फिर बढ़ी गरीब और श्रमिक वर्ग की मुश्किलें

Edited By ,Updated: 06 May, 2021 03:51 AM

problems of poor and working class increased again

इन दिनों देश में कहीं लॉकडाऊन, तो कहीं जनता क र्यू के कारण गरीबों और प्रवासी श्रमिकों की बढ़ती मुश्किलों के बीच अमरीकी शोध संगठन प्यू रिसर्च सैंटर के द्वारा भारत में गरीबी से संबंधित प्रकाशित

इन दिनों देश में कहीं लॉकडाऊन, तो कहीं जनता क र्यू के कारण गरीबों और प्रवासी श्रमिकों की बढ़ती मुश्किलों के बीच अमरीकी शोध संगठन प्यू रिसर्च सैंटर के द्वारा भारत में गरीबी से संबंधित प्रकाशित की गई रिपोर्ट को गंभीरतापूर्वक पढ़ा जा रहा है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि कोरोना महामारी ने भारत में बीते साल 2020 में 7.5 करोड़ लोगों को गरीबी की दलदल में धकेल दिया है। रिपोर्ट में प्रतिदिन 2 डॉलर यानी करीब 150 रुपए कमाने वाले को गरीब की श्रेणी में रखा गया है। 

उल्लेखनीय है कि अभी जहां देश का गरीब और श्रमिक वर्ग पिछले वर्ष 2020 में कोरोना की पहली लहर के थपेड़ों से मिली आमदनी घटने और रोजगार मुश्किलों से पूरी राहत भी महसूस नहीं कर पाया है, वहीं अब फिर से देश में कोरोना की दूसरी घातक लहर के कारण गरीब एवं श्रमिक वर्ग की ङ्क्षचताएं बढ़ गई हैं। खासतौर से छोटे उद्योग-कारोबार और असंगठित क्षेत्र के श्रमिक वर्ग की रोजगार व पलायन संबंधी चुनौतियां उभरकर दिखाई दे रही हैं। औद्योगिक शहरों से एक बार फिर रेलों, बसों और सड़क मार्ग से प्रवासी मजदूरों का पलायन दिखाई दे रहा है। 

इसमें कोई दोमत नहीं हैं कि कोविड-19 से जंग में पिछले वर्ष 2020 में सरकार द्वारा घोषित किए गए आत्मनिर्भर भारत अभियान और 40 करोड़ से अधिक गरीबों, श्रमिकों और किसानों के जनधन खातों तक सीधी राहत पहुंचाई जाने से कोविड-19 के आॢथक दुष्प्रभावों से देश के कमजोर वर्ग को बहुत कुछ बचाया जा सका है। 

अब स्थिति यह है कि पिछले वर्ष कोरोना की पहली लहर के कारण देश के जो करोड़ों लोग गरीबी के बीच आर्थिक-सामाजिक चुनौतियों का सामना करते हुए दिखाई दे रहे थे, उनके सामने अब कोरोना की दूसरी लहर से निर्मित हो रही नई मुश्किलों से निपटने की बड़ी ङ्क्षचता खड़ी हो गई है। इस वर्ग की चिंताएं कितनी गंभीर हैं इसका अनुमान संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यू.एन.डी.पी.) की रिपोर्ट से भी लगाया जा सकता है। 

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड-19 महामारी के दीर्घकालिक परिणामों के तहत दुनिया में 2030 तक भारत सहित गरीब और मध्यम आय वर्ग वाले देशों के 20.70 करोड़ लोग घोर गरीबी की ओर जा सकते हैं।

नि:संदेह देश में कोरोना के दूसरे घातक संक्रमण के बीच गरीब और श्रमिक वर्ग को मुश्किलों से बचाने के लिए तीन सूत्रीय रणनीति को अपनाया जाना उपयुक्त होगा। एक, सरकार द्वारा गरीबों और श्रमिकों के हित में अधिकतम कल्याणकारी कदम आगे बढ़ाए जाने होंगे। दो, गांवों में लौटते श्रमिकों के रोजगार के लिए मनरेगा पर आबंटन बढ़ाया जाना होगा। तीन, उद्योग कारोबार को उपयुक्त राहत दी जानी होगी, ताकि बड़ी सं या में रोजगार के अवसर बचाए जा सकें। 

निश्चित रूप से केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा गरीबों को राहत दिए जाने के अधिक उपाय सुनिश्चित किए जाने होंगे। पिछले माह 23 अप्रैल को केंद्र सरकार ने गरीब परिवारों के लिए एक बार फिर प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना का ऐलान किया है। इस योजना के तहत केन्द्र सरकार राशनकार्ड धारकों को मई और जून महीने में प्रति व्यक्ति 5 किलो अतिरिक्त अन्न चावल या गेहूं मु त में देगी। इससे 80 करोड़ लाभार्थी लाभान्वित होंगे। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना पर 26000 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च होंगे। कोरोना से अधिक प्रभावित राज्यों की सरकारों द्वारा भी गरीबों और श्रमिकों के लिए उपयुक्त राहतकारी योजनाएं शीघ्र घोषित की जानी होंगी। 

चूंकि इस समय कई औद्योगिक राज्यों से उद्योग-कारोबार पर संकट होने के कारण फिर से बड़ी सं या में प्रवासी श्रमिक अपने गांवों की ओर लौट रहे हैं, ऐसे में मनरेगा को एक बार फिर प्रवासी श्रमिकों के लिए जीवन रक्षक और प्रभावी बनाना होगा। हाल ही में प्रकाशित एस.बी.आई. की रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक पिछले माह अप्रैल 2021 में मनरेगा के तहत गांवों में काम की मांग अप्रैल 2020 के मुकाबले लगभग दोगुनी हो गई है। जहां अप्रैल 2020 में मनरेगा के तहत करीब 1.34 करोड़ परिवारों की तरफ से काम की मांग की गई थी, वहीं अब अप्रैल 2021 में करीब अढ़ाई करोड़ परिवारों को रोजगार दिया गया है। 

इसमें कोई दोमत नहीं हैं कि मनरेगा देश के ग्रामीण अंचल में सबसे अधिक रोजगार प्रदान करने वाली योजना है। यह कोई छोटी बात नहीं है कि इस योजना के तहत वित्त वर्ष 2020-21 में 11 करोड़ लोगों को काम मिला, जो 2006 में योजना लागू होने के बाद सबसे बड़ी सं या है। इस दौरान करीब 390 करोड़ कार्यदिवसों का सृजन हुआ, यह भी मनरेगा लागू होने के बाद सर्वाधिक है। करीब 83 लाख निर्माण कार्यों को भी मनरेगा के तहत वित्त वर्ष 2020-21 में मूर्तरूप दिया गया। ऐसे में एक बार फिर गांवों की ओर लौटते प्रवासी श्रमिकों की बढ़ती सं या के मद्देनजर उन्हें गांवों में ही मनरेगा के माध्यम से रोजगार उपलब्ध कराने हेतु चालू वित्त वर्ष 2021-22 के बजट में मनरेगा के मद पर रखे गए 73,000 करोड़ रुपए के आबंटन को बढ़ाया जाना जरूरी होगा। 

यह बात भी महत्वपूर्ण है कि गरीबों एवं असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के रोजगार बनाए रखने के लिए कोरोना की दूसरी लहर के कारण तेजी से डगमगा रहे सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग (एम.एस.एम.ई.) को संभालने के लिए राहत के अधिक प्रयासों की जरूरत होगी। वस्तु एवं सेवा कर (जी.एस.टी.) से हो रही मुश्किलें कम की जानी होंगी। एम.एस.एम.ई. के लिए एक बार फिर से लोन मोरेटोरियम योजना लागू की जानी लाभप्रद होगी। आपात ऋण सुविधा गारंटी योजना (ई.सी.एल.जी.एस.) को आगे बढ़ाने या उसे नए रूप में लाने जैसे कदम राहतकारी होंगे। उद्योग-कारोबार संगठनों के द्वारा श्रमिकों का पलायन रोकने के लिए श्रमिकों के काम और कोरोना वैक्सीन दोनों की व्यवस्था सुनिश्चित किए जाने की रणनीति पर आगे बढ़ा जाना होगा। 

हम उम्मीद करें कि कोरोना संक्रमण की दूसरी घातक लहर से जंग में पूर्ण लॉकडाऊन की जगह उपयुक्त लॉकडाऊन, स्वास्थ्य तथा सुरक्षा मानकों को और कड़ा किए जाने की रणनीति से गरीब वर्ग, श्रमिकों के रोजगार और अर्थव्यवस्था तीनों को अधिक कारगर तरीके से बचाया जा सकेगा।
 

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