि कोविड वैक्सीन की प्राथमिकता को बढ़ावा दें। 

इसके अलावा उन्होंने मोदी सरकार पर वैक्सीन की कमी के परिणामस्वरूप टीके के निर्यात की अनुमति देकर महामारी की स्थिति का दुरुपयोग करने का आरोप भी लगाया। सोनिया ने मोदी सरकार पर महामारी स्थिति के कुप्रबंधन को लेकर उन पर निशाना साधते हुए कहा कि वैक्सीन के निर्यात से देश में इसकी किल्लत हो गई है। उन्होंने आगे कहा कि, ‘‘देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी होने के नाते यह हमारी जिम्मेदारी है कि ऐसे मुद्दों को उठाया जाए और सरकार चालें चलने की बजाय लोगों के हितों के लिए कार्रवाई करे।’’ 

संक्रमण की वर्तमान लहर देश के स्वास्थ्य ढांचे और इसके सुधारों को लेकर परीक्षण करेगी। महाराष्ट्र कोविड-19 मामलों की दोनों लहरों के दौरान सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है। 8 अप्रैल 2021 तक स्टॉक में 24 मिलियन खुराकें थीं और अन्य 19 मिलियन पाइपलाइन में थीं। केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा उपलब्ध करवाए गए आंकड़ों के अनुसार कुछ 3-3.5 मिलियन खुराकें रोजाना आधार पर रखी गई हैं। महामारी की दूसरी लहर उस समय आई जब लोगों ने पहली लहर से सफलतापूर्वक निपटने का जश्र मनाना शुरू कर दिया था। यह अवधि 4 राज्यों तथा एक केंद्र शासित प्रदेश के विधानसभा चुनावों से जुड़ी हुई थी। इसके अलावा कुंभ जैसे बड़े उत्सव के साथ भी यह जुड़ी हुई थी। 

7 मार्च 2021 को स्वास्थ्य मंत्री हर्षवद्र्धन ने यहां तक घोषणा कर दी कि हम कोविड-19 महामारी का अंतिम खेल खेल रहे हैं। हालांकि यह सवाल उठाने का समय नहीं है कि क्यों और कैसे महामारी से निपटा जा रहा है? वास्तविक सवाल यह है कि केंद्र तथा राज्य सरकारों ने महामारी के दौरान क्या किया और दूसरी लहर से निपटने के लिए वे क्या कुछ कर सकती हैं? 

विपक्ष को एक संस्थागत प्रहरी के रूप में अपनी भूमिका निभानी चाहिए और सरकार को दोष देने की बजाय विश्वसनीय नीतिगत विकल्प विकसित करने चाहिएं। मोदी सरकार को चाहिए कि वह पारदर्शी होकर वैक्सीन वितरित करे और विपक्षी मुख्यमंत्रियों की चिंताओं को दूर करे। सभी विपक्षी पार्टियों को यह महसूस कर लेना चाहिए कि यह एक अभूतपूर्व संकट है, राजनीति खेलने का कोई फायदा नहीं।-कल्याणी शंकर
  

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