ननकाना साहिब तक के नगर कीर्तन पर राजनीतिक छाया

Edited By ,Updated: 11 Jul, 2019 03:47 AM

political shadow on the town kirtan till nankana sab

शिरोमणि अकाली दल दिल्ली (सरना) की ओर से गुरु नानक देव जी के 550 साला प्रकाश पर्व के प्रति समॢपत आयोजित किए जा रहे नगर कीर्तन की सफलता और असफलता को लेकर शुरू हुई चर्चा में जहां एक ओर शिरोमणि अकाली दल दिल्ली के समर्थक इस नगर कीर्तन के सफल होने के...

शिरोमणि अकाली दल दिल्ली (सरना) की ओर से गुरु नानक देव जी के 550 साला प्रकाश पर्व के प्रति समर्पित आयोजित किए जा रहे नगर कीर्तन की सफलता और असफलता को लेकर शुरू हुई चर्चा में जहां एक ओर शिरोमणि अकाली दल दिल्ली के समर्थक इस नगर कीर्तन के सफल होने के प्रति पूरी तरह से आश्वस्त दिखाई दे रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ उसके विरोधी कैम्प की ओर से उसकी सफलता पर कई तरह के प्रश्न चिन्ह लगाए जा रहे हैं।

इसका कारण वे यह मानते हैं कि पिछली बार 2005 में जब सरना बंधुओं की ओर से दिल्ली से ननकाना साहिब तक नगर कीर्तन का आयोजन किया गया था तो उस समय वे दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी की सेवा-संभाल की जिम्मेदारी निभा रहे थे, जिस कारण नगर कीर्तन की सफलता के लिए उन्हें गुरुद्वारा कमेटी के सभी साधन उपलब्ध थे। आज स्थिति बिल्कुल बदली हुई है। 

दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी की सत्ता पर उनके विरोधी, उस शिरोमणि अकाली दल (बादल) का कब्जा है जिसने पिछली बार हुए नगर कीर्तन का बायकाट करने की आम लोगों से अपील न केवल स्वयं ही की थी अपितु अपनी सत्तासीन शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी से उसका बायकाट भी करवाया था तथा उसकी ओर से भी नगर कीर्तन का बायकाट किए जाने की अपील संगतों के नाम जारी करवाई थी। ऐसी स्थिति के चलते इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि उसके मुखियों की ओर से नगर कीर्तन की सफलता के रास्ते में आने-बहाने रुकावटें खड़ी करने की कोशिशें की जाती रहेंगी। 

दूसरी ओर सरना बंधुओं के समर्थकों का दावा है कि जिस समय सरना बंधुओं द्वारा इस नगर कीर्तन के आयोजन की घोषणा की गई थी, उस समय वे गुरुद्वारा कमेटी की सत्ता से बाहर थे और सारी स्थिति से वे परिचित भी थे। इसके साथ ही उनका कहना है कि धार्मिक कार्यों की सफलता-असफलता केवल जत्थेबंदियों अथवा संस्थाओं के सहयोग या विरोध पर ही निर्भर नहीं करती अपितु आम लोगों के प्यार, श्रद्धा और समर्थन पर भी निर्भर होती है। 

उनका कहना है कि पिछली बार अकाली दल (बादल) द्वारा आम सिखों को नगर कीर्तन का बायकाट किए जाने की अपील करने के बावजूद, संगतों ने जिस उत्साह और श्रद्धा से नगर कीर्तन का स्वागत किया, वह अद्वितीय था। इस प्रकार संगतों ने साबित कर दिया था कि उनकी धार्मिक भावनाओं पर राजनीति हावी नहीं हो सकती। अब भी उन्हें विश्वास है कि दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी के विरोध के बावजूद संगतों की ओर से पहले से भी अधिक उत्साह और श्रद्धा के साथ नगर कीर्तन का स्वागत किया जाएगा। संभवत: इसी विश्वास के चलते सरना बंधु सहयोग के लिए दिल्ली, हरियाणा और पंजाब की सिख संस्थाओं और राज्य सरकारों, संतों आदि के साथ सीधा संपर्क साध रहे हैं। 

गंदी राजनीति 
इसी बीच दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी के अध्यक्ष मनजिंद्र सिंह सिरसा की ओर से दिल्ली की सिंह सभाओं के नाम जारी एक पत्र सामने आया है, जिसमें उन्होंने दावा किया है कि दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी की ओर से गुरु नानक देव जी के 550 साला प्रकाश पर्व के प्रति समर्पित नगर कीर्तन 29 अक्तूबर से 4 नवम्बर तक दिल्ली से चल ननकाना साहिब पहुंच रहा है। अभी इस बात की चर्चा शुरू भी नहीं हुई कि सोशल मीडिया पर स. सिरसा का वायरल हुआ एक नया बयान सामने आ गया, जिसमें उन्होंने दिल्ली कमेटी की ओर से 29 के स्थान पर 28 अक्तूबर को नगर कीर्तन किए जाने की जानकारी दी हुई थी। इसके साथ ही यह भी पता चला है कि दिल्ली कमेटी की ओर से ननकाना साहिब के लिए नगर कीर्तन आयोजित किए जाने की स्वीकृति लेने हेतु जो चिट्ठी पाकिस्तान उच्चायुक्त को दी गई है, उसमें नगर कीर्तन के लिए किसी तिथि का जिक्र नहीं किया गया। ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक ही है कि आखिर सच क्या है? 

जैसे कि ऊपर जिक्र किया गया है कि शिरोमणि अकाली दल दिल्ली की ओर से 28 अक्तूबर को दिल्ली से ननकाना साहिब तक के लिए नगर कीर्तन का आयोजन किया जा रहा है, ऐसी स्थिति में उस नगर कीर्तन की सफलता में योगदान करने के स्थान पर दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी की ओर से ही दिल्ली से ननकाना साहिब तक नगर कीर्तन का आयोजन किए जाने की घोषणा हैरानी पैदा करने के साथ ही यह सवाल भी उठाती है कि क्या दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी के मुखी राजनीतिक विरोध की भावना से, शिरोमणि अकाली दल दिल्ली की ओर से निकाले जा रहे नगर कीर्तन की संभावित सफलता से परेशान हैं, जिसके चलते उन्होंने उसके रास्ते में रुकावटें खड़ी कर, समूचे रूप में सिखों की स्थिति को हास्यास्पद बनाने का बीड़ा उठा लिया है? 

यदि ऐसा है तो कुछ भी करने से पहले उन्हें समझ लेना होगा कि नगर कीर्तन के आयोजन का मुद्दा सिखों एवं अन्य गुरु नानक  नाम लेवाओं की धार्मिक भावनाओं के साथ जुड़ा हुआ है, इस पर गंदी राजनीति किया जाना बहुत महंगा पड़ सकता है। इस संबंध में जब अकाली दल (बादल) के ही एक मुखी से बात हुई तो उसने दबी जुबान में कहा-लगता है कि अब अकाली दल (बादल) को दुश्मनों की कोई जरूरत नहीं रह गई। उसकी जड़ों में तेल देने की जिम्मेदारी उसके अपनों ने ही संभाल ली है। 

एक नेक सलाह 
सिख चिंतक अनुराग सिंह ने शिरोमणि गुरुद्वारा कमेटी और दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी के मुखियों को सलाह दी है कि उनकी ओर से गुरु नानक देव जी के 550 साला प्रकाश दिवस के प्रति समर्पित जो कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं उन्हें ऐतिहासिकता प्रदान करने के लिए उन्हें चाहिए कि वे एक नगर कीर्तन दिल्ली से हरिद्वार गुरुद्वारा ज्ञान गोदड़ी के लिए और दूसरा दिल्ली से सिक्किम के गुरुद्वारा डांगमार और गुरु नानक लामा चुंगबांग के लिए आयोजित करें। उनका कहना है कि इन स्थानों को गुरु नानक देव की चरण रज प्राप्त है। उनके अनुसार इन स्थानों तक नगर कीर्तनों का आयोजन किए जाने से आम सिखों के साथ गैर सिखों को भी इन स्थानों से संबंधित ऐतिहासिकता की जानकारी प्राप्त हो सकेगी। 

...और अंत में 
सत्ता में आने पर मनुष्य की दशा क्या होती है, एक सिख इतिहासकार ने इस सवाल का जवाब देते हुए कहा कि जब कोई व्यक्ति समाज में विशेष स्थान या पद प्राप्त कर जाता है और उसके चलते वह विशेष अधिकारों और सुख-सुविधाओं का आनंद उठाने लगता है तो उसके अंदर से धीरे-धीरे कौमी भाईचारे की भावना दम तोडऩे लगती है। सत्ता की लालसा ने सिखों को कहां पहुंचा दिया? इस संबंध में उनका कहना है कि ‘खालसे के अंदर की आपसी प्यार और सहयोग करने की भावना कमजोर पड़ गई और इसकी जगह आपसी विरोधों, शंकाओं और जलन ने ले ली। खालसे की सगंठित भावना निज-वाद और अहं (अहंकार) ने निगल ली।’ संभवत: यही कारण है कि बीते लम्बे समय से सिख जगत में यह बात तीव्रता से महसूस की जा रही है कि यदि सिख धर्म के स्वतंत्र अस्तित्व और सिखों की अलग पहचान को बचाए रखना है तो धर्म और राजनीति को एक-दूसरे से जुदा करना ही होगा।-न काहू से दोस्ती न काहू से बैर जसवंत सिंह ‘अजीत’

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