Edited By Pardeep,Updated: 29 Nov, 2018 05:02 AM
26 नवम्बर की दोपहर को टी.वी. देखते हुए मैं उदास तथा दुखी था। ऐसे पवित्र तथा महान कार्य के समय भी हमारे नेता डेरा बाबा नानक में लड़ रहे थे। आरोप-प्रत्यारोपों का कोई अंत नहीं था। जिंदाबाद तथा मुर्दाबाद के नारों की जगह ‘वाहेगुरु-वाहेगुरु’ किसी ने नहीं...
26 नवम्बर की दोपहर को टी.वी. देखते हुए मैं उदास तथा दुखी था। ऐसे पवित्र तथा महान कार्य के समय भी हमारे नेता डेरा बाबा नानक में लड़ रहे थे। आरोप-प्रत्यारोपों का कोई अंत नहीं था। जिंदाबाद तथा मुर्दाबाद के नारों की जगह ‘वाहेगुरु-वाहेगुरु’ किसी ने नहीं जपा। प्रत्येक का हृदय जला। गलियारे के मुद्दे पर हर कोई अपने सिर सेहरा सजाने को लालायित दिख रहा था। नवजोत सिंह सिद्धू ने समझदारी की कि इनमें वह घुसा ही नहीं और दूरबीन की परिक्रमा करके एक ओर से निकल गया।
सोचने व दुख देने वाली बात यह है कि जब भी पंजाब में किसी गुरु-पीर का उत्सव आता है तो हमारे नेता एक-दूसरे से लडऩे के लिए तथा स्टेजों पर गालियां निकालने हेतु कई-कई दिन पहले ही तड़पने लगते हैं। अब इनको हर वर्ष के लिए एक और जगह डेरा बाबा नानक मिल गई। टी.वी. देखते हुए मैं अपने डायरीनामा में लिखने बैठ गया और बाबा नानक की शिक्षाओं को नजरअंदाज करने वाले नेताओं के बारे में सोचने लगा कि बाबा इनको कब सद्बुद्धि देगा? यह प्रश्र मेरे मन में एक बेर की गिटक की तरह अटक कर रह जाता है।
उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू इस कलह-क्लेश को नजदीक से देखते रहे और अवश्य ही सोचते होंगे कि सिखों के पास लडऩे के अतिरिक्त और कुछ नहीं रह गया। डायरीनामा लिख कर जब फोन पर व्हाट्सएप को खंगाला तो बरजिन्द्र चौहान का लिखा शे’र आंखों के सामने था:
न नानक है किते, न राम न कोई इबादत है,
तेरे हर फैसल अंदर, लुकी होई सियासत है।
बहुत उदास हूं बाबा नानक। मैं बहुत उदास हूं। आपके नामलेवा समझदार हो जाएं, आपका जन्मदिन खूब उत्साह तथा श्रद्धा से मनाएं। खत्म हो जाएं ये आरोप-प्रत्यारोप के झगड़े। यही मेरी अरदास है। लगता है स्वीकार होगी।-मेरा डायरीनामा निन्दर घुगियाणवी