Edited By ,Updated: 23 Oct, 2019 03:01 AM
इन दिनों महान डोगरा पंडित प्रेमनाथ की जयंती मनाई जा रही है जिन्होंने समाज सुधार और मानवता के कल्याण के लिए कई काम किए। किन्तु उनका बड़ा कारनामा जम्मू-कश्मीर में अलगाववाद की सोच के विरुद्ध संघर्ष करना था। अलगाववाद की सोच के लिए वह भारत के संविधान की...
इन दिनों महान डोगरा पंडित प्रेमनाथ की जयंती मनाई जा रही है जिन्होंने समाज सुधार और मानवता के कल्याण के लिए कई काम किए। किन्तु उनका बड़ा कारनामा जम्मू-कश्मीर में अलगाववाद की सोच के विरुद्ध संघर्ष करना था। अलगाववाद की सोच के लिए वह भारत के संविधान की धारा 370 को एक बड़ी जड़ मानते थे जिसकी समाप्ति के लिए उन्होंने आजीवन कड़ा संघर्ष भी किया। उस समय के सत्ताधारियों ने उन्हें अपनी क्रूरता का निशाना बनाया किन्तु परीक्षा के प्रत्येक अवसर पर वह चट्टान की भांति अडिग रहे यद्यपि उनके कई साथी डगमगाए और मैदान छोड़ गए।
संघर्ष का आरम्भ कैसे हुआ
स्वतंत्रता के पश्चात जब देश के संविधान का गठन अंतिम चरण में था तो यह समाचार आने शुरू हो गए कि प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू अपने मित्र शेख मोहम्मद अब्दुल्ला को प्रसन्न रखने के लिए जम्मू-कश्मीर को कुछ अलग ही दर्जा देेने के लिए तैयार हो गए हैं जिस पर पंडित डोगरा के नेतृत्व में बनाए गए क्षेत्रीय संगठन जम्मू-कश्मीर प्रजा परिषद ने किसी भी तरह के अलगाववाद के विरोध के संकेत देने शुरू कर दिए। राज्य के नए सत्ताधारी नैशनल कांफ्रैंस के नेता क्रोध में आ गए।
14 फरवरी 1949 को सायं के समय पंडित प्रेमनाथ डोगरा के पड़ोसी व संबंधी पंडित लभुराम के पुत्र के विवाह का एक समारोह चल रहा था, इसी दौरान किसी ने सूचना दी कि पंडित डोगरा को गिरफ्तार करने के लिए देर रात पुलिस छापामारी करेगी। यह सूचना मिलने पर कुछ मित्रों ने परामर्श दिया कि पंडित जी को इधर-उधर चले जाना चाहिए किन्तु कुछ पलों तक मौन रहने के पश्चात आपने ऐसा करने से इंकार कर दिया और कहा कि इससे तो यह समझा जाएगा कि डोगरा डर गया है।
उसी समय पंडित डोगरा वहां से अपने घर पहुंचे और एक पंडित को बुलाकर रात को ही शक्ति पूजन करवाया और जेल जाने के लिए तैयार हो गए। इसी दौरान आपने प्रजा परिषद के महासचिव हंसराज पनगोत्रा को प्रैस को जारी करवाने के लिए एक छोटा-सा वक्तव्य भी लिखवाया जिसमें कहा गया था कि महाराजा हरि सिंह ने अपने कानूनी अधिकारों का प्रयोग करते हुए उसी विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं जिस पर देश के अन्य 550 से अधिक राज्यों के राजाओं और नवाबों ने किए थे। इसलिए जम्मू-कश्मीर को भी देश के अन्य भागों की भांति एक अभिन्न अंग माना जाए और राज्य के महाराजा को भी वही सुविधाएं मिल जाएं जो अन्य राज प्रमुखों को दी जा रही हैं।
गिरफ्तारी के लिए पुलिस का घेरा
प्रात: होने से पूर्व ही पुलिस ने पंडित डोगरा के आवास को घेरे में ले लिया और सख्त सर्दी के बावजूद भी उन्हें सीधे श्रीनगर ले जाया गया और वहां सैंट्रल जेल में बंद कर डाला। उनके विरुद्ध बड़ा आरोप यह लगाया गया कि वह साम्प्रदायिक हैं और रजवाड़ाशाही के समर्थक हैं।
जेल में दुव्र्यवहार
जेल में कैदियों के साथ किस तरह से दुव्र्यवहार किया जाता था, इसका अच्छा-खासा उल्लेख प्रजा परिषद के एक वरिष्ठ कार्यकत्र्ता साथी राम गुप्ता ने अपनी जेल डायरी में भी किया है। अपनी इस पुस्तिका का नाम ‘विश धारा 370’ रखा है जिसमें यह अंकित किया गया है कि प्रजा परिषद के नेताओं की जेल में निगरानी के लिए पैंदे खान और अन्य उन कबायलियों को नियुक्त किया गया था जो 1947 में आक्रमणकारी बनकर आए थे किन्तु भारतीय सैनिकों द्वारा पकड़े जाने के पश्चात जेल में डाल दिए गए थे।
पहला सत्याग्रह आंदोलन
पंडित प्रेमनाथ डोगरा और उनके कुछ एक साथियों को श्रीनगर जेल में बंद किए जाने के विरुद्ध अच्छा-खासा तनाव उत्पन्न हुआ। उनकी मुक्ति के लिए मई 1949 में पहला सत्याग्रह आंदोलन शुरू हुआ किन्तु इस आंदोलन को दबाने के लिए सरकार ने सख्त (क्रूर) तौर-तरीके अपनाए जिनमें एक यह भी था कि पकड़े जाने के पश्चात सत्याग्रहियों को मारपीट करने के अतिरिक्त कुछ एक के कानों पर थप्पड़ भी लगाए जाते थे और उन्हें एक प्रकार से बधिर बना दिया जाता था।
ऐसे सत्याग्रहियों में से एक दुकान के कर्मचारी दीनानाथ शर्मा और रियासी के चूनी लाल पंडोह का उल्लेख भाजपा की ओर से प्रकाशित की गई एक पुस्तक में भी किया गया है। सत्याग्रहियों पर हिंसा की यह लहर दिल्ली तक पहुंची और कुछ सांसद परिस्थितियों का जायजा लेने के लिए जम्मू पहुंचे जिसके पश्चात कुछ केन्द्रीय सत्ताधारियों के हस्तक्षेप पर 8 माह पश्चात 8 अक्तूबर 1949 को पंडित डोगरा को जेल से मुक्त कर दिया गया।
बड़े आंदोलन की तैयारी
जेल से मुक्ति के पश्चात देश की एकता के लिए पंडित डोगरा ने अपना आंदोलन जारी रखा और 1951 में उन्हें एक बड़ा समर्थन प्राप्त हुआ जब डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने भारतीय जनसंघ का गठन किया। पंडित डोगरा और उनके साथियों के साथ लम्बी बातचीत के पश्चात डा. मुखर्जी ने यह नारा बुलंद किया कि एक देश में दो विधान, दो प्रधान व दो निशान नहीं चलेंगे जिसके साथ ही जम्मू-कश्मीर प्रजा परिषद ने धारा 370 और अलगाववाद की प्रवृत्तियों के विरुद्ध एक बड़े सत्याग्रह आंदोलन की तैयारियां शुरू कर दीं।
पंडित डोगरा का स्पष्ट दृष्टिकोण
पंडित डोगरा का यह कहना था कि सम्प्रदाय को किसी राजनीतिक बंटवारे का साधन नहीं बनाया जा सकता। समुदाय तो ईश्वर की पूजा-अर्चना का एक तरीकाकार हो सकता है किन्तु समुदाय के आधार पर बंटवारा खतरनाक स्थिति उत्पन्न कर देता है। सम्प्रदाय तो पूजा-पाठ का एक तरीकाकार हो सकता है किन्तु किसी अलगाववाद को आधार बनाना मानवीय एकता के मूल्यों के विपरीत सिद्ध होता है और भारत में तो कई उपासना पद्धतियां हैं। अगर सम्प्रदाय को किसी राजनीतिक बंटवारे का आधार माना जाए तो भारत नाम का शायद ही कोई देश शेष रह पाएगा। आपका यह भी कहना था कि जिन तत्वों ने भारत-पाकिस्तान का सम्प्रदाय के आधार पर बंटवारा किया है। उन्होंने मानवता के साथ एक बड़ा अन्याय किया है और यह बंटवारा एक बड़ी दुर्घटना मानी जानी चाहिए।
धारा 370 की समाप्ति
जम्मू-कश्मीर में अलगाववाद की समस्याओं के लिए जिम्मेदार धारा 370 और 35ए को समाप्त कर दिया गया है जिससे पंडित डोगरा और उनके साथियों का 70 वर्ष पुराना मिशन पूरा हुआ है किन्तु पंडित जी के निधन के 48 वर्ष पश्चात अर्थात आज बहुत कम लोग जानते होंगे कि यह संघर्ष कितना बड़ा था तथा इसको हटाने के लिए कितने देशभक्त युवकों ने अपना जीवन तक न्यौछावर कर दिया और इसी आंदोलन में डा. मुखर्जी को अपना बलिदान देना पड़ा।-गोपाल सच्चर