विपक्षी एकता की धुरी बनते राहुल

Edited By ,Updated: 24 Feb, 2019 04:41 AM

rahul becomes the axle of opposition unity

विपक्षी एकता के खटराग को परवान चढ़ाने में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू दिन- रात एक कर रहे हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव के वक्त उन्होंने नरेन्द्र मोदी को महिमामंडित करने में अपना जितना वक्त लगाया था, 2019 के आम चुनावों में वह वही रीत...

विपक्षी एकता के खटराग को परवान चढ़ाने में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू दिन- रात एक कर रहे हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव के वक्त उन्होंने नरेन्द्र मोदी को महिमामंडित करने में अपना जितना वक्त लगाया था, 2019 के आम चुनावों में वह वही रीत राहुल गांधी के साथ दोहरा रहे हैं। 

इस उपक्रम के तहत नायडू ने विपक्षी एकता को एक चेहरा-मोहरा देने के लिए ‘कॉमन मिनिमम प्रोग्राम’ बनाने का जिम्मा राहुल को सौंपा है, इस नाते कि राहुल सबसे बड़़े विपक्षी दल कांग्रेस के अध्यक्ष हैं। सूत्र बताते हैं कि राहुल से मिलकर नायडू ने साफ कर दिया है कि विपक्षी दलों के लिए ‘कॉमन मिनिमम प्रोग्राम’ में दो मुद्दों को राहुल सबसे ज्यादा प्राथमिकता दें, खेती-किसानी और बेरोजगारी। इस बारे में राहुल से निर्णायक बातचीत के लिए 26 फरवरी को चंद्रबाबू एकबारगी पुन: दिल्ली आ रहे हैं। इसीलिए कांग्रेस ने अपनी कार्य समिति की बैठक को भी दो दिन आगे बढ़ा दिया है। 

पहले सी.डब्ल्यू.सी. की यह बैठक 26 फरवरी को गुजरात में आहूत थी, इसके लिए अब 28 फरवरी की नई तिथि मुकर्रर की गई है। सबसे खास बात तो यह कि विपक्षी एकता की इस रफ्तार को नई धार देने के लिए ममता बनर्जी भी 26 को दिल्ली पहुंच रही हैं और उनके भी इस बैठक में मौजूद रहने की संभावनाएं बनी हुई हैं। कांग्रेस की आम परम्पराओं में विपक्षी दलों की संयुक्त बैठकों में कांग्रेस की ओर से अक्सर गुलाम नबी आजाद को इसकी नुमाइंदगी के लिए भेजा जाता था पर बदले घटनाक्रमों में अब स्वयं राहुल इसमें बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं। शरद पवार के डिनर में शामिल होने के लिए इसी वजह से राहुल ने हामी भरी थी और विपक्षी एकता के सुर सजाने के लिए ही उन्होंने केजरीवाल के साथ मंच शेयर करने से भी संकोच नहीं किया। कहना न होगा कि राहुल एक बदले अवतार में सामने आए हैं और अब सियासत की धार पर चलने में भी माहिर हो रहे हैं। 

दिल्ली में दोस्ती, आंध्र में लड़ाई
चंद्रबाबू नायडू को इस बात का भली-भांति इल्म है कि राहुल के संग दिल्ली में उनकी दोस्ती आंध्र में उनके गले पड़ जाएगी। अब यह साफ हो चुका है कि मोदी को हराने की मिलकर सौगंध खाने वाले चंद्रबाबू और राहुल आंध्र में आमने-सामने की लड़ाई लड़ेंगे। 5 राज्यों के हालिया विधानसभा चुनावों के वक्त चंद्रबाबू ने राहुल से वायदा किया था कि आंध्र में तेदेपा और कांग्रेस के बीच गठबंधन होगा। इसके लिए बाकायदा चंद्रबाबू ने राहुल के समक्ष एक प्लान भी रखा था कि तेदेपा 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के लिए 4 और विधानसभा की 25 सीटें छोड़ेगी। पर तेलंगाना प्रदेश अध्यक्ष उत्तम रैड्डी राहुल से मिले और उन्हें यह समझाने में कामयाब रहे कि तेलंगाना विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की बुरी गत तेदेपा के साथ गठबंधन में रहने की वजह से हुई। कहीं यही हाल आंध्र में भी न हो जाए क्योंकि इस बार चंद्रबाबू के खिलाफ लोगों में किंचित नाराजगी है और नायडू के व्यवस्था विरोधी वोटों की कीमत कहीं कांग्रेस को भी न चुकानी पड़ जाए। उत्तम रैड्डी के कहने के बाद राहुल ने आंध्र में एक राज्यव्यापी सर्वेक्षण करवाया, सर्वेक्षण के नतीजों ने राहुल को सचेत किया कि सचमुच आंध्र में इस दफे चंद्रबाबू के खिलाफ जबरदस्त एंटी इंकम्बैंसी लहर चल रही है। चुनांचे उन्होंने नायडू से दो टूक बात कर ली कि आंध्र में तेदेपा और कांग्रेस अलग-अलग और अपने दम पर चुनाव लड़ेंगी। 

तमिलनाडु में कास्ट कार्ड
तमिलनाडु में भले ही भाजपा और अन्नाद्रमुक के बीच गठबंधन ने एक मुकम्मल शक्ल पा ली हो, पर राज्य की राजनीति में संभवत: यह पहला ऐसा चुनाव होगा जो चेहरों पर नहीं लड़ा जा रहा। जयललिता, करुणानिधि जैसे बड़े सूरमाओं के निधन के बाद कोई ऐसा बड़ा चेहरा उभरकर सामने नहीं आ पाया है। करुणानिधि के पुत्र स्टालिन भले ही अपने पार्टी कैडर में लोकप्रिय हों, पर आम जनता में उनकी लोकप्रियता का पैमाना अपने पिता के आसपास भी नहीं है। चुनांचे इस दफे के चुनाव में तमिलनाडु के सभी छोटे-बड़े दल जातीय कार्ड खेलने का इरादा रखते हैं। भाजपा और अन्नाद्रमुक का जो गठबंधन बना है उसमें पी.एम.के. ने अपनी डिमांड बढ़ाते हुए 7 सीटें झटक ली हैं, पहले उसको महज 3 सीटें दी जानी थीं। 

सूत्रों की मानें तो तमिलनाडु में भाजपा अपना सारा दाव वहां के ब्राह्मण वोटों पर लगा रही है, ङ्क्षहदू नाडर जाति के वोटों पर भी उसकी नजर है। अन्नाद्रमुक को पश्चिम क्षेत्र में थेवर जाति का काफी सपोर्ट मिल रहा है। पी.एम.के. का उत्तरी तमिलनाडु में अच्छा असर है, वन्नियार वोट बैंक में उसकी अच्छी पैठ है। वहीं दिनाकरण का भी थेवर जाति में असर है, मदुरै के क्षेत्र में उनके समर्थकों की खासी तादाद है। पी.एम.के. के पास रामदौस के रूप में एक बड़ा चेहरा है। सो, कहना न होगा कि इस दफे तमिलनाडु की चुनावी लड़ाई एक दिलचस्प मुकाम पर पहुंच गई है।

राज्यसभा में आ सकते हैं सिंधिया
चुनाव की इस पूर्व बेला में मध्य प्रदेश से एक बड़ी खबर आ रही है। कांग्रेस से जुड़े उच्च पदस्थ सूत्रों का दावा है कि इस दफे के चुनाव में मध्य प्रदेश की गुना सीट से ज्योतिरादित्य सिंधिया की पत्नी प्रियदॢशनी राजे सिंधिया को मैदान में उतारा जा सकता है। राहुल चाहते हैं कि ज्योतिरादित्य ज्यादा से ज्यादा वक्त पार्टी और चुनाव को दें, संभवत: उन्हें मध्य प्रदेश से राज्यसभा में लाया जा सकता है। पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा के साथ जब से उन्हें पश्चिमी उत्तर प्रदेश की नई जिम्मेदारी मिली है, कांग्रेस में उनका कद अनायास ही काफी बढ़ गया है। 
कमलनाथ और ज्योतिरादित्य के बीच छिड़ी अघोषित जंग से निजात पाने के लिए ही संभवत: राहुल सिंधिया को मध्य प्रदेश से यू.पी. लेकर 
आए हैं। सूत्रों की मानें तो सिंधिया आए दिन राहुल के पास अपनी शिकायतों का पिटारा लेकर पहुंचते थे कि कमलनाथ कैसे राज्य में 
उनके लोगों की अनदेखी कर रहे हैं। राज्य में नई नियुक्तियों को लेकर भी सिंधिया और कमलनाथ के बीच तलवारें तनी थीं। सो, राहुल ने सिंधिया को यू.पी. लाकर एक बड़ा दाव चला है। 

गहलोत बनाम पायलट
कांग्रेस शासित एक और प्रदेश राजस्थान में भी वहां के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच सब ठीक-ठाक नहीं चल रहा है। यह तनातनी लोकसभा के लिए टिकटों के वितरण में भी साफ-साफ  दिख रही है। पायलट समर्थक लगातार यह आरोप लगा रहे हैं कि राजस्थान में लोकसभा के टिकट वितरण में उनकी अनदेखी हो रही है। सूत्रों की मानें तो पिछले दिनों सचिन पायलट ने अपने कैम्प के इन तमाम टिकट के दावेदारों को अपने घर भोजन पर आमंत्रित किया। कहते हैं उसमें यह रणनीति बनी है कि पहले टिकट पर अपना दावा तेज करो, फिर राहुल जी से बात की जाएगी और अगर उससे भी बात नहीं बनी तो फिर अपनी ताकत का प्रदर्शन तो करना ही होगा। 

नए सितारों की तलाश में ममता
टॉलीवुड के स्टार पावर के सियासी मंथन का हुनर कोई ममता बनर्जी से सीखे। पिछले कुछ चुनावों में उन्होंने बांगला फिल्म इंडस्ट्री ‘टॉलीवुड’ के कई चमकते सितारों को अपना मुरीद बना लिया। थोकभाव में उन्हें चुनावी मैदान में उतारा और उसमें से ज्यादातर जीत कर दिल्ली और कोलकाता में अपनी सियासी चमक बिखेरने लगे। बंगाली फिल्मों के सुपर स्टार देव ने दीदी से मिलकर इस बार चुनाव लडऩे में अपनी अनिच्छा जताई है, लोकसभा का पिछला चुनाव वह बेहद आसानी से जीत गए थे, पर एक सांसद के तौर पर लोगों की अपेक्षाओं पर खरा उतरना उनके लिए किंचित आसान नहीं रहा। सो, ऐसे समय में जबकि भाजपा ‘टॉलीवुड’ के कई चमकते-दमकते सितारों के साथ मैदान में उतरने की तैयारी में है, दीदी ने भी बदली भाव-भंगिमाओं के साथ कई नए चेहरों पर दाव लगाने की ठानी है। 

दीदी की लिस्ट में जो नए चेहरे बताए जा रहे हैं उसमें बंगाली सिनेमा की खूबसूरत अभिनेत्री नुसरत जहां का नाम भी शामिल है। नुसरत दीदी के सांसद भतीजे अभिषेक बनर्जी की भी करीबी बताई जाती हैं। नुसरत के अलावा दीदी जून मलीहा और सोहम चक्रवर्ती पर भी भरोसा कर सकती हैं। इंद्राणी हलदर का भी नाम चर्चा में है। टी.एम.सी. से जुड़े सूत्र खुलासा करते हैं कि दीदी ने नुसरत और जून को चुनावी मैदान में उतारने का लगभग मन बना लिया है। वहीं युवा तृणमूल पार्टी के उपाध्यक्ष सोहम चक्रवर्ती 2016 का पिछला विधानसभा चुनाव बांकुरा जिले के बरजोरा से लड़े थे, पर उस चुनाव में उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा था। पर इस दफे सोहम को दीपक अधिकारी उर्फ देव की संसदीय सीट से मैदान में उतारा जा सकता है। 

अजित का परिवारवाद
उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा के गठबंधन में अजित सिंह की एंट्री के बाद इतना तो तय माना जा रहा है कि अजित को आबंटित की गई तीनों सीटें उनके परिवार में ही रहेंगी। मुजफ्फरनगर से जहां अजित सिंह स्वयं चुनाव लडऩा चाहते हैं, उनके पुत्र जयंत चौधरी इस दफे मथुरा की बजाय बागपत से चुनाव लडऩा चाहते हैं। मथुरा की सीट से जयंत अपनी पत्नी चारू सिंह चौधरी को मैदान में उतारना चाहते हैं। 

...और अंत में 
भाजपा की भ्रष्टाचार के खिलाफ चलाई जा रही मुहिम पर विपक्षी दल अब निशाना साधने लगे हैं। इनका आरोप है कि सिर्फ उन्हीं नेताओं पर सी.बी.आई., सी.वी.सी. या ई.डी. की गाज क्यों गिर रही है जो मोदी-शाह के खिलाफ हैं। नहीं तो बेल्लारी रैड्डी बंधुओं जैसे नेताओं पर जांच की रफ्तार इतनी धीमी क्यों है?-मिर्च-मसाला त्रिदीब रमण

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