प्रधानमंत्री मोदी ने एक बड़ा ‘मौका’ खो दिया

Edited By ,Updated: 23 Aug, 2020 02:26 AM

prime minister modi lost a big  chance

यह एक साधारण 15 अगस्त थी। पिछले 73 वर्षों में ऐसा स्वतंत्रता दिवस देखा नहीं गया जो बच्चों, दर्शकों, तिरंगों, मिठाइयों तथा रौनक के बिना था। इतने बड़े स्तर की मंदी इससे पहले भारत ने कभी नहीं झेली। इसकी भविष्यवाणी 4 से 10 प्रतिशत की की गई थी। इससे पहले...

यह एक साधारण 15 अगस्त थी। पिछले 73 वर्षों में ऐसा स्वतंत्रता दिवस देखा नहीं गया जो बच्चों, दर्शकों, तिरंगों, मिठाइयों तथा रौनक के बिना था। इतने बड़े स्तर की मंदी इससे पहले भारत ने कभी नहीं झेली। इसकी भविष्यवाणी 4 से 10 प्रतिशत की की गई थी। इससे पहले किसी भी एक ंमहामारी ने पूरे देश को घेर लिया तथा लोगों को अपने घरों में रहने के लिए मजबूर कर दिया और इससे पहले शायद कभी भी नहीं हमारे पड़ोसियों ने भारत को दबाने के लिए अपने दांत नहीं दिखाए। 

प्रधानमंत्री मोदी के लिए 15 अगस्त से पहले का दिन एक परछाईं का दिन होगा। एक ऐसा दिन जो यह बताए कि उनकी सरकार ने ऐसे कदमों के लिए क्यों अनुमति दी? मुझे यह आशा थी कि प्रधानमंत्री मोदी एक छोटा और निराशाजनक भाषण देंगे, पूर्व में की गई गलतियों की पुष्टि करेंगे और यह वायदा करेंगे कि राज्यों तथा विपक्षी पाॢटयों के साथ विचार-विमर्श के बाद शासन चलाएंगे। 

3 सुरंगों में 
ऐसा यहां पर कुछ भी नहीं था। इसके विपरीत प्रधानमंत्री ने 90 मिनटों तक भाषण दिया। वह तेजी से बोले जहां पर कोई भी विराम नहीं था। बोलने की आवाज बेहद ऊंची थी जैसी आमतौर पर होती है। उनके प्रशंसक यह कहेंगे कि यह बेहद अच्छा भाषण था। मैंने सोचा कि यह एक काल्पनिक आत्मविश्वास है। हालांकि उनके प्रशंसकों ने यह पाया होगा कि जैसा कि मैंने पाया है वह यह कि प्रधानमंत्री  किसी पर भी नहीं हंसे, न ही वह कैमरे पर हंसे। मुझे शंका है कि मोदी बेहद दबाव में थे। मुख्यत: इस कारण क्योंकि वहां पर कोई शायद रोशनी नहीं दिखी। जबकि देश 3 सुरंगों के मध्य में फंसा हुआ है। एक तो झुकाव वाली अर्थव्यवस्था, बढ़ रही महामारी तथा भारतीय क्षेत्रों पर शर्मसार कर देने वाला कब्जा। 

मोदी सरकार सशक्त तौर पर यह मानती है कि लोगों की याद्दाश्त बेहद छोटी है। यहां पर मैं एक उदाहरण देता हूं। 5 दिसम्बर 2014 को संचार मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने घोषणा की कि हम सभी ग्राम पंचायतों में आप्टिकल फाइबर बिछा रहे हैं। प्रधानमंत्री इस परियोजना पर बेहद उत्साहित दिखे। पी.एम. ने कहा कि रवि ने उनको यकीन दिलाया है कि इसे 2016 की समाप्ति तक पूरा कर लिया जाएगा। हमने 7 लाख ओ.एफ.सी. बिछानी हैं। उन्होंने यह भी संकेत दिया था कि 50,000 ग्राम पंचायतों के लक्ष्य को 2014-15 के वित्तीय वर्ष की समाप्ति पर हासिल कर लिया जाएगा। मार्च 2016 तक एक लाख तथा दूसरा एक लाख 2016 की समाप्ति तक। 

15 अगस्त को प्रधानमंत्री ने घोषणा की कि अगले 1000 दिनों में पूरे देश के गांवों में आप्टिकल फाइबर कनैक्शन उपलब्ध हो जाएगा। मुझे शंका है कि यहां पर पंचायत तथा गांवों जैसे शब्दों पर खेल खेला गया। मार्च 2020 तक कोई भी लक्ष्य हासिल नहीं हुआ। डिजिटल क्वालिटी ऑफ लाइफ इंडैक्स 2020 के अनुसार भारत का 85 देशों में 79वां रैंक है। इस सरकार में पारदर्शिता तथा तथ्यों की आपूर्ति में कमी है। 

ज्यादा दावे, सच्चाई कम
ऐसे ही गैर-पारदर्शिता रगों में कुछ और वायदे किए गए।  
दावा : इस समय हम सबकी सबसे बड़ी प्राथमिकता देश को कोविड-19 महामारी से बाहर निकालने कीहै जो हमें स्वतंत्रता से कार्य करने से बाधित कर रही है। 
तथ्य : सरकार बहुत कम कर रही है। यहां तक कि राज्य सरकारों को फंड भी उपलब्ध नहीं करवा रही है। यह राज्य महामारी के साथ युद्ध स्तर पर लड़ रहे हैं। विभिन्न रणनीतियों को तैयार कर वह कुछ सफलता हासिल कर रहे हैं। भारत उन कुछ गिने-चुने देशों में से है जहां पर महामारी अपने पूरे यौवन पर है। नए संक्रमणों की गिनती में भारत विश्व में शीर्ष पर है तथा यह सितम्बर के तीसरे सप्ताह तक 5 करोड़ मामले पार कर जाएगा। भारत में वैक्सीन को उत्पन्न करने में अभी एक वर्ष की दूरी है। यदि हम इस वैक्सीन को पा भी लेते हैं तो रूसी, ब्रिटिश तथा अमरीकी वैक्सीन के लिए पूरी जनसंख्या का टीकाकरण करने में यह एक विशाल कार्य होगा। भारतीय इस समय महामारी से जूझ रहे हैं तथा इससे बच रहे हैं। यह सब जनसांख्यिकी तथा उनकी घरेलू इम्युनिटी के कारण संभव है। 

दावा : ‘मेक इन इंडिया’ के साथ-साथ ‘मेक फॉर द वल्र्ड’ के मंत्र के साथ हमें आगे बढ़ना होगा। 
तथ्य : 2014 में मेक इन इंडिया का नारा दिया गया था तथा इसको  अपार असफलता मिली। जी.डी.पी. में विॢनर्माण की हिस्सेदारी 16.6 प्रतिशत पर कम या ज्यादा होकर ठहरी हुई है। यह 2015-16 से है। इसमें 2019-20 में 15.9 प्रतिशत की गिरावट हुई। 2018-19 में व्यापार निर्यात ऊंचे मार्क को छू गया (315 बिलियन अमरीकी डालर), जो 6 सालों में एक बार था। ऊंचे आयात टैरिफ, गैर-टैरिफ बाधाएं, मात्रात्मक पाबंदियां, नकारात्मक सूची इत्यादि ने विनिर्माण को बांध कर रख दिया। 

चीन की चुनौती
दावा :  चाहे यह आतंकवाद हो या फिर विस्तारवाद-दोनों मामलों में भारत मात दे रहा है। एल.ओ.सी. से लेकर एल.ए.सी. तक जब भारत को चुनौती दी गई हमारे जवानों ने दुश्मन को उसी की भाषा में जवाब दिया।
तथ्य : शहीदों को श्रद्धांजलि पूरी तरह से न्यायोचित थी। 15-16 जून को गलवान घाटी में 20 सैनिक शहीद कर दिए गए। मगर यह अभी भी एक  रहस्य बना हुआ है कि क्या वे अपर्याप्त तैयारियों या फिर गलत आदेशों के कारण शहीद हुए। प्रधानमंत्री ने यह बयान दिया कि भारतीय क्षेत्र में न कोई घुसा है और न ही भारतीय क्षेत्र में उपस्थित है। इस बात ने जवानों तथा नागरिकों को भड़का दिया। मोदी आक्रमणकारी का नाम लेने में असमर्थ हैं जोकि पूरी तरह अस्वीकार्य है। चीनी सैनिकों ने अभी भी गलवान घाटी, पैंगोंग त्सो तथा देपसांग  में भारतीय क्षेत्र पर कब्जा कर रखा है। निजी तौर पर मिलने की प्रधानमंत्री की कूटनीति  ने शर्मसार किया है। अब यह मौका है कि हम और ज्यादा क्रियाशील हो जाएं तथा भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रशिक्षित कूटनीतिज्ञों को विदेशी मामले को संभालने दें।-पी. चिदम्बरम

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