‘प्रधानमंत्री मुद्रा योजना’ : कितना सच, कितना झूठ

Edited By Pardeep,Updated: 19 Apr, 2018 02:48 AM

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किसानों के बाद नौजवानों का गुस्सा, मोदी सरकार को दो मोर्चों पर जूझना पड़ रहा है। मोदी सरकार दावा करती रही है कि उसने प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत पिछले 3 साल में 11 करोड़ युवाओं को 5 लाख करोड़ के आस-पास का कर्ज दिया है। इसे वह रोजगार का मौका दिए...

किसानों के बाद नौजवानों का गुस्सा, मोदी सरकार को दो मोर्चों पर जूझना पड़ रहा है। मोदी सरकार दावा करती रही है कि उसने प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत पिछले 3 साल में 11 करोड़ युवाओं को 5 लाख करोड़ के आस-पास का कर्ज दिया है। 

इसे वह रोजगार का मौका दिए जाने के रूप में प्रचारित करती रही है और कहती रही है कि नौकरी देने से उसका मतलब रोजगार के मौके पैदा करना था और जिस काम को वह बखूबी कर भी रही है लेकिन सवाल उठता है कि क्या वास्तव में प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत कर्ज लेने वालों का भला हुआ है और क्या वे अन्य लोगों को रोजगार देने में भी कामयाब रहे हैं? मुद्रा योजना के आंकड़े बताते हैं कि इसके तहत 92 फीसदी लोगों को 50 हजार रुपए तक की शिशु योजना के तहत ही लोन दिया गया और औसत रूप से एक शख्स को सिर्फ 23 हजार रुपए का ही लोन दिया गया। सवाल उठता है कि क्या कोई 23 हजार में अपना धंधा शुरू कर सकता है और क्या वह किसी अन्य को भी रोजगार दे सकता है? 

प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के 3 साल पूरे हो गए हैं। इसमें 50 हजार से लेकर 10 लाख रुपए तक का कर्जा दिया जाता है जिसके लिए न जमीन गिरवी रखनी पड़ती है और न ही गहने। योजना का मकसद था बेरोजगारों को अपना खुद का धंधा शुरू करने के लिए लोन देना...मकसद था छोटे-मोटे धंधे कर रहे लोगों को कर्ज देना ताकि वे अपने धंधे का विस्तार कर सकें और साथ ही दूसरों को रोजगार भी दे सकें। तीन श्रेणियां बनाई गईं-शिशु योजना में 50 हजार तक का लोन, किशोर योजना में 5 लाख तक का लोन और तरुण  योजना के तहत 5 लाख से लेकर 10 लाख रुपए तक का लोन। 

देश के सभी बैंकों को इससे जोड़ा गया लेकिन देखा गया है कि पूरी योजना बैंक मैनेजरों के रहमोकरम पर ही चल रही है। कहीं तो ‘अंधा बांटे रेवड़ी’ की तर्ज पर कर्ज दिया जा रहा है तो कहीं कोई न कोई नुक्स निकालकर फाइलें लौटाई जा रही हैं। कहीं लक्ष्य पूरे करने के लिए अपनों को कर्ज देने की रस्म अदायगी पूरी हो रही है तो कहीं कर्ज नहीं देने के नए-नए बहाने तलाशे जा रहे हैं। यहां तक कि कुछ बैंक मैनेजर इसकी आड़ में अपनी जेबें भरने में लगे हैं। राजस्थान के बाड़मेर जिले में  पी.एन.बी. की 2 शाखाओं में कुल मिलाकर 80 लाख का घोटाला सी.बी.आई. जोधपुर ने पकड़ा है जिसकी जांच चल रही है। बाड़मेर शहर में बैंक की शाखा में मुद्रा योजना के तहत 26 खाताधारकों को कुल मिलाकर 62 लाख रुपए का लोन दिया गया नियमों को ताक पर रखकर। बैंक मैनेजर ने बिना मौके पर गए कागजों में ही जाना दिखा दिया। 26 में से पांच डूबत खाता हो चुके हैं और बाकी से भी पैसा वापस आने की कोई उम्मीद नहीं है। मुद्रा योजना के तहत बैंक 25 किलोमीटर के दायरे में ही लोन दे सकता है। देखा गया है कि बैंक मैनेजर इसका फायदा उठाते हैं और जरूरतमंदों की फाइल यह कह कर लौटा देते हैं कि उनका निवास बैंक के25 किलोमीटर के दायरे में नहीं आता है लेकिन बाड़मेर में तो बैंक से 100 किलोमीटर दूर रहने वालों को ही लोन दे दिया गया।

सी.बी.आई. का कहना है कि बैंक मैनेजर ने बिना मौके पर गए ही लोन दे दिया। साथ ही लोन देने के बाद भी एक बार मौके पर जाकर यह देखना जरूरी नहीं समझा कि लोन जिस मकसद से लिया गया है उस पर अमल हो रहा है या नहीं। सी.बी.आई. को शक है कि इनमें से कुछ खाते फर्जी भी हो सकते हैं और इस कोण से जांच जारी है। हैरानी की बात है कि जिस शाखा मैनेजर को निलम्बित कर दिया गया था उन्हें बहाल कर दिया गया जबकि 62 लाख रुपए की रिकवरी होनी बाकी है। सी.बी.आई. ने बाड़मेर में ही चौहट्टन में मुद्रा योजना के तहत एक अन्य घोटाला पकड़ा है। पी.एन.बी. की चौहट्टन शाखा में यह गबन मार्च 2016 से जून 2017 के बीच हुआ। बैंक मैनेजर ने पी.एम. मुद्रा योजना के तहत 7 अलग-अलग लोगों को 33 लाख रुपए का कर्ज दिया।  इसमें रामा राम भी शामिल थे जिनके खाते में 4 मार्च 2017 को 4 लाख 90 हजार रुपए जमा किए गए लेकिन यह सारा पैसा उसी दिन अनिल नाम के शख्स के खाते में ट्रांसफर कर दिया गया जो बैंक मैनेजर के भाई हैं। 

इसी तरह पी.एम. मुद्रा योजना के तहत दिए गए लोन की पूरी या फिर आंशिक राशि मैनेजर की पत्नी और मां के खाते में भी ट्रांसफर की गई। कुल मिलाकर सारे खाते फर्जी थे या फिर लोन देने के बदले रिश्वत ली गई और बैंक को करीब 17 लाख रुपए का चूना लगा। सी.बी.आई. ने जिस तरह से एक ही जिले में एक ही बैंक की 2 शाखाओं में 80 लाख रुपए का घोटाला पकड़ा है उससे साफ है कि किस तरह छोटे शहरों और कस्बों में मुद्रा योजना के नाम पर पैसों की बंदरबांट हो रही है।आगे आपको मिलवाते हैं कुछ ऐसे लोगों से जिन्हें विचित्र कारणों से मुद्रा योजना के तहत कर्ज नहीं मिला। ऐसे भी कुछ लोगों से मिलवाएंगे जिन्हें कर्ज मिला और उनकी जिंदगी संवर गई। जयपुर में विमल कुमावत हैंडीक्राफ्ट का काम करते हैं। पिछले 10 सालों से वह यह काम कर रहे हैं। अपनी तरफ  से 3 लाख रुपए की पूंजी लगाई है। महीने में 50-60 हजार रुपए कमा लेते हैं। कुछ महिलाओं को पेपरमेशी आदि का रोजगार भी दिया हुआ है। अब विमल को मशीनें खरीदने के लिए 10 लाख रुपए की दरकार थी। विमल का कहना है कि वह अपने घर के पास वाली स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की शाखा में गए तो उन्हें उस शाखा में जाने को कहा गया जहां उनका खाता है। 

वहां गए तो कहा गया कि उस शाखा में जाइए जो घर के नजदीक है। खैर यह मामला सुलझा तो नया बहाना सामने था। बैंक ने कहा कि करंट अकाऊंट खुलवाओ। 6 महीने उसे चलाओ और उसके बाद ही देखेंगे कि कर्ज दिया जा सकता है या नहीं। विमल ने 5 साल का बाकायदा कोर्स राजस्थान स्कूल आफ आर्ट जयपुर से किया है। उन्हें भारत सरकार के कपड़ा मंत्रालय से आर्टीसन का दर्जा भी हासिल है। विमल ने बैंक वालों से कहा कि वे उनके घर आकर उनका काम देख सकते हैं लेकिन बैंक अधिकारियों ने मौके पर जाए बिना ही लोन देने से मना कर दिया। जयपुर के विमल कुमावत को तो बैंक के एक साल चक्कर काटने पर  लोन नहीं मिला लेकिन अलवर के राहुल रंजन किस्मत वाले निकले। उन्हें तो बैंक मैनेजर ने खुद फोन करके बैंक बुलाया क्योंकि राहुल रंजन ने उनके घर नल फिटिंग का काम किया था। राहुल रंजन को 50 हजार का लोन मिला जिससे उनका काम भी बढ़ा और आय भी 10 हजार रुपए महीने से बढ़कर 15 हजार हो गई लेकिन वह ब्याज से परेशान हैं जो 10 फीसदी है। 50 हजार के लोन पर 5 हजार का ब्याज (दस फीसदी) वह चुका चुके हैं तथा बैंक अढ़ाई हजार रुपए और मांग रहा है। 

हमें जैसलमेर में मिली सना खान जो जोया का जायका रेस्तरां चलाती हैं। बेटी के नाम पर रेस्तरां का नाम रखा है जिसका विस्तार करना चाहती हैं, 3-3 बैंकों के चक्कर काटे। पी.एम. मुद्रा योजना के तहत महिलाओं को लोन देने पर खास जोर देने का दावा किया जा रहा है लेकिन जैसलमेर की सना खान को तो 3-3 बैंकों ने वापस लौटा दिया। किसी ने कहा कि खुद का रेस्तरां नहीं है, किराए पर है, पता नहीं चलेगा कि नहीं। दूसरे ने कहा कि उसने लोन देना फिलहाल बंद कर रखा है। तीसरे ने कहा कि 10 लाख का लोन तो करोड़ों के टर्नओवर वालों को ही मिलता है। 

जैसलमेर में पटवों की हवेली के सामने तंग गलियों से होते हुए हम पहुंचे भावना ब्यूटी पार्लर। भावना सोनी इसे चलाती हैं। भावना सोनी अपनी बेटी लक्षिता का चेहरा चमकाने में व्यस्त थी। आखिर लक्षिता के ही कहने पर भावना ने ब्यूटी पार्लर का कोर्स किया और यूनियन बैंक से डेढ़ लाख रुपए का लोन पी.एम. मुद्रा योजना के तहत लिया। इससे पहले आई.सी.आई.सी.आई. बैंक ने लोन देने से मना कर दिया था। भावना हर महीने साढ़े पांच हजार रुपए की किस्त जमा करवा रही हैं। 50 हजार रुपए महीने की आमदनी है और उनका कहना है कि मुद्रा योजना ने उनकी जिंदगी बदल कर रख दी है। फर्नीचर का काम करने वाले अलवर के कल्याण सहाय की अपनी खुद की दुकान है वह भी मेन रोड पर। दुकान के पीछे उनका खुद का गोदाम है। दोनों की कीमत 30-40 लाख से कम नहीं लेकिन पंजाब नैशनल बैंक ने कल्याण सहाय को 2 लाख का लोन देने से मना कर दिया। कल्याण सहाय का कहना है कि 50 हजार के लोन  से काम नहीं चलता। उनका कहना है कि बैंक वाले उनकी दुकान-गोदाम देख कर गए, पर लोन बढ़ाने को तैयार नहीं हुए।

ये सारे उदाहरण बताते हैं कि किस तरह बैंक मैनेजरों के रहमोकरम पर सारी योजना चल रही है। बैंक कर्मी सामने आने को तैयार नहीं हैं। नाम न छापने की शर्त पर उनका कहना है कि लोन लेने वाले की नीयत तो देखनी ही पड़ती है और हैसियत भी। इस कारण बहुत बार असली जरूरतमंद लोन से वंचित रह जाता है। अधिकारी कहते हैं कि उन्हें जुबानी तौर पर कहा गया है कि पैसा डूबा तो वे खुद उसके लिए जिम्मेदार होंगे। हैरानी की बात है कि तीनों तरह यानी शिशु, किशोर और तरुण योजनाओं के तहत दिए गए कर्ज का औसत 45 हजार रुपए बैठता है लेकिन अगर हम सिर्फ शिशु योजना को लें जिसके तहत 50 हजार तक का कर्ज दिया जाता है तो आंकड़े चौंकाने वाले हैं। भारत सरकार का ही कहना है कि इसका औसत 2016-17 में सिर्फ 23 हजार से 30 हजार रुपए था। यह 2015-16 में तो इससे भी कम 19 हजार ही था। सवाल उठता है कि क्या इस राशि में कोई शख्स नया धंधा शुरू कर सकता है? 

एक अन्य आंकड़ा भी चौंकाने वाला है। पी.एम. मुद्रा योजना के तहत जितने लोगों को लोन दिया गया उसमें 92 फीसदी को 50 हजार तक की शिशु योजना के तहत लोन दिया गया जबकि किशोर योजना के तहत 5 लाख तक का लोन सिर्फ 6.7 फीसदी को ही दिया गया। हैरानी की बात है कि 5 से 10 लाख तक की तरुण योजना के तहत तो लोन लेने वालों की संख्या महज 1.4 फीसदी ही रही। इससे साफ है कि ज्यादा राशि का लोन देने से बैंक कतरा रहे हैं। उधर, मोदी सरकार में वित्त राज्य मंत्री शिव प्रताप शुक्ला का कहना है कि न तो बैंकों को हाथ रोककर कर्ज देने के निर्देश दिए गए हैं और न ही उनके पास ऐसी कोई शिकायत आई है। वह कहते हैं कि अगर शिकायत आई तो जरूर जांच होगी और बैंक अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई भी होगी। भाजपा उम्मीद कर रही है कि 2019 में मुद्रा योजना से उसके सुनहरे दिन लौट आएंगे लेकिन यह तभी होगा जब जरूरतमंदों को लोन मिलेगा और उनकी जिंदगी सुनहरी होगी।-विजय विद्रोही

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