ब्रिटेन में छिड़ी राजनीतिक जंग : थैरेसा गंभीर संकट में

Edited By Pardeep,Updated: 17 Nov, 2018 04:17 AM

political war broke out in britain thaisa in critical crisis

ब्रिटेन में इस वक्त घमासान की राजनीतिक जंग छिड़ी हुई है। यूरोपियन यूनियन के मुद्दे को लेकर सत्ताधारी टोरी पार्टी खूब गुत्थम-गुत्था है। पौने 2 साल होने को हैं जब इस देश ने एक रैफरैंडम द्वारा बहुत ही थोड़े से वोटों के अंतर से यूरोपियन यूनियन (ई.यू.)...

ब्रिटेन में इस वक्त घमासान की राजनीतिक जंग छिड़ी हुई है। यूरोपियन यूनियन के मुद्दे को लेकर सत्ताधारी टोरी पार्टी खूब गुत्थम-गुत्था है। पौने 2 साल होने को हैं जब इस देश ने एक रैफरैंडम द्वारा बहुत ही थोड़े से वोटों के अंतर से यूरोपियन यूनियन (ई.यू.) को छोडऩे का फैसला किया था लेकिन इस फैसले को क्रियान्वित कैसे और किन शर्तों पर किया जाए, इस पर किसी पक्ष में कोई सहमति नहीं हो पा रही- न स्वयं ब्रिटेन के राजनीतिक दलों की आपस में और न ही ब्रिटिश सरकार और यूरोपियन यूनियन के बीच। 

आने वाले अगले कुछ घंटों के अन्दर कोई जोरदार राजनीतिक धमाका होने की आशंका है। अनिश्चितता की स्थिति है। हर पल-हर घड़ी हालात तेजी से बदल रहे हैं। अगले क्षण क्या हो जाना है, दावे से कोई कुछ नहीं कह सकता। प्रधानमंत्री को उनके पद से हटाने के लिए लंगर-लंगोट कसे जा रहे हैं। उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश करने की तैयारियां हो रही हैं। एक के बाद एक मंत्री त्यागपत्र दे रहे हैं। अब तक 13 मंत्री इस्तीफा दे चुके हैं। बाकी तैयार बैठे हैं। 

यूरोपियन यूनियन को छोडऩे की तारीख 29 मार्च, 2019 ज्यों-ज्यों नजदीक आ रही है यह सोच कर व्याकुलता बढ़ती जा रही है कि सम्बन्ध विच्छेद के बाद देश को न जाने किन परिस्थितियों से गुजरना पड़ेगा। उन असंभावित हालातों से निपटने के लिए, आने वाली अकाल्पनिक मुश्किलों का सामना करने के लिए, ब्रिटेन और यूरोप के सम्बन्ध सुगम बनाए रखने के लिए, जितने भी सुझाव और प्रस्ताव अभी तक ब्रिटिश सरकार ने रखे हैं वे या तो ई.यू. नेताओं ने स्वीकार नहीं किए या देश के राजनीतिक दलों, विशेषकर टोरी पार्टी ने ही उन्हें ठुकरा दिया है। 

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जब रैफरैंडम हुआ था तो किसी ने यह गुमान भी नहीं किया था कि फैसला यदि ई.यू. छोडऩे के पक्ष में हुआ तो उससे क्या पेचीदगियां पैदा हो सकती हैं और उन पेचीदगियों को सुलझाने के लिए पहले ही से क्या उपाय कर लिए जाने चाहिएं। इस दिशा में पहले से पर्याप्त व्यवस्था न करने से ब्रिटेन जिस स्थिति में फंस गया है उससे निकलने का उसे कोई रास्ता नहीं सूझ रहा। गुत्थी एक नहीं, अनेक हैं। 

यूरोप और ब्रिटेन का सम्बन्ध केवल राजनीतिक नहीं, जीवन के हर क्षेत्र में उन दोनों का आपस का नाता इतना गहरा है कि उसे अलग करने की जो भी कोशिश की जा रही है उससे समस्या का कोई हल निकलने की बजाय पीड़ा बढ़ती ही जा रही है ‘‘दर्द बढ़ता गया ज्यों-ज्यों दवा की।’’ यूरोपियन यूनियन के साथ ब्रिटेन के भविष्य के सम्बन्ध क्या और कैसे होने चाहिएं, इस विषय पर देश बंटा हुआ है। घर के अन्दर सहमति हो नहीं पा रही। ब्रिटेन के प्रति यूरोपियन देशों का रवैया सख्त है। किसी कार्यकुशल संधि को सिरे चढ़ाने के थैरेसा मे के भरसक प्रयत्न अभी तक सफल नहीं हो पाए, कितने ही फार्मूले पेश किए गए लेकिन कोई भी स्वीकार नहीं हो पाया- न ई.यू. द्वारा और न ही थैरेसा मे की अपनी ही पार्टी द्वारा। 

नैया किनारे लगने की उम्मीद
आखिर मंझधार में फंसी नैया को किनारा मिलने की एक उम्मीद इस बुधवार पैदा हुई थी जब थैरेसा मे द्वारा तैयार किया गया ताजा फार्मूला उनके मंत्रिमंडल ने और काफी हद तक यूरोपियन यूनियन ने स्वीकार कर लिया कि भविष्य में ब्रिटेन और ई.यू. के संबंधों का आधार क्या होगा। मंत्रिमंडल द्वारा यह स्वीकृति एक बड़ी सफलता थी जो थैरेसा मे को मिली। इससे एक बड़ी अड़चन दूर हो गई, ऐसी आशा पैदा हुई। अब अगली अड़चन थी इस नई संधि के लिए संसद की मंजूरी हासिल करना। 

लेकिन यह उम्मीद सिरे चढऩे से पहले ही टोरी पार्टी के अन्दर जबरदस्त तूफान खड़ा हो गया। नई संधि के विरोध में 4 घंटे के अन्दर 7 मंत्री इस्तीफा दे गए। 6 पहले थेरेसा मे को टा-टा कह कर मंत्री पद छोड़ चुके थे। संकट गहरा है। त्यागपत्र देने वाले एक वरिष्ठ मंत्री ने थेरेसा मे के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया है। टोरी पार्टी इस वक्त पूरे उबाल पर है। खूब गर्मागर्मी है।  लेबर और लिबरल डैमोक्रेटिक पार्टियां नई संधि के पक्ष में नहीं। जनता में व्याकुलता है। ई.यू. को छोडऩे का फैसला किन भी हालात में हुआ हो लेकिन देश इस समय जिस समस्या में उलझा हुआ है उसका हल क्या निकलेगा, इस बारे में अभी निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता। इस फैसले को बदलने के पक्ष में आवाज जोर पकड़ रही है। 

यूरोपियन यूनियन में रहें या नहीं, जनता का ताजा मत लेने के लिए रैफरैंडम दोबारा करवाया जाए, इसके लिए वातावरण में तेजी से तबदीली आ रही है। प्रभावशाली क्षेत्र दोबारा रैफरैंडम की मांग का समर्थन कर रहे हैं। कुछ दिन पूर्व 8,00,000 से अधिक लोगों ने लन्दन में भारी प्रदर्शन करके दोबारा रैफरैंडम की मांग की, परंतु प्रधानमंत्री थैरेसा मे दोबारा रैफरैंडम के प्रस्ताव को स्वीकार करने को अभी तक तैयार नहीं। यद्यपि जब पहला रैफरैंडम हुआ था वह इस बात के हक में नहीं थीं कि ब्रिटेन ई.यू. को छोड़े। उनका यह मत है कि छोडऩे का फैसला चूंकि जनता ने किया है इसलिए उसे सिरे चढ़ाना प्रधानमंत्री के तौर पर मेरा कत्र्तव्य है। जो संधि मैंने अब तैयार की है वह सारे देश के हित में है। थैरेसा मे को इस समय गहरे संकट का सामना है लेकिन उन्होंने घोषणा की है कि नई संधि को सभी पक्षों से स्वीकार करवाने की जो चुनौती है उसका मुकाबला करूंगी, त्यागपत्र नहीं दूंगी और यह बाजी जीत कर दिखाऊंगी।-कृष्ण भाटिया

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