‘गाय के गोबर से पर्यावरण का संरक्षण’

Edited By ,Updated: 08 Mar, 2021 03:20 AM

protection of the environment from cow dung

बीते शुक्रवार को वैश्विक ऊर्जा और पर्यावरण के क्षेत्र में भारत की आेर से किए गए प्रयासों के मद्देनजर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘कैम्ब्रिज एनर्जी रिसर्च एसोसिएट्स वीक (सेरावीक) वैश्विक ऊर्जा एवं पर्यावरण नेतृत्व’ पुरस्कार प्रदान किया गया

बीते शुक्रवार को वैश्विक ऊर्जा और पर्यावरण के क्षेत्र में भारत की आेर से किए गए प्रयासों के मद्देनजर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘कैम्ब्रिज एनर्जी रिसर्च एसोसिएट्स वीक (सेरावीक) वैश्विक ऊर्जा एवं पर्यावरण नेतृत्व’ पुरस्कार प्रदान किया गया। मोदी जी को यह सम्मान ऊर्जा और पर्यावरण में स्थिरता के प्रति प्रतिबद्धता के लिए दिया गया। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इससे पहले भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई सम्मानों से नवाजा जा चुका है। यह देश के लिए गर्व की बात है। 

देश के प्राकृतिक ऊर्जा और पर्यावरण का ध्यान रखना देशवासियों की जिम्मेदारी है। इस महीने होली का त्यौहार आने वाला है। होली से एक रात पूर्व होलिका दहन की प्रथा है। इस वर्ष हमें होलिका दहन में वृक्ष बचाने की पहल करनी चाहिए। जो लोग सनातन धर्म के मानने वाले हैं, उन्हें यह भली भांति पता होगा कि सनातन धर्म में हर जीवात्मा का सम्मान होता है। हम वृक्षों की पूजा करते हैं। भूमंडल के बढ़ते तापक्रम के खतरों से हम अनजान नहीं हैं। हिमखंडों का अचानक गिरना, बेमौसम तूफानी बरसात, समुद्र स्तर बढऩा, तीव्र ठंड या गर्मी  होना इसके कुछ दुष्परिणाम हैं। पेड़ बचाकर इसका कुछ समाधान हो सकता है। 

क्यों न हम संकल्प लें कि इस बार से होलिका दहन हम गोबर से बने उपलों से ही करेंगे। लकड़ी का प्रयोग बिल्कुल नहीं करेंगे। सूखी लकड़ी का भी नहीं। तभी यह चेतना विकसित होगी। अब तो गोबर काष्ठ भी मिलने लगी है। जो गोबर को एक मशीन में दबाव डालकर लकड़ी के रूप में तैयार की जाती है। वैसे ये तो हम सब जानते हैं कि गाय के गोबर के कंडों से धुआं करने से कीटाणु, मच्छर आदि भाग जाते हैं। 

सनातन धर्म में यज्ञ रूपी आराधना करने का भी प्रचलन है। एेसे में गाय के गोबर के कंडों के प्रयोग से न सिर्फ वातावरण की शुद्धि होती है बल्कि सात्विकता का अहसास भी होता है। इसलिए यज्ञ के उपरांत हवन कुंड को पूरे घर में घुमाया भी जाता है। जिससे कि हवन के धुएं का असर पूरे घर में फैलाया जा सके। सिर्फ होलिका दहन ही क्यों हम शवों का दाह संस्कार भी इन्हीं कंडों या गोबर काष्ठ से क्यों न करें? हमारे ब्रज के गांवों में तो पहले से ही यह प्रथा है। हर शव कंडों पर ही जलाया जाता है। इससे गोधन का भी महत्व बढ़ेगा और पर्यावरण भी बचेगा। 

गाय के गोबर से न सिर्फ कंडे बनते हैं बल्कि आजकल गैस और बिजली संकट के दौर में गांवों में गोबर गैस के प्लांट भी लगाए जा रहे हैं। कोयला, एल.पी.जी., पैट्रोल व डीजल, जहां महंगे और प्रदूषणकारी स्रोत हैं, वहीं गाय के गोबर से बनी ‘बायो गैस’ कभी न समाप्त होने वाला स्रोत है। क्योंकि जब तक गौवंश रहेगा, तब तक हमें यह ऊर्जा मिलती रहेगी। आंकड़ों की मानें तो सिर्फ एक गाय के गोबर से प्रतिवर्ष 45000 लीटर बायोगैस मिलती है। बायोगैस के उपयोग करने से 6 करोड़ 80 लाख टन लकड़ी बच सकती है, जो आज जलाई जाती है। जिससे 14 करोड़ वृक्ष कटने से बचेंगे और देश के पर्यावरण का संरक्षण होगा। इससे करीब 3 करोड़ टन उत्सर्जित कार्बनडाईआक्साइड को भी रोका जा सकता है। इतना ही नहीं गोबर गैस संयंत्र में गैस प्राप्ति के बाद बचे पदार्थों का उपयोग खेती के लिए जैविक खाद बनाने में किया जा सकता है। 

सभी जानते हैं गोबर की खाद खेती के लिए अमृत का काम करती है। गोबर की खाद सर्वोत्तम खाद है। जबकि फॢटलाइजर से पैदा अनाज हमारी प्रतिरोधक क्षमता को लगातार कम करता जा रहा है। कृषि में रासायनिक खाद्य और कीटनाशक पदार्थ की जगह गाय का गोबर इस्तेमाल करने से जहां भूमि की उर्वरता बनी रहती है, वहीं उत्पादन भी अधिक होता है। दूसरी आेर पैदा की जा रही सब्जी, फल या अनाज की फसल की गुणवत्ता भी बनी रहती है। 

वैज्ञानिकों की मानें तो गाय के गोबर में विटामिन बी-12 अच्छी मात्रा में पाया जाता है। यह रेडियोधर्मिता को भी सोख लेता है। आज मोबाइल फोन से निकलने वाली रेडिएशन से भी बचा जा सकता है। हमारे दिल्ली दफ्तर और वृंदावन के घर की दीवारों पर गाय के गोबर और मिट्टी का लेप कई वर्षों से हुआ है। इन दीवारों पर बीते कई वर्षों में न तो कोई मकड़ी का जाल दिखा है और न ही कभी छिपकली दिखी है। घर और दफ्तर की गोबर मिट्टी लिपी दीवारों के बीच रह कर एक सात्विक अहसास महसूस किया जाता है। इन दीवारों का रख-रखाव भी बहुत आसान होता है। 

इटली के प्रसिद्घ वैज्ञानिक प्रो.जी$ ई$ बीगेड ने गोबर के अनेक प्रयोगों द्वारा सिद्ध किया है कि गाय के ताजे गोबर से टी.बी. तथा मलेरिया के कीटाणु मर जाते हैं। आणविक विकिरण से मुक्ति पाने के लिए जापान के लोगों ने गोबर को अपनाया है। गोबर हमारी त्वचा के दाद, खाज, एग्जिमा और घाव आदि के लिए लाभदायक होता है। हम जितना गौमाता के निकट रहेंगे उतने ही स्वस्थ और प्रसन्न रहेंगे। इसलिए आगामी होलिका दहन में हमें अधिक से अधिक गोबर के कंडों या गोबर काष्ठ का प्रयोग करना चाहिए।-विनीत नारायण
 

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