राजनेताओं के छल-कपट का खेल भी है गरीबी

Edited By ,Updated: 04 Dec, 2021 05:15 AM

poverty is also a game of deceit of politicians

यदि धन परमात्मा का उपहार है तो गरीबी क्या है? क्या यह परमात्मा का रोष है? क्या यह भाग्य का एक मुद्दा है? भारत की गरीबी जिस तरह से मानव निर्मित है उसी तरह यह स्वर्ग से बनाई गई है। इसी तरह यह मूर्खतापूर्ण योजनाओं के उत्पाद के साथ-साथ एक मानसिक...

यदि धन परमात्मा का उपहार है तो गरीबी क्या है? क्या यह परमात्मा का रोष है? क्या यह भाग्य का एक मुद्दा है? भारत की गरीबी जिस तरह से मानव निर्मित है उसी तरह यह स्वर्ग से बनाई गई है। इसी तरह यह मूर्खतापूर्ण योजनाओं के उत्पाद के साथ-साथ एक मानसिक दृष्टिकोण भी है। गरीबी सामंती शोषण के साथ-साथ हमारे सिस्टम का पक्षपातपूर्ण रवैया भी है। यह अर्थशास्त्री का बुरा सपना होने के साथ-साथ संसाधनों की कमी भी है क्योंकि यह आंकड़ों के खेल से संबंधित मुद्दा है। इसलिए यह राजनेताओं के छल और कपट का खेल भी है। 

बेशक गरीबी स्वर्ग में बनी हो सकती है मगर यह धरती पर ही पुन: उत्पन्न तथा निर्मित होती है। गरीबी की मार्कीटिंग शायद आज के दौर का सबसे व्यस्ततम पेशा हो सकता है। इसे नग्र आंखों से या आंखों के बिना देखा जा सकता है। आज घोटालों में फंसे भारत में गरीबी और विकास की और महत्वपूर्ण तरीके से देखते हुए यह कहा जा सकता है कि आजकल गरीबी खाने से वंचित होना या फिर भूख से तड़पने से ज्यादा कुछ भी नहीं। मल्टीडायमैंशनल पावर्टी इंडैक्स (एम.पी.आई.) की रिपोर्ट जिसे कि नीति आयोग ने तैयार किया है, के अनुसार गरीबी को इसके बहुआयामी स्वास्थ्य, शिक्षा तथा जीवन जीने के स्तर पर इसे मापा जाना चाहिए। इसे इसके 12 सूचकों जैसे पोषण, स्कूल जाना, स्कूल के वर्ष, पेयजल, स्वच्छता, आवास, बैंक अकाऊंट इत्यादि के तौर पर देखा जा सकता है। 

एम.पी.आई. ने ऑक्सफोर्ड पावर्टी एंड होम डिवैल्पमैंट इनीशिएटिव पी.पी.एच.आई. तथा यू.एन. डिवैल्पमैंट प्रोग्राम यू.एन.डी.पी. द्वारा तैयार प्रक्रिया को वैश्विक तौर पर इस्तेमाल किया है। नीति आयोग के चेयरमैन राजीव कुमार का कहना है कि नैशनल मल्टी डायमैंशनल पावर्टी इंडैक्स ऑफ इंडिया का विकास पब्लिक पॉलिसी तंत्र की तरफ एक महत्वपूर्ण सहयोग है जो बहुआयामी गरीबी की जांच करता है। राजीव कुमार आगे कहते हैं कि भारत के एम.पी.आई. उपाय वैश्विक तौर पर स्वीकार किए गए मजबूत कार्यप्रणाली स्वीकार करते हैं। 

केरल एक अलग दिखने वाला राज्य है। जहां पर बहुआयामी गरीब लोगों की जनसंख्या का न्यूनतम औसत है। इस राज्य के14 जिलों में से 9 जिलों के पास एक प्रतिशत से भी कम गरीबी दर है। यह एक बेहद दिलचस्प बात है। कोट्टायम एक बाहरी जिला है जहां पर एक भी गरीब व्यक्ति नहीं है। राज्यों के बीच बिहार में इसकी 51.91 प्रतिशत की जनसंख्या के बीच उच्चतम दर की गरीबी है। पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिले में सबसे ऊंची गरीबी दर है जोकि 49.69 प्रतिशत है। दिलचस्प तरीके से कोलकाता में सबसे न्यूनतम गरीबी की दर है जोकि 2.8 प्रतिशत है। 

भारत में गरीबी सूचकांक काफी विविध तथा जटिल है। इस संदर्भ में मुझे कहना चाहिए कि नीति आयोग ने भारत के विकास को दर्शाने के लिए एक अच्छा कार्य किया है जोकि गरीबी के स्तर को लेकर है। यह भी कहा जाना चाहिए कि पिछले वर्षों के दौरान अपनाई गई विकास की नीतियां एकतरफा रही हैं। उन्हें प्राथमिकता को सच्चे तरीके से दर्शाना चाहिए जिससे कि आम लोग अपनी रोजाना की समस्याओं को चिन्हित कर सकें। जमीनी स्तर पर अपनाए जा रहे ज्यादातर विकास के कार्यक्रम मानवीय घटकों की अनदेखी करते हैं जिन्हें कि गुन्नार म्यर्दल द्वारा रेखांकित किया गया था। 

प्रख्यात विचारक गुन्नार का कहना है कि, ‘‘मशीनों, तंत्रों, फैक्ट्रियों, डैमों के निर्माण और वित्त के लिए पैसे को खोजने में यहां पर खतरे हैं। किसी देश की बचत तथा निवेश ही मुख्य उद्देश्य होना चाहिए।’’ आज राष्ट्र के समक्ष चुनौतियां साधारण नहीं हैं। गरीबी, लोकतंत्र तथा विकास की धारणा को विकसित करने की जरूरत है। नई चुनौतियों तथा संवेदनाओं से हमें पार पाना होगा। डा. बी.आर. अम्बेडकर ने संवैधानिक असैंबली के अपने अंतिम संबोधन में राजनीतिक, सामाजिक तथा आर्थिक लोकतंत्र की महत्ता को रेखांकित किया था। इसके साथ-साथ उन्होंने स्वतंत्रता, समानता तथा बंधुत्व के माहौल पर जोर दिया था। हमें यह कहना चाहिए कि हमारे समाज में जहां एक ओर कुछ लोगों के पास अपार संपदा है वहीं ज्यादातर लोग गरीबी में रहते हैं। 

आज गरीबी को बाहर निकाला जाना चाहिए। यह कोई लम्बी कार्रवाई नहीं है। इसके लिए राजनीतिक दृष्टिकोण तथा दृढ़ निश्चय की जरूरत है। हम चुनौतियों से निपट सकते हैं। इसके लिए हमें गरीबी विरोधी परिदृश्य तथा एक प्रणाली की जरूरत है। यही आधुनिक भारत का एकमात्र लक्ष्य होना चाहिए। भारत झुग्गी-झोंपड़ी, भूख तथा लोगों की मूल जरूरतों की अनदेखी के साथ आगे नहीं बढ़ सकता। गरीबी मुक्त भारत के लक्ष्य को पाने के लिए हमें पूरी तरह से तैयार तथा लक्षित होना चाहिए।-हरि जयसिंह
    

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