वोटों की चाह में लोगों को ‘उकसाते’ हैं राजनेता

Edited By ,Updated: 07 Mar, 2020 03:52 AM

politicians  incite  people in want of votes

मैं इस आलेख की शुरूआत यह कहकर करना चाहती हूं कि मैं इस देश की नागरिक होने के नाते गर्व महसूस करती हूं और मैं यह कहना चाहती हूं कि ‘मेरा भारत महान है।’ विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की राजधानी दिल्ली में मैंने हिंसा को अपनी आंखों से देखा और मुझे यह...

मैं इस आलेख की शुरूआत यह कहकर करना चाहती हूं कि मैं इस देश की नागरिक होने के नाते गर्व महसूस करती हूं और मैं यह कहना चाहती हूं कि ‘मेरा भारत महान है।’ विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की राजधानी दिल्ली में मैंने हिंसा को अपनी आंखों से देखा और मुझे यह सोचकर शर्म महसूस होती है कि मैं एक मानव जाति से संबंध रखती हूं। मैंने अपने मानव जाति के लोगों को गिरते हुए देखा जो हमें अपने भाई तथा बहनें मानते थे। राजधानी में आज दबाव, गुस्सा, डर तथा पीड़ा की अनुभूति है। शाहीन बाग में शांतिपूर्ण प्रदर्शन शुरू हुए थे जिन्होंने हिंसा का रूप ले लिया। चाहे ये उकसाए गए या फिर राजनीतिक थे या ये असहनशील थे। 

इन्हें बर्दाश्त करते हुए मानव जाति का सिर शर्म से झुक जाता है। मेरा लालन-पालन एक राजनीतिक परिवार में हुआ जहां पर हम अपने पारिवारिक चुनावी क्षेत्रों में एक घर से दूसरे घर तक जाते थे, वहां पर हम चाय, कॉफी पीने के साथ-साथ फल इत्यादि भी खाते थे। हमें जो कुछ भी मिलता उसे बिना किसी भेदभाव के खाते थे। वे लोग हमारे साथी नागरिक थे। हमें उनके सपने साकार करने की जरूरत थी तथा हमने उनके लिए कार्य किया। वे लोग चाहे मुसलमान, हिंदू या फिर ईसाई थे हमें इससे कुछ लेना-देना नहीं था। हमें इस बात का भी मन में विचार नहीं आया कि क्या वह राजपूत, ब्राह्मण, अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजातीय लोग हैं। हमें ऐसी शिक्षा दी गई थी कि सबका आदर-सम्मान करें। हमारे परिवारों ने हमें सभ्य रहने की शिक्षा दी क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति एक सभ्य चरित्र वाला व्यक्ति होता है। 

एक सप्ताह आतंक भरा और तबाही के मंजर का था
हमें कभी भी इस बात ने नहीं रोका कि हम जिसके घर जा रहे हैं वह मुस्लिम है, अनुसूचित जाति से संबंंधित है या फिर हिंदू है। यह समाज बहुत ही भयानक तथा उदास है। हमने अपने देश को उस समाज में बांट दिया जिसमें एक-दूसरे के प्रति नफरत बढ़ रही है। मैं अपने बच्चों तथा पोते-पोतियों को आज यह बताना चाहती हूं कि वे एक अच्छे मनुष्य बनें। हमें किसी भी तरह शर्मसार न करें। लोगों से उसी तरह व्यवहार करें जैसा वे करना चाहते हैं। आप शिक्षित हैं तथा यह भली-भांति जानते हैं कि बंटे हुए सामाजिक जीवन में कौन-कौन से खतरे व्याप्त हैं। गुम हुए अपने बच्चों के लिए यहां पर मांएं चीख-चिल्ला रही हैं। यहां पर एक ऐसी मां भी है जो अपने 7 वर्षीय बेटे के मृत शरीर को पाने की कोशिश में है। एक विधवा अपने पति की पार्थिव देह के लिए चिल्ला रही है। हर तरफ डर तथा शर्म का माहौल है। आज जबकि मैं अपनी कार चला रही हूं मुझे सड़कों पर चल रहे पैदल यात्रियों की जिंदगी के खोने का डर है। मैं ऐसी कामना करती हूं कि वे अपने घरों तक सुरक्षित पहुंच जाएं। मैं उन बच्चों के लिए दुआ मांगती हूं जो अपने स्कूल की ओर जाते हैं। अपने जीवन में मैं इस घटना को दोबारा देखना नहीं चाहती और न ही इसके बारे में सोचना चाहती हूं कि एक सप्ताह आतंक भरा और तबाही के मंजर का था। 

आज हर कोई बोलने से डरता है
उसी सप्ताह सबसे सशक्त व्यक्ति अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने मेरे देश की यात्रा की। यह हमारे लिए गौरवमयी क्षण था क्योंकि हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ट्रम्प के स्वागत के दौरान अपनी तथा हमारी शक्ति को दिखाया तथा हमें सम्मान दिलवाया। मगर उनकी यात्रा के दूसरे दिन हमने राजनेताओं पर दबाव तथा उनके चेहरों पर ङ्क्षचता देखी। मैं यहां पर ईमानदारी से कह सकती हूं कि हमारा समाज हिंदुओं, मुसलमानों या फिर ईसाइयों के प्रति भिन्न है। राजनेता अपनी रोटियां सेंकते हैं। वोटों की चाह तथा अपने आराम के लिए वे उकसाते हैं। यदि आज देश का प्रमुख जाग जाए और आवाज लगाए तब प्रत्येक व्यक्ति लाइन में आ जाएगा। जीवन के लिए डर की भावना लोगों में हो सकती है मगर आज प्रत्येक व्यवसायी में डर की भावना है। आप यह नहीं जानते कि आपको कब कोई उठा लेगा और बिना किसी अपराध के सलाखों के पीछे डाल देगा। फिर वह अपने निर्दोष होने के लिए अदालतों में जाएगा और ऐसे अपराध को झेलेगा जो उसने किया ही नहीं। हर कोई बोलने से डरता है। 

नौकरशाहों को अपने तबादले होने का डर है। उन्हें इस बात का डर है कि उन्हें कहीं पर धकेल दिया जाएगा फिर वे अदालतों में तब तक मामलों को झेलेंगे जब तक अपने आपको निर्दोष न साबित कर लें। आखिर कब तक और कैसे यह सब बदलेगा? आखिर मेरा राष्ट्र किस ओर जा रहा है? मेरा देश अब आजाद नहीं रहा। अब यह ऐसा देश भी नहीं रहा जहां पर कोई एक अपने दिमाग से बोल सकता था। पूरे देश में डर का माहौल है। भारत एक ऐसा देश बन चुका है जहां पर इंसान जिंदगी और काम के लिए जूझ रहा है। मुझे आशा है कि प्रधानमंत्री अपने लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए पूरी कोशिश में हैं। यहां पर ऐसा कुछ घट रहा है जिसको समझने में वह असमर्थ हैं तथा सम्बोधित करने के लिए डरते हैं। देश ने केवल मोदी के लिए वोट दिया था। मीडिया ने अपना कार्य किया मगर उसमें भी डर का भाव मौजूद था। हजारों की तादाद में कारोबारी लोग देश छोड़ चुके हैं। आखिर एक साधारण आदमी किस ओर देख रहा है। आज रोटी, कपड़ा और मकान के बारे में ज्यादा बोला जा रहा है। क्या इन मामलों पर बोलने के लिए हमें किसी धर्म की ओर जाना होगा? आज किसी एक को एक धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक राष्ट्र में धर्म, जात तथा पंथ के साथ लड़ना होगा। 

राष्ट्र आज भी ‘नमो’ संग खड़ा है
हालात कुछ भी रहे हों मेरे भारत से महान कोई अन्य देश नहीं। ङ्क्षहदू ने मुसलमान की जान बचाई तथा मुसलमान ने हिंदू की। प्रत्येक नागरिक एकजुट था। मैं निजी तौर पर कभी भी अपनी संस्कृति और देश को इस विश्व में किसी चीज के लिए नहीं छोड़ूंगी। हमारे राजनेता जो कुछ मर्जी कर लें परमात्मा उनको बुद्धिमता दे। मेरे देश के लोग अभी भी इकट्ठे होकर झेलेंगे और परमेश्वर में हमारा विश्वास अटल है। मैं ऐसी दुआ करती हूं कि ऐसे दंगे फिर कभी न दोहराए जाएं। हमारे खुफिया तंत्र और पुलिस को और ज्यादा चौकन्ना होना पड़ेगा। प्रधानमंत्री मोदी भी अपने खुफिया विभाग को और दुरुस्त करेंगे और जो लोग भीड़ को उकसाएंगे उनके साथ सख्ती से निपटा जाएगा। राष्ट्र आज भी ‘नमो’ संग खड़ा है।-देवी चेरियन 
 

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