प्रधानमंत्री की ‘गद्दी’ प्राप्त करने के लिए राहुल को कहीं अधिक मेहनत करनी होगी

Edited By Pardeep,Updated: 29 Jul, 2018 03:46 AM

rahul will have to work harder to get the prime minister s  throne

ठीक है, मान लिया कि राहुल गांधी में विश्वास पैदा हो गया है और अब वह मंच से भयभीत नहीं होते। ऐसा दिखाई देता है कि अविश्वास प्रस्ताव पर हालिया चर्चा के दौरान लोकसभा में उनके 50 मिनट के भाषण ने उनके समर्थकों को आश्वस्त कर दिया कि आखिरकार गांधी परिवार...

ठीक है, मान लिया कि राहुल गांधी में विश्वास पैदा हो गया है और अब वह मंच से भयभीत नहीं होते। ऐसा दिखाई देता है कि अविश्वास प्रस्ताव पर हालिया चर्चा के दौरान लोकसभा में उनके 50 मिनट के भाषण ने उनके समर्थकों को आश्वस्त कर दिया कि आखिरकार गांधी परिवार के उत्तराधिकारी को वाकपटुता के कुछ न्यूनतम आवश्यक कौशल तो मिले, हालांकि उनकी कारगुजारी मुश्किल से कालेज ग्रेड की थी। एक राजनीतिज्ञ, जिसमें जनता के सामने बोलने का कौशल न हो, वह भी प्रधानमंत्री बन सकता है जैसे कि मनमोहन सिंह, मगर वह अपने बूते पर उस पद को प्राप्त करने की आशा नहीं कर सकता। 

मगर जनता के सामने बोलना व्यक्तित्व पैकेज का केवल एक हिस्सा है जिसकी एक ‘नेता’ बनने के लिए जरूरत होती है। राजनीति में संदेशवाहक, संदेश तथा इसे कैसे आगे पहुंचाया गया, ये सब महत्वपूर्ण होता है। एक खंडित राजनीति में सर्वोच्च कार्यकारी पद प्राप्त करने के लिए बहुत कुछ हासिल करना पड़ता है। प्रधानमंत्री की ‘गद्दी’ प्राप्त करने में सक्षम बनने के लिए राहुल गांधी को कहीं अधिक मेहनत करनी होगी और कहीं अधिक लम्बे समय तक। यद्यपि नए तथा पुराने लोगों से बनी नई कांग्रेस कार्यसमिति उन्हीं की अध्यक्षता में अपनी पहली बैठक में राहुल को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार नियुक्त करने से नहीं रुक पाई।

बहुत से लोगों ने इस पर गौर नहीं किया होगा कि कांग्रेस कार्यसमिति द्वारा राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनने के लिए तैयार घोषित करने के एक दिन बाद पार्टी को अपने कदम वापस खींचने पड़े क्योंकि ममता ने संघीय मोर्चे का नेतृत्व करने संंबंधी अपने इरादों की घोषणा कर दी। पीछे न रहते हुए बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी अपनी आकांक्षाओं को दोहरा दिया। अब कांग्रेस फिर उसी राग पर वापस लौट आई कि प्राथमिकता मोदी को हटाना है। यद्यपि इस तरह के नकारात्मक दृष्टिकोण के साथ समस्या यह है कि यह किसी को भी प्रभावित नहीं करता। 

1971 के विजेता नारे को याद करते हैं-‘‘वो कहते हैं इंदिरा हटाओ, मैं कहती हूं गरीबी हटाओ।’’ वास्तविकता में उस नारे पर अमल करने के लिए शायद ही कुछ किया हो। मगर गत चार वर्षों में मोदी गरीब के द्वार तक राहत ले जाने में जुटे हुए हैं। पहली बार एक केन्द्रीय सरकार विभिन्न योजनाओं तथा कार्यक्रमों की घोषणा कर सकती है जो वास्तव में सुविधाओं से वंचित लोगों को आधारभूत सेवाएं  उपलब्ध करवाते हैं। बैंकों का राष्ट्रीयकरण एक महंगा हथकंडा था जिसने केवल गरीबों से उनकी वोटें ही छीनीं। मोदी गरीबों को राहत देने तथा उनके कल्याण हेतु टूटी हुई कडिय़ां जोड़ रहे हैं। इसलिए एक सकारात्मक संदेश के बिना महज बोलने का कौशल राहुल को आगे नहीं ले जा सकता। लोकसभा में उनकी ‘कारगुजारी’ के कुछ दिन बाद राहुल गांधी ने इंडिया इंटरनैशनल सैंटर में एक अनौपचारिक बैठक के दौरान महिला पत्रकारों के एक समूह से मुलाकात की। हालांकि बैठक आफ द रिकार्ड थी मगर जो बातें धीरे-धीरे  टुकड़ों में सामने आईं उनसे कोई संदेह नहीं रह गया कि अप्रचलित तथा घिसे-पिटे मुहावरे ऊपर के खाली हिस्से को नहीं छिपा सकते। 

लोकसभा में उनके भाषण पर वापस लौटते हैं। यदि उनके पास प्रस्तुत करने के लिए यही सब कुछ है तो हम अवश्य कहेंगे कि उनके पास कहने के लिए बहुत कम है। तोते की तरह रटी-रटाई स्क्रिप्ट एक बी ग्रेड बालीवुड मूवी की तरह पेश की गई। उनके मुंह से घिसे-पिटे मुहावरे निकलने के कुछ ही घंटों में उनकी पार्टी ने मुम्बई में पोस्टर चिपका दिए जिनमें दावा किया गया था कि कौन है प्यार का सौदागर और कौन है नफरत का। कांगे्रस की इस छवि को नरम करने के लिए कि यह मुसलमानों के प्रति झुकाव वाली पार्टी है और ङ्क्षहदुओं के प्रति शत्रुतापूर्ण रवैया रखती है, धार्मिक पत्ते खेलने के खुले प्रयास से चुनावी लाभ मिलने की सम्भावना नहीं है। विभिन्न जातियों तथा समुदायों के हितों में संतलुन बनाने के लिए कौशल की जरूरत होती है जिसका कांग्रेस के बॉस में अभाव नजर आता है जो मुसलमान ‘विद्वानों’ के एक समूह से उनकी हालिया बैठक से स्पष्ट है। 

रक्षात्मक मुद्रा में आने के लिए बाध्य की गई उनकी पार्टी अब यह दावा करती है कि उसने कभी नहीं कहा कि कांग्रेस एक ‘मुस्लिम पार्टी’ है। गुजरात चुनावों के दौरान वह एक ‘जनेऊधारी’ ङ्क्षहदू थे और चोटी तक शिवजी के भक्त। अब वह मुसलमानों के साथ वही पत्ते खेलना चाहते हैं, इससे उनकी पार्टी दोनों समुदायों का समर्थन खो भी सकती है। मतदाताओं की अपने नेताओं की ईमानदारी को जांचने की आदत होती है। राहुल के राफेल सौदे में भ्रष्टाचार के आरोप लगाने के प्रयास भी औंधे मुंह गिरे। बोफोर्स सौदे में स्पष्ट तौर पर घूस लेने वाला व्यक्ति था और घूस देने वाला भी।

हम जानते हैं कि कैसे ओट्टावियो क्वात्रोच्चि, जो दशकों से दिल्ली में रह रहा था, ने गांधियों के साथ अपनी नजदीकियों के कारण कई ऐसे सौदों से लाभ उठाया। उसने अपनी लूट को सांझा किया और समृद्ध बना तथा यह बोफोर्स कांड सामने आने तक जारी रहा। राफेल सौदे में घूस देने वाला तथा घूस लेने वाला कौन है, उनका नाम बताकर शॄमदा करें। हवा में आरोप लगाने से कुछ नहीं होगा। हारे हुए लोगों में से कौन आरोपों के लिए भड़का रहा है, पता नहीं, मगर इससे सौदा जरूर खतरे में पड़ सकता है। भारतीय वायुसेना अपने बेड़े में युद्धक विमान शामिल करने के मामले में कई दशक पीछे है। यह उन राजनीतिज्ञों के कारण है जो एक-दूसरे पर कीचड़ उछालने में जुटे रहते हैं।-वरिन्द्र कपूर                       
                     

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