जनता ने दिखाई ‘शाह और शहंशाह’ का रथ रोकने की हिम्मत

Edited By ,Updated: 25 Oct, 2019 12:43 AM

public shows courage to stop chariot of  shah and emperor

देश को राह तो नहीं दिखी मगर राहत जरूर मिली है। शाह और शहंशाह के जिस रथ को रोकने की हिम्मत विपक्ष में न थी, उस पर जनता ने ब्रेक लगा दी है। शायद इसीलिए जनता को जनार्दन कहते हैं। इस लिहाज से लोकतंत्र फिर से पटरी पर आता दिख रहा है। महाराष्ट्र में...

देश को राह तो नहीं दिखी मगर राहत जरूर मिली है। शाह और शहंशाह के जिस रथ को रोकने की हिम्मत विपक्ष में न थी, उस पर जनता ने ब्रेक लगा दी है। शायद इसीलिए जनता को जनार्दन कहते हैं। इस लिहाज से लोकतंत्र फिर से पटरी पर आता दिख रहा है। महाराष्ट्र में भाजपा और शिवसेना जीत जरूर गई, लेकिन उसकी अजेयता का दंभ टूट गया है।

जनता ने जहां भाजपा-शिवसेना के 200 पार के अहंकार को तोड़ दिया है, वहीं एजैंडा विहीन कांग्रेस-राकांपा गठबंधन को भी खारिज कर दिया है। उधर हरियाणा में भाजपा के 75 पार के सपने को चकनाचूर कर जनता ने निकम्मी सरकार को सजा दी है। अब चाहे पैसे, डंडे और तिकड़म के जोर से भाजपा सरकार बना भी ले लेकिन यह साफ है कि उसे जनादेश नहीं है। उधर जनता ने कांग्रेस को भी जनादेश नहीं दिया है। निकम्मी सरकार और विपक्ष बेकार के बीच फंसी जनता के असमंजस का परिणाम है हरियाणा की यह त्रिशंकु विधानसभा। 

परिणाम नाटकीय नहीं
महाराष्ट्र का परिणाम उतना नाटकीय नहीं है जितना हरियाणा का। इसलिए उसके निहितार्थ भी कुछ बारीक हैं। यह साफ  है कि अगर कांग्रेस ने अपने चुनाव प्रचार में वह ऊर्जा और चुस्ती दिखाई होती जो शरद पवार ने दिखाई और गठबंधन करने में भाजपा से कुछ सीखा होता तो चुनाव के परिणाम अलग हो सकते थे, भाजपा-शिवसेना सत्ता से बाहर भी हो सकती थीं। आज जो स्थिति है उसके चलते अगले कुछ वर्षों में कांग्रेस प्रदेश की राजनीति से बाहर हो सकती है। एक गैर-मराठा मुख्यमंत्री की दोबारा ताजपोशी का अर्थ होगा महाराष्ट्र की राजनीति के सामाजिक समीकरणों में बदलाव। साथ ही राकांपा के अच्छे प्रदर्शन ने यह साफ कर दिया है कि खेती-किसानी के मुद्दों को राजनीति में नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। शिवसेना को सरकार में बनाए रखने की मजबूरी राज्य की राजनीति में अस्थिरता जरूर पैदा करेगी लेकिन इससे सत्ता की निरंकुशता पर रोक भी लगेगी। 

हरियाणा के चुनाव परिणाम को राजनीतिक हलकों में केवल जातीय चश्मे से देखा जाएगा। इसे गैर-जाट मुख्यमंत्री के विरुद्ध जाट समुदाय के आक्रोश की तरह पेश किया जाएगा। इसमें सच का कुछ अंश हो सकता है। यह सच है कि जातीय राजनीति के शिकार जाट समुदाय ने भाजपा के जाट चेहरों को चुन-चुन कर धूल चटाई और रणनीति के तहत कहीं कांग्रेस तो कहीं जे.जे.पी. को वोट दिया। लेकिन यह गैर जाट मुख्यमंत्री के खिलाफ गुस्से की बजाय फूट डालो और राज करो की रणनीति के विरुद्ध आक्रोश था। साथ ही भाजपा के एजैंडे से बिल्कुल गायब दलित समुदाय का गुस्सा भी सरकार के खिलाफ  गया। 

पतन का कारण केवल जातीय समीकरण नहीं
मगर हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी के इस नाटकीय पतन का कारण केवल जातीय समीकरण नहीं था। इसकी बुनियाद में था सरकार के निकम्मेपन के विरुद्ध जनता में असंतोष। सन् 2014 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने प्रदेश की अर्थव्यवस्था को ठीक कर राज्य पर कर्ज घटाने का वादा किया था लेकिन पिछले 5 साल में कर्ज दोगुना से अधिक बढ़ गया। वादा बेटी बचाने का था लेकिन बलात्कार की घटनाएं डेढ़ गुना बढ़ गईं, महिलाओं के अपहरण दोगुना से अधिक बढ़ गए। वादा शराब कम करने का था लेकिन शराब की खपत डेढ़ गुना बढ़ गई। दावा प्रदेश में किसान के दाने-दाने को खरीदने का था लेकिन बाजरे और सरसों की खरीद 5 साल में एक बार ही ढंग से हुई और तब भी चार में से एक दाना ही खरीदा गया। 

सबसे बड़ा सवाल बेरोजगारी का था। पिछले तीन साल में बेरोजगारी में हरियाणा देश में सात पायदान चढ़ कर पहली पायदान पर पहुंच गया है। प्रदेश के हर गांव, हर मोहल्ले में बेरोजगारों की भीड़ देखी जा सकती है। बेरोजगारों का गुस्सा हरियाणा चुनाव में भाजपा के लिए भारी पड़ गया। तिस पर प्रदेश में पिछले 5 साल में तीन बार अराजकता की स्थिति पैदा होना और राज्य सरकार का मूकदर्शक बने रहना प्रदेश की जनता को नागवार गुजरा। 

सबक साफ हैं
भाजपा के लिए इस चुनाव परिणाम के सबक साफ हैं। विधानसभा के चुनाव किसी हवाई राष्ट्रीय मुद्दे के सहारे नहीं जीते जा सकते। धारा 370 और एन.आर.सी. टी.वी. पर भले ही चल लें लेकिन उसके बल पर हरियाणा और महाराष्ट्र की जनता का मत नहीं जीता जा सकता। अर्थव्यवस्था के संकट से भाजपा मुंह नहीं मोड़ सकती। देश में बेरोजगारी बढ़ती जा रही है और जिन इलाकों में बेरोजगारी सबसे तीव्र है वहां वोटर की नाराजगी का सामना करना पड़ेगा। मोदी जी भले ही लोकप्रिय प्रधानमंत्री हैं लेकिन केवल उनकी लोकप्रियता के बल पर देश में जहां कहां किसी उम्मीदवार को खड़ा करके जिताया नहीं जा सकता। राज्य की राजनीति की अपनी जमीन है, उसके अपने मुद्दे हैं, उसका अपना मुहावरा है। 

सबक विपक्ष के लिए भी है, बशर्ते कि वह सीखने को तैयार हो। भाजपा को जरूर झटका लगा है लेकिन जनता ने कांग्रेस या अन्य किसी विपक्षी दल में भरोसा नहीं जताया है। विपक्ष जब तक विरोध के लिए विरोध करता रहेगा तब तक उसे भाजपा की कमजोरी का फायदा भले ही मिल जाए, सकारात्मक समर्थन नहीं मिलेगा। देश के सामने वैकल्पिक एजैंडा और भरोसेमंद चेहरा पेश किए बिना विपक्ष जनादेश प्राप्त नहीं कर सकता। आज देश को सिर्फ विपक्ष नहीं, प्रतिपक्ष चाहिए।-योगेन्द्र यादव
 

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