‘इलैक्टोरल बांड’ पर सवाल दर सवाल

Edited By ,Updated: 02 Apr, 2021 01:56 AM

question by question on  electoral bond

देश में बहुत ब्लैक मनी है। ब्लैक मनी इसलिए भी है क्योंकि चुनाव में ब्लैक मनी ही काम आती है। राजनीतिक दलों को ब्लैक में चंदा मिलता है। यह कुछ ऐसे आरोप हैं जो आप और हम सालों से सुनते आए हैं लेकिन  चुनावी चंदे को ब्लैक मनी से दूर करने की और चुनावी चंदे...

देश में बहुत ब्लैक मनी है। ब्लैक मनी इसलिए भी है क्योंकि चुनाव में ब्लैक मनी ही काम आती है। राजनीतिक दलों को ब्लैक में चंदा मिलता है। यह कुछ ऐसे आरोप हैं जो आप और हम सालों से सुनते आए हैं लेकिन  चुनावी चंदे को ब्लैक मनी से दूर करने की और चुनावी चंदे में पारदर्शिता लाने की हमारे यहां क्या ईमानदार कोशिशें हुई हैं? क्या इलैक्टोरल बांड इसका विकल्प है या फिर इस तरह के बांड नया हथियार साबित हो रहे हैं। सवाल यह भी उठाए जा रहे हैं कि इतने महत्वपूर्ण मसले पर सुप्रीम कोर्ट अपना अंतिम फैसला कब देगा। 

आपको पता ही होगा कि पहले हमारे देश में आप या मैं किसी भी पॉलिटिकल पार्टी को 20 हजार रुपए तक का चंदा बिना रसीद के दे सकते थे। यानी राजनीतिक दल आपसे बीस हजार रुपए कैश ले लेगा  और आपको कोई रसीद भी नहीं देगा। यानी किसने चंदा दिया, उसका पता ठिकाना क्या है इसका कोई सबूत नहीं मिलेगा। कुछ साल पहले इसमें बदलाव इसलिए किया गया क्योंकि देखा गया कि सभी पाॢटयों को कुल चंदे का नब्बे फीसदी से ज्यादा 20 हजार या उससे कम के रूप में ही मिल रहा था यानी कोई हिसाब-किताब नहीं। 

यह बात हम नहीं कह रहे। यह बात इलैक्शन वाच ने बताई। यह बात ए.डी.आर. यानी एसोसिएशन फोर डैमोक्रेटिक रिफार्म ने बताई। बहन मायावती की बहुजन समाज पार्टी को तो पूरा सौ फीसदी चंदा इसी रूप में आया था। पार्टी का कहना था कि उनके समर्थक गरीब दलित हैं जो बीस हजार से ज्यादा चंदा देने की हैसियत ही नहीं रखते। दूसरे दलों ने भी ऐसा ही कुछ कहा। अब कहा गया कि बीस हजार की जगह दो हजार रुपए तक का चंदा ही बिना रसीद के लिया जाएगा। उससे ऊपर का चंदा जो देगा उसका नाम-पता, पेशा सब बताना होगा। सबने सोचा कि अब कुछ पारदर्शिता आएगी लेकिन यह क्या, सभी दलों ने कहा कि उन्हें तो अस्सी फीसदी से ज्यादा चंदा दो हजार रुपए से नीचे का मिल रहा है।


अब होता यह है कि मान लीजिए आप किसी दल को पचास हजार रुपए का चंदा देना चाहते हैं और यह भी नहीं चाहते कि आपका नाम सामने आए तो आप 20-20 हजार रुपए दो बार में दे देंगे और दस हजार रुपए एक बार में। अब दो हजार रुपए तक की लिमिट है तो पच्चीस अलग-अलग बार दो-दो हजार रुपए देना बताया जाएगा ताकि रसीद की नौबत नहीं आए नाम-पता, पेशा जाहिर न करना पड़े। तो कुल मिलाकर बिना रसीद के दो हजार की लिमिट तय करना भी चुनावी चंदे में पारदॢशता नहीं ला सका। अब सरकार ले आई इलैक्टोरल बांड। 

सिर्फ दो साल में भाजपा को डेढ़ हजार करोड़ रुपए का चंदा सिर्फ इलैक्टोरल बॉन्ड के जरिए मिला है, जो कांग्रेस की तुलना में 184 फीसदी ज्यादा है। वही इलैक्टोरल बॉन्ड जिस पर सुप्रीमकोर्ट ने शुक्रवार को रोक लगाने से इंकार कर दिया, वही इलैक्टोरल बॉन्ड जिसे भाजपा पारदर्शिता के नाम पर लाई थी, वही इलैक्टोरल बॉन्ड जो लोकसभा के चुनावों में 3 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का खरीदा गया। इससे पहले ए.डी.आर. यानी एसोसिएशन फॉर डैमोक्रेटिक रिफार्म की ओर से दाखिल याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई हुई थी और फैसले को सुरक्षित रख लिया गया था। 

दरअसल केंद्र सरकार ने देश के राजनीतिक दलों के चुनावी चंदे को पारदर्शी बनाने के लिए वित्त वर्ष 2017-18 के बजट में इलैक्टोरल बॉन्ड शुरू करने का ऐलान किया था। कोई  व्यक्ति, संस्था और संगठन किसी राजनीतिक पार्टी को चंदा देने के लिए भारतीय स्टेट बैंक की चुनिंदा शाखाओं से इलैक्टोरल बॉन्ड खरीद सकता है और उसे अपनी पसंद की राजनीतिक पार्टी को दे सकता है। राजनीतिक पार्टियों के पास 15 दिन का समय होता है, 15 दिन के भीतर वह उस बॉन्ड को बैंक में दिखाकर पैसे ले सकती हैं। जितने का बॉन्ड होगा, उतना ही पैसा मिलेगा लेकिन इलैक्टोरल बॉन्ड सिर्फ 4 डिनॉमिनेशन 1 हजार, 10 हजार, 1 लाख और 1 करोड़ रुपए में ही उपलब्ध हैं। 

किसने कितने बांड खरीदे, खऱीद कर किस पार्टी को दिए यह बात बैंक गुप्त रखता है। सूचना के अधिकार के तहत भी बैंक को यह जानकारी सार्वजनिक करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। यह बात कानून में लिखी हुई है। अलबत्ता अगर किसी जांच एजैंसी को ऐसी जानकारी चाहिए तो बैंक उस एजैंसी को यह जानकारी उपलब्ध कराने के लिए मजबूर है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में साफ किया था कि हर साल राजनीतिक पार्टियों को चुनाव आयोग को बताना पड़ेगा कि उसे कितने इलैक्टोरल बांड से कितना चंदा मिला।

जनवरी-मार्च 2019 में लोकसभा चुनावों से ठीक पहले 1700 करोड़ रुपए के इलैक्टोरल बॉन्ड खरीदे गए। अप्रैल-मई 2019 में लोकसभा चुनावों के दौरान 3078 करोड़ रुपए के इलैक्टोरल बॉन्ड खरीदे गए। हम लोकसभा चुनावों से पहले और और लोकसभा चुनावों के दौरान खरीदे गए इलैक्टोरल बॉन्ड की रकम को जोड़ दें तो ये जाता है 4794 करोड़ से भी ज्यादा, जो शुरूआती फेजों में खरीदे गए सारे इलैक्टोरल बॉन्ड की रकम का लगभग 74 फीसदी बैठता है। अक्तूबर 2020 तक कुल 6492 करोड़ रुपए से ज्यादा के इलैक्टोरल बॉन्ड खरीदे जा चुके थे। 

एस.बी.आई. के आंकड़ों के मुताबिक 14वें फेज में कुल 283 करोड़ रुपए के इलैक्टोरल बॉन्ड खरीदे गए, जिसमें से 279 बॉन्ड एक करोड़ वाले थे, जो 279 करोड़ बैठता है। यानी 98प्रतिशत रकम 1 करोड़ वाले बॉन्ड से आई, अब आप सोचिये कि 1 करोड़ का बॉन्ड कौन खरीद सकता है? अब आप इससे अंदाजा लगा सकते हैं कि इलैक्टोरल बॉन्ड की ज्यादातर खरीद कार्पोरेट जगत के लोग कर रहे हैं और कॉर्पोरेट जगत फ्री में किसी को कुछ नहीं देता। 

अब देखते हैं कि भाजपा और कांग्रेस की चुनाव आयोग को दी गई सालाना रिपोर्ट क्या कहती है। यह रिपोर्ट 2017-18 और 2018-19 की हैं। इसके मुताबिक 2017-18 में भाजपा को 210 करोड़ रुपए का चंदा मिला, तो वहीं कांग्रेस को 32 करोड़ रुपए का यानी भाजपा को कांग्रेस की तुलना में 84 फीसदी से भी ज्यादा का चंदा मिला। 2018-19 में बीजेपी को करीब 1400 करोड़ रुपए का चंदा मिला, तो कांग्रेस को लगभग 500 करोड़ का, यानी 2018-19 में भाजपा को कांग्रेस की तुलना में इलैक्टोरल बॉन्ड के जरिए 61 फीसदी ज्यादा की फंडिंग हुई। 

अंत में सवाल उठता है कि जब इलैक्टोरल बांड को लेकर इतने सारे सवाल उठ रहे हैं तो भी सुप्रीम कोर्ट अपने फैसले को रोक कर क्यों बैठा है, क्यों विधानसभा चुनावों से पहले बांड खरीदने पर रोक नहीं लगाई गई। या फिर सवाल उठता है कि जो भी सवाल इलैक्टोरल बांड को लेकर उठाए जा रहे हैं वह सब बेबुनियाद हैं।-विजय विद्रोही

India

397/4

50.0

New Zealand

327/10

48.5

India win by 70 runs

RR 7.94
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!